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Adbhut Ras

अद्भुत रस (Adbhut Ras)

अद्भुत रस (Adbhut Ras)

  • किसी आश्चर्यजनक वर्णन से उत्पन्न विस्मय भाव की परिपक्वावस्था को अद्भुत रस कहा जाता है।
  • भरतमुनि ने वीर रस से अद्भुत की उत्पत्ति बताई है तथा इसका वर्ण पीला एवं देवता ब्रह्मा कहा है।

अद्भुत रस के अवयव (उपकरण)

  • अद्भुत रस का स्थाई भाव – आश्चर्य। 
  • अद्भुत रस का आलंबन (विभाव) – आश्चर्य उत्पन्न करने वाला पदार्थ या व्यक्ति। 
  • अद्भुत रस का उद्दीपन (विभाव) – अलौकिक वस्तुओ का दर्शन, श्रवण, कीर्तन आदि। 
  • अद्भुत रस का अनुभाव – दाँतो तले उंगली दवाना, आंखे फाड़कर देखना, रोमांच, आँसू आना, काँपना, गदगद होना आदि। 
  • अद्भुत रस का संचारी भाव – उत्सुकता, आवेग, भ्रान्ति, धृति, हर्ष, मोह आदि ।

अद्भुत रस के उदाहरण –  

(1) इहाँ उहाँ दुह बालक देखा। मति भ्रम मोरि कि आन बिसेखा।
देखि राम जननी अकलानी। प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी॥
देखरावा मातहि निज, अद्भुत रूप अखण्ड।
‘रोम-रोम प्रति लागे, कोटि-कोटि ब्रह्मण्ड। (तुलसीदास)

(2) ‘ब्रज बछरा निज धाम करि फिरि ब्रज लखि फिरि धाम।
फिरि इत र्लाख फिर उत लखे ठगि बिरंचि तिहि ठाम’।। (पोद्दार : ‘रसमंजरी’)

(3) बिनू पद चलै सुने बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।। (तुलसीदास)

(4) आयु सिता-सित रूप चितैचित,
स्याँम शरीर रगे रँग रातें।
‘केसव’ कॉनन ही न सुनें,
सु कै रस की रसना बिन बातें।।  (तुलसीदास)

(5) देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया,
क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया। (सूरदास )

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