Bhopal Gas Tragedy 1984

भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy)

भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) आज से 34 साल पहले दुनिया का सबसे बड़े औद्योगिक हादसा माना जाता है। जहरीली गैस के इस खौफनाक रिसाव में हजारों जानें चली गईं। इस तबाही का अंत यहीं नहीं हुआ बल्कि आज तक इसका विनाशक असर पड़ रहा है।

यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (Union Carbide Corporation)

  • यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 1969 में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) के नाम से भारत में एक कीटनाशक फैक्ट्री खोली थी।
  • इसके 10 सालों बाद 1979 में भोपाल में एक प्रॉडक्शन प्लांट लगाया। 
  • इस प्लांट में एक कीटनाशक तैयार किया जाता था जिसका नाम सेविन था।
  • सेविन असल में कारबेरिल नाम के केमिकल का ब्रैंड नाम था। 

दिसंबर 1984 में हुआ था हादसा

भोपाल गैस त्रासदी 2-3 दिसंबर 1984 को यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने में जहरीली गैस के रिसाव से हुई थी। रिसाव का कारण एक साइड पाइप से टैंक E610 (टैंक का नाम E610 था जिसमें MIC (मेथलमीन + फॉसजीन) 42 टन था) में पानी घुस गया। पानी घुसने के कारण टैंक के अंदर जोरदार रिएक्शन होने लगा जो धीरे-धीरे काबू से बाहर हो गया। इस हादसे में तकरीब 8000 लोगों की जान दो सप्ताह के भीतर हो गई थी। वहीं 8000 से ज्यादा लोग इसके दुष्प्रभाव की वजह से बीमार होकर दम तोड़ चुके हैं। अब भी इस हादसे की वजह से अपंग या अंधे हुए लोग इस त्रासदी की मार झेल रहे हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस हादसे की वजह से आज भी भोपाल आसपास अपंग बच्चे पैदा होते हैं। मरने वालों के अनुमान पर अलग-अलग एजेंसियों की राय भी अलग-अलग है। पहले अधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2,259 बताई गई थी। मध्य प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 लोगों के मरने की पुष्टि की थी। वहीं कुछ रिपोर्ट का दावा है कि 8000 से ज्यादा लोगों की मौत तो दो सप्ताह के अंदर ही हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग गैस रिसाव से फैली बीमारियों के कारण मारे गये थे। इसके प्रभावितों की संख्या लाखों में होने का अनुमान है।

हादसे का कारण 

  • इस घटना के लिए यूसीआईएल द्वारा उठाए गए शुरुआती कदम भी कम जिम्मेदार नहीं थे। उस समय जब अन्य कंपनियां कारबेरिल के उत्पादन के लिए कुछ और इस्तेमाल करती थीं जबकि यूसीआईएल ने मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) का इस्तेमाल किया। MIC एक जहरीली गैस थी। चूंकि MIC के इस्तेमाल से उत्पादन खर्च काफी कम पड़ता था, इसलिए यूसीआईएल ने MIC को अपनाया।
  • इन रिसाव का मुख्य कारण दोषपूर्ण सिस्टम का होना था। दरअसल 1980 के शुरुआती सालों में कीटनाशक की मांग कम हो गई थी। इससे कंपनी ने सिस्टम के रखरखाव पर सही से ध्यान नहीं दिया। कंपनी ने MIC का उत्पादन भी नहीं रोका और अप्रयुक्त MIC का ढेर लगता गया। 
  • नवंबर 1984 में प्लांट काफी घटिया स्थिति में था। प्लांट के ऊपर एक खास टैंक था। टैंक का नाम E610 था जिसमें MIC 42 टन थे जबकि सुरक्षा की दृष्टि से MIC का भंडार 40 टन से ज्यादा नहीं होना चाहिए था। टैंक की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं किया गया था और वह सुरक्षा के मानकों पर खड़ा नहीं उतरता था। 
  • स्थिति को भयावह बनाने के लिए पाइपलाइन भी जिम्मेदार थी जिसमें जंग लग गई थी। जंग लगे आइरन के अंदर पहुंचने से टैंक का तापमान बढ़कर 200° C हो गया जबकि तापमान 4 से 5 डिग्री के बीच रहना चाहिए था। इससे टैंक के अंदर दबाव बढ़ता गया। 
  • इससे टैंक पर इमर्जेंसी प्रेशर पड़ा और 45-60 मिनट के अंदर 40 मीट्रिक टन एमआईसी का रिसाव हो गया।
  • हादसे के बाद जांच एजेंसियों को पता चला कि कारखाने से संबंधित सभी सुरक्षा मैन्युअल अंग्रेजी में थे। इसके विपरीत कारखाने के ज्यादातर कर्मचारियों को अंग्रेजी का कोई ज्ञान नहीं था। संभवतः उन्हें आपात स्थिति से निपटने के लिए जरूरी प्रशिक्षण भी नहीं दिया गया था। जानकारों के अनुसार अगर लोग मुंह पर गीला कपड़ा डाल लेते तो भी जहरीली गैस का असर काफी कम होता, लेकिन किसी को इसकी जानकारी ही नहीं थी। इस वजह से हादसा इतना बड़ा हो गया। 

