भारत शासन अधिनियम, 1858 (Government of India Act, 1858)
- 1857 का विद्रोह ईस्ट इण्डिया कंपनी की व्यवस्था के लिए घातक झटका साबित हुआ।
- यह एक्ट 1858 का भारत के उत्तम प्रशासन के लिए एक्ट (The Act for the Good Government of India) बना।
- इस अधिनियम द्वारा भारत के शासन को कंपनी के हाथों से निकालकर ब्रिटिश क्राउन को सौंप दिया गया।
- इस अधिनियम द्वारा 1784 के पिट्स इण्डिया एक्ट द्वारा लागू द्वैध शासन प्रणाली को समाप्त कर दिया गया।
- भारत के राज्य सचिव का पद सृजित किया गया, जिसे 15 सदस्यों की एक परिषद् (जो भारत परिषद् के नाम से जाना जाता था) की सहायता से भारत पर शासन करने का अधिकार दिया गया।
- भारत के गवर्नर जनरल को अब वायसराय की उपाधि मिली, जो क्राउन का सीधा प्रतिनिधि था। लार्ड कैनिंग भारत के पहले वायसराय बने।
- गवर्नर जनरल का पद भारत सरकार के विधायी कार्य का प्रतीक था तथा सम्राट (क्राउन) का प्रतिनिधित्व करने के कारण उसे वायसराय कहा गया।
- गवर्नर जनरल की कार्यपालिका परिषद् का विस्तार किया गया तथा उसमें एक पाँचवाँ सदस्य शामिल किया गया, जो एक विधिवेत्ता का पद था।
- विधायी कार्यों के लिए कम से कम 6 तथा अधिक से अधिक 12 अतिरिक्त सदस्य सम्मिलित किए गए।
- पहली बार भारत में प्रतिनिधि संस्थाओं और मंत्रीमण्डलीय व्यवस्था की नींव पड़ी।
- गवर्नर जनरल को अध्यादेश जारी करने का अधिकार मिला।
- गवर्नर जनरल को बंगाल, उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत और पंजाब में विधान परिषद् स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गई।
भारतीय परिषद् अधिनियम, 1892 (Indian Council of Law, 1892)
- गवर्नर जनरल की परिषद् में अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बढ़ाकर कम से कम 10 एवं अधिक से अधिक 16 कर दी गई। इसी प्रकार प्रांतीय परिषदों में भी अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई।
- परिषदों को शर्तों एवं प्रतिबंधों के साथ वार्षिक बजट पर विचार-विमर्श करने तथा प्रश्न पूछने की शक्ति दी गई।
- अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली की शुरुआत हुई।
भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 (मार्ले-मिण्टो रिफॉर्म) [Indian Council Act, 1909 (Marley-Minto Reform)]
- 1909 के अधिनियम द्वारा भारतीयों को विधि निर्माण तथा प्रशासन दोनों में प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया।
- इस अधिनियम में पहली बार मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक निर्वाचन मण्डल की सुविधान प्रदान की गई।
- इस अधिनियम ने केन्द्रीय तथा प्रांतीय विधायी शक्ति को बढ़ाया। परिषद् के सदस्यों को बजट विवेचना करने तथा उस पर प्रश्न करने का अधिकार दिया गया।
- सत्येन्द्र सिन्हा को गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी का प्रथम भारतीय विधि सदस्य नियुक्त किया गया।
- भारतीय विधान परिषद् में सदस्यों की संख्या 60 कर दी गई और 9 पदेन सदस्यों का प्रावधान किया गया।
भारतीय परिषद् अधिनियम, 1919 (मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार) [Indian Councils Act, 1919 (Montague Chelmsford Reforms)]
- इस अधिनियम के तहत द्विसदनीय व्यवस्था स्थापित की गई। केन्द्रीय विधान परिषद् का स्थान राज्य परिषद् (उच्च सदन) तथा विधान सभा (निम्न सदन) वाले द्विसदनीय विधानमण्डल ने ले लिया।
- राज्य परिषद् में सदस्यों की संख्या 60 थी, जिसमें 34 सदस्य निर्वाचित होते थे। राज्य परिषद् का कार्यकाल 5 वर्ष का था।
- केन्द्रीय विधानसभा में सदस्यों की संख्या 145 निर्धारित की गई, जिसमें 104 निर्वाचित तथा 41 सदस्य मनोनीत होते थे। इनका कार्यकाल 3 वर्ष का था।
- सदस्यों का चुनाव सीमांकित निर्वाचन क्षेत्रों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाना था।
