कुमाऊँनी कहावतें (मुहावरे)

प्रसिद्ध कुमाऊँनी कहावतें (मुहावरे) भाग – 3

उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र में कुमांऊँनी बोली जाने वाली एक बोली है। इस बोली को हिन्दी की सहायक पहाड़ी भाषाओं की श्रेणी में रखा जाता है। कुमाऊँ क्षेत्र में प्रचलित भाषा में कई मुहावरे, लोकोक्तियाँ और पहेलियाँ भी मौजूद है। जो कुमांऊँनी लोगों की आम बोलचाल में प्रयुक्त होती थी। लेकिन अब पहाड़ों से पलायन और लोगों के आधुनिकीकरण के कारण हम अपनी भाषा और बोली को भूलते जा रहे है। हम अपनी संस्कृति, भाषा और बोली को संजोकर रखे इसी को ध्यान में रखते हुए, प्रसिद्ध पुस्तक डॉ. सरस्वती कोहली द्वारा रचित कुमाऊँनी कहावतें एवं मुहावरे में कुमाऊँ क्षेत्र के मुहावरों और पहेलियों को संग्रहित किया गया है, जिसके कुछ अंश यहाँ पर दिए गए हैं। 

प्रसिद्ध कुमाऊँनी कहावतें (मुहावरे) 

1. पौन में मन हो तब चुल पिनि आग हौ ।
अर्थ – मेहमान में मन हो तब चूल्हे में आग भी हो ।
भावार्थ –  बेमन से किया गया कार्य ।

2. सरगैकि छुटी, पतालैकि फुटी ।
अर्थ – स्वर्ग से छूटी तो धरती भी फट गयी ।
भावार्थ –  कहीं भी सहारा न मिलना ।

3. ओछ्छ्रु मिल्यो राज, मुण्डा लागि वीक खाज ।
अर्थ – ओछे व्यक्ति को मिला राज, सिर में लगी उसके खाज ।
भावार्थ –  पद-प्रतिष्ठा मिलने पर भी अपनी बुरी आदतें न त्यागना ।

4. दुसरैकि आस सर्ग बास ।
अर्थ – दूसरे की आस स्वर्गवास ।
भावार्थ –  दूसरे के आसरे पर जीवन व्यतीत करना मुत्यु के समान है।

5. फून हिं गाठिन, उचूण हिं जाँठि ।
अर्थ – खोलने को गांठ नहीं, उठाने को डंडा नहीं ।
भावार्थ –  रक्षा करने के लिए न धन और न ही बल ।

6. दुबाल गोरूले भी पिनि चरि खानो ।
अर्थ – दुबली गाय ने समतल जमीन पर चुगना ।
भावार्थ –  बलहीन अथवा सरल स्वभाव के मनुष्य ने किसी से बैर नहीं रखना चाहिए ।

7. आपन आङाक भैस निं देख्या दुसरा आङाका जूंण देख्या ।
अर्थ – अपने शरीर में भैंस नहीं दिखे, दूसरे के शरीर की जूं देख ली।
भावार्थ –  अपनी बड़ी-बड़ी गल्ती न देखना और दूसरे की छोटी-छोटी गलतियां भी गिनाना । 

8. सै मै जथै रै।
अर्थ – पूस में मयी (कृषि यंत्र ) जहां भी रही ।
भावार्थ –  बेकाम की वस्तु अथवा मनुष्य कहीं भी रहे।

9. बिरालुका ह्याल ख्याल मुसाक परान ।
अर्थ – चूहे के प्राण जां रहे हैं, बिल्ली के खेल हो रहे हैं।
भावार्थ –  दूसरे की विवषता का मजाक उड़ाना ।

10. जैक खाप चलि वीक नौ हल बल्द चल्या ।
अर्थ –  जिसका मुँह चला, उसके नौ जोड़ी हल-बैल चले
भावार्थ – वाकपटुता से अपना काम सिद्ध कर लेना ।

11. भाल हिं लै पु।
अर्थ – भालू के लिए भी पूड़ी।
भावार्थ – किसी वस्तु के महत्व को न समझना ।

12. कुकुराक् घर ले बासि र्वाट ।
अर्थ – कुत्ते के घर भी बासी रोटी ।
भावार्थ – दरिद्र के घर कैसी सुविधाएं अथवा धन-धान्य ।

13. कुकुराक् घरौक कपास ।
अर्थ – कुत्ते के घर में कपास अथवा स्वच्छ वस्तु ।
भावार्थ – वस्तुओं की कद्र न करने वाला परिवार ।

14. कुमिल्लो बड़न नैंत फुसरींछ त सहीं ।
अर्थ – कुमिल (पेठा) बड़ता नहीं है तो फुसरा अर्थात सफेद तो होता ही है ।
भावार्थ – शरीर में उम्र का प्रभाव दिखाई देना ।

15. तिति करेलिकि तिति बेलि, जसि मतारि उसी चेलि ।
अर्थ – कड़वे करेले की कड़वी बेल, जैसी माँ वैसी ही पुत्री ।
भावार्थ – वंशानुगत गुणों का परिलक्षित होना ।

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