पृथ्वी के आन्तरिक भाग को प्रत्यक्ष रूप से देखना सम्भव नहीं है, क्योंकि यह बहुत बड़ा गोला है और इसके भूगर्भीय पदार्थों की बनावट गहराई बढ़ने के साथ बदलती जाती है। मनुष्य ने खनन् एवम् वेधन क्रियाओं द्वारा इसके कुछ ही किलोमीटर तक के आन्तरिक भाग को प्रत्यक्ष रूप से देखा है। गहराई के साथ तापमान में तेजी से वृद्धि के कारण अधिक गहराइयों तक खनन और वेधन कार्य करना संभव नहीं है। भूगर्भ में इतना अधिक ऊँचा तापमान है कि वह वेधन में प्रयोग किए जाने वाले किसी भी प्रकार के यंत्र को पिघला सकता है। अतः वेधन कार्य कम गहराइयों तक ही सीमित है। इसलिए पृथ्वी के गर्भ के विषय में प्रत्यक्ष जानकारी के मिलने में कई कठिनाइयाँ आती हैं। पृथ्वी के विशाल आकार और गइराई के साथ बढ़ते तापमान ने भूगर्भ की प्रत्यक्ष जानकारी की सीमाएँ निश्चित कर दी हैं।
भूगर्भ की संरचना
- पृथ्वी की सबसे अधिक गहराई वाली परत को क्रोड कहते हैं। यह सबसे अधिक घनत्व वाली परत है। इसका घनत्व 11.0 से भी अधिक है। यह लोहा और निकिल धातुओं से बनी है। इसीलिये क्रोड़ को निफे (निकिल+फेरम, लोहा) कहते हैं।
- क्रोड को पुनः दो परतों में बाँट सकते हैं।
- इसकी भीतरी परत ठोस है।
- दूसरी परत अर्द्ध तरल है।
- जो परत क्रोड को घेरे हुए है, उसे मैंटल कहते हैं। यह परत मुख्यतः सिलीका और मैगनीशियम से बनी है। इसलिए इस परत को सीमा (सिलीका+मैगनीशियम) भी कहते हैं। इसका घनत्व 3.1 से 5.1 तक है।
- मैंटल पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत से घिरा है। इसे रथलमण्डल कहते हैं, जिसका घनत्व 2.75 से 2.90 है।
- स्थलमण्डल के प्रमुख निर्माणकारी तत्व सिलीका (C) एल्यूमीनियम (Al) हैं। इसलिए इस परत की स्याल (सिलीका + एल्यूमीनियम) भी कहते हैं।
- स्थलमण्डल के ऊपरी भाग को भूपर्पटी कहते हैं।
- पृथ्वी के आन्तरिक भाग की तीन प्रमुख संकेन्द्रीय परते हैं – क्रोड, मैंटल और स्थलमंडल ।
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