श्रृंगार रस (Shringar Ras) नायक-नायिका के सौन्दर्य एवं प्रेम संबंधी वर्णन की सर्वोच्च (परिपक्व) अवस्था को श्रृंगार रस कहा जाता है। श्रृंगार रस को रसों का राजा/रसराज कहा जाता है। श्रृंगार
“विभावानुभावव्यभिचारि संयोगाद्रसनिष्पत्तिः।” अर्थात् विभाव, अनुभाव एवं व्यभिचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। यह रस-दशा ही हृदय का स्थाई भाव है। रस का शाब्दिक अर्थ ‘आनन्द’ है।
अनेक शब्दों के लिए एक शब्द वाक्य शब्द जो शब्दों द्वारा व्यक्त न किया जा सके अवर्णनीय जिसका कोई शत्रु न हो अजातशत्रु ऊपर लिख हुआ उपरिलिखित जो उपकार मानता
विराम-चिह्न भाषा रचना में विराम चिह्न बड़े सहायक होते हैं। अभिव्यक्ति की पूर्णता के लिए बोलते समय शब्दों पर भी जोर देना पड़ता है, कभी ठहरना पड़ता है और कभी-कभी
हिन्दी भाषा और उसकी बोलियाँ भारत की भाषाओं पर 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में व्यापक कार्य करने वाले सर जार्ज ग्रियर्सन ने हिन्दी का क्षेत्र अम्बाला (हरियाणा) से लेकर पर्व
प्रत्यय (Suffix) वे शब्दांश जो किसी शब्द के अन्त में लगकर उस शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं, अर्थात् नये अर्थ का बोध कराते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते
उपसर्ग (Prefix) वे शब्दांश जो किसी मूल शब्द के पूर्व में लगकर नये शब्द का निर्माण करते हैं अर्थात् नये अर्थ का बोध कराते हैं, उन्हें उपसर्ग कहते हैं। ये
कारक वाक्य में जिस शब्द का सम्बन्ध क्रिया से होता है, उसे कारक कहते हैं। इन्हें विभक्ति या परसर्ग (बाद में जुड़ने वाले) भी कहा जाता है। ये सामान्यतः स्वतन्त्र
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