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Bihar Study MAterial

बिहार की प्रमुख फसलें तथा उत्पादन क्षेत्र

  • चावल – रोहतास, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, अरवल, बक्सर
  • गेहूँ – रोहतास, गया, दरभंगा
  • मक्का – सारण, मुजफ्फरपुर, खगड़िया, बेगूसराय, मुंगेर
  • जौ – पश्चिमी चंपारण, सहरसा, पूर्णिया
  • मडुआ/रागी – सहरसा, मुजफ्फरपुर, सारण
  • बाजरा – पटना, मुंगेर, गया
  • तीसी – पटना, भोजपुर, गया
  • राई, सरसों – पटना, मुजफ्फरपुर, दरभंगा
  • तिल – पश्चिमी चंपारण, शाहाबाद
  • अरहर – दरभंगा, मुजफ्फरपुर, मुंगेर
  • चना – भोजपुर, बक्सर
  • मसूर – पटना, चंपारण, गया
  • खेसारी – पटना, गया, भोजपुर
  • गन्ना – चंपारण, सारण, मुजफ्फरपुर
  • जूट – पूर्णिया, कटिहार
  • तंबाकू – दरभंगा, मुजफ्फरपुर, मुंगेर, समस्तीपुर, सहरसा
  • आलू – पटना, नालंदा, सारण, समस्तीपुर

 

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बिहार के प्रमुख साहित्यकार एवं उनकी कृतियां

बिहार के प्रमुख साहित्यकार एवं उनकी कृतियां

साहित्यकार कृतियां
बाणभट्ट कादम्बरी, हर्षचरितम, चंडीशतक
विष्णु शर्मा पंचतंत्र, हितोपदेश
चाणक्य अर्थशास्त्र
अश्वघोष महायान श्रद्घत्पाद संग्रह, बुद्ध चरित, वज्र सूची
आर्यभट्ट आर्यभट्ट तंत्र
वात्स्यायन कामसूत्रम्
मंडन मिश्रा भाव विवेक, विधि विवेक
विद्यापति पदावली, कीर्तिलता, कीर्ति पताका, गौरक्षा विजय, भू-परिक्रमा
दाउद चंद्रायन
ज्योतिरीश्वर ठाकुर वर्ण रत्नाकर, दर्शन रत्नाकर
फणीश्वरनाथ रेणु मैला आंचल, जुलूस, पलटू बाबू रोड, दीर्घतया
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ प्राणभंग, उर्वशी, रेणुका, द्वन्द्वगीत, हुंकार, रसवंती, चक्रवाल, धूप-छांव, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, सामधेनी, नील कुसुम, सीपी और शंख, परशुराम की प्रतिज्ञा, हारे को हरिनाम
बाबा नागार्जुन बाबा बटेश्वरनाथ, हजार-हजार बहों वाली, पारो, कुम्भीपाक, तुमने कहा था, वरुण के बेटे, रतिनाथ की चाची, पुरानी जातियों का कोरस, बलचनमा
देवकीनंदन खत्री चंद्रकांता संतति, भूतनाथ, काजर की कोठरी, नौलखाहार
राहुल सांकृत्यायन बुद्धचर्या, विनय-पिटक, धाम्मपद, दर्शन-दिग्दर्शन
शाह अजीमाबादी नक्शेपायदार
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद इंडिया डिवाइडेड, चम्पारण में सत्याग्रह, बापू के कदमों में
केदारनाथ मिश्र प्रभात ज्वाला, कैकयी, ऋतुवंश, प्रषक्रिया
शिवसागर मिश्र दूब जनम छायी
रामवृक्ष बेनीपुरी आम्रपाली, माटी की मूरतें, चिंता के फूल, संघमित्रा
वाचस्पति मिश्रा भाष्य मामति, ब्रहमसिद्धि के टीकाकार
डॉ. कुमार विमल मूल्य और मीमांसा, सर्जना के स्वर, अंगार ये सम्पूट सीपी के, युगमानव बापू, ये अभंग अनुभव अमृत, सौन्दर्यशास्त्र के तत्त्व
राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह पुरुष और नारी
जानकी बल्लभ शास्त्री काकली, गाथा, मेघगीत, अवंतिका, चिन्ताहास, त्रमीप्रस्थ, हंस बुलाया, मन की बात, एक किरण : सौ झाइयां, दो तिनकों का घोंसला, अश्वबुद्ध, अशोक वन, सत्यकाम, जिन्दगी, आदमी प्रतिध्वनि, देवी, नील-झील, पाषणी, तमसा, इरावती, राधा
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बिहार से प्रकाशित होने वाली प्रमुख पत्रिकाएं

