प्रसिद्ध कुमाऊँनी कहावतें (मुहावरे) भाग – 2 | TheExamPillar
कुमाऊँनी कहावतें (मुहावरे)

प्रसिद्ध कुमाऊँनी कहावतें (मुहावरे) भाग – 2

उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र में कुमांऊँनी बोली जाने वाली एक बोली है। इस बोली को हिन्दी की सहायक पहाड़ी भाषाओं की श्रेणी में रखा जाता है। कुमाऊँ क्षेत्र में प्रचलित भाषा में कई मुहावरे, लोकोक्तियाँ और पहेलियाँ भी मौजूद है। जो कुमांऊँनी लोगों की आम बोलचाल में प्रयुक्त होती थी। लेकिन अब पहाड़ों से पलायन और लोगों के आधुनिकीकरण के कारण हम अपनी भाषा और बोली को भूलते जा रहे है। हम अपनी संस्कृति, भाषा और बोली को संजोकर रखे इसी को ध्यान में रखते हुए, प्रसिद्ध पुस्तक डॉ. सरस्वती कोहली द्वारा रचित कुमाऊँनी कहावतें एवं मुहावरे में कुमाऊँ क्षेत्र के मुहावरों और पहेलियों को संग्रहित किया गया है, जिसके कुछ अंश यहाँ पर दिए गए हैं। 

प्रसिद्ध कुमाऊँनी कहावतें (मुहावरे) 

1. भात खै बेर पानि पिनाको आसौर, झकाड़ करि बेर मुख बोलनाक आसौर राखन चैं ।
अर्थ – भात खाकर पेट में पानी पीने के लिए जगह और झगड़ा करके दुबारा मुँह बोलने का लिहाज रखना ही चाहिए ।
भावार्थ – किसी भी चीज की अति न करना ।

2. ब्या दिनैकि जसि भूक बर्तो दिनौक जस जाड़ौ ।
अर्थ – विवाह के दिन की जैसी भूख, बर्त (जनेऊ) के दिन का जैसा जाड़ा ।
भावार्थ – विवाह के दिन परम्परा अनुसार गणेश पूजा से पहले वर-वधू को भोजन करना वर्जित होता है, अतः भूख लगना स्वाभाविक है। जनेऊ के दिन जातक को सात बार ठंडे पानी से स्नान कराया जाता है अतः जाड़ा लगना भी स्वाभाविक है।

3. कुकुराक च्याल, बिरालुक च्याल, मैं राण ले च्याल ।
अर्थ – कुत्ते के भी पुत्र, बिल्ली के भी पुत्र, मुझ विधवा के भी पुत्र ।
भावार्थ – मनुष्य में मनुष्यता के गुण खत्म हो जाने पर व्यंग्य 

4. धपड्या खयाक सपड़या च्याल मिसिरि खयाक निसुर च्याल ।
अर्थ – धपड़या (निर्धन वर्ग का भोजन) खाये हुए सफल बेटे, मिश्री खाए हुए निराश बेटे ।
भावार्थ – निर्धनता से सबक लेकर सफल होना और अभाव रहित जीवन होकर भी निराश रहना ।

5. तेर ब्याकरला सौ साल में ।
अर्थ – तेरा विवाह करेंगे सौ बरस में ।
भावार्थ – अनुकूल समय बीत जाने पर कोई कार्य करने की हामी भरना । 

6. अघाइन बामनैकि भैसैन खीर ।
अर्थ – इच्छापूर्ति ब्राहम्ण को खीर में से भैंस की बू आती है।
भावार्थ – तर्करहित बात करना ।

7. नैं पट्याको गोपी बामन ।
अर्थ – पण्डित नही मिला, तो गोपी ही पण्डित ।
भावार्थ –  केवल औपचारिकता पूर्ण करना ।

8. जुकाँ काँ जु कानै में जु।
अर्थ – जुवा (जुताई का यंत्र) कहां है जुवा कहां है जुवा कंधे में।
भावार्थ –  सामने रखी हुई वस्तु का न दिखाई देना । 

9. जैक ज्वे नै वीक क्वे न ।
अर्थ – जिसका संरक्षक नहीं उसका कोई नहीं ।
भावार्थ –  असहाय व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार होने पर व्यंग्य ।

10. गरीबै सैनि सपैकि बौजि ।
अर्थ – गरीब की पत्नी सब की भाभी ।
भावार्थ –  वर्गवादी समाज पर कटाक्ष ।

11. तेलिकि सैनि होरिक बैग ।
अर्थ – तेली (लड़के के विवाह में महिलाओं की हँसी ठिठोली ) की महिला और होली का मदमस्त पुरुष ।
भावार्थ –  किसी भी तरह का हँसी मजाक करने को तत्पर रहने का अनुकूल वक्त।

12. खान हिं नि भै मडू धुलि, त्वे चैं नाकै फुलि ।
अर्थ – खाने को नही हुआ मडुवे का आटा तुमको चाहिए नाक की फूली ।
भावार्थ –  वास्तविक स्थित को स्वीकार न करना ।

13. हल्दो छ कै सबले जांणि कुटरि बेर कि फैद ।
अर्थ – हल्दी है करके सब को पता है, फिर कुतर कर क्या फायदा ।
भावार्थ –  स्पष्ट स्थिति को पुनः साबित करने का अनुचित प्रयास करना ।

14. जतुक काला उतुक म्यार बबाक् साला ।
अर्थ – जितने भी काले उतने ही मेरे बाप के साले ।
भावार्थ –  अपनी वस्तु के जैसी, दूसरे की वस्तु को भी अपना समझ लेना । 

15. द्वि ठौरौक पौन उखल सारिक रूनो ।
अर्थ – दो घरों का मेहमान उखलसारी ( वो कक्ष जिसमें ओखली स्थापित हो) का रहना ।
भावार्थ –  दो लोगों की लापरवाही का शिकार होना ।

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