Virus

विषाणु (Virus)

विषाणु (Virus) 

विषाणु (Virus) अति सूक्ष्म जीव होते हैं, तथा संभवत: अभी तक ज्ञात जीवधारियों में सबसे प्रथम निर्मित (Primitive) जीव होंगे। ये बैक्टीरिया (Bacteria) जीवों से भी सक्ष्म होते हैं। सभी वाइरस अनिवार्य परजीवी (Obligate Parasite) के रूप में किसी जीवित पोषक में ही जीवन व्यतीत कर सकते हैं। इनकी उपस्थिति किसी पौधे या जन्तु-पोषक में इनके द्वारा उत्पन्न रोग के द्वारा ही प्रदर्शित होती है। वाइरस का शाब्दिक अर्थ द्रव रूप में विष (L Virus = Slimy Liquid, Poison) होता है। अत: पोषक-कोशिका या जीव में इनकी उपस्थिति सदैव ही हानिकारक होती है। इसीलिए इन्हें हिन्दी में विषाणु कहते हैं। वाइरस का अध्ययन कराने वाली सूक्ष्म जीव-विज्ञान की शाखा को वाइरोलॉजी (Virology) कहते हैं।

वाइरस-जीवित या अजीवित? (Virus-Living or Non living)

प्राय: वाइरस जीवों को जीवधारियों की श्रेणी में सम्मिलित नहीं किया जाता। वाइरस जीवित हैं या अजीवित, इस बारे में दुविधा निम्न कारणों से है – 

  • वाइरसों में मेटाबोलिक क्रियाओं हेतु कोई व्यवस्था नहीं होती तथा बिना किसी पोषक कोशिका के उनमें जनन नहीं होता। 
  • दूसरी ओर उनमें न्यूक्लीक अम्ल एवं जीन होते हैं तथा जनन में उनकी वंशागति जीन द्वारा नियंत्रित होती है (यह जीवितों का प्रमुख लक्षण है)।

1935 में वैज्ञानिक स्टेनले (Stanley) ने टोबेको मोजेक वाइरस (TMV) के रवे (Crystal) बना लिए। इन रवों को जब तम्बाकू के पौधों में इंजेक्शन द्वारा प्रवाहित किया तो वे पुनः सक्रिय हो गये, उनमें प्रजनन भी हुआ तथा पौधों में रोग के लक्षण भी दिखे। 

वाइरसों के सामान्य लक्षण

  • वाइरस उच्च तापक्रम के प्रतिरोधक होते हैं। परन्तु बहुत अधिक तापक्रम पर ये अक्रियाशील हो जाते हैं।
  • ये अम्ल, क्षार एवं लवणों के भी प्रतिरोधी (resistant) होते है।
  • इन पर सूर्य के प्रकाश का सीधा प्रभाव नहीं पड़ता।
  • किसी वाइरस के निचोड़ में जल या किसी बफर घोल के मिलाने से वाइरस संक्रामक अवस्था में नहीं रह पाते।
  • किसी भी वाइरस के निचोड़ या पोषक में स्थित वाइरस के लिए वह समय जिसमें कमरे के तापक्रम पर वाइरस संक्रामक रहे लाँगेविटि इन बिट्रो (Longevity in vitro) कहलाता है। in vitro का अर्थ होता है प्रयोगशाला में किसी पात्र में रखना। 

वाइरसों की रचना

वाइरस मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं – 

  • बैक्टीरियोफेजेस (Bacteriophages) एवं
  • जन्तु एवं पौधों के वाइरस (Animal & Plant Viruses) 

बैक्टीरियोफेजेस (Bacteriophages)

जो वाइरस बैक्टीरिया को पोषक बनाते हैं उन्हें बैक्टीरियोफेज साक्षप्त में फेज (phage) कहते हैं। इनकी खोज 1915 में फ्रेडरिक ट्वार्ट (Frederick Twort) ने इंग्लैंड में एवं 1917 में फेलिक्स डी हेरेल (Felix d’ Herelle) ने पेरिस में की थी। पूर्ण रूप से संक्रमण करने योग्य वायरस को वाइरियोन (virion) कहते हैं।

बैक्टीरियोफेज न्यक्लियोप्रोटीन के बने होते हैं। मध्य भाग में न्यूक्लिक अम्ल एवं उसको घेरती हुई प्रोटीन की एक भित्ति होती है। ये अनेक आकार-प्रकार के होते हैं। उनमें से अधिकांश की टैडपोल के समान एक पूंछ नुमा रचना भी होती है जिसके माध्यम से वाइरस पोषक कोशिका से चिपकते हैं। प्रोटीन-भित्ति को कैप्सिड (capsid) कहते हैं। 

