Geographical Structure of Bihar State

बिहार की भौगोलिक संरचना

बिहार की भौगोलिक संरचना (Geographical structure of Bihar)

बिहार में संरचनात्मक दृष्टिकोण से प्री-कैंब्रियन (Pre-Cambrian) कल्प से लेकर चतुर्थ कल्प तक की चट्टानें पाई जाती हैं। प्री-कैंब्रियन कल्प की चट्टानें धारवाड़ संरचना और विंध्यन संरचना के रूप में बिहार के दक्षिणी पठारी भाग में पाई जाती हैं। दक्षिणी पठारी भाग की प्राचीनतम चट्टानें बृहद पेंजिया महाद्वीप के दक्षिणी भाग गोंडवाना लैंड का अंग हैं। उत्तरी पर्वतीय प्रदेश का निर्माण पर्वत निर्माणकारी अंतिम भू-संचलन अल्पाइन में हुआ है। भौगर्भिक दृष्टिकोण से यह समय मध्यजीव कल्प (Mesozoic) का काल है। मध्यवर्ती गंगा का मैदान चतुर्थ महाकल्प (Pleistocene) में निर्मित हुआ है। इसका निर्माण आज भी जारी है तथा राज्य के सर्वाधिक क्षेत्रफल पर इसी नवीन संरचना का विस्तार है। इस प्रकार बिहार के उच्चावच पर संरचना का व्यापक प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।

भूगर्भीय संरचना के आधार पर बिहार में चार प्रकार की चट्टानें पाई जाती हैं –

  1. धारवाड़ चट्टान,
  2. विंध्यन चट्टान,
  3. टर्शियरी चट्टान,
  4. क्वार्टरनरी चट्टान
Geological Structure of Bihar
Image Source – https://www.jagranjosh.com

धारवाड़ चट्टान (Dharwar Rock)

प्री-कैंब्रियन युगीन धारवाड़ चट्टान बिहार के दक्षिण-पूर्वी भाग में मुंगेर जिला के खड़गपुर पहाड़ी, जमुई, बिहारशरीफ, नवादा, राजगीर, बोधगया आदि क्षेत्रों में पाई जाती है। इन क्षेत्रों में पाई जानेवाली पहाड़ियाँ छोटानागपुर पठार का ही अंग हैं। हिमालय पर्वत के निर्माण के समय मेसोजोइक काल में इस पर दबाव शक्ति का प्रभाव पड़ा, जिससे कई पैंसान (भंरश) घाटियों का निर्माण हुआ। कालांतर में जलोढ़ के निक्षेपण से ये पहाड़ियाँ मुख्य पठार से अलग हो गई। धारवाड़ चट्टानी क्रम में स्लेट, क्वार्टजाइट और फिलाइट आदि चट्टानें पाई जाती हैं। ये मूलतः आग्नेय प्रकार की चट्टान हैं, जो लंबे समय से अत्यधिक दाब एवं ताप के प्रभाव के कारण रूपांतरित हो गई हैं। इन चट्टानों में अभ्रक का निक्षेप पाया जाता है।

विंध्यन चट्टान (Vindhyan Rock)

विंध्यन चट्टान का निर्माण प्री-कैंब्रियन युग में हुआ है। यह चट्टान बिहार के दक्षिण-पश्चिमी भाग में पाई जाती है। इसका विस्तार सोन नदी के उत्तर में रोहतास और कैमूर जिले में है। सोन घाटी में इन चट्टानों के ऊपर जलोढ़ का निक्षेप पाया जाता है। इसमें कैमूर क्रम और सिमरी क्रम की चट्टानें पाई जाती हैं। इन चट्टानों में पायराइट खनिज पाया जाता है, जिससे गंधक निकलता है। जीवाश्मयुक्त इन चट्टानों में चूना-पत्थर, डोलोमाइट, बलुआपत्थर और क्वार्टजाइट चट्टानें पाई जाती हैं। ये चट्टानें लगभग क्षैतिज अवस्था में हैं। चट्टानों में जीवाश्म की अधिकता यह प्रमाणित करती है कि यह अतीत में समुद्री निक्षेप का क्षेत्र रहा है। औरंगाबाद जिले के नवीनगर क्षेत्र में ज्वालामुखी संरचना के भी प्रमाण पाए जाते हैं।

टर्शियरी चट्टान (Tarsiary Rock)

हिमालय की दक्षिणी श्रेणी शिवालिक श्रेणी में पाई जाती है। इसके निर्माण का संबंध मेसोजोइक कल्प के मायोसीन और प्लायोसीन भूगर्भिक काल से है, जो हिमालय पर्वत के निर्माण के द्वितीय और तृतीय उत्थान से संबंधित है। इस श्रेणी में बालू पत्थर तथा बोल्डर क्ले चट्टानें पाई जाती हैं। निचले भाग में कांगलोमरेट चट्टान की प्रधानता है। टेथिस सागर के अवसाद से निर्मित होने के कारण इसमें पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस संचित है।

क्वार्टरनरी चट्टान (Quaternary Rock)

क्वार्टरनरी चट्टान गंगा के मैदानी क्षेत्र में परतदार चट्टान के रूप में पाई जाती है, जिसका निर्माण कार्य आज भी जारी है। गंगा का मैदान टेथिस सागर का अवशेष है, जिसका निर्माण गंगा और उसकी सहायक नदियों द्वारा अवसाद (निक्षेप) जमा करने से हुआ है।

हिमालय पर्वत का निर्माण भी टेथिस सागर के मलबे पर संपीडन शक्ति से हुआ है। संपीडन (दबाव) शक्ति द्वारा जिस समय हिमालय का निर्माण हो रहा था, उसी समय हिमालय के दक्षिण में एक विशाल गर्त का निर्माण हुआ। इसी गर्त में गोंडवाना लैंड के पठारी भाग से तथा हिमालय से निकलनेवाली नदियों के द्वारा अवसादों का निक्षेपण प्रारंभ हुआ, जिससे विशाल गर्त ने मैदान का स्वरूप ग्रहण कर लिया।

मैदान का निर्माण जलोढ़, बालू-बजरी-पत्थर और कांगलोमरेट से बनी चट्टानों से हुआ है। यह अत्यंत मंद ढालवाला मैदान है, जिसमें जलोढ़ की गहराई सभी जगहों पर समान नहीं है। इस मैदान में जलोढ़ की गहराई 100 मीटर से 900 मीटर तथा अधिकतम गहराई 6000 मीटर तक है। सर्वाधिक गहरे जलोढ़ का निक्षेप पटना के आसपास पाया जाता है।

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