DNA

DNA एवं RNA

D. N. A. (Deoxyribonucleic Acid)

यह मुख्य रुप से केवल केन्द्रक में होता है। कोशिका द्रव्य में स्थित माइटोकोंडिया एवं प्लास्टिड में भी बहुत कम मात्रा में DNA पाया जाता है। केन्द्रक के कुल भार का 1% D. N. A. होता है गुणसूत्र का निर्माण D. N. A. एवं एक प्रोटीन हिस्टोन के मिलने से ही होता है। D. N. A. अणुओं का निर्माण न्यूक्लियोटाइड के बहुलकीकरण से होता है। 

D. N. A. न्यूक्लियोटाइड:

प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड डीऑक्सीराइबोस (Nucleotide Deoxyribose) शर्करा, फॉस्फेट एवं नाइट्रोजनी क्षार के अणुओं के संयोजन से बनात है। D. N. A. न्यूक्लियोटाइड में चार प्रकार के नाईट्रोजनी क्षार होते हैं: दो प्यूरिन समूह के एवं दो पिरिमिडीन समूह के। प्यूरिन के ऐडेनीन एवं ग्वानीन एवं पिरिमिडीन समूह के साइटोसीन एवं थायमीन होते हैं।

D. N. A. अणु की संरचना का मॉडल (Structural model of DNA molecule)

D. N. A. के अणु में ये घटक कैसे रहते हैं, इसकी खोज 1953 में जे. डी. वॉटसन (J. D. Watson) एवं एफ. एच. सी. क्रिक (E.H.C. Crick) ने एक संभावित मॉडल की रचना करके बतलाया। इस मॉडल से अभी तक सभी वैज्ञानिक सहमत नहीं हैं। उक्त कार्य के लिए दोनों वैज्ञानिकों को सन् 1962 ई. में नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था।

वॉटसन – क्रिक के D. N. A. मॉडल

D. N. A. अणु का यह मॉडल D. N. A. के द्वारा किए जाने वाले कार्यों की व्याख्या करता है :

1. स्वतः द्विगुणन (Self replication) :- D. N. A. का अणु स्वयं अपना प्रतिरुप बना सकता है। इसलिए इसका जीवन की उत्पत्ति एवं उसके निरन्तर रखने में महत्त्व हैं। D. N. A. का यह प्रस्तावित मॉडल उक्त स्वतः द्विगुणन को स्पष्ट करता हैं।

2. संदेशों का प्रेषण (Transmission of information) :- D. N. A. अणु अपना प्रतिरुप बनाकर कोशिका-द्रव्य आकृति 16.8 D. N. A. अणु में अन्य न्यूक्लीक अम्ल आर.एन.ए. के रुप का डबल हेलिक्स मॉडल में भेजता है। इस तरह से D.N.A. में निहित संदेश कोशिका – द्रव्य में प्रोटीनसंश्लेषण हेतु प्रेषित हो जाते हैं। यह मॉडल इस प्रक्रिया की भी व्याख्या करता है।

3. रचना की स्थिरता (Stability in structure) :- D.N.A. का यह मॉडल एक अत्यधिक स्थिर संरचना की प्रदर्शित करता है। यह इसलिए कि दोनों शृंखलाओं के नाईट्रोजनी क्षार एक-दूसरे के पूरक होते हैं। अतः पीढ़ी दर पीढ़ी किसी जीव विशेष का D.N.A. अपनी विशिष्टता बनाए रख सकता है।

R.N.A. (Ribonucleic Acid)

राइबोन्यूक्लीक अम्ल (R.N.A.) मुख्य रुप से कोशिका द्रव्य में पाया जाता है किन्तु थोड़ी-सी मात्रा केन्द्रक में भी मिलती है। केन्द्रक में उपस्थित R.N.A. का निर्माण D.N.A. द्वरा होता है। R.N.A. एवं D.N.A. के अणु में तीन प्रमुख अन्तर होते हैं।

1. D.N.A. का शर्करा अणु डी-ऑक्सीराइबोस होता है जबकि R.N.A. में शर्करा अणु राइबोस होता है।

2. D.N.A. के चार नाइट्रोजन क्षारों में से ऐडेनीन, ग्वानीन, साइटोसीन तो दोनों में समान होते हैं किन्तु D.N.A. के थायमीन के स्थान पर R.N.A. में यूरेसिल (uracil) होता है।

3. R.N.A. में न्यूक्लियोटाइड केवल एक शृंखला में विन्यसित (arranged) रहते हैं।

कार्य एवं महत्त्व

D.N.A. एवं R.N.A. कोशिका के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रसायन है। इनके प्रमुख कार्य निम्न होते है :

  1. D.N.A. एक आनुवांशिक पदार्थ होने से जीवधारियों में आनुवांशिक गुणों को स्थानांतरण इन्हीं के कारण होता है।
  2. आनुवांशिकता के वाहक जीन D.N.A. के ही बने होते है।
  3. गुणसूत्रों में न्यूक्लीक अम्ल एंव प्रोटीन होते हैं। R.N.A. कोशिका में प्रोटीन संश्लेषण का कार्य करते हैं। (प्रोटीन का महत्त्व आप पूर्व में पढ़ चुके है)
  4. जीवधारियों की जातियों में विशिष्टता बनाए रखना एवं नई जातियों का निर्माण दोनों ही D.N.A. के कारण होता है।
  5. कोई भी कोशिका, वायरस, बैक्टीरिया आदि बिना न्यूक्लीक अम्ल के नहीं होते।

 

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