चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु पश्चात् उसका पुत्र बिन्दुसार मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना। बिन्दुसार (Bindusara) के अनेक नाम मिलते हैं- जैसे भद्रसार, वारिसार, अमित्रघात, एमित्रोचेटस। बिन्दुसार (Bindusara) के जीवन और उपलब्धियों के विषय में अधिक साक्ष्य प्राप्त नहीं होते लेकिन यह स्पष्ट है कि वह एक महान योद्धा था। उसने अपने पिता से उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त विशाल साम्राज्य को अक्षुण्ण बनाये रखा। परिस्थितिनुसार उसने शक्तिशाली शत्रुओं को भी पराजित कर दिया था। बिन्दुसार (Bindusara) का प्रमुख सलाहकार आचार्य कौटिल्य ही था, जिसकी सहायता से सोलह राज्यों पर विजय प्राप्त की थी।
प्रशासन के क्षेत्र में बिन्दुसार ने अपने पिता की राज्य-व्यवस्था का ही अनुगमन किया और अपने साम्राज्य को अनेक प्रान्तों में विभाजित किया तथा प्रत्येक प्रान्त में ‘कुमार’ नियुक्त किए। बिन्दुसार के शासनकाल में प्रान्तीय राजधानियों तक्षशिला और अवन्ति पर समीपस्थ प्रान्त के लोगों ने विद्रोह कर दिया था। तक्षशिला में प्रान्तीय शासक सुसीम था। वह विद्रोह न दबा सका तब बिन्दुसार ने अशोक को भेजा अशोक ने वहाँ पहुँचकर विद्रोह को सफलता पूर्वक शान्त किया। इसी से प्रभावित होकर बिन्दुसार ने अशोक को अवन्ति भेजा। बिन्दुसार की मृत्यु लगभग 269 ईसा पूर्व में हो गई। तत्पश्चात् राजसिंहासन प्राप्त करने के लिए राजकुमारों में संघर्ष छिड़ गया। अशोक ने अपने भाई सुसीम और उसके साथियों का वध कर इस उत्तराधिकार के युद्ध में विजयश्री प्राप्त की। उत्तराधिकार के युद्ध में विजयश्री प्राप्त कर अशोक का राज्याभिषेक 269 ईस्वी पूर्व हुआ। उसके अन्य भाइयों के विरोध के चलते शासन प्रारम्भ करने में चार वर्ष का बिलम्ब हुआ ।
बौद्ध ग्रन्थों का कथन है कि अशोक ने अपने 99 भाईयों का वध कर मगध का सिंहासन प्राप्त किया। पुराणों के अनुसार बिन्दुसार ने 25 वर्ष राज्य किया जबकि सिंहली परम्परा में उसका राज्य 28 वर्ष का उल्लिखित है।
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