उत्तराखण्ड के प्रमुख लोकगीत | TheExamPillar
Folk Songs of Uttarakhand

उत्तराखण्ड के प्रमुख लोकगीत

उत्तराखण्ड के प्रमुख लोकगीत
(Major Folk Songs of Uttarakhand)

उत्तराखण्ड के प्रमुख लोकगीतों का विवरण निम्न हैं – 

चौफुला गीत

  • यह प्रेम व मिलन का गीत है। यह स्त्री व पुरुष द्वारा सामूहिक रूप से गाया जाने वाला नृत्य प्रधान गीत है। इस गान में रति, हृास, अनुनय तथा मनुहार चारों भावों का समावेशन होता है। 

खुदेड़ गीत

  • यह एक विरह गीत है। इस गीत का विषय अपने प्रियजनों; जैसे-मायके वालों, पति-पत्नी से बिछड़ना होता है। 

चौमासा गीत

  • यह राह विरह गीत है। अधिक वर्षा तथा प्रिया मिलन की आशा में गाया जाता है। 

झुमैलो गीत

  • यह गढ़वाल क्षेत्र में बसन्त पंचमी से विषुवत संक्रान्ति के बीच गाया जाने वाला वेदनापूर्ण गीत है। इसमें नारी हृदय की वेदना और सौन्दर्य को बखूबी प्रस्तुत किया जाता है। यह जौनसारी नृत्य की श्रेणी में नहीं आता। 

बारहमासा गीत

  • इस प्रकार के गीतों में गढ़वाली स्त्रियाँ बारह महीनों के लक्षणों का वर्णन करती हैं। ये गीत मुख्यतः मौसम, फूल तथा प्राकृतिक सौन्दर्य को वर्णित करते हैं।

बाजूबन्द नृत्य गीत

  • यह विवाह से सम्बन्धित गीत है, जो पेड़ के नीचे बैठकर गाया जाता है। यह रवाई-जौनपुर क्षेत्र में गाया जाने वाला प्रणय संवाद नृत्य गीत है। इसे दूड़ा नृत्य गीत भी कहते हैं। 

चैती पसारा गीत

  • औजी, बद्दी, मिरासी आदि जाति के लोग (चैत माह में) अपने यजमान (ब्राह्मण/क्षत्रिय) के यहाँ इस प्रकार के गीत गाते हैं तथा उनकी स्त्रियाँ नृत्य करती हैं। 

कुलाचार विरूदावली गीत

  • यह गीत औजी तथा बद्दी जाति के लोग मांगलिक अवसरों पर अपने यजमान के घर गाते हैं। इन गीतों में यजमान और उनकी जाति वंश का गुणगान किया जाता है। 

जागर

  • यह देवाताओं (क्षेत्रीय देवी-देवताओं) के गीत होते हैं। इनमें विभिन्न सम्प्रदायों (नाथ, वज्रयानी, सिद्ध तथा बौद्ध) का प्रभाव भी मिलता है। इन्हें देवताओं/पौराणिक व्यक्तियों के आह्वान/सम्मान में गाया जाता है। इसमें डमरू-थाली, हुड़की, ढोल-दमामा आदि वाद्य यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है। 

छोपती गीत

  • यह सामूहिक रूप से गाया जाने वाला प्रिय-मिलन प्रधान गीत है। यह मुख्यतः खाई जौनपुर में अधिक प्रचलित है। इस गायन की विशेषता है कि इसमें हुड़का बजाने वाला ही गीत गाता है और अन्य व्यक्ति नाचते हैं। 

बैरगीत

  • कुमाऊँ क्षेत्र में प्रतियोगिता के रूप में आयोजित होने वाला यह तर्क प्रधान नृत्य गीत है। इसमें बैरीया (कुशाग्र बुद्धि वाला) गायन के माध्यम से अपना पक्ष रखता है। 

हुड़के बोल गीत

  • ये गीत कृषि सम्बन्धित है तथा कुमाऊँ में प्रचलित है। इस गीत को कृषक हुड़के (वाद्य यन्त्र) के साथ खेतों में श्रम करते हुए गाते हैं।

बासन्ती गीत

  • बसन्त ऋतु के आगमन पर गढ़वाल क्षेत्र की किशोरियाँ घर के आँगन पर देहली को सजाती हुई गाती हैं। देहलियों और द्वारों को सजाने के लिए किशोरियाँ फंयूली के फूलों को प्रयोग में लाती हैं। यह विरह गीत है। 

ठुलखेल गीत

  • यह गीत भाद्रपद माह में कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर कुमाँऊ क्षेत्र में पुरुषों द्वारा गाए जाते हैं।

छपेली गीत

  • यह गीत मेला एवं विवाह आदि उत्सवों पर गाया जाता है। 

भडौं गीत

  • गढ़वाल क्षेत्र में इन गीतों को पँवाड़ा गीत कहा जाता है। ये मुख्यतः वीरों की जीवनी से सम्बन्धित होते हैं। 

चूरा गीत

  • युवा चरवाहों को सीख देने के लिए बूढ़े चरवाहों द्वारा यह गीत गाया जाता है। 

भगनौल गीत

  • यह अनुभूति प्रधान (कुमाऊँ क्षेत्र के) गीत मेलों में हुड़के तथा नगाड़ों की धुन पर नृत्य करते हुए गाया जाता है। न्यौली भी इसी क्षेत्र का अनुभूति प्रधान गीत है। 

 

Read Also :

 

Leave a Reply

Your email address will not be published.

error: Content is protected !!