Kunind Dynasty in Uttarakhand

उत्तराखण्ड में कुणिन्द राजवंश का इतिहास

अल्मोड़ा भांति (Almora Type)

19वीं तथा 20वीं सदी में कुछ ऐसे सिक्के प्रकाश में आये जिन्हें प्रकार की दृष्टि से कुणिन्दों के साथ सम्बन्धित किया गया है । एलन ने भी तीन चॉदी के सिक्कों का वर्णन किया है। इन्हें रैप्सन तथा अन्य विद्वानों ने लिपि-चिह्नों एवं ब्राह्मी–लेख के आधार पर ‘अल्मोड़ा मुद्रा’ के नाम से अभिहित किया है।

एलन, डी.सी. सरकार, के.के. दासगुप्ता जैसे विद्वानों ने अल्मोड़ा भांति की मुद्रा को कुणिन्द-मुद्रा मानने से इन्कार कुछ विद्वानों ने यह मत भी प्रतिपादित किया है कि कुणिन्दों के समकालीन ही उत्तराखण्ड में एक अन्य राजवंश शासन कर रहा था, जिसने अल्मोड़ा भांति के सिक्के जारी किये थे, किन्तु जहाँ तक साहित्यिक साक्ष्यों का प्रश्न है, इस क्षेत्र में कुणिन्दों का राज्य ही बतलाया गया है और किसी भी अन्य वंश/जाति के राज्य का समकालीन साक्ष्यों से पता नहीं चलता है। कुणिन्द मुद्राओं के सम्बन्ध में की गयी नवीनतम शोघ में भी इन मुद्राओं को सरलता के साथ कुणिन्दों से सम्बन्धित किया गया है। वर्तमान तक अल्मोड़ा भांति के लगभग 58 सिक्के प्रकाश में आये हैं। इनमें आठ कुणिन्द शासकों- शिवदत्त, हरदत्त, शिवपालित, शिवरक्षित, गौमित्र, विजयभूति, मगभतस एवं आसेक के नाम मिलते हैं। अत्यधिक मिलावटी चॉदी में निर्मित ये सिक्के दो आकारों में मिलते हैं ।

प्रतीत होता है कि अमोघभूति के उत्तराधिकारी संभवतः कमजोर साबित हुए. कुछ समय तक तो उन्होंने अमोघभूति द्वारा विजित प्रदेशों में अपना अधिकार बनाये रखा किन्तु कालान्तर में कुषाणों के अभ्युदय के साथ ही उन्हें मैदानी क्षेत्रों से पलायन कर केवल पर्वतीय क्षेत्रों तक ही सीमित रह जाना पड़ा, संभवत यही वह कालान्तराल है जब कुणिन्दों ने अल्मोड़ा भाँति के सिक्के चलाये थे ।

प्रतीक वर्णन (Symbol Description)

अल्मोड़ा भांति के सिक्कों में प्रयुक्त प्रतीक चिह्नों के विषय में विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने मत प्रतिपादित किये हैं। इन सिक्कों के

  • मुख–भाग के मध्य में एलन ने वेदिका के अन्दर पेड़, उसके आगे बैल और उसके बाद एक लेख उत्कीर्ण होने का उल्लेख किया है। उल्लेखनीय है कि एलन ने इन्हें कुणिन्द मुद्रा मानने से इन्कार किया है ।
  • रैप्सन इन सिक्कों के मुख-भाग में प्रदर्शित पशु को बैल नहीं वरन् हिरण का अंकन मानते हैं और अल्मोड़ा भांति की मुद्राओं को कुणिन्द-मुद्रा स्वीकार करते हैं।
  • पॉवेल प्राइस ने रैप्सन के मत को स्वीकार करते हुए इन्हें कुणिन्द मुद्रा माना है और इस अंकन को हिरण और बोधिवृक्ष से समीकृत किया है।
  • नौटियाल भी इन सिक्कों को कुणिन्दों का मानते हैं और वेदिका के अन्दर वृक्ष के सामने अंकित पशु को कूबड़युक्त बैल से समीकृत करते हैं, वृक्ष के सम्बन्ध में नौटियाल की मान्यता है कि इसकी शुकी हुई शाखाओं के कारण इसे कुणिन्दों के वंश-चिह, ‘चीड़ के वृक्ष’ से समीकृत किया जाना चाहिए ।
  • एम.पी. जोशी भी इन सिक्कों को कुणिन्दों से सम्बद्ध करते हैं। इन सिक्कों के मुख–भाग के अंकन को जोशी, वेदिका के अन्दर छत्र मानते है और बताते हैं कि यह कुणिन्दों के लिए एक विशेष चिह था, जिसका अंकन न केवल इन सिक्कों में वरन् अमोधभूति और चत्रेश्वर या अनाम भांति के सिक्कों में भी निरन्तर मिलता है, जोशी इसे शिव का छत्र रूप में प्रतीक मानते हैं ।

