उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र में कुमांऊँनी बोली जाने वाली एक बोली है। इस बोली को हिन्दी की सहायक पहाड़ी भाषाओं की श्रेणी में रखा जाता है। कुमाऊँ क्षेत्र में प्रचलित भाषा में कई मुहावरे, लोकोक्तियाँ और पहेलियाँ भी मौजूद है। जो कुमांऊँनी लोगों की आम बोलचाल में प्रयुक्त होती थी। लेकिन अब पहाड़ों से पलायन और लोगों के आधुनिकीकरण के कारण हम अपनी भाषा और बोली को भूलते जा रहे है। हम अपनी संस्कृति, भाषा और बोली को संजोकर रखे इसी को ध्यान में रखते हुए, प्रसिद्ध पुस्तक डॉ. सरस्वती कोहली द्वारा रचित कुमाऊँनी कहावतें एवं मुहावरे में कुमाऊँ क्षेत्र के मुहावरों और पहेलियों को संग्रहित किया गया है, जिसके कुछ अंश यहाँ पर दिए गए हैं।
प्रसिद्ध कुमाऊँनी कहावतें (मुहावरे)
1. स्यापाक् ब्या में बिरालु बामन ।
अर्थ – साँप के विवाह में बिल्ली ब्राह्मण ।
भावार्थ – तर्करहित अथवा असम्भव बात करना।
2. हाल खिन मरि ग्या जुवा करतार।
अर्थ – हल जोतने को तो मरे जाते हैं, परन्तु जुआ (जुताई करने का यंत्र) तोड़ने में पारंगत ।
भावार्थ – काम करने में तो मक्कारी दिखाना परन्तु काम बिगाड़ने में माहिर होना ।
3. चरमरै खबर का तक कर ।
अर्थ – चरमर की खबर कहां तक की जाए।
भावार्थ – अल्प आयु वाले जीवों की सुरक्षा कब तक की जाए ।
4. कित ठेकी बाजौ कित दौनी छाजौ ।
अर्थ – या तो ठेकी (मट्ठा बनाने का काठ का बर्तन) ही बजती रहे, या फिर दौनी (गाय-भैंस को बाँधने वाला खूंटा) ही सजा रहे ।
भावार्थ – किसी भी व्यक्ति में सुन्दर रूप अथवा अच्छे गुण, दो गुणों में से एक गुण तो होना ही चाहिए ।
5. बाँजै लाकड़ केड़ी भलि, जातै चेलि सेड़ी भलि ।
अर्थ – बाँज की लकड़ी पतली ही भली, और जात संस्कारी पुत्री भैंगी ही भली ।
भावार्थ – गुणवान वस्तु को महत्व देना ।
6. ओसकि भिजनि जूनकि सुकनि ।
अर्थ – ओस से भीगने वाली और चांदनी की रोशनी से सूखने वाली ।
भावार्थ – अत्यधिक कोमलांगी स्त्री ।
7. खानि खोरि जै हुनित पुज्यार्वे जी रून ।
अर्थ – खाना भाग्य में होता तो पुजारी ही जीवित रहता ।
भावार्थ – सुख होकर भी भाग्यवश उसे भोग न पाना ।
8. आपण हाण्या ओर – ओर बिरान हाण्या पर-पर ।
अर्थ – अपनों को पीटा तो पास-पास, दूसरे को पीटा तो दूर-दूर ।
भावार्थ – अपने पराये का भेद साबित हो जाना ।
9. आपण मतारिक ख्वार हात बिरान मतारिक पेट हात ।
अर्थ – अपनी माँ का सिर पर हाथ, दूसरी माँ का पेट में हाथ ।
भावार्थ – अपनी माँ स्नेह से सिर पर हाथ भी फेर दे तो मन तृप्त हो जाता है, परायी माँ भरपेट भोजन भी कराए तो मन तृप्त नहीं होता है।
10. खीरा गवाट्टा हगल्याटा ठवास्सा ।
अर्थ – खीर के बड़े-बड़े निवाले, जलती हुई लकड़ी की मार ।
भावार्थ – एक सुख के बदले एक दुःख देना ।
11. खाइ कि जाणौ भुकै बात ।
अर्थ – भोजन किया हुआ क्या जाने भूखे की बात |
भावार्थ – जिसने कभी कष्ट सहा ही नहीं उसे कष्ट का क्या अनुभव।
12. सुखा धै दुखा क्यो, आँख खुचै जै पाइ ।
अर्थ – सुखी को दुःख बताया आँख जो खुचवायी ।
भावार्थ – संवेदनहीन व्यक्ति को अपना दुःख बताकर हास्य का पात्र बनना।
13. सौन मरि सासु भदौ आय आँसु ।
अर्थ – सावन में सास मरी भादौ में आँसू आए ।
भावार्थ – बहुत देर से किसी चीज का एहसास होना ।
14. भदौ घस्यारि पुसै रस्यारि ।
अर्थ – भादौ की घसारन, पूस की रसारिन ।
भावार्थ – किसी कार्य को करने का उचित समय ।
15. आपण देशो क कौव लै लाड़ौ ।
अर्थ – अपने देश का कौआ भी प्यारा ।
भावार्थ – अपने क्षेत्र के प्रति प्रेम का भाव प्रकट होना ।
प्रसिद्ध कुमाऊँनी कहावतें (मुहावरे) भाग – 2 |
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