बिहार से प्रकाशित होने वाली प्रमुख हिंदी पत्रिकाएं

  • क्षत्रिय पत्रिका (1881, मासिक),
  • लक्ष्मी (1903, मासिक),
  • बालक (1926, मासिक),
  • युवक (1929, मासिक),
  • भूदेव (1933, मासिक),
  • आरती (1940,मासिक),
  • पारिजात (1946, मासिक),
  • ज्योत्सना (1948, मासिक),
  • नई धारा (1950, मासिक),
  • चन्नु-मुन्नु (1950, मासिक),
  • अवन्तिका (1952, मासिक),
  • पाटल (1952, मासिक),
  • आनंद डाइजेस्ट (1979, मासिक),
  • अवकाश (1979, पाक्षिक),
  • जनमत (1981, मासिक),
  • शिक्षा डाइजेस्ट (1984, मासिक),
  • नई शिक्षा (1990, मासिक),
  • प्रतियोगिता किरण (1992, मासिक)

एकमात्र ‘लक्ष्मी’ को छोड़कर अन्य सभी पत्रिकाएं पटना से प्रकाशित हुई, जबकि लक्ष्मी का प्रकाशन ‘गया’ से हुआ।

बिहार से प्रकाशित होने वाली प्रमुख संस्कृत पत्रिकाएं

  • विद्यार्थी (1878, मासिक),
  • धर्मनीति तत्वम् (1880, मासिक),
  • मित्रम् (1918, त्रैमासिक),
  • संस्कृत संजीवनम (1940, त्रैमासिक),
  • देववाणी (1960, मासिक),
  • पाटलश्री (1966, त्रैमासिक),
  • भारती (1988, मासिक),
  • अख्यकम् (1988, छमाही),

देववाणी तथा अख्यकम् क्रमश: मुंगेर तथा आरा से प्रकाशित हुई, जबकि अन्य सभी पटना से प्रकाशित हुई।

बिहार से प्रकाशित होने वाली प्रमुख साप्ताहिक पत्र-पत्रिकाएं

पत्र-पत्रिका स्थापना वर्ष प्रकाशन स्थल
अलपंच (उर्दू) 1855 पटना
बिहार बंधु (हिन्दी) 1874 पटना
पीयूष प्रवाह (हिन्दी) 1886 भागलपुर
देश (हिन्दी) 1919 पटना
तरूण भारत (हिन्दी) 1921 पटना
गोलमाल (हिन्दी) 1924 पटना
महावीर (हिन्दी) 1926 पटना
किशोर 1938 पटना
हुंकार (हिन्दी) 1940 पटना
अग्रदूत (हिन्दी) 1942 पटना
मदरलैंड (अंग्रेजी) पटना
पटना टाइम्स (अंग्रेजी) पटना
लोकास्था 1974 पटना
जनादेश 1990 पटना
धर्मायन 1990 पटना
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बिहार में पत्रकारिता का इतिहास

