DPSP

राज्य की नीति के निदेशक तत्व

राज्य की नीति के निदेशक तत्व
भाग-4 (अनुच्छेद 36-51)

राज्य नीति के निदेशक तत्वों का उल्लेख संविधान के भाग चार के अनुच्छेद 36 से 51 तक’ में किया गया है। संविधान निर्माताओं ने यह विचार 1937 में निर्मित आयरलैंड के संविधान से लिया। आयरलैंड के संविधान में इसे स्पेन के संविधान से ग्रहण किया गया था। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इन तत्व को ‘विशेषता’ वाला बताया हैं। मूल अधिकारों के साथ निदेशक तत्व, संविधान की आत्मा एवं दर्शन हैं। ग्रेनविल ऑस्टिन ने निदेशक तत्व और अधिकारों को “संविधान की मूल आत्मा” कहा है।

नीति निदेशक तत्व

अनुच्छेद – 36 (Article – 36) : राज्य को परिभाषा।

अनुच्छेद – 37 (Article – 37): इस भाग में समाहित सिद्धांतों को लागू करना।

अनुच्छेद – 38 (Article – 38): राज्य द्वारा जन-कल्याण के लिए सामाजिक व्यवस्था को बढ़ावा देना।

अनुच्छेद – 39 (Article – 39): राज्य अपनी नीति का संचालन इस प्रकार करेगा कि –

  • सभी पुरुष एवं स्त्रियों को जीविका के लिए पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो।
  • सामूहिक हितों को ध्यान में रखते हुए भौतिक संसाधनों का वितरण हो।
  • धन एवं उत्पादन साधनों का सकेन्द्रण न हो।
  • पुरुषों एवं स्त्रियों को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले।
  • पुरुषों तथा स्त्रियों के स्वास्थ्य का दुरुपोयग न हो और न ही उनका आर्थिक शोषण हो।

अनुच्छेद – 39 क (Article – 36 A): राज्य के लोगों के लिए समान न्याय एवं नि:शुल्क विधिक सहायका की व्यवस्था करेगा।

अनुच्छेद – 40 (Article – 40): राज्य ग्राम पंचायतों को स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में संगठित करेगा।

अनुच्छेद – 41 (Article – 41): राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के भीतर काम पाने के शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और नि:शक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त करने का प्रभावी उपबंध करेगा।

अनुच्छेद – 42 (Article – 42): राज्य काम की न्यायसंगत और मनोचित दशाओं को सुनिश्चित करने के लिए और प्रसूति सहायता के लिए उपपबंध करेगा।

अनुच्छेद – 43 (Article – 43): राज्य कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवन स्तर आदि बढ़ाने का प्रयास करेगा।

अनुच्छेद – 43 (क) (Article – 43 (A)): उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना।

अनुच्छेद – 43 (ख) (Article – 43 (B)): सहकारी समितियों की अभिवृद्धि ।

अनुच्छेद – 44 (Article – 44): राज्य भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागिरकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।

अनुच्छेद – 45 (Article – 45)(86वें संविधान संशोधन 2002 द्वारा संशोधित) : राज्य छ: वर्ष की आयु के सभी बच्चों के पूर्व बाल्यकाल (Early Childhood) की देखरेख और शिक्षा देने का प्रयास करेगा।

अनुच्छेद – 46 (Article – 46): राज्य जनता के दुर्बल वर्गो विशेषकर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी में अभिवृद्धि करेगा और सभी प्रकार के शोषण से उनकी सुरक्षा करेगा।

अनुच्छेद – 47 (Article – 47): राज्य पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने, लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का प्रयास करेगा और मादक द्रव्यों और हानिकारक औषधियों का निषेध करेगा।

अनुच्छेद – 48 (Article – 48): राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक ढंग से संगठित करने और दुधारू पशुओं के वध पर रोक लगाने के लिए कदम उठाएगा।

अनुच्छेद – 48 (क) (Article – 48 (A)): राज्य देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन का और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।

अनुच्छेद – 49 (Article – 49): राज्य राष्ट्रीय महत्व के संस्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण करेगा।

अनुच्छेद – 50 (Article – 50): राज्य की लोक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक करने के लिए राज्य कदम उठाएगा।

अनुच्छेद – 51 (Article – 51) : राज्य –

(क) अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का

(ख) राष्ट्रों के बीच न्याय संगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का।

(ग) संगठित लोगों को एक-दूसरे से व्यवहारों में अंतरराष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाने का और

(घ) अंतर्राष्ट्रीय विवादों का मध्यस्थता द्वारा निपटारे के लिए प्रोत्साहन देने का प्रयास करेगा।

संविधान संशोधन द्वारा जोड़े गए नीति निदेशक तत्व

  • 42वाँ संविधान संशोधन 1976: अनुच्छेद 39 (क), अनुच्छेद 39 (च), अनुच्छेद 43 (क), अनुच्छेद 48 (क)।
  • 44वाँ संविधान संशोधन 1978, अनुच्छेद 38 (2)

नीति निदेशक तत्व की तरह महत्व रखने वाले अन्य अनुच्छेद

  • अनुच्छेद 350 (क) : प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा देना।
  • अनुच्छेद 351 : हिन्दी भाषा को प्रोत्साहन देना।

नीति निदेशक तत्व और मौलिक अधिकारों में अंतर

नीति निदेशक तत्व

मौलिक अधिकार

1. न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं कराया जा सकता। 1. न्याय योग्य है।
2. इनकी प्रकृति सकारात्मक है। 2. इनकी प्रकृति नकारात्मक है।
3. इन्हें केवल नैतिक शक्ति प्राप्त है। 3. इन्हीं कानूनी शक्ति प्राप्त है।
4. इनका उपयोग राज्य के लिए है। 4. इनका उपयोग नागरिकों द्वारा किया जाता है।
5. इनका उद्देश्य सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना है। 5. इनका उद्देश्य राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना करना है।

 

Read Also :

Read More Polity Notes

 

 

error: Content is protected !!