ईसाई धर्म (Christianity)

ईसाई धर्म (Christianity)

ईसाई धर्म (Christianity) विश्व एवं भारत का एक प्रमुख धर्म है। आज भी संसार में इसके मानने वालों की संख्या सर्वाधिक है। इस धर्म के संस्थापक ईसा मसीह माने जाते हैं। ईसाईयों के अनुसार प्रभु एक है और उसी ने दुनिया बनायी है एवं उसका भरण-पोषण करता है। प्रभु ने ही यीशु को अपने मसीहा के रूप में इस संसार में भेजा है। अधिकांश ईसाई यीशु को प्रभु का अवतार मानते हैं, जिन्होंने इस पूरी मानवता को पापों से बचाने हेतु अपने प्राण गवायें।

ईसाई धर्म धर्म की शिक्षाएँ इस प्रकार हैं – 

  • ईश्वर एक है। 
  • ईश्वर क्षमाशील है। 
  • सभी प्राणियों के प्रति दयाभाव रखना चाहिए। 
  • सांसारिक लोभ-मोह का त्याग करना चाहिए। 
  • दुष्कर्मों से घृणा करो, पापी से नहीं। 
  • कर्मों के अनुसार दण्ड एवं पुरस्कार मिलता है। 
  • दूसरों के साथ वैसा बर्ताव करें, जैसा स्वयं चाहते हों।

पवित्र पुस्तक

ईसाई धर्म की पवित्र पुस्तक बाइबिल या इंजील है, जिसके दो भाग हैं —

  1. ओल्ड टेस्टामेंट, जिसमें यहूदी इतिहास तथा धर्मकथाएँ वर्णित हैं, तथा
  2. न्यू टेस्टामेंट, जिसमें ईसाईयों के धर्म सम्बन्धी विचार, विश्वास तथा इतिहास वर्णित हैं।

ईसाई धर्म के संप्रदाय

यद्यपि ईसाई धर्म के अनेक संप्रदाय हैं, परन्तु उनमें दो सर्वप्रमुख हैं—

  1. रोमन कैथोलिक चर्च – इसे ‘अपोस्टोलिक चर्च’ भी कहते हैं। यह सम्प्रदाय यह विश्वास करता है कि वेटिकन स्थित पोप ईसा मसीह का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी है और इस रूप में वह ईसाईयत का धर्माधिकारी है। 
  2. प्रोटेस्टैंट – 15-16वीं शताब्दी तक पोप की शक्ति अवर्णनीय रूप से बढ़ गई थी और उसका धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, सभी मामलों में हस्तक्षेप बढ़ गया था। पोप की इसी शक्ति को 14वीं शताब्दी में जॉन बाइक्लिफ़ ने और फिर मार्टिन लूथर ने चुनौती दी, जिससे एक नवीन सुधारवादी ईसाई सम्प्रदाय-प्रोटेस्टैंट का जन्म हुआ, जो कि अधिक उदारवादी दृष्टिकोण रखते हैं।
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