बिहार में पत्रकारिता

  • 1875 में गुरू प्रसाद सेन द्वारा बिहार के पहले अंग्रेजी अखबार ‘दि बिहार हेराल्ड’ का प्रकाशन आरंभ हुआ।
  • 1881 में पटना से ‘इंडियन क्रॉनिकल’ नामक अखबार प्रकाशित हुआ।
  • बीसवीं शताब्दी के आरंभ में राष्ट्रवादियों द्वारा ‘दि मदरलैंड’ तथा “बिहार स्टैंडर्ड” का प्रकाशन आरंभ हुआ।
  • ‘दि बिहारी’ एवं ‘दि बिहार टाईम्स’ दो अखबार थे, जो बिहार को पृथक प्रांत बनाने की मांग की प्रस्तुति में सक्रिय रहे।
  • ‘बिहार टाईम्स’ की स्थापना पटना में 1903 में साप्ताहिक के रूप में हुई। जबकि 1906 में इसे भागलपुर से प्रकाशित होने वाले ‘बिहार न्यूज’ के साथ जोड़कर ‘दि बिहारी’ नाम दे दिया गया।
  • 1917 में ‘दि बिहारी’ एक दैनिक के रूप में परिवर्तित हो गया तथा 1917 में इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया।
  • ‘दि बिहारी’ के स्थान पर 15 जुलाई, 1918 से ‘दि सर्चलाइट’ का प्रकाशन होने लगा। इसके प्रथम संपादक सैयद हैदर हुसैन थे।
  • 1930 में ‘दि सर्चलाइट’ को एक दैनिक का रूप दे दिया गया। इसने सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन के क्रम में राष्ट्रवादियों के प्रवक्ता के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • 1985 में ‘सर्चलाइट’ का प्रकाशन बंद करके उसके स्थान पर ‘हिंदुस्तान टाईम्स’ के पटना संस्करण को शुरू किया गया।
  • असहयोग आंदोलन के दौरान मजहरुल हक ने पटना से ‘दि मदरलैंड’ का प्रकाशन आरंभ किया। सरकार की कड़ी आलोचना के कारण इस समाचार पत्र पर अनेक बार मुकदमे चलाए गए और शीघ्र ही इसका प्रकाशन रोक दिया गया।
  • 1924 में बिहार के पहले भारतीय मुख्यमंत्री मोहम्मद यूनुस ने ‘दि पटना टाईम्स’ का प्रकाशन आरंभ किया, जो 1944 तक प्रकाशित होता रहा।
  • 1931 में दरभंगा के महाराज कामेश्वर सिंह ने ‘दि इंडियन नेशन’ की स्थापना की।
  • मई, 1986 से ‘टाईम्स ऑफ इंडिया’ के पटना संस्करण का भी प्रकाशन शुरू हुआ।
  • बिहार का पहला हिंदी समाचार पत्र ‘बिहार बंधु’ था जो 1874 में पटना से प्रकाशित हुआ। इसकी स्थापना दो वर्ष पूर्व ही कोलकाता में हुई थी।
  • बिहार में पहला हिंदी दैनिक ‘सर्वहितैषी’ के नाम से 1890 में पटना से प्रकाशित हुआ।
  • ‘दि इंडियन नेशन’ के हिंदी सह-प्रकाशन ‘आर्यावर्त’ का प्रकाशन 1941 में पटना से आरम्भ हुआ।
  • 1947 में ‘सर्चलाइट’ का सह-प्रकाशन हिंदी भाषा में ‘प्रदीप’ नाम से प्रारम्भ हुआ।
  • ‘प्रदीप’ का प्रकाशन 1986 में बंद हो गया तथा इसका स्थान ‘हिंदुस्तान’ के पटना संस्करण ने ले लिया।
  • 1986 में ‘नवभारत टाईम्स’ के पटना संस्करण का प्रकाशन भी आरंभ हुआ लेकिन 1995 में इसे बंद कर दिया गया।
  • उन्नीसवीं शताब्दी में बिहार का पहला उर्दू अखबार ‘आरा’ से प्रकाशित हुआ, जिसका शीर्षक था ‘नुरुल अन्वार’ और इसके मालिक थे मोहम्मद हाशिम।
  • बिहार का पहला उर्दू दैनिक 1876 में ‘आरा’ से ही प्रकाशित हुआ। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों के उर्दू अखबारों में सबसे पुराना ‘सदा-ए-आम’ था।
  • इसी काल में ‘इत्तिहाद’ और ‘शाति’ का प्रकाशन भी आरंभ हुआ।
  • 1948 में दरभंगा से एक साहित्यिक पत्रिका ‘किरण’ का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ।
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बिहार के प्रमुख संग्रहालय (Major Museums of Bihar)

