73th Amendment

ग्राम पंचायत (Gram Panchayat)

प्रत्येक ग्राम सभा क्षेत्र में ग्राम पंचायत का प्रावधान किया गया है। ग्राम पंचायत ग्राम सभा की निर्वाचित कार्यपालिका है। ग्राम पंचायत का निर्वाचन प्रत्यक्ष रुप से होता है। प्रत्येक पंचायत को उसकी पहली बैठक की तारीख से 5 वर्ष के लिए गठित किया जाता है। पंचायत को विधि के अनुसार इससे पहले भी विघटित किया जा सकता है। यदि ग्राम पंचायत 5 वर्ष से 6 माह पूर्व विघटित कर दी जाती है तो पुनः चुनाव आवश्यक होता है। नई गठित पंचायत का कार्यकाल शेष अवधि के लिए होगा।

ग्राम पंचायत की माह में एक बैठक आवश्यक है। बैठक की सूचना कम से कम 5 दिन पूर्व सभी सदस्यों को दी जाएगी । प्रधान तथा उसकी अनुपस्थिति में उप प्रधान किसी भी समय पंचायत की बैठक को बुला सकता है। यदि पंचायत के 1/3 सदस्य किसी भी समय हस्ताक्षर कर लिखित रुप से बैठक बुलाने की मांग करते हैं तो प्रधान को 15 दिनों के अन्दर बैठक आयोजित करनी होगी । यदि बैठक को प्रधान द्वारा आयोजित नहीं किया जाता है तो निर्धारित अधिकारी, सहायक अधिकारी पंचायत बैठक बुला सकता है।

ग्राम पंचायत की बैठक के लिए कुल सदस्यों की संख्या का 1/3 सदस्यों की उपस्थिति गणपूर्ति (कोरम) के लिए आवश्यक होती है। यदि गणपूर्ति के अभाव में बैठक नहीं होती है तो दोबारा सूचना देकर बैठक बुलाई जा सकती है। इसके लिए गणपूर्ति की आवश्यकता नहीं होती है। ग्राम पंचायत की बैठक की अध्यक्षता ग्राम प्रधान तथा उसकी अनुपस्थिति में उप प्रधान करता है। इन दोनों की अनुपस्थिति में प्रधान द्वारा लिखित रुप से मनोनीत सदस्य अध्यक्षता करेगा। यदि प्रधान ने किसी सदस्य के मनोनीत नहीं किया है तो बैठक में उपस्थित सदस्य बैठक की अध्यक्षता करने के लिए किसी सदस्य का चुनाव कर सकता है।

ग्राम न्यायालय – अधिनियम 2008

12 अप्रैल, 2007 को केन्द्र सरकार के द्वारा एक निर्णय के अनुसार देश में ग्रामीण अंचलों के निवासियों को पंचायत स्तर पर ही न्याय उपलब्ध कराने के लिए प्रत्येक पंचायत स्तर पर एक ग्राम न्यायालय की स्थापना की जाएगी । ये न्यायालय त्वरित अदालतों की तर्ज पर स्थापित होंगे। इस पर प्रत्येक वर्ष 325 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे । केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारें तीन वर्ष तक इन न्यायालयों पर आने वाला खर्च वहन करेंगी । ग्राम न्यायालयों की स्थापना से अधीनस्थ अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या कम करने में मदद मिलेगी । 2 अक्टूबर 2009 को प्रखण्ड स्तर पर ग्राम न्यायालय का गठन किया गया है। जो सभी प्रकार के विवादों का निपटारा 6 माह के अंदर करेगी ।

ग्राम पंचायतों का निर्वाचन

  • सभी स्तर के पंचायतों के सदस्यों का निर्वाचन वयस्क मतदाताओं द्वारा प्रत्येक पांचवे वर्ष किया जाता है।
  • यह चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग के द्वारा कराये जाते हैं।
  • ग्राम पंचायत के प्रत्येक पद हेतु चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष है। तथा ऐसा व्यक्ति सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए।
  • वह किसी भी प्रकार की सेवा से दुराचार के कारण पदच्युत न किया गया हो तथा वह पंचायत सम्बन्धी किसी अपराध के लिए दोषी न हो।
  • जिला परिषदों, जिलो पंचायतों, पंचायत समितियों और ग्राम पंचायतों के निर्वाचन का अधिकार 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत प्रत्येक राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों में गठित राज्य निर्वाचन आयोग को प्राप्त हैं।
  • यह आयोग भारत निर्वाचन आयोग से स्वतंत्र है।

