प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2018 को अपने एलान को अमलीजामा पहनाने की दिशा में गगनयान प्रोजेक्ट के लिए 10 हजार करोड़ रुपये के बजट को मंजूरी दे दी है तो सवाल उठ रहा है कि भारत ऐसा करके आखिर क्या हासिल करने जा रहा है। मोटे तौर पर इसरो का यह स्पेस अभियान तीन भारतीयों को 2022 में अंतरिक्ष में ले जाने का है।
अंतरिक्ष का सफ़र
- अभी तक दुनिया में सिर्फ तीन देश हैं जिन्होंने अपने प्रयासों से नागरिकों को अंतरिक्ष में भेजा है। इसमें पहली उपलब्धि सोवियत संघ (आज के रूस) के नाम है, जिसने 1957 में दुनिया का पहला कृत्रिम उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ा था।
- सोवियत संघ ने 12 अप्रैल, 1961 को अपने नागरिक यूरी एलेकसेविच गागरिन को वोस्टॉक-1 नामक यान से स्पेस में भेजा था।
- इसके बाद से रूस वोस्टॉक, वोस्खोड और सोयूज यानों से करीब 74 मानव मिशनों को अंतरिक्ष में भेज चुका है।
- इसके बाद अमेरिका ने 5 मई, 1961 को अपने नागरिक एलन बी शेपर्ड को प्रोजेक्ट मरकरी मिशन के तहत स्पेसक्राफ्ट फ्रीडम-7 से अंतरिक्ष में रवाना किया।
- उसके बाद से अमेरिकी स्पेस एजेंसी-नासा 200 से ज्यादा मानव मिशन अंतरिक्ष में भेज चुकी है।
- तीसरा देश चीन है, जिसने 15 अक्टूबर, 2003 को अपने नागरिक यांग लिवेई को शिंझोऊ-5 यान से अंतरिक्ष में भेजा था।
- 2 अप्रैल, 1984 को अंतरिक्ष में जाने वाले स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा को अंतरिक्ष में जाने वाले प्रथम भारतीय नागरिक होने का रुतबा हासिल है, लेकिन वह रूस की मदद से उसके यान सोयूज टी-11 से अंतरिक्ष में गए थे।
इसरो की गगनयान के लिए योजना
- इसरो ने मंगलयान के अलावा अपने रॉकेटों (जीएसएलवी और पीएसएलवी) से भारी विदेशी उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करके जो प्रतिष्ठा हासिल की है, उसे देखते हुए गगनयान से किसी भारतीय को स्पेस में भेजने का उसका सपना नामुमकिन नहीं लगता है।
- इस मिशन पर कम से कम सात दिनों के लिए यात्रियों को अंतरिक्ष में रहना होगा। इसके लिए जरूरी है कि इसरो मिशन में इस्तेमाल होने वाले रॉकेट जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच व्हीकल मार्क-3 (जीएसएलवी-एमके-3) से कम से कम दो मानवरहित उड़ानें कराए।
- इसरो ने पहले ही क्रू मॉड्यूल (गगनयान) और स्केप सिस्टम का परीक्षण कर लिया है। शेष तैयारियां अगले कुछ चरणों में पूरी हो जाएंगी।
- अंतरिक्ष यान में उड़ान भरने वाले अंतरिक्ष यात्री का चयन भारतीय वायुसेना द्वारा किया जाएगा और उन्हें स्पेस फ्लाइट की ट्रेनिंग विदेशों में दी जाएगी।
- इसरो को अभियान के लिए चुने गए लोगों को अंतरिक्ष में रहने, खाने-पीने और 7 दिन तक क्या काम करने हैं-इसके लिए ट्रेनिंग देनी होगी।
- स्पेस से वापस धरती पर लाना (योजना के मुताबिक तीनों अंतरिक्ष यात्री अरब सागर में लैंडिंग करेंगे) आसान नहीं होगा, क्योंकि ऐसी स्थिति में यान को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से जूझना होगा।
गगनयान क्यों जरुरी है ?
- इसरो की तैयारियों और सरकार की इस बारे में दृढ़ इच्छाशक्ति के बीच स्पेस में भारत के स्वदेशी मानव मिशन पर कुछ सवाल उठने फिर भी लाजिमी हैं।
- एक बड़ा सवाल यह है कि क्या गगनयान से देश कुछ ठोस हासिल कर पाएगा?