बिहार के प्रमुख संग्रहालय (Major Museums of Bihar)

पटना संग्रहालय, पटना (Patna Museum, Patna)

  • स्थापना वर्ष – 1917
  • बिहार का सबसे बड़ा संग्रहालय,
  • मुख्य आकर्षण – दीदारगंज से प्राप्त मौर्यकालीन यक्षिणी की मूर्ति, मौर्यकाल से पालकाल तक के प्राचीन अवशेष, जीवाश्म वृक्ष (लगभग 20 लाख वर्ष पुराना), मुगल चित्रकला व पटना कलम के सुंदर नमूने, सुन्दर कांस्य प्रतिमाएं, सिक्के, मृदभांड अभिलेख, चित्र, सामान्य उपयोग की वस्तुओं के साथ-साथ भूगर्भीय सामग्री और प्राकृतिक सम्पदा के नमूने।

पुरातात्विक संग्रहालय, नालंदा (Archaeological Museum, Nalanda)

  • स्थापना वर्ष – 1917
  • नालंदा के आसपास उत्खनन में प्राप्त सामग्री के महत्त्वपूर्ण नमूने, अधिकांश सामग्री उत्तरकालीन गुप्त शासकों और पाल शासकों से सम्बद्ध

पुरातात्विक संग्रहालय, वैशाली (Archaeological Museum, Vaishali)

  • स्थापना वर्ष – 1945
  • वैशाली संघ द्वारा स्थापित, मौर्यकालीन से पालकालीन अवशेष सुरक्षित

गया संग्रहालय, गया (Gaya Museum, Gaya)

  • स्थापना वर्ष – 1952
  • गया के प्रमुख अधिवक्ता बलदेव प्रसाद द्वारा स्थापित
  • 1970 से बिहार सरकार के नियंत्रण में, 7वीं से 12वीं शताब्दी के बीच को काले पत्थर द्वारा निर्मित मूर्तियां एवं अन्य वस्तुएं, प्राचीन और मध्यकालीन सिक्के एवं पाण्डुलिपियां

जालान संग्रहालय, पटना सिटी (Jalan Museum, Patna City)

  • स्थापना वर्ष – 1954
  • दीवान बहादुर राधाकृष्णन जालान द्वारा स्थापित लगभग 10000 कलाकृतियां और ऐतिहासिक अवशेष सुरक्षित

पुरातात्विक संग्रहालय, बोधगया (Archaeological Museum, Bodhgaya)

  • स्थापना वर्ष – 1956
  • बोधगया से प्राप्त मूर्तियां, ऐतिहासिक अवशेष और अन्य पुरातात्विक सामग्री सुरक्षित

चंद्रधारी संग्रहालय, दरभंगा (Chandraseer Museum, Darbhanga)

  • स्थापना वर्ष – 1957
  • रत्नी (मधुबनी) के जमींदार चंद्रधारी सिंह के निजी संग्रह की वस्तुएं, 12000 से अधिक सुरक्षित वस्तुओं में धातु, लकड़ी, मिट्टी व हाथी दांत के ऐतिहासिक अवशेष एवं पांडुलिपियां

राजेन्द्र स्मारक संग्रहालय, पटना (Rajendra Memorial Museum, Patna)