कुणिन्द मुद्राओं का तिथिक्रम (Date of Kunind Numerical)

यद्यपि जाति के रूप में हिमालय के इस भू-भाग में कुणिन्दों का उल्लेख पाणिनी के काल (लगभग 6 सदी ई. पू. के प्रारंभ) से निरन्तर साहित्यिक स्रोतों में मिलता है, तथापि प्रतीत होता है कि द्वितीय सदी ईस्वी पूर्व के अन्तिम चरण में कुणिन्दों ने अमोघभूति के नेतृत्व में शक्ति अर्जित की और एक रगतंत्र राज्य की स्थापना कर अपनी मुद्रा जारी की। कुछ विद्वानों का विचार था कि अमोघभूति के उपरान्त इस क्षेत्र में कुणिन्द मुद्रा एक लम्बे अन्तराल तक नहीं मिलती है और फिर एक दीर्घावधि के बाद पुनः चत्रेश्वर भाँति के रूप में यहाँ कुणिन्द मुद्राएँ मिलती हैं । लेकिन अल्मोड़ा भाँति की मुद्राओं को कुणिन्द मुद्रा मानने से यह विचार खण्डित हुआ है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि हिमालय के इस भू-भाग में कुणिन्दों की मुद्राएँ द्वितीय सदी ईस्वी पूर्व के अन्त से लेकर तृतीय सदी ईस्वी तक निरन्तर मिलती हैं।

विद्वानों ने कुणिन्द-मुद्राओं के कालक्रम को निश्चित करने का प्रयास किया है।

  • एलन के अनुसार, शैली और बनावट की दृष्टि से अमोघभूति के सिक्के एक काल के हैं और वह इनको प्रथम सदी ईसी पूर्व के उत्तरार्द्ध में रखते हैं, अमोघभूमि के ताम्र-सिक्कों के संबंध में उनका मानना है कि ये संभवतः कुषाण आक्रमणकारियों ने नकल स्वरूप चलाये हैं ।
  • स्मिथ के अनुसार जिन सिक्कों में दो लिपियों में लेख हैं वो सबसे प्राचीन हैं।
  • एम.पी. जोशी इस सम्बन्ध में रोपड़ के उत्खनन का हवाला देते हैं जहाँ अमोघभूति का एक सिक्का- प्रथम सदी ईस्वी पूर्व से प्रथम सदी ईस्वी की सतह से प्राप्त हुआ है, जोशी के अनुसार अमोघभूति के सिक्के इस काल के बाद के तो हो ही नहीं सकते हैं ।

अल्मोड़ा भाँति के सिक्कों की तिथि एलन ने दूसरी सदी ईस्वी पूर्व मानी है, जोशी उन्हें अमोघभूति और चत्रेश्वर भाँति के मध्य अर्थात् प्रथम सदी ईसी पूर्व से द्वितीय सदी ईस्वी के मध्य रखते हैं और चत्रेश्वर भाँति के सिक्कों को द्वितीय सदी ईस्वी से तृतीय सदी ईस्वी के मध्य निर्धारित करते हैं।

Source –

  • Agrawal, VS. 1955 : India as known to Panini, Varanasi.
  • Allan, J. 1936 : Catalogue of the Coins of Ancient India in the British Museum, London.
  • Joshi, M.P. 1989 : Morphogenesis of Kunindas (Circa 200 B.C. – A.D. 300): A Numismatic Overview. Shree Almora Book Depot, Almora.
  • MC Crindle, J. W. 1929 : Ancient India as described by Ptolmy.
  • Nautiyal, K.P. 1961 : The Numismatic History of Kumaon in the Journal of the Numismatic Society of India

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