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Eastern Chalukya Ruler

पूर्वी चालुक्य शासक (Eastern Chalukya Ruler)

पूर्वी चालुक्य शासक (Eastern Chalukya Ruler)

बादामी के राजा पुलकेषिन II ने पिशहतापुर के राजा तथा विष्णुकुंदीन को पराजित कर इस नए जीते गए क्षेत्र का वाइसराय अपने भाई विष्णुवर्धन को बना दिया। जल्दी ही यह एक स्वतंत्र राज्य बन गया तथा विष्णुवर्धन ने वेंगी के पूर्वी चालुक्य वंश की स्थापना की। यह मुख्य राज्यवंश से कहीं लंबा चला। 

प्रारम्भिक शासक

  • विष्णुवर्धन ने 18 वर्षों तक शासन किया। उनकी रानी अय्याना-महादेवी ने विजयवाड़ा में एक जैन मंदिर का निर्माण करवाया। 
  • तेलुगू प्रदेश में यह जैन धर्म का पहला उल्लेख है। 
  • विष्णुवर्धन स्वयं एक भागवत था। 
  • विष्णुवर्धन के बाद उनका पुत्र जयसिम्हा I आया जो अपने पिता की तरह ही भागवत था। 
  • जयसिम्हा I के बाद विष्णुवर्धन II, विजयासिद्धी, विजयासिम्हा II, विक्रमादित्य, विष्णुवर्धन III तथा विजयादित्य एक के बाद एक आए।

विजयादित्य (Vijayaditya)

  • विजयादित्य के शासनकाल में दक्षिण में एक बड़ा राजनीतिक परिवर्तन आया जब राष्ट्रकूटों ने महान चालुक्यों की मुख्य शाखा को उखाड़ फेंका।

विष्णुवर्धन IV (Vishnuvardhan IV)

  • उन्हें राष्ट्रकूट राजा ध्रुव से शान्ति समझौते के लिए बाध्य होना पड़ा। 
  • इनका विवाह ध्रुव की पुत्री शिलम्हा देवी से हुआ था। 
  • जिसके साथ ही वेंगी राष्ट्रकूटों के अधीनस्थ बन गए।

विजयादित्य II (Vijayaditya II)

  • ये एक शक्तिशाली राजा थे तथा इन्होंने 40 वर्षों तक शासन किया। 
  • इनके बाद विजयादित्य III आए जिनकी मां राष्ट्रकूट शिलम्हा देवी थीं।

जियादित्य III गुनागा (Jiyaditya III Gunaga)

  • इन्होंने उग्र साम्राज्यवाद की नीति का पालन किया। जिसमें इनकी मदद इनके योग्य मंत्री विनयदिशरमण तथा सैनिक अध्यक्ष पांदुरंगा ने किया। 
  • इन्होने अपने आपको पूरे दक्षिणपंथ का स्वामी घोषित कर दिया। 
  • ये परे वंश का सबसे महान शासक था तथा इसका राज्य उत्तर में महेन्द्र गिरि से दक्षिण में पुलिकट झील तक फैला था। 
  • 44 वर्षों के लंबे शासनकाल के बाद गद्दी पर इनके भाई का पुत्र भीम आया।

भीम I (Bheem I)

  • इनके उत्तराधिकार को इनके चाचा युद्धमल्ला ने चुनौती दी तथा राष्ट्रकूट कृष्ण II के सहयोग से वेंगी पर कब्जा कर लिया, परन्तु चालुक्य सामंतों ने कृष्णा II को पराजित कर पुन: भीम को गद्दी पर बिठाया। 
  • ये एक शैव थे तथा इन्होंने पूर्वी गोदावरी जिले में भीमवरम् तथा दराक्षरभम् मंदिरों का निर्माण करवाया।

 

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