  • स्थापना वर्ष – 1963
  • भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के जीवन से संबंधित महत्त्वपूर्ण वस्तुओं का संग्रह

गांधी संग्रहालय, पटना (Gandhi Museum, Patna)

  • स्थापना वर्ष – 1967
  • गांधी स्मारक निधि द्वारा स्थापित, विशेष आकर्षण महात्मा गांधी के जीवन की मुख्य घटनाओं पर आधारित चित्रों का संग्रह

नवादा संग्रहालय, नवादा (Nawada Museum, Nawada)

  • स्थापना वर्ष – 1974
  • नवादा जिले से प्राप्त पालकालीन मूर्तियां, सल्तनतकालीन पुरावशेष, सिक्कों का संग्रह

महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह संग्रहालय, दरभंगा (Maharaja Lakshmeshwar Singh Museum, Darbhanga)

  • स्थापना वर्ष – 1979
  • दरभंगा के महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह द्वारा भेंट की गई लगभग 17,000 सामग्री सुरक्षित

श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र (Krishna Science Center)

  • स्थापना वर्ष – 1981
  • बिहार का प्रथम विज्ञान संग्रहालय, विभिन्न वैज्ञानिक उपकरण व यंत्र सुरक्षित तथा इनकी कार्यविधि का व्यावहारिक प्रदर्शन

 

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बिहार के प्रमुख मेले

बिहार के प्रमुख मेले (Major Fair of Bihar)

सोनपुर का मेला – सोनपुर में प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में यह मेला 1850 से निरन्तर लगता आ रहा है। यह मेला ग्रामीण एवं सांस्कृतिक दृष्टि से विश्व का और पशुधन की दृष्टि से एशिया का सबसे बड़ा मेला है। धार्मिक ग्रन्थों में वर्णित ‘हरिहर क्षेत्र’ तथा ‘गज-ग्राह’ की लीला इसी क्षेत्र से संबंधित है।

पितृपक्ष मेला – गया में प्रत्येक वर्ष भाद्रपद पूर्णिया से आश्विन माह की अमावस्या तक आयोजित इस धार्मिक मेले में हिन्दू धर्म के लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध कार्य करके उनकी मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।

काकोलत मेला – नवादा जिले में काकोलत नामक स्थान पर प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर इस धार्मिक मेले का आयोजन छह दिनों तक किया जाता है।

वैशाली का मेला – जैन धर्मावलंबियों का यह मेला महावीर की जन्मस्थली वैशाली में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को आयोजित होता है।

जानकी नवमी का मेला – सीता जी को जन्मस्थली सीतामढ़ी में उनके जन्म दिवस पर एक विशाल मेले का आयोजन चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को होता है।

हरदी मेला – मुजफ्फरपुर में प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के पर्व पर यह मेला 15 दिन तक आयोजित होता है।

कल्याणी मेला – कटिहार जिले के कदवा प्रखंड में कल्याणी नामक स्थल पर मीलों तक फैली झील के किनारे प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर यह मेला लगता है।

सौराठ मेला –  सभागाछी (मधुबनी जिला) में प्रत्येक वर्ष जेठ-आषाढ़ माह में आयोजित इस मेले में अविवाहित वयस्क युवकों को विवाह हेतु प्रदर्शित किया जाता है। विवाह योग्य कन्याओं के अभिभावक वहीं विवाह संबंधी निर्णय लेते हैं। यह मेला विश्व में अपने अद्भुत रूप के लिए प्रसिद्ध है।

बेतिया मेला – बेतिया में प्रत्येक वर्ष दशहरा पर लगभग 15-20 दिन तक आयोजित इस पशु मेले में पशुओं का क्रय-विक्रय किया जाता है।

कालीदेवी का मेला – फारबिसगंज में प्रत्येक वर्ष अक्टूबर/नवम्बर माह में आयोजित इस 15 दिवसीय धार्मिक मेले में काली देवी की पूजा की जाती है।

