मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश
गहदवाल राजवंश (Gahadavala Dynasty)
ग्यारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में गहदवालों (Gahadavala) का उदय इस शीघ्रता से हुआ कि उनके उदय के बारे में पता करना बहत कठिन है।
प्रारम्भिक शासक
- इस वंश की स्थापना यशोनिग्रह के द्वारा किया गया था।
- यशोनिग्रह का पुत्र महिचद्र, जिसे महिन्द्र तथा महितल के नाम से भी जाना जाता था, एक महत्त्वपूर्ण शासक थे जिन्होंने उत्तर प्रदेश के कुछ भाग पर शासन किया।
- उनके पत्र चंद्रदेव ने उत्तर भारत से महमूद की अनुपस्थिति का फयदा उठाते हुए राष्ट्रकूट राजा गोपाल को यमुना के तट पर बुरी तरह पराजित किया।
- उन्होंने इलाहाबाद से बनारस के बीच के पूरे क्षेत्र पर अधिकार कर लिया तथा बनारस को अपने राज्य की दूसरी राजधानी बनाया।
- उन्होंने तुरुक्षादंड नाम का एक नया कर लगाया, जो मुस्लिमों से होने वाले युद्ध पर आने वाले खर्च अथवा उन्हें वार्षिक भुगतान करने के लिए था।
- उनके बाद गद्दी पर उनका पुत्र मदनाचंद्र आया जिसे मदनपाल के नाम से भी जाना जाता था।
गोविन्दचंद्र (Govind Chandra)
- वे मदनचंद्र के बाद गद्दी पर आए तथा सम्भवतः पूरे वंश के सबसे महान शासक थे।
- उनके राज्य के वैभव को बताने वाले 40 से भी ज्यादा अभिलेख मिले हैं।
- पाल राजाओं की कमजोरी का फायदा उठाते हुए उन्होंने मगध के हिस्से पर कब्जा कर लिया।
- उन्होंने चेदी तथा चंदेलों को भी पराजित किया तथा चंदेलों से पूर्वी मालवा छीन लिया।
- उनके शासनकाल में उनके मंत्री लक्ष्मीधर ने कानून और तरीकों (Procedure) पर अनेक पुस्तकें लिखीं जिनमें से कृत्य कल्पतरू अथवा कल्पद्रुम सबसे महत्त्वपूर्ण है।
विजयचंद्र (Vijaya Chandra)
- गोविंद चंद्र के बाद उनके पुत्र विजयचंद्र आए।
- पृथ्वाराजरासो के अनुसार उन्होंने कई युद्ध जीते परंतु इस तरह का लोकोक्तियों को पूरी तरह सत्य नहीं माना जा सकता।
जयचंद्र (Jay Chandra)
- विजयचंद्र के पुत्र एवं उत्तराधिकारी, 1170 में गद्दी पर आए।
- उनके जीवन के बारे में पृथ्वीराजरासो अथवा ताम्र प्रशस्तियों के स्थान पर मुस्लिम एवं स्वतंत्र स्रोतों से ज्यादा पता चलता है।
- जयचंद्र कन्नौज के अंतिम महान शासक थे तथा उनकी शक्ति तथा समृद्धि ने मुस्लिम इतिहासकारों को अवश्य प्रभावित किया होगा।
- जयचंद्र के शांतिपूर्ण शासन को मोईजुद्दीन मुम्मद गोरी ने पूरी तरह से तोड़ डाला।
- वह दिल्ली तथा अजमेर पर कब्जा करने के बाद एक बड़ी सेना के साथ 1193 में कन्नौज की तरफ बढ़ा।
- जयचंद्र ने चंद्रवार तथा इटावा के बीच के मैदानों में उसका सामना किया तथा पराजित हुआ।
- जयचंद्र का नाम संस्कृत साहित्य के इतिहास के साथ भी जुड़ा है।
- उन्होंने श्रीहर्ष को काफी प्रश्रय दिया, जिन्होंने नैसादचरित्र, खानदान-खानदा-खाद्य जैसे प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की जिसमें से उनकी दूसरी रचना महत्त्वपूर्ण एवं प्रसिद्ध वेदांत प्रबन्ध है जो व्यवस्था के ऋणात्मक पहलुओं पर है।
अंतिम शासक
- जयचंद्र की मृत्यु तथा पराजय से मुस्लिम कन्नौज पर अधिकार नहीं कर पाए।
- जयचंद्र के पुत्र हरिश्चंद्र शिहामुद्दीन के सामंत के रूप में शासन करते रहे।
- हरिश्चंद्र के उत्तराधिकारी अदाक्कमल का इल्तुतमिश ने अपने पैतृक राज्य से अलग कर दिया।
- इस तरह 6 शताब्दियों तक उत्तर भारत की राजनीति पर छाए रहने के बाद कन्नौज के साम्राज्य का अंत हो गया।
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