प्रारम्भ से ही भारतीय इतिहास में राजस्थान का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। जब हम स्रोतों को आधार बनाकर राजस्थान के इतिहास की चर्चा करते हैं तो यह ऊपरी पायदान पर दिखाई देता है। किसी भी काल का इतिहास लेखन हम प्रामाणिक स्रोतों के बिना नहीं कर सकते हैं। राजस्थान के सन्दर्भ में इतिहास लेखन हेतु पुरातात्विक, साहित्यिक और पुरालेखीय सामग्री के रूप में सभी प्रकार के स्रोत उपलब्ध हैं। ये स्रोत हमारे वर्तमान ज्ञान के आधार पर राजस्थान का एक ऐसा चित्र प्रस्तुत करते हैं कि किस तरह मानव ने राजस्थान में कालीबंगा, आहड़, गिलुंड, गणेश्वर इत्यादि स्थलों पर सभ्यताएं विकसित की।
स्वतन्त्रता से पूर्व राजस्थान का विशाल प्रदेश अनेक छोटी-बड़ी रियासतों में विभाजित था। इन सभी रियासतों का इतिहास अलग-अलग था और यह इतिहास सामान्यतः उस राज्य के संस्थापक तथा उसके घराने से ही प्रारम्भ होता था और उसमें राजनैतिक घटनाओं तथा युद्धों के विवरणों का ही अधिक महत्व था।
आधुनिक काल में सबसे पहले जेम्स टॉड ने समूचे राजस्थान का इतिहास लिखा और एक नई दिशा प्रदान की। तदन्तर कविराजा श्यामलदास गौरीशंकर हीराचन्द ओझा जैसे मनुष्यों ने राजस्थान के इतिहास में विविध आयाम जोड़कर पूर्णता प्रदान करने की कोशिश की। टॉड ने 19वीं शताब्दी के तीसरे दशक में आधुनिक पद्धति से राजस्थान के इतिहास लेखन की एक अद्वितीय पहल की । टॉड का इतिहास ‘एनल्स एण्ड एण्टीक्वीटीज ऑफ राजस्थान’ दोषपूर्ण होते हुए भी आज राजस्थान के सन्दर्भ में ‘मील का पत्थर’ है। इसमें उसके द्वारा संग्रहित अभिलेखों, सिक्कों, बहियों, खातों आदि के आधार पर लिखा मेवाड, मारबाड, बीकानेर, जैसलमेर, सिरोही, बूंदी ब कोटा का इतिहास है।
राजस्थान के इतिहास के प्रामाणिक स्रोत इस प्रकार हैं –
- पुरातात्विक स्रोत
- उत्खनित पुरावशेष
- शिलालेख
- संस्कृत शिलालेख
- फारसी शिलालेख
- ताम्रपत्र
- सिक्के
- स्मारक एवं मूर्तियों
- चित्रकला
- साहित्यिक स्रोत