कथकली (Kathakali) | TheExamPillar
Kathakali

कथकली (Kathakali)

कथकली (Kathakali)

कथकली (Kathakali) का शब्दिक अर्थ है किसी कहानी पर आधारित नाटक। स्वर्ग लोक की दिव्य नृत्य का के रूप में प्रसिद्ध या कला केरल का प्रसिद्ध नृत्य है। इसमें कलाकार स्वयं गाता नहीं है, बल्कि एक विशेष लय एवं राग के संगीत पर नृत्य करता है। नृत्य की कथावस्तु अधिकांशतः महाकाव्यों एवं पौराणिक कथाओं पर आधारित है। 

  • कथकली में अभिनय करने वाला बोलता नहीं, अपितु एक जटिल एवं वैज्ञानिक ढंग से निर्दिष्ट मुद्राओं एवं पद संचालन द्वारा भावों की अभिव्यक्ति नेपथ्य में गाए जा रहे पाठ के साथ तालमेल बैठाते हुए करता है। अपने प्रारंभिक चरण में इसमें नर्तक काव्य गीत गायन के साथ-साथ अभिनय भी करता था, जो इसे ओपेरा के काफी निकट ले जाता है। बाद में गायक अलग से गीत गाने लगे। 
  • शास्त्रीय परंपरा का दृढ़ता से पालन करने में कथकली नृत्यकारों की गहरी आस्था है। इसमें ताण्डव भाव अधिक रहता है। यह नीरत्व भाव-व्यंजक नृत्य खुले आकाश के नीचे सारी-सारी रात चलता था जैसाकि विक्टोरिया थियेटर की परंपरा थी। 
  • आज नृत्य नाटक मात्र दो घंटे होते हैं। इस शास्त्रीय नृत्य प्रदर्शन के आरंभ में पीतल का बड़ा दीपक रखा जाता है, जिसमें ज्योति टिमटिमाती रहती है। इसे कलिविला कहते हैं। दोनों ओर से दो व्यक्ति पर्दे पकड़कर रंगमंच पर प्रकट होते हैं। वह अपने नृत्याभिमान द्वारा नृत्य कथानक के सूक्ष्म भाव को प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने में सफल होता है।

कथकली संगीत 

कथकली के वाद्यवृन्द में शामिल रहते हैं – दो प्रकार के ढोल – मादलम और चेन्दा; चेंगिला जो बेल-मेटल का घड़ियाल होता है और इलथलम या मजीरा।

कथकली मुद्राएं 

कथकली नृत्य कला में 24 मुख्य मुद्राएं होती हैं, जिन्हें हाथों से दर्शाया जाता है। जिनमे कुछ मुद्राएं एक हाथ से और कुछ दोनों हाथों से दर्शाई जाती हैं। कथकली में इन मुद्राओं द्वारा लगभग 470 सांकेतिक चिन्हों को दर्शाया जाता है। जैसे, पर्वत शिखर, तोते की चोंच, हंस के पंख,पताका आदि।

आधुनिक युग में कथकली 

आधुनिक रंगमंच पर प्रस्तुत करने के लिये कथकली को नया स्वरूप प्रदान करने में गोपीनाथ तथा रागिनी देवी ने अपना अमूल्य योगदान दिया। यद्यपि इसके पूर्व परंपरावादी कथकली नृत्य शैली के विकास में प्रसिद्ध मलयाली कवि वल्लोथोल नारायण मेनन ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। भारत के बाहर विदेशों में इस नृत्य कला के प्रसार को श्रेय रामगोपाल को दिया जाता है। इसके अलावा उदय शंकर मृणालिनी साराभाई, रुक्मणी देवी, शांताराव आदि ने इसके विषय में अपना अप्रतिम योगदान दिया। आनंद शिवरामन, माधवन तथा कृष्णन कुट्टी ने शानदार कथकली नृत्य कार्यक्रम प्रस्तुत करके तथा कतिपय अन्य विशेष नृत्य प्रदर्शनों द्वारा कथकली के कलात्मक मूल्यों को उजागर किया। 

कथकली के प्रमुख कलाकार 

वी. के. नारायण मेनन, कलामंडलम गोपी, वडक्का मनलथ गोविंदन, उदय शंकर, कृष्ण नायर, शांता राव, मृणालिनी साराभाई, आनंद शिवरामन, रामनकुट्टी नायर, पद्मनाभन नायर, कुमारन नायर

Read Also :

Leave a Reply

Your email address will not be published.

error: Content is protected !!