कोसी मेला – कटिहार के समीप कोसी नदी पर प्रत्येक वर्ष पौष पूर्णिमा पर आयोजित इस धार्मिक मेले में लकड़ी के समान का क्रय-विक्रय भी किया जाता है।

सहोदरा मेला/थारु मेला – नरकटियागंज-भीखनाठोरी मुख्य मार्ग पर स्थित सुभद्रा (सहोदरा) मंदिर पर स्थित ‘शक्तिपीठ’ में प्रत्येक वर्ष चैत्र माह में रामनवमी के अवसर

पर यह धार्मिक मेला आयोजित किया जाता है।

सिमरिया मेला – बरौनी जंक्शन से लगभग 8 किमी. दूर दक्षिण-पूर्व में राजेन्द्र पुल के समीप प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में सूर्य के उत्तरायण होने पर धार्मिक मेला आयोजित किया जाता है।

मंदार मेला – बांका जिले के मुख्यालय से 18 किमी. दूर बौंसी नामक स्थान पर स्थित मंदार पहाड़ी पर प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर 15 दिन का मेला लगता है। इसे बौसी मेला भी कहते हैं। माना जाता है कि दैवासुर संग्राम के समय देवासुरों के द्वारा होने वाले सागर मंथन के समय इसी मंदार पर्वत को मंथन दंड बनाया गया था। मंदार पर्वत से ही देव दानवों ने रल प्राप्त किए थे।

सीतामढी मेला –  नवादा जिले के सीतामढ़ी में अग्रहायण पूर्णिमा के अवसर पर बहुत बड़ा ग्रामीण मेला लगता है। मान्यता है कि सीता वनवास के समय लव-कुश का वहां जन्म हुआ था, जिसके कारण महिलाएं वहां के गुफानुमा मंदिर में संतान प्राप्ति के लिए विदेहनदिनी से मन्नत मांगती हैं और संतान प्राप्ति के बाद मंदिर के पास एक चट्टान पर बने कठौतनुमा गड्ढे में वे ‘गड़तर’ (कपड़े का एक टुकड़ा) चढ़ाती है। दंत कथा है कि सीतामढ़ी के पास वारत नामक गांव के टाल में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था। यह गांव और टाल तिलैया यानी तमसा नदी के तट पर है।

झांझरकड महोत्सव – सहसराम से 6 कि.मी. दक्षिण में कैमूर पर्वत श्रृंखला पर झांझरकुंड और धुआं कुंड के बीच में लगभग एक दर्जन छोटे-बड़े झरने हैं। इसी स्थान पर सहसराम सिख (अंगरेहरी) समुदाय के लोग इस महोत्सव का आयोजन करते हैं। इसका आयोजन बरसात के मौसम में विशेषकर शनिवार और रविवार (दो दिन) को किया जाता है। इसमें भाग लेने के लिए औरंगाबाद, आरा, पटना और कोलकाता तक से लोग आते हैं।

पुस्तक मेला – पटना में प्रत्येक वर्ष नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह में आयोजित इस पुस्तक मेले में देश भर के प्रमुख प्रकाशक अपनी पुस्तकों का प्रदर्शन करते हैं।

कुछ अन्य प्रमुख मेले – गया का बौद्ध मेला, मनेर शरीफ का उर्स, बक्सर का लिट्टी-भंटा मेला, भागलपुर का पापहरणि मेला, मुजफ्फरपुर का तुर्की मैला, खगड़िया का गोपाष्टमी मेला, ब्रह्मपुर का कृषि मेला, दरभंगा का हरारी पोखर मेला, सीतामढ़ी का विवाह पंचमी मेला, सीतामढ़ी का बगही मठ मेला, झंझारपुर का विन्देश्वर मेला, सहरसा का सिंहेश्वर मेला आदि।

