भारत में विधि निर्माण प्रक्रिया बहुत ही विस्तृत है। किसी भी विधेयक को कानून बनने से पूर्व अनेक चरणों से गुजरना पड़ता है। साधारण तथा वित्तीय विधेयक की निर्माण प्रक्रिया में कुछ अंतर है।
1. साधारण विधेयक (Ordinary Bill)
एक साधारण विधेयक संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन में प्रस्तावित किया जा सकता है और इसे प्रत्येक सदन में निम्न चरणों से गुजरने के पश्चात राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किया जाता है।
- प्रथम पठन (First Reading) : इस स्तर पर विधेयक का शीर्षक पढ़ा जाता है तथा उसके उद्देश्य तथा लक्ष्य के बारे में एक संक्षिप्त वक्तव्य दिया जाता है। इस स्तर पर विधेयक के विरोधी भी एक संक्षिप्त भाषण दे सकते हैं। औपचारिक मतदान के पश्चात विधेयक को गज़ट (Gazette) में छाप दिया जाता है।
- द्वितीय पठन (Second Reading) : इस स्तर पर विधेयक के सामान्य सिद्धान्तों पर बहस होती है तथा विधेयक को उचित समिति के पास भेजने का निर्णय लिया जाता है। इस स्तर पर कोई संशोधन नहीं सुझाए जा सकते।
- समिति स्तर (Committee Stage) : दूसरे पठन के पश्चात विधेयक को उपयुक्त समिति को सौंप दिया जाता है जहां पर इसके प्रावधानों पर विस्तार में चर्चा होती है। समिति विधेयक में सुधार के लिए उचित सुझाव दे सकती है तथा आवश्यक संशोधन सुझा सकती है।
- प्रतिवेदन स्तर (Report Stage) : समिति अपनी रिपोर्ट सदन को प्रस्तुत करती है जहां इस पर सम्पूर्ण बहस होती है। सदन के सदस्य विधेयक पर धारा-वार बहस करते हैं तथा उस पर मत लिया जाता है। इस स्तर पर सदस्य नए संशोधन सुना सकते हैं जिन्हें बहुमत से स्वीकार किया जाता है।
- तृतीय पठन (Third Reading) : इस स्तर पर विधेयक पर आम बहस होती है तथा औपचारिक रूप से मतदान होता है। इसी स्तर पर विधेयक को स्वीकार अथवा अस्वीकार किया जाता है। इस स्तर पर कोई नए संशोधन नहीं सुझाए जा सकते।
जब विधेयक को एक सदन द्वारा पारित कर दिया जाता है तो इसे दूसरे सदन को भेज दिया जाता है जहां इसे फिर एक बार सभी चरणों से गुजरना पड़ता है। जब विधेयक दूसरे सदन द्वारा भी पास कर दिया जाता है तो इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। यदि दूसरा सदन विधेयक में कुछ संशोधन सुझाता है जो उस सदन को स्वीकार नहीं जिसमें विधेयक प्रस्तुत किया गया था, तो एक प्रकार का गतिरोध उत्पन्न हो जाता है। इस गतिरोध को समाप्त करने के लिए दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जाती है, जहां निर्णय बहुमत से लिया जाता है।
जब कोई विधेयक राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है तो राष्ट्रपति या तो उस पर अपने हस्ताक्षर कर देता है अथवा उसे संसद को पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है। यदि संसद उस विधेयक को पुनः पास कर देती है तो राष्ट्रपति को उस पर हस्ताक्षर करने ही पड़ते हैं।
2. वित्त विधेयक (Money Bill)
कोई भी विधेयक वित्त विधेयक माना जाएगा यदि वह निम्नलिखित में से किसी भी विषय से सम्बन्धित हो।
(i) कर लगाने, उसे समाप्त करने, अथवा उसमें परिवर्तन करने।
(ii) भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने।
(iii) भारत की संचित व आकस्मिक निधि का नियंत्रण तथा संचालन।
(iv) संघीय तथा राज्य सरकार के लेखों का परीक्षण इत्यादि।
यह निर्णय करना लोकसभा के स्पीकर का अधिकार है कि क्या कोई विधेयक वित्त विधेयक है अथवा नहीं। इस संबन्ध में स्पीकर द्वारा दिया गया निर्णय अंतिम माना जाता है।
वित्त विधेयक को पारित करने की प्रक्रिया साधारण विधेयक को पारित करने की प्रक्रिया से भिन्न है। एक वित्त विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश पर केवल लोकसभा में प्रस्तावित किया जा सकता है। जब वित्त विधेयक को लोकसभा पारित कर देती है तो उसे राज्य सभा को भेज दिया जाता है। राज्य सभा को अपनी सिफारिश देने के लिए केवल 14 दिन का समय दिया जाता है। यदि राज्य सभा इस अवधि में अपनी सिफारशें नहीं भेजती तो विधेयक दोनों सदनों द्वारा उसी रूप में पारित माना जाएगा जिस रूप में वह राज्य सभा को भेजा गया था। इस प्रकार हम देखते हैं कि वित्त विधेयक को पारित करने का अंतिम अधिकार लोक सभा के पास है तथा राज्य सभा उसके पारित होने में अधिक से अधिक 14 दिन का विलंब कर सकती हैं।
3. वार्षिक वित्तीय विवरण (Annual Financial Statement)
प्रत्येक वित्तीय वर्ष के प्रारंभ में राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों के समक्ष आने वाले वर्ष के लिए भारत सरकार की अनुमानित आय तथा खर्चे का विवरण रखवाता है जिसे बजट अथवा वार्षिक वित्तीय विवरण के नाम से जाना जाता है। मोटे तौर पर भारत सरकार का खर्चा दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है।
(i) भारत की संचित निधि पर भारित खर्चे पर संसद मतदान नहीं कर सकती भले ही इस पर संसद के दोनों सदन विचार कर सकते हैं।
(ii) वह खर्च जो संसद की पूर्व अनुमति से संचित निधि से किया जा सकता है। इस श्रेणी के खर्च के लिए अनुमान संसद के सम्मुख अनुदान मांगों के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं । लोक सभा इन अनुमानों को स्वीकार अथवा अस्वीकार कर सकती है। लोक सभा को मांगी गई धनराशि कम करने का भी अधिकार है।
4. विनियोग विधेयक (Appropriation Bills)
लोकसभा द्वारा मांगों को स्वीकार किए जाने के पश्चात सदन में एक विनियोग विधेयक प्रस्तावित किया जाता है। संचित निधि से कोई भी खर्च विनियोग विधेयक पारित होने के पश्चात ही किया जा सकता है। यहां पर यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि लोक सभा में इस विधेयक के प्रस्तुतिकरण का कभी भी विरोध नहीं किया जाता। क्योंकि अनुदान मांगों को सदन पहले ही पास कर चुका होता है। इस विधेयक के केवल प्रशासनिक तथा सार्वजनिक हित के पहलुओं पर ही बहस होती है। अनुदान की राशि अथवा लक्ष्य में इस स्तर पर कोई परिवर्तन नहीं किया जाता। जहां तक विनियोग विधेयक के पारित करने की प्रक्रिया वैसी ही है जैसी वित्त विधेयक पारित करने की।
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