पर्वतों का वर्गीकरण (Classification of Mountains)
निर्माण क्रिया के आधार पर पर्वतों को निम्न चार भागों में वर्गीकृत किया जाता है।
- वलित पर्वत,
- खंड पर्वत,
- ज्वालामुखी पर्वत और
- अवशिष्ट पर्वत
वलित पर्वत (Fold mountains)
पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों के कारण परतदार शैलों में वलन पड़ते हैं। वलित परतदार शैलों के ऊपर उठने के परिणामस्वरूप बनी पर्वत श्रेणियों को वलित पर्वत कहते हैं। वलित परतदार शैलों पर लाखों वर्षों तक आन्तरिक क्षैतिज संपीडन-बल लगे रहते हैं तो वे मुड़ जाती हैं और उनमें उद्वलन तथा नतवलन पड़ जाते हैं। कालान्तर में ये अपनतियों और अभिनतियों के रूप में विकसित हो जाते हैं। इस प्रकार की हलचलें समय-समय पर होती रहती हैं और जब वलित शैलें बहुत ऊँचाई प्राप्त कर लेती हैं तो वलित पर्वतों का जन्म होता है।
एशिया के हिमालय, यूरोप के आल्प्स, उत्तर अमरीका के रॉकी और दक्षिण अमरीका के एंडीज संसार के प्रमुख वलित पर्वत हैं। इन पर्वतों का निर्माण अत्यन्त आधुनिक पर्वत निर्माणकारी युग में हुआ है, अतः ये सभी नवीन वलित पर्वतों के नाम से जाने जाते हैं। इनमें से कुछ पर्वत श्रेणियाँ जैसे। हिमालय पर्वत अब भी ऊपर उठ रहे हैं।
भ्रंश या खंड पर्वत (Block Mountains)
खंड पर्वत का निर्माण भी पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों के कारण होता है। जब परतदार शैलों पर तनाव-बल लगते हैं तो उनमें दरार या भ्रंश पड़ जाते हैं। जब लगभग दो समान्तर भ्रंशों के बीच की भूमि आसपास की भूमि की तुलना में काफी ऊपर उठ जाती है तो उस ऊपर उठी भूमि को खंड पर्वत या भ्रंशोत्थ पर्वत या भ्रंश-खंड पर्वत कहते हैं।
खंड पर्वत का निर्माण उस परिस्थिति में भी होता है, जब दोनों भ्रंशों के बाहर की भूमि नीचे बैठ जाती है। और भ्रंशों के बीच की भूमि उठी रह जाती है। खंड पर्वत को होर्ट भी कहते हैं। खण्ड पर्वत में शैलों की परतें वलित अथवा समतल में से कोई भी हो सकती हैं। फ्राँस के वासजेज, जर्मनी के ब्लैक फारेस्ट और उत्तरी अमरीका के सियेरानेवादा, खंड पर्वतों के विशिष्ट उदाहरण हैं।
ज्वालामुखी पर्वत (Volcano Mountains)
पर्वत जिनका निर्माण दो भ्रंशों के बीच की भूमि के ऊपर उठने अथवा भ्रंशों के बाहर की भूमि के बैठने के कारण होता है, इन्हें खंड अथवा भ्रंश-खंड पर्वत कहते हैं। ज्वालामुखी पर्वतः हमने पिछले पाठ में पढ़ा है कि पृथ्वी का आन्तरिक भाग या भूगर्भ बहुत गर्म है। भूगर्भ के गहरे भागों में अत्याधिक तापमान के कारण ठोस शैलें द्रव-मैग्मा में बदल जाती हैं। जब यह पिघला शैल-पदार्थ ज्वालामुखी के उद्गार में भूगर्भ से धरातल पर आता है तो वह मुख के चारों ओर इकट्ठा हो जाता है और जमकर शंकु का रूप धारण कर सकता है। ज्वालामुखी के प्रत्येक उद्गार के साथ इस शंकु की ऊँचाई बढ़ती जाती है और इस प्रकार वह पर्वत का रूप ले लेता है। पर्वत, जो ज्वालामुखी से निकले पदार्थों के जमा होने से बने हैं उन्हें ज्वालामुखी पर्वत या संग्रहित पर्वत कहते हैं।
हवाई द्वीपों का मोनालुआ; म्यानमार (बर्मा) का माउन्ट पोपा, इटली का विसूवियस, इक्वेडोर का कोटोपैक्सी तथा जापान का फ्यूजीयामा ज्वालामुखी पर्वतों के उदाहरण हैं।
अवशिष्ट पर्वत (Residual Mountain or Reliet Mountains)
अपक्षय तथा अपरदन के विभिन्न कारक – नदियाँ, पवन, हिमानी आदि धरातल पर निरन्तर कार्य करते रहते हैं। वे भूपर्पटी की ऊपरी सतह को कमजोर करने के साथ उसे काटते-छाँटते रहते हैं। जैसे ही धरातल पर किसी-पर्वत श्रेणी का उद्भव होता है तो क्रमण के कारक अपरदन द्वारा उसे नीचा करना शुरू कर देते हैं। अपरदन कार्य शैलों की बनावट पर बहुत निर्भर करता है।
हजारों वर्षों के बाद मुलायम शैलें कट कर बह जाती हैं तथा कठोर शैलों से बने भूभाग उच्च भूखण्डों के रूप में ही खड़े रहते हैं। इन्हें ही अवशिष्ट पर्वत कहते हैं। भारत की नीलगिरि, पारसनाथ तथा राजमहल की पहाड़ियाँ अवशिष्ट पर्वतों के उदाहरण हैं।
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