अध्यक्ष का निर्वाचन

  • ग्राम स्तर पर अध्यक्ष का निर्वाचन प्रत्यक्ष रुप से ग्राम सभा के सदस्यों के द्वारा किया जाता है।
  • जबकि मध्यवर्ती (खण्ड) एवं जिला स्तर पर अध्यक्षों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष प्रणाली के आधार पर किया जाता है।
  • इन स्तरों पर निर्वाचित सदस्य अपने में से अध्यक्ष का निर्वाचन कर सकते हैं।
  • ग्राम पंचायत के सदस्यों के द्वारा अपने में से एक उप-प्रधान का निर्वाचन किया जाता है।
  • यदि उप–प्रधान का निर्वाचन नहीं किया जा सका हो तो नियत अधिकारी किसी सदस्य को उप – प्रधान नामित कर सकता है।

पदमुक्ति

  • ग्राम प्रधान एवं उप – प्रधान को 5 वर्ष के उसके निर्धारित कार्यकाल की समाप्ति के पूर्व भी पदमुक्त किया जा सकता है।
  • प्रधान या उप – प्रधान को असमय पदमुक्त करने के लिए पदमुक्त सम्बन्धी अविश्वास प्रस्ताव पर ग्राम पंचायत के आधे सदस्यों के हस्ताक्षर द्वारा एक लिखित सूचना जिला पंचायत राज अधिकारी को दी जाएगी।
  • अविश्वास प्रस्ताव में पदमुक्त करने सम्बन्धी सभी कारणों का उल्लेख होना चाहिए।
  • प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वालों में से तीन सदस्यों को जिला पंचायत राज अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत होना होगा। सूचना प्राप्त होने के 30 दिन के भीतर जिला पंचायत राज अधिकारी ग्राम पंचायत की बैठक बुलाएगा तथा बैठक की सूचना कम से कम 15 दिन पूर्व दी जाएगी।
  • बैठक में उपस्थित तथा वोट देने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से प्रधान एवं उप – प्रधान को पदमुक्त किया जा सकता है।
  • प्रधान एवं उप – प्रधान को असमय पदमुक्त करने के लिए कोई बैठक उसके चुनाव के एक वर्ष के भीतर नहीं बुलायी जा सकती।

ग्राम पंचायत का बजट

  • प्रत्येक ग्राम पंचायत एक निश्चित समय में एक अप्रैल से प्रारम्भ होने वाले वर्ष के लिए ग्राम पंचायत की अनुमानित आमदनी और खर्चे का हिसाब किताब तैयार करना ।
  • हिसाब-किताब पंचायत की बैठक में उपस्थित होकर वोट देने वाले सदस्यों के आधे से अधिक वोटों से पास किया जाएगा।
  • बजट पास करने के लिए बुलाई गई ग्राम पंचायत की बैठक का कोरम कुल संख्या का आधा होगा ।

ग्राम पंचायतों की समितियां

नियोजन एवं विकास समिति  

  • गठन – सभापति–प्रधान, छ: अन्य सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिला एवं पिछड़े वर्ग का एक-एक सदस्य अनिवार्य
  • कार्य – ग्राम पंचायत की योजना का निर्माण करना, कृषि, पशुपालन और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों का संचालन करना।

निर्माण कार्य समिति  

  • गठन – सभापति ग्राम पंचायत द्वारा नामित सदस्य, छः अन्य सदस्य (आरक्षण उपर्युक्त की भांति)
  • कार्य – समस्त निर्माण कार्य करना तथा गुणवत्ता निश्चित करना

शिक्षा समिति

  • गठन – सभापति उप – प्रधान, छ: अन्य सदस्य, आरक्षण उपर्युक्त की भांति, प्रधानाध्यापक सहयोजित, अभिवाहक – सहयोजित
  • कार्य – प्राथमिक शिक्षा, उच्च प्राथमिक शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा तथा साक्षरता आदि सम्बन्धी कार्य

