रौद्र रस (Raudra Ras)
- किसी व्यक्ति द्वारा क्रोध में किए गए अपमान आदि से उत्पन्न भाव की परिपक्वास्था को रौद्र रस कहा जाता है।
- धार्मिक महत्व के आधार पर इसका वर्ण रक्त एवं देवता रुद्र है।
रौद्र रस के अवयव (उपकरण)
- रौद्र रस का स्थाई भाव – क्रोध ।
- रौद्र रस का आलंबन (विभाव) – विपक्षी, अनुचित बात कहनेवाला व्यक्ति।
- रौद्र रस का उद्दीपन (विभाव) – विपक्षियों के कार्य तथा उक्तियाँ।
- रौद्र रस का अनुभाव – मुख लाल होना, दांत पीसना, आत्म-प्रशंशा, शस्त्र चलाना, भौहे चढ़ना, कम्प, प्रस्वेद, गर्जन आदि।
- रौद्र रस का संचारी भाव – आवेग, अमर्ष, उग्रता, उद्वेग, स्मृति, असूया, मद, मोह आदि।
रौद्र रस के उदाहारण –
(1) श्री कृष्ण के सुन वचन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे ।
सब शोक अपना भूल कर, करतल युगल मलने लगे ।। (मैथिलीशरण गुप्त)
(2) सुनत लखन के बचन कठोर। परसु सुधरि धरेउ कर घोरा ।
अब जनि देर दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालक बध जोगू ।। (तुलसीदास)
(3) सुनहूँ राम जेहि शिवधनु तोरा सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा न त मारे जइहें सब राजा।। (तुलसीदास)
(4) रे नृप बालक कालबस, बोलत तोहि न संभार।
धनुही सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार।। (तुलसीदास)
(5) जो राउर अनुशासन पाऊँ। कन्दुक इव ब्रह्माण्ड उठाऊँ॥
काँचे घट जिमि डारिऊँ फोरी। सकौं मेरु मूले इव तोरी॥ (तुलसीदास)
(6) शत घूर्णावर्त, तरंग-भंग, उठते पहाड़,
जल- राशि, राशि-जल पर चढ़ता खाता पछाड़,
तोड़ता बंध प्रतिसंध धरा, हो स्फीत-वक्ष,
दिग्विजय- अर्थ प्रतिपल समर्थ बढ़ता समक्ष।। (सूर्यकांत त्रिपाठी निराला)
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