 

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बिहार के लोक नाट्य

बिहार के लोक नाट्य (Folk Drama of Bihar)

जट-जाटिन – प्रत्येक वर्ष सावन से लगभग कार्तिक माह की पूर्णिमा तक केवल अविवाहितों द्वारा अभिनीत इस लोकनाट्य में जट-जाटिन के वैवाहिक जीवन को प्रदर्शित किया जाता है।

सामा-चकेवा – प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी से पूर्णमासी तक अभिनीत इस लोक नाट्य में पात्रों को मिट्टी द्वारा बनाया जाता है, लेकिन उनका अभिनय बालिकाओं द्वारा किया जाता है। इस अभिनय में सामा अर्थात श्यामा तथा चकेवा की भूमिका निभायी जाती है। इस लोक नाट्य में गाए जाने वाले गीतों में प्रश्नोत्तर के माध्यम से विषयवस्तु प्रस्तुत की जाती है।

बिदेसिया – इस लोक नाट्य में भोजपुर क्षेत्र के अत्यन्त लोकप्रिय ‘लौंडा नाच’ के साथ ही आल्हा, पचड़ा, बारहमासा, पूरबी, गोंड, नेटुआ, पंवड़िया आदि का प्रभाव होता है। नाटक का प्रारम्भ मंगलाचरण से होता है। नाटक में महिला पात्रों की भूमिका भी पुरुष कलाकारों द्वारा की जाती है।

भकुली बंका – प्रत्येक वर्ष सावन से कार्तिक माह तक आयोजित किए जाने वाले इस लोक नाट्य में जट-जाटिन द्वारा नृत्य किया जाता है।

डोकमच –  यह पारिवारिक उत्सवों से जुड़ा एक लोक नाट्य है। इस घरेलू लोकनाट्य को मुख्यतः घर-आंगन परिसर में देर रात्रि में महिलाओं द्वारा आयोजित किया जाता हैं। इसमें हास-परिहास के साथ ही अश्लील हाव-भाव का प्रदर्शन भी किया जाता है।

किरतनिया – यह एक भक्तिपूर्ण लोक नाट्य है, जिसमें भगवान श्रीकष्ण की लीलाओं का वर्णन भक्ति-गीतों (कीर्तन) के साथ भाव का प्रदर्शन करके किया जाता है।

बिहार की नाट्य संस्था एवं नाट्य संगठन

स्थान नाट्य संस्था एवं संगठन
पटना रुपाक्षर, कला-निकुंज, कला-त्रिवेणी, भंगिमा, प्रयास, अर्पण, अनामिका, प्रांगण, सृर्जना, माध्यम, बिहार आर्ट थियेटर, कला-संगम, भारतीय जन-नाट्य संघ आदि।
बेगूसराय जिला नाट्य परिषद्, सरस्वती कला मंदिर, आदि।
भागलपुर सर्जना, सागर नाट्य परिषद्, दिशा, प्रेम आर्ट, आदर्श नाट्य कला केंद्र, अभिनय कला मंदिर आदि।
खंगोल भूमिका, दर्पण कला केंद्र, सूत्रधार, थियेटरेशिया, मंथन कला परिषद् आदि।
आरा कामायनी, यवनिका, भोजपुर मंच, युवानीति, नटी, नवोदय संघ आदि।
छपरा मयूर कला केंद्र, शिवम सांस्कृतिक मंच, हिन्द कला केंद्र, इंद्रजाल, मनोरमा सांस्कृतिक दल आदि।
औरंगाबाद नाट्य भारती, ऐक्टर्स ग्रुप आदि।
गया कला-निधि, शबनम आस, ललित कला मंच, नाट्य स्तुति आदि।
दानापुर बहुरुपिया, बहुरंग आदि।
सासाराम जनचेतना
बक्सर नवरंग कला मंचा
बिहिया भारत नाट्य परिषद्
नवादा शोभादी रंग संस्था
महनार अनंत अभिनय कला परिषद्
जमालपुर रॉबर्ट रिक्रिएशन क्लब, उत्सव
सुल्तानगंज जनचेतना
मुजफ्फरपुर रंग