प्रशासनिक समिति

  • गठन – सभापति – प्रधान, छः अन्य सदस्य (आरक्षण उपर्युक्त की भांति)
  • कार्य – कमियों/खामियों सम्बन्धी प्रत्येक कार्य

स्वास्थ एवं कल्याण समिति

  • गठन – सभापति ग्राम पंचायत द्वारा नामित सदस्य, छः अन्य सदस्य, (आरक्षण पूर्ववत्)
  • कार्य – चिकित्सा स्वास्थ्य, परिवार कल्याण सम्बन्धी कार्य और समाज कल्याण योजनाओं का संचालन, अनुसूचित जाति/जनजाति तथा पिछड़े वर्ग कीउन्नति एवं संरक्षण

जल प्रबन्धन समिति

  • गठन – सभापति ग्राम पंचायत द्वारा नामित, छ: अन्य सदस्य (आरक्षण उपर्युक्त की भांति) प्रत्येक
  • कार्य – राजकीय नलकूपों का संचालन पेयजल सम्बन्धी कार्य

पंचायतों का निर्वाचन

राज्य निर्वाचन आयोग

  • पंचायतों के चुनाव के लिए राज्य चुनाव आयोग की स्थापना की गई है। जिसका कार्य पंचायतों चुनाव के लिए निर्वाचन नामावली का निर्माण करना। तथा चुनाव का नियंत्रण और निगरानी रखना।
  • पंचायतों के निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का न्यायिक पनरावलोकन नहीं होगा।
  • पंचायतों के चुनाव में गड़बड़ी एवं विवाद का निपटारा उच्च न्यायालय द्वारा होगा।
  • राज्य निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष की नियुक्त राज्यपाल करेगा। लेकिन इस उच्च न्यायालय के न्यायधीश की भाँति हटाया जायेगा। तीनों स्तरों पर सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष होता है।
  • निर्वाचित होने की आयु 21 वर्ष नधिारित की गयी है।
  • खण्ड पंचायत एवं जिला परिषद् के अध्यक्ष परोक्ष रूप से निर्वाचित होते है। खण्ड पंचायत के सदस्य खण्ड परिषद के अध्यक्ष का निर्वाचन करते है।
  • ग्राम पंचायत अध्यक्ष प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होता है।

पंचायत में आरक्षण

  • पंचायत के चुनाव में महिलाओं व अनुसुचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग की आरक्षण प्रदान किया गया है। (अनुच्छेद-243,(D)
    73वें संविधान संशोधान के द्वारा महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण प्रदान किया गया है।
  • अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति को आरक्षण उनके जनसंख्या के अनुपात में प्रदान किया जायेगा।
  • पंचायतों में आरक्षण,अध्यक्ष पद एवं सदस्य दोनों के लिए होता है तथा आरक्षण पंचायत के तीनों स्तरों पर दिया जायेगा।

पंचायतों का कार्यकाल

  • पंचायतों का कार्यकाल 5 वर्षों का निर्धारित किया गया है।
  • यदि पंचायतों का विघटन निर्धारित समय के पहले हो,तो पंचायतों के विघटन के 6 माह के भीतर चुनाव होने चाहिए तथा चुनाव बचे हुए समय के लिए होगा।
  • यदि पंचायतों का कार्यकाल 6 महीने से कम बचा हो,तो चुनाव समूचे 5 वर्षों के लिए होते ।

पंचायतों के सदस्यों की योग्यताएं

  • इसमें निर्वाचित होने के लिए 21 वर्ष की आयु आवश्यक है।
  • व्यक्ति,राज्य विधान मण्डल के निर्वाचन के लिए योग्य होना चाहिए।
  • ग्रामसभा में गांव के 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके सभी लोग शामिल होते है।

