गढ़वाली लोक साहित्य (Garhwali Folk Literature)

गढ़वाली लोक साहित्य (Garhwali folk Literature)

गढ़वाली लोक साहित्य का वर्गीकरण 

लोक गाथा 

गढ़वाली लोक साहित्य को विशेषकर लोक गाथाओं को डा. गोविन्द चातक ने चार भागों में बाँटा है

  1. धार्मिक गाथाएं 
  2. वीरगाथाएं 
  3. प्रणय गाथाएं 
  4. चैती गाथाएं । 

इनमें अधिकांश धार्मिक गाथाओं का आधर पौराणिक है। वीरगाथाओं में तीलूरौतेली, लोदी रिखोला, कालू भंडारी रणरीत, माधोसिंह भण्डारी की प्रमुख गाथाएं हैं। प्रणय गाथाओं में, तिल्लोगा (अमरदेव सजवाण) राजुला मालूशाही तथा धार्मिक गाथाओं में पाण्डव गाथा, कृष्ण गाथा,कुद्र-विनता, और सृष्टिउत्पत्ति गाथा मुख्य है। 

लोक कथा 

कथा शब्द संस्कृत की ‘कथ्’ धातु से बना है। जिसका अर्थ है ‘कहना’। कहना से ही कहानी बनी है। लोक अपनी बात को अपने कथन को जिस विधि से कहता है वही लोककथा है। गढ़वाली में कथा-कानी, बारता तीनों शब्दों का व्यवहार होता है। गढ़वाली की लोक कथाएं अपने वर्ण्य विषय के कारण निम्नवत् वर्गीकृत हैं – 

  1. ‘देवी-देवताओं’ की कथाएं
  2. परियों, भूतों, प्रेतों की कथाएं 
  3. आँछरियों की कथाएं 
  4. वीरगाथाएं 
  5. पशु पक्षियों की कथाएं 
  6. जन्मान्तर-पुनर्जन्म की कथाएं 
  7. रूपक और प्रतीक कथाएं 
  8. लोकोक्ति अप्सराओं की कथाएं 

गढ़वाली लोकगीतों का वर्गीकरण

मोहनलाल बाबुलकर लोकगीतों के वर्गीकरण वैज्ञानिक है। संक्षेप में उनका वर्गीकरण इस प्रकार हैं –  

संस्कारों के गीत जन्म 
विवाह
मृत्यु
देवी-देवताओं के स्तुति गीत  होली गीत 
नगेला गीत 
गंगा माई के गीत 
देवी के गीत 
भूमि पूजन के गीत 
कूर्म देवता के गीत 
हरियाली के गीत 
हनुमान पूजा गीत 
हील प्रस्तुति 
खितरपाल पूजन गीत 
अग्नि के गीत
खुदेड़ गीत भाई के सम्बोधित गीत 
सास, ननद, जेठानी की निन्दा से सम्बन्धित गीत 
मां को सम्बोधित बेटी के गीत 
भादो और असूज, चैत के महीने गाए जाने वाले गीत 
फल-फूलों को सम्बोधित गीत 
मायके को सम्बोधित बेटी के गीत
सामूहिक गीत थड्या, चौफुला
तंत्र-मंत्र के गीत रखौली 
समौण 
सैठाली 
नुखेल 
प्रभाव मोचक गीत
लघु गीत बाल गीत (लोरिया) 
अक्कू-मक्कू 
अरगण-बरगण 
घुघती-वासूती 
नौनीकती वीस
वादियों के गीत घौघा 
भामा 
युजी 
छुमा 
कुसुमाकोलिन 
जीजा-साली 
लसकमरी 
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