 

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बिहार का लोक नृत्य

बिहार का लोक नृत्य (Folk Dance of Bihar)

छऊ नृत्य – यह लोकनृत्य युद्ध भूमि से संबंधित है, जिसमें नृत्य शारीरिक भाव भंगिमाओं, ओजस्वी स्वरों तथा पगों का धीमी-तीव्र गति द्वारा संचालन होता है। इस नृत्य की दो श्रेणियां हैं – प्रथम ‘हतियार श्रेणी’ जिसमें वीर रस की प्रधानता है और दूसरी ‘कालाभंग श्रेणी’ जिसमें श्रृंगार रस को प्रमुखता दी जाती है। इस लोकनृत्य में मुख्यतः पुरुष नृत्यक ही भाग लेते हैं।

कठ घोड़वा नृत्य –  लकड़ी तथा बांस की खपच्चियों द्वारा निर्मित तथा रंग-बिरंगे वस्त्रों के द्वारा सुसज्जित घोड़े के साथ नर्तक लोक वाद्यों के साथ नृत्य करता है।

लौंडा नृत्य – भोजपुर क्षेत्र में अधिक प्रचलित इस नृत्य में लड़का रंग-बिरंगे वस्त्रों एवं श्रृंगार के माध्यम से लड़की का रूप धारण कर नृत्य करता है।

धोबिया नृत्य –  भोजपुर क्षेत्र के धोबी समाज में विवाह तथा अन्य मांगलिक अवसरों पर किया जाने वाला सामूहिक नृत्य।

झिझिया नृत्य –  यह ग्रामीण महिलाओं द्वारा एक घेरा बनाकर सामूहिक रूप से किया जाने वाला लोकनृत्य है। इसमें सभी महिलाएं राजा चित्रसेन तथा उनकी रानी की कथा, प्रसंगों के आधार पर रचे गए गीतों को गाते हुए नृत्य करती हैं।

करिया झूमर नृत्य –   यह एक महिला प्रधान नृत्य है जिसमें महिलाएं हाथों में हाथ डालकर घूम-घूमकर नाचती गाती हैं।

खोलडिन नृत्य –  यह विवाह अथवा अन्य मांगलिक कार्यों पर आमंत्रित अतिथियों के समक्ष मात्र उनके मनोरंजन हेतु व्यावसायिक महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।

पंवड़ियां नृत्य –  वह जन्मोत्सव आदि के अवसर पर पुरुषों द्वारा लोकगीत गाते हुए किया जाने वाला नृत्य है।

जोगीड़ा नृत्य –  मौज-मस्ती की प्रमुखता वाले इस नृत्य में होली के पर्व पर ग्रामीण जन एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हुए होली के गीत गाते हैं तथा नृत्य करते हैं।

विदापत नृत्य – पूर्णिया क्षेत्र के इस प्रमुख लोकनृत्य में मिथिला के महान कवि विद्यापति के पदों को गाते हुए तथा पदों में वर्णित भावों को प्रस्तुत करते हुए सामूहिक रूप से नृत्य किया जाता है।

झरनी नृत्य – यह लोकनृत्य मोहर्रम के अवसर पर मुस्लिम नर्तकों द्वारा शोक गीत गाते हुए प्रस्तुत किया जाता है।

करमा नृत्य – यह राज्य के जनजातियों द्वारा उसलों की कटाई-बुवाई के समय ‘कर्म देवता’ के समक्ष किया जाने वाला सामूहिक नृत्य है। इसमें पुरुष एवं महिला एक-दुसरे की कमर में हाथ डालकर श्रापूर्वक नृत्य करते हैं।

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