ग्रामसभा के कार्य

  • वार्षिक लेखा विवरण एवं लेखा परीक्षण रिपोर्ट की जाँच करना।
  • नये कर लगाने,वर्तमान करों में वृद्धि के प्रस्ताव पर विचार करना।
  • योजनाओं, लाभार्थियों और स्थलों को चयन।
  • सामूदायि कल्याण के कार्यक्रमों के लिए स्वैच्छिक,श्रमिक या वस्तुओं के रूप में अंशधदान देना।
  • विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में सहायता प्रदान करना।
  • गाँव में वयस्क, शिक्षा एवं परिवार कल्याण कार्यक्रमों का संचालन।
  • विगत वर्षों के लेखा परीक्षण की जाँच।
  • पंचायतों की वर्तमान योजनाओं तथा समस्त प्रकार के क्रिया कलामों की समीक्षा करना।
  • ग्राम पंचायतों के क्रिया कलामों,आय-व्यय के स्पष्टीकरण मांगना।

ग्राम पंचायत के कार्य

ग्राम पंचायत के कार्यों को प्रायः दो विभक्त किया जाता है- अनिर्वाय कार्य एवं ऐच्छिक कार्य। अनिवार्य कार्य, वे है,जो पंचायतो को करना अनिवार्य है। जबकि ऐच्छिक कार्य,पंचायत अपनी इच्छानुसार या राज्य सरकार के आदेशानुसार कर सकती है।

अनिवार्य कार्य

  • सार्वाधिक कुओं,तालाब,जलाशयों का निमार्ण एवं उनकी मरम्मत एवं पुलियों का निर्माण।
  • सार्वधिक मार्गो, शौचालयों, नालियों, ग्राम पंचायत की सड़कों एवं पुलियों का निमार्ण।
  • कृषि का विकास।
  • जन्म,मृत्यु तथा विवाह का पंजीकरण।
  • लघु सिंचाई साधनों का निमार्ण।
  • सार्वजानिक हाटों,मेलों आदि की स्थापना।
  • टीका और सुई लगाना।
  • पशुओं और उसकी नरल का सुधार।
  • सार्वजानिक भूमि का प्रबंध।

ऐच्छिक कार्य

  • सड़कों के किनारे एवं अन्य स्थान पर वृक्ष लगाना।
  • धर्मशालाओं, विश्रामगृहों और सार्वजानिक घाटों का निमार्ण।
  • सामुदायिक केन्द्रों को व्यवस्था।
  • खेल स्थलों, पुस्तकालयों और पाकों का निर्माण।
  • सामाजिक और नैतिक कल्याण का संवर्द्धन,जिसमे मद्य निषेध,छुआछूत का उन्मूलन,भ्रष्टाचार उन्मूलन, मुकदमेबाजी को हतोत्साहित करना और झगड़ों को सहमति द्वारा सुलझाने को प्रोत्साहित करना।

खण्ड पंचायत के कार्य

भारत के अधिकांश राज्यों में खण्ड पंचायते, स्थानीय स्वशासन की मूल धुरी है। खण्ड पंचायत के द्वारा ही समूची योजनाओं का क्रियान्वयन होता है। पंचायत समिति का कार्यकारी अधिकारी,खण्ड विकास अधिकारी कहलाता है,जो पंचायतों के कार्यों का पर्यवेक्षण और नियंत्रण करता है। साथ ही पंचायतों के आवश्यक तकनीकी और वित्तीय सहायता भी प्रदान करता है। पंचायत समिति के कार्यों को निम्नलिखित दो भागों में बाटा जाता है।

  • नागरिक सुविधाएँ प्रदान करना।
  • विकास कार्यों को पूर्ण करना।
  • नागरिक सुविधाओं के अंतर्गत् क्षेत्र की सड़कों का निमार्ण एवं रखरखान,पेयजल की व्यवस्था,नालियों का निमार्ण,प्राथमिक स्वास्थ केन्द्रों की स्थापना, पुस्तकालयों की स्थापना एवं प्राथमिक तथा बुनिवादी पाठशालओं की व्यवस्था।
    विकास कार्य,सामुदायिक विकास के अंतर्गत आने वाले सभी कार्यों का निष्पादन,उन्न्त बीजों की वृद्धि एवं वितरण वर्ण की व्यवस्था,दुग्ध व्यवसाय,कुटीर, ग्रामीण और लघु उघोगों का विकास,उत्पादन और प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना।

जिला परिषद का कार्य

जिला परिषद्,मूलतःनिरोक्षणकारी कार्य संपादित करता है। परिषद् का कार्य अपने अधीनस्थ निकायों के कार्यों पर्यवेतक्षण करना, तथा उनके मध्य समन्वयं स्थापित करना है। यघपि वर्तमान समय में जिला परिषद् समन्वयात्मक भूमिका के अतिरिक्त विकास कार्यों को संपादित भी कर रहा है।

