वर्णव्यवस्था
हमारी भाषा में ‘वर्ण’ शब्द का प्रयोग भाषा की ध्वनियों और उन ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त लिपि-चिह्नों दोनों के लिए होता है। इस प्रकार वर्ण भाषा के उच्चरित और लिखित दोनों रूपों के प्रतीक हैं और ये ही भाषा की लघुतम इकाई हैं। हिंदी के वर्ण देवनागरी लिपि में लिखे जाते हैं।
वर्णमाला
हिंदी भाषा के लेखन के लिए जो चिह्न (वर्ण) प्रयुक्त होते हैं, उनके समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिंदी वर्णमाला का मानक रूप नीचे दिया जा रहा है –
वर्णों के भेद – उच्चारण की दृष्टि से हिंदी वर्णमाला के वर्णों को दो वर्गों में बाँटा जाता है – स्वर और व्यंजन।
स्वर
जिन ध्वनियों के उच्चारण के समय हवा मुँह से बिना किसी रूकावट के निकलती है वे स्वर कहलाते हैं।
जैसे – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, ऑ।
स्वर | अ | आ | इ | ई | उ | ऊ | ऋ | ए | ऐ | ओ | औ |
स्वरों की मात्राएँ | ा | ि | ी | ु | ू | ृ | े | ै | ो | ौ |
(‘अ’ की अपनी कोई मात्रा नहीं होती क्योंकि यह व्यंजन में अंतर्निहित रहता है।)
अनुस्वार – अं (ं)
विसर्ग – अः (ः)
यद्यपि पारंपरिक वर्णमाला में ऋ, अं, अ: को स्वरों में गिना जाता है क्योंकि ये स्वरों के योग से ही बोले जाते हैं परंतु लिखने में आ, ई की तरह ऋ की भी मात्रा ‘ृ’ होती है; जैसे – कृ।
ऋ स्वर का प्रयोग केवल संस्कृत के शब्दों में ही होता है; जैसे – ऋण, ऋषि, ऋतु, घृत आदि। इसका उच्चारण प्रायः उत्तर भारत में ‘रि’ की तरह होता है। कहीं-कहीं (महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में) इसका उच्चारण ‘रु’ जैसे होता है।
अं और अः यद्यपि स्वरों में गिने जाते हैं परंतु उच्चारण की दृष्टि से ये व्यंजन के ही रूप हैं। अं को अनुस्वार तथा अः को विसर्ग कहा जाता है। ये हमेशा स्वर के बाद ही आते हैं। अं और अः व्यंजन के साथ क्रमशः अनुस्वार (ं) और विसर्ग (ः) के रूप में जुड़ते हैं।
स्वर वर्णों के भेद : हिंदी में स्वरों के मूलतः दो भेद हैं –
- निरनुनासिक स्वर – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
- अनुनासिक स्वर – अँ, आँ, इँ, ई, उँ, ऊँ, एँ, ऐं ओं, औं
यद्यपि अनुनासिक स्वर के लिए चंद्रबिंदु का प्रयोग होता है परंतु यदि शिरोरेखा के ऊपर कोई मात्रा लगी होती है तो चंद्रबिंदु के स्थान पर केवल बिंदु का प्रयोग होता है। याद रहे हिंदी के सभी निरनुनासिक स्वरों के नासिक्य रूप होते हैं।
ह्रस्व स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय (एक मात्रा का समय) लगता है, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं।
जैसे – अ, इ, उ, ऋ ह्रस्व स्वर हैं।
दीर्घ स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में हस्व की तुलना में अधिक समय (दो मात्रा का समय) लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं।
जैसे- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
व्यंजन
क वर्ग | क | ख | ग | घ | ङ | ||
च वर्ग | च | छ | ज | झ | ञ | ||
ट वर्ग | ट | ठ | ड | ढ | ण | ड़ | ढ़ |
त वर्ग | त | थ | द | ध | न | ||
प वर्ग | प | फ | ब | भ | म | ||
अंतस्थ | य | र | ल | व | |||
ऊष्म | श | ष | स | ह | |||
संयुक्त व्यंजन | क्ष | त्र | ज्ञ | श्र | |||
आगत वर्ण | ऑ | ज़ | फ़ |
स्वर रहित व्यंजन को लिखने के लिए उसके नीचे हलंत के चिह्न (्) का प्रयोग होता है;
जैसे – छ्, ट्, द्, ह्।
व्यंजन – जिन वर्णों के उच्चारण में वायु रुकावट के साथ या घर्षण के साथ मुंह से बाहर निकलती है, उन्हें व्यंजन कहते हैं।
व्यंजनों का वर्गीकरण – व्यंजनों को उनके उच्चारण स्थान और प्रयत्न के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
उच्चारण स्थान के आधार पर – व्यंजनों के उच्चारण के समय हमारी जिह्वा मुख के विभिन्न स्थानों; जैसे – कंठ, तालु, दाँत आदि को छूती है, जिसके परिणामस्वरूप तरह-तरह की व्यंजन ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं। उच्चारण स्थान के आधार पर हिंदी के व्यंजनों का वर्गीकरण इस प्रकार है –
कंठ्य – (गले से) क, ख, ग, घ, ङ, ह।
तालव्य – (तालु से) च, छ, ज, झ, ञ, य और श।