- हाल में नासा के मंगल मिशनों (खास तौर से वहां इंसान को भेजने की योजनाओं पर) कई वैज्ञानिकों ने यह कहते हुए सवाल उठाए हैं कि ऐसे खर्चीले मिशनों की जरूरत क्या है?
- विश्व की कई निजी कंपनियां इस कोशिश में हैं कि स्पेस टूरिज्म के सपने को साकार करते हुए लोगों को पृथ्वी की सतह से करीब सौ किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष कही जाने वाली परिधि का भ्रमण कराया जा सके और उसके बल पर अकूत कमाई का रास्ता खोला जा सके।
- अब अमेरिकी स्पेस एजेंसी ‘नासा’ भी दो व्यावसायिक स्पेस ट्रैवल पार्टनर कंपनियों के साथ मिलकर लोगों को स्पेस की सैर कराने के उद्देश्य के साथ काम कर रही है।
- इनमें से एक है एलन मस्क की कंपनी ‘स्पेसएक्स’ और दूसरी विमानन कंपनी ‘बोइंग’।
- आने वाले कुछ वर्षो में स्पेस टूरिज्म के बेहद आम हो जाने का अनुमान है। ऐसे में भारत यदि मानव मिशन पर आगे बढ़ने की बात कर रहा है तो इसका एक मकसद स्पेस टूरिज्म से देश के लिए पूंजी जुटाना भी हो सकता है।
इसरो के सामने चुनोतियाँ
- अमेरिका, रूस और चीन मानव मिशन को स्पेस में भेज चुका है और जल्द ही चंद्रमा पर ऐसा मिशन भेजने की उसकी योजना है की आगे चलकर चंद्रमा के खनिजों के दोहन की बात भी उसके जेहन में है।
- साथ ही अपने रॉकेटों से विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण के बाजार में भी वह सेंध लगाना चाहता है ताकि इस मामले में भारत के इसरो की बढ़त और कमाई को कम किया जा सके।
- भारत के लिए यह राहत की बात है कि पिछले कुछ अरसे में इसरो ने दुनिया के सामने अपनी कामयाबियों का प्रदर्शन किया है।
गगनयान से भारत का आर्थिक लाभ
- आइटी और बीपीओ इंडस्ट्री के बाद दुनिया में अंतरिक्ष परिवहन ऐसे तीसरे क्षेत्र के रूप में उभरा है, जिसमें भारत को अच्छी-खासी कमाई हो रही है।
- इसरो से उपग्रहों का प्रक्षेपण करवाने की लागत अन्य देशों के मुकाबले 30-35 प्रतिशत कम है।
- हालांकि इसरो इस कीमत का खुलासा नहीं करता, पर वह एक उपग्रह को लांच करने के लिए अमूमन 25-30 हजार डॉलर प्रति किलोग्राम के हिसाब से शुल्क लेता रहा है।
- एक पत्रिका-एशियन साइंटिस्ट मैगजीन के अनुसार पिछले चार-पांच वर्षो में ही 15 विदेशी उपग्रहों को पीएसएलवी से प्रक्षेपित करके इसरो ने 54 लाख डॉलर की कमाई की है।
- भारत पीएसएलवी जैसे अपने रॉकेटों के बल पर साबित कर चुका है कि वह दुनिया का लांच सर्विस प्रोवाइडर बनने की मजबूत क्षमता रखता है।
- आज स्थिति यह है कि कई यूरोपीय देश भारतीय रॉकेट से अपने उपग्रह स्पेस में भेजना पसंद करते हैं। इसकी वजह शुद्ध रूप से आर्थिक है।
- भारतीय रॉकेटों के जरिये उपग्रह भेजना सस्ता पड़ता है। हालांकि मसला सिर्फ लागत या कीमत का ही नहीं है। भारतीय रॉकेटों की सफलता दर भी काफी ऊंची है।
- अंतरिक्ष अभियानों में भारत की संलिप्तता को लेकर पहले जो विकसित पश्चिमी देश इसका मजाक उड़ाते थे, आज वही अपने उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए भारतीय रॉकेटों का सहारा ले रहे हैं।
Source – Jagran