जिला परिषद् के मूल कार्य निम्न है

  • पंचायत समितियों के बजट का परिक्षण और अनुमोदन।
  • पंचायत समितियों को कुशलतापूर्वक कार्य संपन्न करान निर्देश।
  • पंचायत समितियों द्वारा तैयार की गई योजनाओं को समन्वित करना।
  • राज्य सरकार को जनपद के विकास के कार्यों के संदर्भ में परामर्श देना।
  • राज्य सरकार द्वारा निर्धारित धनराशि को जिले की पंचायत समितियों में वितरित करना।
  • जिलाधिकारों और मंडलायुक्त को जिले की पंचायतों और पंचायत समितियों द्वारा की गई अनियमितताओं के संबंध में सूचना देना।
  • राज्य सरकार को जिले की पंचायतों और पंचायत समितियों के बीच कार्य के विभाजन के संदर्भ में सलाह देना।
  • उन शक्तियों का प्रयोग,जो राज्य सरकार द्वारा उन्हें सौपे जाए।

पंचायतों के अधिकार

  • राज्य विधानसभा द्वारा विधि निमार्ण करके पंचायतों को लगाने एवं वसूलने की शक्ति प्रदान कर सकती
  • सामाजिक आर्थिक विकास की योजनायें तैयार करना। तथा इन योजनाओं को लागू करना।

पंचायतों का क्या अधिकार नहीं है।

  • पंचायतों को विधि निमार्ण का अधिकार नहीं है।
  • अनुच्छेद 243, (GO) में प्रावधान है, कि पंचायतों और नगर पालिकाओं को प्राप्त होने वाले विषय राज्य सरकारों के द्वारा दिए जाएँगे।

 

विभिन्न राज्यों में पंचायतों के खण्ड पर विभिन्न नाम

  • आंध्र प्रदेश, बिहार एवं उड़ीसा में – पंचायत समिति।
  • उत्तर प्रदेश में – क्षेत्र समिति एवं पंचायत समिति।
  • असम में – आँचलिक पंचायत समिति।
  • पश्चिम बंगाल में – आँचलिक परिषद्।
  • मध्य प्रदेश में – जनपद पंचायत।
  • कर्नाटक एवं गुजरात में – तालुका परिषद्त
  • मिलनाडु में – पंचायत संघ।

जिलापरिषदों के विभिन्न नाम

  • असम महात्मा परिषद्
  • तमिलनाडु एवं कर्नाटक जिला विकास परिषद्।
  • पंजाब, आंध्र प्रदेश, गुजरात, महारष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल। – जिला परिषद्।

पंचायती राज और मनरेगा (MNREGA)

  • मनरेगा को 2 फरवरी,2006 से 200 जिलों में लागू किया गया तथा बाद में 1 अप्रैल, 2008 से इसे समूचे भारत में लागू कर दिया गया ।
  • मनरेगा, एक योजना नहीं, अपितु एक अधिनियम है।
  • योजना एवं अधिनियम के मध्य एक महत्वपूर्ण अंतर है, कि योजना को समाप्त किया जा सकता है। लेकिन अधिनियम सामान्यतः स्थायी होता है।
  • मनरेगा के माध्यम से संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में वर्णितों कार्य के अधिकार को कानूनी रूप प्रदान की गई है।
  • मनरेगा के द्वारा गांव के लोगों को वर्ष में कम से कम 100 दिन का रोजगार अनिवार्य रूप से दिया जाता है।
  • इसके अंतर्गत् गांव के लोगों को गांव के विकास से संबंधित कार्य दिये जाते है।
  • गांव के व्यक्तियों को गांव में ही रोजगार मिल जाता है।
  • मनरेगा का क्रियान्यवयन पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से किया जाता है।
  • मनरेगा द्वारा प्रदान की गयी समूची धन राशि सीधे ग्रामप्रधान के पास भेजी जाती है।
  • मनरेगा के अंतर्गत किन लोगों को रोजगार दिया जायेगा। इसका निर्धारिण ग्रामसभा के द्वारा किया जाता।
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