मूर्धन्य – (तालु के मूर्धा भाग से) ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़
दंत्य – (दाँतों से) त, थ, द, ध, न।
वर्त्स्य – (दंत मूल से) स, ज़, र, ल।
ओष्ठ्य – (दोनों होंठों से) प, फ, ब, भ, म।
दंतोष्ठ्य – (निचले होंठों और ऊपर के दाँतों से) व, फ।
उच्चारण प्रयत्न के आधार पर – व्यंजनों के उच्चारण के समय श्वास की मात्रा, स्वरतंत्री का अवरोध तथा जीभ और अन्य अवयवों द्वारा अवरोध को प्रयत्न कहते हैं। प्रयत्न तीन प्रकार के होते हैं –
- श्वास की मात्रा
- स्वरतंत्री में श्वास का कंपन
- जीभ तथा अन्य अवयवों द्वारा श्वास का अवरोध
श्वास (प्राण) की मात्रा के आधार पर – उच्चारण के समय श्वास की मात्रा के आधार पर व्यंजनों के दो भेद किए जाते हैं – अल्पप्राण और महाप्राण।
अल्पप्राण – जिन ध्वनियों के उच्चारण में मुख से कम वायु निकलती है, उन्हें अल्पप्राण व्यंजन कहते हैं; जैसे – क, ग, ङ, च, ज, ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प, ब, म (वर्गों के प्रथम, तृतीय और पंचम व्यंजन), ड़ और य, र, ल, व भी अल्पप्राण हैं।
महाप्राण – जिन ध्वनियों के उच्चारण में मुख से निकलने वाली श्वास की मात्रा अधिक होती है, उन्हें महाप्राण व्यंजन कहते हैं। जैसे – ख, घ, छ, य, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ (वर्गों के द्वितीय तथा चतुर्थ व्यंजन), ढ़ और श, ष, स, ह।
स्वरतंत्री में श्वास के कंपन के आधार पर – बोलते समय वायु प्रवाह से कंठ में स्थित स्वरतंत्री में कंपन होता है। स्वरतंत्री में जब कंपन होता है
तो सघोष ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं और जब कंपन नहीं होता है तब अघोष चनियाँ उत्पन्न होती हैं। हिंदी की सघोष और अघोष ध्वनियाँ इस प्रकार हैं –
सघोष –
सभी स्वर
ग, घ, ङ, ज, झ, ञ,
ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म
(वर्गों के तृतीय, चतुर्थ और पंचम व्यंजन)
तथा ड़, ढ़, ज़, य, र ल, व, ह
अघोष –
क, ख, च, छ,
ट, ठ, त, थ, प, फ
(वर्गों के प्रथम और द्वितीय व्यंजन)
तथा फ़, श, ष, स।
उच्चारण अवयवों द्वारा श्वास के अवरोध के आधार पर – जब हम व्यंजनों का उच्चारण करते हैं तो उच्चारण अवयव मुख विवर में किसी स्थान-विशेष का स्पर्श करते हैं ऐसे व्यंजनों को स्पर्श व्यंजन कहते हैं। जिन व्यंजनों का उच्चारण करते हुए वायु स्थान-विशेष पर घर्षण करते हुए निकलती है तो इन व्यंजनों को संघर्षी व्यंजन कहते हैं।
स्पर्श व्यंजन | संघर्षी व्यंजन |
क ख ग घ ङ | ज़ फ़ |
च छ ज झ ञ | अंतः स्थ व्यंजन- य र ल व |
ट ठ ड ढ ण | उत्क्षिप्त व्यंजन – ड़ ढ़ |
त थ द ध न | |
प फ ब भ म |
जिन व्यंजनों के उच्चारण में श्वास का अवरोध कम होता है उन्हें अंतःस्थ व्यंजन कहते हैं और जिनके उच्चारण के समय जीभ पहले ऊपर उठकर मूर्धा का स्पर्श करती है और फिर एकदम नीचे गिरती है वे उत्क्षिप्त व्यंजन कहलाते हैं।
अक्षर
जब किसी एक ध्वनि या ध्वनि-समूह का उच्चारण एक झटके के साथ किया जाता है तो उसे ‘अक्षर’ कहते हैं। हिंदी में सभी स्वर अक्षर होते हैं और सभी व्यंजनों में ‘अ’ स्वर होने के कारण वे भी अक्षर होते हैं। इसलिए कई बार वर्णमाला को अक्षरमाला और वर्णों को अक्षर भी कहा जाता है।
हिंदी के सभी वर्ण या तो स्वर हैं या व्यंजन + स्वर हैं। आशय यह है कि अक्षर की संरचना का आधार स्वर होता है और उसके आगे और पीछे एक, दो या तीन व्यंजन हो सकते हैं। इस आधार पर हिंदी में अक्षरों की संरचना निम्नलिखित प्रकार से हो सकती है –
एक अक्षर वाले शब्द
1. केवल स्वर | आ |
2. स्वर + व्यंजन + स्वर | अब, आज |
3. व्यंजन + स्वर | न, खा, हाँ |
4. व्यंजन + स्वर + व्यंजन | घर, देर, साँप |
5. व्यंजन + व्यंजन + स्वर | क्या, क्यों |
6. व्यंजन + व्यंजन + व्यंजन + स्वर | स्त्री, स्क्रू |
7. व्यंजन + व्यंजन + स्वर + व्यंजन | प्यास, प्रेम |
दो अक्षर वाले शब्द
1. स्वर + व्यंजन + व्यंजन + स्वर | अंत |
2. स्वर + व्यंजन + व्यंजन + व्यंजन + स्वर | अस्त्र |
3. व्यंजन + स्वर + व्यंजन + व्यंजन + स्वर | संत, शांत |
4. व्यंजन + स्वर + व्यंजन + व्यंजन + व्यंजन + स्वर | शस्त्र |
5. व्यंजन + व्यंजन + स्वर + व्यंजन + व्यंजन + स्वर | प्राप्त |
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