- निर्वाचन के लिए अर्हताएँ सांप्रदायिक समूह निवास और संपत्ति पर आधारित थी।
- द्वैध शासन- इस एक्ट द्वारा आठ प्रमुख प्रांतों में जिन्हें गवर्नर के प्रांत कहा जाता था, द्वैध शासन की पद्धति शुरू की गई।
- प्रांतीय विषयों को दो भागों में बाँटा गया – आरक्षित विषय एवं हस्तांतरित विषयः
आरक्षित विषय : इसमें भूराजस्व, वित्त, कानून व्यवस्था, सिंचाई, खनिज संसाधन, न्याय, पुलिस प्रशासन, उद्योग आदि आते हैं।
हस्तांतरित विषय : इसमें शिक्षा, लोक स्वास्थ्य, कृषि, माप-तौल, स्थानीय स्वायत्त शासन, सार्वजनिक मनोरंजन पर नियंत्रण, आबकारी आदि प्रमुख हैं। - आरक्षित विषयों का प्रशासन गवर्नर अपने कार्यकारी परिषद् द्वारा करता था तथा हस्तांतरित विषयों का प्रशासन निर्वाचित सदस्यों के द्वारा करता था।
- इसी अधिनियम के द्वारा पहली बार भारत में लोक सेवा आयोग का गठन हुआ। साथ ही पहली बार लोक लेखा तथा वित्त समिति का गठन हुआ।
- भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की सिफारिश मॉडफोर्ड रिपोर्ट, 1918 द्वारा की गई थी।
भारत शासन अधिनियम, 1935 (Government of India Act, 1935)
- 1935 का शासन अधिनियम, 1920 से 1935 तक राष्ट्रीय आंदोलन का परिणाम था। यह विधेयक 2 अगस्त 1935 को पारित हुआ। प्रस्तावना रहित यह अधिनियम ब्रिटिश संसद के इतिहास का सबसे बड़ा और सबसे जटिल प्रलेख था, इसमें 14 भाग, 10 परिशिष्ट, 321 धाराएँ तथा 10 अनुसूचियाँ थीं। भारत का वर्तमान संवैधानिक ढाँचा काफी हद तक इस अधिनियम पर आधारित है।
- इस अधिनियम की सबसे उल्लेखनीय विशेषता यह थी कि ब्रिटिश प्रांतों तथा संघ में शामिल होने के लिए तैयार भारतीय रियासतों का अखिल भारतीय संघ बनाने का प्रावधान रखा गया।
- प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था को समाप्त कर प्रांतों में पूर्ण उत्तरदायी सरकार बनाई गई।
- द्वैध शासन की व्यवस्था अब केन्द्र में लागू की गई। सुरक्षा, वैदेशिक संबंध एवं धार्मिक मामलों को गवर्नर जनरल के हाथों में केन्द्रित किया गया तथा अन्य मामलों में गवर्नर जनरल की सहायता के लिए मंत्रिमण्डल की व्यवस्था की गई।
- संघीय न्यायालय की स्थापना की गई, जिसके विरुद्ध अपील प्रिवी कौंसिल, लंदन में की जा सकती थी।
- इस अधिनियम के तहत बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया और उड़ीसा तथा सिंध दो नए प्रांत बनाए गए।
- सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति का और अधिक विस्तार किया गया।
- प्रधानमंत्री (प्रीमियर) तथा मंत्री (मिनिस्टर) जैसे शब्दों का प्रयोग पहली बार किया गया।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 (Indian Independence Act, 1947)
- माउण्टबेटन योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता विधेयक 18 जुलाई 1947 को पारति किया।
- इस योजना को 3 जून 1947 को प्रस्तुत किया गया था।
- इस अधिनियम में दो डोमिनियन भारत और पाकिस्तान की स्थापना के लिए 15 अगस्त 1947 की तारीख निर्धारित की गई।
- बंगाल और पंजाब में दो-दो प्रांत बनाए जाने का प्रावधान किया गया।
- पूर्वी बंगाल, सिंध और असम का सिलहट जिला पाकिस्तान में सम्मिलित होना था।
- 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश क्राउन का भारत पर आधिपत्य समाप्त हो जाएगा।
- भारतीय रियासतें इन दोनों डोमिनियन में से किसी एक में शामिल हो सकती हैं।
- दोनों डोमिनियन के लिए अलग गवर्नर जनरल होगा, जिसकी नियुक्ति महामहिम द्वारा की जाएगी।
- दोनों डोमिनियन की स्वतंत्र सत्ता को मान्यता दी गई तथा उन्हें ब्रिटिश कॉमनवेल्थ से अलग होने का अधिकार भी दिया गया।
- दोनों राज्यों को अपने पृथक संविधान सभा के गठन का अधिकार दिया गया।
- दोनों राज्यों की सीमा के निर्धारण के लिए सर रेडक्लिफ की अध्यक्षता में सीमा आयोग का गठन किया गया।
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