कत्थक नृत्य (Kathak Dance) | TheExamPillar
Kathak Dance

कत्थक नृत्य (Kathak Dance)

कत्थक नृत्य (Kathak Dance)

कत्थक (Kathak) के प्राचीन इतिहास की ओर ध्यान जाते ही प्राचीन मंदिरों का वातावरण उभरना स्वाभाविक है। शास्त्रीय नृत्य की मूलाधार शिला अध्यात्मवाद, ईश्वरीय प्राप्ति कामना और भक्ति भावना नृत्य में कूट-कूट कर भरी है।

कत्थक (Kathak) राजस्थान और उत्तर भारत की नृत्य शैली है। यह बहुत प्राचीन शैली है क्योंकि महाभारत में भी कथक का वर्णन है। मध्य काल में इसका सम्बन्ध कृष्ण कथा और नृत्य से था। मुसलमानों के काल में यह दरबार में भी किया जाने लगा। 

  • किंवदंती है कि वैष्णव भक्त हरिदास कृष्ण भक्त थे और कृष्ण के आगे नृत्य किया करते थे। अपने शिष्यों में से जिसे स्वामी जी के गान की शिक्षा दी गयी वह ‘गायक’ बने, जिन्हें वादन की शिक्षा दी गयी वे किन्नर बने और जिन्हें नृत्य की शिक्षा दी गयी वे कत्थक बने। 
  • ब्रह्म पुराण में अभनेता, गायक तथा नर्तकों को लिए कत्थक शब्द का प्रयोग मिलता है। नाट्य शास्त्र ग्रंथ में भी कथक शब्द का उल्लेख मिलता है। कत्थक शब्द का प्रयोग मिलता है। 
  • कत्थक का तात्पर्य है – कथा कहने वाला। ये कथा वाचक मंदिरों में पौराणिक आध्यात्मिक कथा कहते थे, जिसका परिवर्तित रूप आज भी वृन्दावन अयोध्या में मिलता है। कालांतर में मन्दिर के सात्विक वातावरण में दूषित तत्वों का आगमन हुआ और वे अपनी जीविका के उपार्जन के लिए भटकने लगे। 

कत्थक नृत्य प्रदर्शन (Kathak Dance Performance)

  • नृत्त: – वंदना, देवताओं के मंगलाचरण के साथ शुरू किया जाता है।
  • ठाट – एक पारंपरिक प्रदर्शन जहां नर्तकी सम पर आकर एक सुंदर मुद्रा लेकर खड़ी होती है।
  • आमद – अर्थात ‘प्रवेश’ जो तालबद्ध बोल का पहला परिचय होता है।
  • सलामी – मुस्लिम शैली में दर्शकों के लिए एक अभिवादन होता है।
  • कवित् – कविता के अर्थ को नृत्य में प्रदर्शन किया जाता है।
  • पड़न – एक नृत्य जहां केवल तबला का नहीं बल्कि पखवाज का भी उपयोग किया जाता है।
  • परमेलु – एक बोल या रचना जहां प्रकृति का प्रदर्शनी होता है।
  • गत – यहां सुंदर चाल-चलन दिखाया जाता है।
  • लड़ी – बोलों को बाटते हुए तत्कार की रचना।
  • तिहाई – एक रचना जहां तत्कार तीन बार दोहराया जाती है और सम पर नाटकीय रूप से समाप्त हो जाती है।
  • नृत्य: भाव को मौखिक टुकड़े की एक विशेष प्रदर्शन शैली में दिखाया जाता है। मुगल दरबार में यह अभिनय शैली की उत्पत्ति हुई।

घराना (Gharana)

  • लखनऊ घराना – अवध के नवाब वाजिद आली शाह के दरबार में इसका जन्म हुआ।
  • जयपुर घराना – राजस्थान के कच्छवा राजा के दरबार में इसका जन्म हुआ।
  • बनारस घराना – जानकीप्रसाद ने इस घराने का प्रतिष्ठा किया था।
  • रायगढ़ घराना – छत्तीसगढ़ के महाराज चक्रधार सिंह इस घराने का प्रतिष्ठा किया था।

कत्थकप्रमुख कलाकार (Artist of Kathak) 

पंडित बिरजू महाराज, दमयंती जोशी, सितारा देवी, पंडित लच्छू महराज, पंडित कार्तिक राम, पंडित फिर्तु महाराज, पंडित कल्यानदास महंत, पंडित बरमानलक आदि

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