Other Folk Dances of India

भारत के अन्य लोकनृत्य (Other Folk Dances of India)

August 7, 2020

भारत के अन्य लोकनृत्य
(Other Folk Dances of India)

छऊ नृत्य (Chhau Dance)

शैली छऊ का अर्थ है, छाया दर्पण अर्थात् जिस प्रकार दर्पण में अपनी छवि देख सकते हैं ठीक उसी प्रकार अंग प्रत्यंग उपांगों के तोड़-मरोड़ द्वारा छऊ नृत्य में मन की भावना को अभिव्यक्ति किया जाता है। शरीर के इन संचालनों को टोपका तथा चाली कहते हैं।

  • स्त्रियों के भाग न लेने के कारण छऊ नृत्य शैली में ताण्डव रूप का प्रधान्य बना रहा और लाश्य भाव का उदय नहीं हो सका। किन्तु, अब लड़कियाँ भी विशेषतः मयूरभंज शैली का छऊ नृत्य के प्रमुख क्षेत्र हैं। 
  • आदिवासी नारी की शृंगार प्रक्रिया से लेकर हल्दी पीसना, धान कूटना आदि इस नृत्य के मुख्य विषय हैं। प्रारंभ में तो केवल पुरुष वर्ग ही छऊ करते थे, किन्तु सभ्यता के साथ महिलाएं भी इसमें आगे लगी हैं। 
  • इस नृत्य में प्रत्येक अंग का अलग ढंग से प्रदर्शन किया जाता है। अंगों का प्रदर्शन तोड़-मरोड़ कर इस प्रकार किया जाता है, जिससे तन की भावना व्यक्त हो सके। 

छऊ नृत्य के प्रकार (Types of Chhau Dance)

  • सेरैकेल्लै छऊ, 
  • मयूरभंज छऊ और 
  • पुरुलिया 

छाउ नृत्य को २०१२ कि हिन्दी फिल्म बर्फि मे शामिल किया गया है। बहुत सारे ब्ंगाली फिल्म मे भी इस नृत्य को दिखाया गया है।

 

यक्षगान (Yakshagana)

यक्षगान कर्नाटक की ग्रामीण पृष्ठभूमि वाला नृत्य है। इसका उदय विजयनगर साम्राज्य में हुआ। इसका स्रोत भी गांव है। इसमें नाटक और नृत्य का संगम होता है। ‘गान’ अर्थात् संगीत इसकी आत्मा है। कर्नाटक में इसका प्रचलन कोई चार सौ वर्षों से रहा है। इसका प्रधान विषय पौराणिक हिन्दू माकाव्यों पर आधारित है। इस नृत्यकला को पुनर्जीवित करने का श्रेय डॉ. कोटा शिवाराम को जाता है। इन्होंने अपनी शैली ‘यज्ञगान’ भी विकसित की। यहाँ भी पुरुष नृत्य की गति अति तीव्र रहती है। 

कूडियाट्टम् (Koodiyattam)

यह एकांकी नृत्य नाटिका है। इसमें कुछ दिन से लेकर अनेक सप्ताह तक का समय लग जाता है। मनोरंजन के साथ यह उपदेशात्मक भी होता है। इस नृत्य का सर्वेसर्वा विदूषक नैतिक उपदेशक होता है। कभी-कभी उसके व्यंग्यों का नाटक कथा के विषय के साथ कोई ताल-मेल नहीं होता है। 

ओट्टन तुल्लन (Ottan Tullan)

यह केरल प्रांत का एकल नृत्य है। इसे गरीबी की कथकली के नाम से भी जाना है। इस नृत्य शैली का विकास कुंजन नाम्बियार ने किया था। इस नृत्य के माध्यम से उन्होंने समकालीन सामाजिक दशा, वर्ग विभेद तथा धनी एवं बड़े लोगों की दुर्बलताओं तथा मनमौजीपन को निरूपित किया है। 

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