जन्तु एवं पौधों के वाइरस (Animal & Plant Viruses)

ये भी बैक्टीरियोफेज के समान प्रोटीन भित्ति, कैप्सिड से घिरे न्यूक्लीक अम्ल के बने होते हैं। ये गोलाकार कुंडलित अथवा अन्य जटिल सिमिटी के हो सकते हैं। पौधों के वाइरसों का आकार 20μ से 300μ तक हो सकता है जबकि जन्तु वाइरस 8μ से 300μ तक के हो सकते हैं। पौधों के वाइरसों में सबसे सूक्ष्म शलजम का पीला मोज़ेक वाइरस एवं सबमें बड़ा टोबेको मोज़ेक वाइरस होता है।

वाइरसों का महत्त्व (Importance of Viruses)

हानिकारक वाइरस 

वनस्पति एवं जन्तु, दोनों ही प्रकार के वाइरस अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं कुछ उदाहरण निम्नानुसार हैं – 

  • वनस्पति वाइरस – विभिन्न फसलों पर प्रभाव डालने वाले लगभग 300 प्रकार के वाइरसों की जानकारी है। इनमें से टोबेको मोज़ेक वाइरस (TMV); पोटेटो वाइरस ‘x’ ; टोमोटो बुशी वाइरस एवं टर्निप यलो मोज़ेक आदि प्रमुख वाइरस हैं।

रोग का नाम 

किस फसल या पौधों में होता है 

मोज़ेक रोग (Mosaic disease)  सेंवफल, बालोर, चुकन्दर, फूल गोभी, पत्ता गोभी कद्दू, मूंगफली, सरसों, मटर, आलू, मूली, तम्बाकू, टमाटर गेहूँ आदि। 
ब्लेक रिंग स्पॉट (Black ring spot)  पत्ता गोभी 
लीफ रोल (Leaf roll)  आलू 
लीफ कर्ल (Leaf curl)  कपास, चुकन्दर, पपीता, सोयाबीन, तम्बाकू, झिनिया आदि। 
स्पाइक रोग (Spike disease) चन्दन
पीत रोग (Yellow diseases) चुकन्दर, गाजर, मेरीगोल्ड, आलू बुखारा आदि। 
नेक्रोसिस (Necrosis)  आलू, टमाटर आदि।
  • जन्तु-वाइरस  – पौधों की ही तरह जन्तुओं में भी अनेक रोग वाइरस जन्य होते हैं कुछ उदाहरण निम्नानुसार हैं – 

रोग का नाम (disease) 

विषाणु (Virus)

मेनिन्जाइटिस (Meningitis) Echo virus इको वाइरस 
फेंफड़ों के रोग Prittacoses virus 
Acute febrile disease  Yellow fever virus. 
Hydrophobia Rabies virus. 
सर्दी-जुकाम  Acute coryza virus. 
Infantile Paralysis Poliomycelitis virus. 
बड़ी माता (small pox)  Variola virus. 
छोटी माता (chicken pox)  Varicella Virus. 
गुप्त रोग (vineral diseases)  Lympho granuloma. 
एक्वायर्ड इम्यूनों डेफिसिएन्सी सिन्ड्रोम (एड्स) ह्यूमन इम्यूनों डेफिसिएन्सी विषाणु (HIV) 
  • बैक्टीरियोफैजेस (Virus of Bacteria) – ये वाइरस बैक्टीरिया को अपना पोषक बनाते हैं। सर्वाधिक अध्ययन मनुष्य की आँत में पाये जाने वाले बैक्टीरिया ऐश्चेरिशिया कोलाई (Escherichia coli संक्षेप में E. coli) के वाइरसों पर हुआ है।

विषाणुओं से लाभ 

बैक्टीरियोफेज वाइरस कुछ लाभदायक क्रियाएँ भी करते हैं, जैसे

  • बैक्टीरिया द्वारा प्रदूषित जल को शुद्ध करना
  • बैक्टीरिया जनित अनेक असाध्य रोगों के उपचार में सहायक
  • बैक्टीरिया के आनुवंशिक पदार्थ का स्थानान्तरण 
  • कृषि में उपयोगी

 

Read More :

Read More for Biology Notes

Leave a Reply

Your email address will not be published.

error: Content is protected !!