मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने मंगलवार को भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली, जिससे उन्होंने न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ का स्थान ग्रहण किया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में शपथ दिलाई। न्यायमूर्ति खन्ना ने न्यायिक लंबित मामलों के समाधान को अपनी प्राथमिकता के रूप में चुना है और साथ ही वह मीडिया के ध्यान से दूर रहना पसंद करते हैं। वर्तमान युग में, सोशल मीडिया के प्रभाव को स्वीकारते हुए उन्होंने संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति का सफर
न्यायमूर्ति खन्ना 18 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने और 13 मई 2025 को सेवानिवृत्त होंगे। उनका कार्यकाल लगभग छह महीने से अधिक रहेगा। वह उन गिने-चुने न्यायाधीशों में से हैं जिन्हें उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने बिना सीधे सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया। उनका यह सफर उनकी कानूनी विशेषज्ञता और न्यायिक सेवा में योगदान को दर्शाता है।
कानूनी करियर की शुरुआत और अनुभव
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने अपने करियर की शुरुआत 1983 में बार काउंसिल ऑफ दिल्ली के अधिवक्ता के रूप में की। उन्होंने शुरुआत में दिल्ली के टीस हजारी कोर्ट में काम किया और बाद में दिल्ली हाई कोर्ट और विभिन्न ट्रिब्यूनलों में अपनी सेवाएं दीं। वे लंबे समय तक आयकर विभाग के वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता रहे और 2004 में दिल्ली सरकार के स्थायी अधिवक्ता (सिविल) नियुक्त किए गए। इसके अतिरिक्त, उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में कई आपराधिक मामलों में अभियोजक और अमाइकस क्यूरी के रूप में भी अपनी भूमिका निभाई।
दिल्ली हाई कोर्ट में योगदान और जिम्मेदारियाँ
2005 में न्यायमूर्ति खन्ना दिल्ली हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश बने और 2006 में उन्हें स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया। दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया, जैसे दिल्ली न्यायिक अकादमी, दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र, और जिला न्यायालय मध्यस्थता केंद्र में अध्यक्ष या प्रभारी न्यायाधीश का कार्यभार संभाला। इन भूमिकाओं में उन्होंने कानूनी शिक्षा और मध्यस्थता प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए अनेक प्रयास किए।
सुप्रीम कोर्ट में विभिन्न भूमिकाएँ और विशेष पद
न्यायमूर्ति खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में 17 जून से 25 दिसंबर, 2023 तक अपनी सेवाएं दीं। वर्तमान में वह राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं। इसके अतिरिक्त, वह राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल की गवर्निंग काउंसिल के सदस्य भी हैं। इन भूमिकाओं में न्यायमूर्ति खन्ना ने न्यायिक सेवाओं के प्रसार और सुधार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
कानूनी पृष्ठभूमि और परिवार का प्रभाव
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का परिवार भी कानूनी क्षेत्र में जाना-पहचाना नाम है। वह पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच. आर. खन्ना के भतीजे हैं, जिन्होंने 1973 के केशवानंद भारती मामले में संविधान की मूल संरचना सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले ऐतिहासिक फैसले में भूमिका निभाई थी। यह फैसला भारतीय लोकतंत्र और संविधान के इतिहास में एक मील का पत्थर है और इस पृष्ठभूमि से न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को गहरा प्रेरणा मिली है।
महत्वपूर्ण निर्णय और सिद्धांत
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में, न्यायमूर्ति खन्ना ने कई महत्वपूर्ण निर्णयों में हिस्सा लिया। इनमें प्रमुख हैं:
- धारा 19(1)(a) पर फैसला: एक पत्रकार के टीवी शो के दौरान टिप्पणी पर मामले में, उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) का उपयोग अनुच्छेद 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकार का उल्लंघन करने के लिए नहीं किया जा सकता। उन्होंने इसे एक संतुलनकारी सिद्धांत माना।
- सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना पर असहमति: इस परियोजना के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करते समय, उन्होंने असहमति व्यक्त की थी, जिसमें उन्होंने परियोजना की व्यापकता और सार्वजनिक हित के महत्व पर विचार किया।
- अनुच्छेद 370 और चुनावी बांड मामले: संविधान पीठ के कई निर्णयों में भी न्यायमूर्ति खन्ना शामिल रहे, जिनमें अनुच्छेद 370 के उन्मूलन और 2018 में शुरू किए गए चुनावी बांड योजना को चुनौती दी गई थी। इन मामलों में उनके निर्णयों से संविधान की व्याख्या और लोकतांत्रिक मूल्य स्पष्ट हुए हैं।
- अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का मामला: अल्पसंख्यक दर्जे के निर्धारण पर उन्होंने बहुमत के साथ फैसला दिया था।
न्यायिक लंबित मामलों का समाधान
न्यायमूर्ति खन्ना का मानना है कि भारतीय न्यायपालिका में लंबित मामलों का समाधान सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। अपने कार्यकाल में उन्होंने इस पर विशेष ध्यान देने का संकेत दिया है। न्यायिक प्रक्रियाओं को अधिक कुशल बनाने और लंबित मामलों को शीघ्र हल करने के उद्देश्य से, वह विभिन्न सुधारों की आवश्यकता पर बल देते हैं। उनके कार्यकाल में न्यायपालिका में आई.टी. समाधानों और डिजिटल माध्यमों का उपयोग बढ़ने की उम्मीद है ताकि लंबित मामलों को गति मिल सके।
समाज और न्यायपालिका के लिए भविष्य की योजना
न्यायमूर्ति खन्ना का दृष्टिकोण समाज में न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका को लेकर स्पष्ट है। उन्होंने संकेत दिया है कि समाज में न्याय और कानून की अवधारणा को और अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता है। न्यायपालिका को समाज के बदलते हुए ढांचे में एक मार्गदर्शक शक्ति के रूप में देखना उनका दृष्टिकोण है, जिसमें नागरिकों की स्वतंत्रता और अधिकारों का सम्मान सुनिश्चित किया जा सके।
सोशल मीडिया और न्यायपालिका की छवि
न्यायमूर्ति खन्ना वर्तमान युग में सोशल मीडिया के प्रभाव से अवगत हैं, लेकिन वह न्यायाधीशों के लिए एक सम्मानित और सुरक्षित छवि बनाए रखने के पक्षधर हैं। उनका मानना है कि सोशल मीडिया के माध्यम से न्यायाधीशों की जिम्मेदारी और पारदर्शिता बनी रहनी चाहिए, लेकिन इस तरह से कि न्यायपालिका की गरिमा बरकरार रहे।
निष्कर्ष
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यकाल न्यायपालिका के सुधार और समाज में न्याय की सुदृढ़ता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उनके प्रमुख निर्णय और सुधार भारतीय न्यायिक प्रणाली में सकारात्मक बदलाव की दिशा में एक मजबूत कदम साबित हो सकते हैं। भारतीय न्यायपालिका में उनकी यह यात्रा उनके कानूनी ज्ञान, अनुभव और न्यायपूर्ण दृष्टिकोण का प्रतीक है, जो समाज के लिए एक प्रेरणास्रोत बनेगी।
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