कोशिका-चक्र (Cell Cycle)
किसी भी प्रकार के कोशिका-विभाजन से निर्मित होने वाली नई कोशिकाओं के फिर से विभाजन होने के बीच समय लगता है। इस अवधि में कोशिका का आकार बढ़ता है, उसके केन्द्र के पदार्थों में वृद्धि होती है एवं अगले विभाजन के लिए तैयारी भी होती है। अतः एक कोशिका के अस्तित्त्व में आने से लेकर उसके विभाजन होने तक का एक चक्र होता है, जिसे कोशिका-चक्र (Cell Cycle) कहते हैं। दो विभाजन के बीच की अवस्था को अन्तरावस्था (interphase) कहते हैं। सम्पूर्ण कोशिका-चक्र को निम्न अवस्थाओं में बांटा जा सकता है।
- वृद्धि अवस्था – 1 या G1 – phase (Growth phase-1)
- संश्लेषण-अवस्था S-phase (Synthesis phase)
- वृद्धि अवस्था – II या G2 – phase
- विभाजन-अवस्था या M – phase (Division phase)
कोशिका-चक्र की अवधि कोशिका के प्रकार एवं अन्य बाहरी कारक जैसे तापमान, पोषक-तत्त्व, ऑक्सीजन आदि पर निर्भर करती है।
कोशिका-विभाजन के प्रकार
1. असूत्री विभाजन (Amitosis)
इस प्रकार के कोशिका-विभाजन में कोशिका का केन्द्रक दो टुकड़ों में बंट जाता है । दोनों टुकड़ों में गुणसूत्रों की संख्या बराबर होना आवश्यक नहीं होता है। इस प्रकार का विभाजन कुछ एक कोशिकीय जीवों में, भ्रणीय झिल्लियों एवं जीर्णऊतकों की कोशिकाओं में होता है।
2. समसूत्री विभाजन (Mitosis)
इस प्रकार के कोशिका-विभाजन में जब केन्द्रक दो भागों में बंटता है तो प्रत्येक भाग में गुणसुत्रों की संख्या समान होती है। प्रत्येक नए केन्द्रक में गुणसूत्रों की संख्या जनक-कोशिका के गुणसूत्रों के बराबर ही होती है। जीवधारियों (जन्तु एवं पौधों) की सभी कोशिकाओं में इस प्रकार का विभाजन होता है। शरीर की वृद्धि एवं मरम्मत अर्थात् पुरानी कोशिकाओं की जगह नई-नई कोशिकाएँ बनाना, घाव भरना आदि के लिए यह विभाजन आवश्यक होता है। सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओं में समसूत्री विभाजन की क्रिया होती है।
3. अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis)
इस प्रकार के कोशिका-विभाजन में जब केन्द्रक दो भागों में बंटता है तो प्रत्येक भाग से गुणसूत्रों की संख्या मूल कोशिका के केन्द्रक के गुणसूत्रों में आधी रह जाती है। उन सभी जीवों में, जिनमें लैंगिक-जनन होता है, उनकी जनन-ग्रंथियों (gonads) में यह विभाजन अवश्य होता है। जनन-ग्रंथियों में अर्द्धसूत्री विभाजन के कारण ही नर एवं मादा युग्मक अर्थात् शुक्राणु एवं अंडाणु का निर्माण हो जाता है।
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