वीभत्स रस (Vibhats Ras)
- जुगुप्सा नामक स्थाई भाव जब विभवादि भावों के द्वारा परिपक्वास्था में होता तब वह वीभत्स रस कहलाता हैं।
- इसकी स्थिति दु:खात्मक रसों में मानी जाती है।
वीभत्स रस के अवयव (उपकरण)
- वीभत्स रस का स्थाई भाव − ग्लानि या जुगुप्सा।
- वीभत्स रस का आलंबन (विभाव) − दुर्गंधमय मांस, रक्त, अस्थि आदि ।
- वीभत्स रस का उद्दीपन (विभाव) − रक्त, मांस का सड़ना, उसमें कीड़े पड़ना, दुर्गन्ध आना, पशुओ का इन्हे नोचना खसोटना आदि।
- वीभत्स रस का अनुभाव − नाक को टेढ़ा करना, मुह बनाना, थूकना, आंखे मीचना आदि।
- वीभत्स रस का संचारी भाव − ग्लानि, आवेग, शंका, मोह, व्याधि, चिंता, वैवर्ण्य, जढ़ता आदि।
वीभत्स रस के उदाहरण –
(1) आँखे निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ कर आ जाते।
शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला-चभला कर खाते।।
भोजन में श्वान लगे, मुरदे थे भू पर लेटे।
खा माँस चाट लेते थे, चटनी सम बहते बहते बेटे।।
(2) सिर पर बैठो काग आँखि दोउ-खात निकारत।
खींचत जीभहिं स्यार अतिहि आनन्द उर धारत।।
(3) निकल गली से तब हत्यारा
आया उसने नाम पुकारा
हाथों तौल कर चाकू मारा
छूटा लोहू का फव्वारा
कहा नहीं था उसने आख़िर हत्या होगी।।
(4) बहु चील्ह नोंचि ले जात तुच, मोद मठ्यो सबको हियो
जनु ब्रह्म भोज जिजमान कोउ, आज भिखारिन कहुँ दियो
(5) ‘जा दिन मन पंछी उड़ि जैहै।
ता दिन मैं तनकै विष्ठा कृमि कै ह्वै खाक उड़ै हैं’
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