मुख्य आरोपी

यूनियन कार्बाइड कारखाने की जहरीली गैस से ही मौतों के मामलों और बरती गई लापरवाहियों के लिए फैक्ट्री के संचालक वॉरेन एंडरसन को मुख्य आरोपी बनाया गया था। हादसे के तुरंत बाद ही वह भारत छोड़कर अपने देश अमेरीका भाग गया था। पीड़ित उसे भारत लाकर सजा देने की मांग करते रहे, लेकिन भारत सरकार उसे अमेरीका से नहीं ला सकी। अंततः 29 सितंबर 2014 को उसकी मौत हो गई। ये हादसा इतना बड़ा था कि इस पर वर्ष 2014 में भोपाल ‘ए प्रेयर ऑफ रेन’ नाम से फिल्म भी बनी थी।

  • साल 2010 में न्यायालय के फैसले ने इस त्रासदी में शिकार लोगों के परिवार को और दुखी कर दिया। क्योंकि कोर्ट ने सात दोषियों को दो साल की सजा और एक लाख रुपये से अधिक का जुर्माना लगाया लेकिन सजा सुनाने के कुछ ही देर बाद सभी आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया गया।
  • डॉन कर्जमैन की लिखी किताब ‘किलिंग विंड’ के मुताबिक एंडरसन को भगाने में सरकारी तंत्र का हाथ था। किताब के मुताबिक एंडरसन के स्पेशल विमान के जरिए पहले भोपाल से दिल्ली लाया गया था और फिर कुछ जरूरी कागजात पर साइन कराकर उन्हें स्वदेश भेज दिया गया था।

वर्तमान स्थिति 

इस दुर्घटना को भले ही 34 साल बीत चुके हों, लेकिन यहां के लोगों आज भी इस घटना को याद कर दहल जाते हैं। आज भी यहां जहरीली गैसों का खतरा बरकरार है। उस त्रासदी का 346 टन जहरीला कचरा निस्तारण अब भी एक चुनौती बना हुआ है। ये कचरा आज भी हादसे की वजह बने यूनियन कार्बाइड कारखाने में कवर्ड शेड में मौजूद है। इसके खतरे को देखते हुए यहां पर आम लोगों का प्रवेश अब भी वर्जित है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 13-18 अगस्त 2015 तक पीथमपुर में ‘रामके’ कंपनी के इंसीनरेटर में यहां का लगभग 10 टन जहरीला कचरा जलाया गया था। ट्रीटमेंट स्टोरेज डिस्पोजल फेसीलिटीज (टीएसडीएफ) संयंत्र से इसके निष्पादन में पर्यावरण पर कितना असर पड़ा, इसकी रिपोर्ट केंद्रीय वन-पर्यावरण मंत्रालय को चली गई है। हालांकि इसका असर क्या हुआ, ये अब भी पहेली बना हुआ है। साथ ही ये सवाल अब भी बरकरार है कि इस जहरीले कचरे का निस्तारण कब तक होगा।

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