Uttarakhand Foundation Day 2025

उत्तराखंड स्थापना दिवस: इतिहास, संस्कृति, उपलब्धियों और चुनौतियाँ की झलक

November 9, 2025

उत्तराखंड (पूर्व में उत्तरांचल) 9 नवंबर 2000 को भारत का 27वाँ राज्य बना। प्रत्येक वर्ष इस दिन राज्य निर्माण आन्दोलन के शहीदों और संघर्ष की याद दिलाते हुए उत्सव मनाया जाता है। पिछले दो दशकों में देवभूमि उत्तराखंड ने हिमालय की गोद में समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक सौंदर्य के साथ सामाजिक–आर्थिक विकास की राह भी तय की है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

उत्तराखंड आंदोलन कोई एक दिन का परिणाम नहीं था, बल्कि यह दशकों से चली आ रही उपेक्षा और असमानता की प्रतिक्रिया थी। ब्रिटिश शासनकाल में कुमाऊँ और गढ़वाल के लोग देशभक्ति और सैन्य सेवा में अग्रणी रहे। आज़ादी के बाद भी यह क्षेत्र शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के मामलों में उपेक्षित रहा। लोगों ने महसूस किया कि पहाड़ की समस्याओं को मैदानी सोच से नहीं सुलझाया जा सकता, इसलिए एक अलग राज्य की मांग धीरे-धीरे जोर पकड़ने लगी।

1994 में मुज़फ्फरनगर कांड ने आंदोलन को निर्णायक मोड़ दिया, जब शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रही महिलाओं और युवाओं पर अत्याचार हुआ। यह घटना राज्य की आत्मा को झकझोर देने वाली थी। अंततः केंद्र सरकार ने जनभावनाओं का सम्मान करते हुए 9 नवंबर 2000 को उत्तरांचल राज्य का गठन किया, जिसे 2007 में संविधान संशोधन द्वारा उत्तराखंड नाम दिया गया।

सांस्कृतिक महत्व

उत्तराखंड को “देवभूमि” कहा जाता है। चारधाम तीर्थ (यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ) यहीं स्थित हैं, जो देशी-विदेशी लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। इसी भूमि ने योग-प्राणायाम को संपूर्ण विश्व को दिया; हाल ही में रिषिकेश में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय योग महोत्सव के समापन अवसर पर पर्यटन मंत्री ने रिषिकेश को “योग और आध्यात्मिकता की वैश्विक राजधानी” कहा। उत्तराखंड की लोकसंस्कृति भी बेहद जीवंत है – यहाँ के लोक नृत्य (जगर, घुमा), लोक गीत, और पर्व-त्योहार (जैसे नंदा देवी राजयात्रा, बासंत पंचमी, हरेला, फूलदेई आदि) पहाड़ी जीवन की पहचान हैं। हिन्दी के साथ गढ़वाली और कुमाऊँनी प्रमुख बोलियाँ हैं, जो पर्वतीय सभ्यता की विविधता दर्शाती हैं। राज्य में चारधाम यात्रा, केदारनाथ-मंदिर, वैल ऑफ़ फ्लावर्स जैसी प्राकृतिक एवं धार्मिक धरोहरें हैं, जिनसे उत्तराखंड की सांस्कृतिक समृद्धि उजागर होती है।

प्रमुख उपलब्धियाँ

  • पर्यटन एवं आय – उत्तराखंड के प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्व ने इसे पर्यटन का प्रमुख केंद्र बनाया है। हर वर्ष करोड़ों यात्री यहाँ चार धाम यात्रा, कुंभ मेले, और योग शिविरों के लिए आते हैं। राज्य विकास रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में उत्तराखंड में 6 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं और पर्यटकों ने भ्रमण किया। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भारी लाभ मिला है। नैनीताल, मसूरी, औली, चोपता, फूलों की घाटी जैसे स्थल एडवेंचर टूरिज्म और इको-टूरिज्म के केंद्र बन चुके हैं।पर्यटन से न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था को बल मिला है, बल्कि लाखों लोगों को रोजगार भी प्राप्त हुआ है।

  • उच्च शिक्षा का विस्तार – राज्य की साक्षरता दर अब 78% से अधिक हो चुकी है। राज्य गठन के समय तीन विश्वविद्यालय थे, जो अब बढ़कर 11 हो गए हैं। इसके साथ ही उत्तराखंड में अब 27 से अधिक निजी विश्वविद्यालय भी हैं जो युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रहे हैं। देवभूमि में अब आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी सहित तीनों प्रमुख केंद्रीय संस्थान हैं, और कई मेडिकल/इंजीनियरिंग कॉलेज खुल चुके हैं। इन सब प्रयासों से देहरादून उच्च शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है।अब राज्य में डिजिटल शिक्षा और महिला साक्षरता की दिशा में भी तेज़ी से कार्य हो रहा है।

  • महिला सशक्तिकरण – उत्तराखंड में महिलाओं ने हमेशा नेतृत्व किया है। चिपको आंदोलन में गौरा देवी से लेकर आज के महिला स्वयं सहायता समूहों तक, उत्तराखंड की महिलाएँ आत्मनिर्भरता का उदाहरण हैं। वे आज कृषि, हस्तशिल्प, पर्यटन, और सूक्ष्म उद्योगों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। हाल ही में ‘राज्य महिला नीति’ का मसौदा तैयार किया गया है, जिसमें 57 विभाग मिलकर महिला विकास पर काम करेंगे। 16.6% जेंडर बजट का प्रभावी उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि क्षेत्रों में सुनिश्चित करने के उपाय किए गए हैं। इन पहलों से पहाड़ी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में सहूलियत हुई है।

  • योग और स्वास्थ्य – भारत में योग का जन्मस्थान माने जाने वाले हिमालयी परिवेश में उत्तराखंड ने योग-आधारित स्वास्थ्य में भी अग्रणी भूमिका निभाई है। ऋषिकेश और हरिद्वार को “विश्व की योग राजधानी” के रूप में ख्याति प्राप्त है। यहाँ प्रतिवर्ष अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव आयोजित होता है, जिसमें विश्वभर से साधक आते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा और प्राकृतिक उपचार के क्षेत्र में भी उत्तराखंड अग्रणी है।  उदाहरणस्वरूप यमुना घाटी की 29 गाँवों की 1000 महिलाओं ने 62 औषधीय पौधों की खेती करके इसे दुनिया की पहली हर्बल वैली बनाया है, जिससे जैविक औषधि उद्योग को बढ़ावा मिला है।

  • सतत् विकास लक्ष्यों में प्रदर्शन – नीति आयोग की SDG इंडेक्स 2023-24 रिपोर्ट में उत्तराखंड देश में प्रथम स्थान पर है। इसका श्रेय साफ पानी, शिक्षा एवं स्वास्थ्य योजनाओं और पर्यावरण संरक्षण पर राज्य की नीतियों को जाता है, जिससे प्रदेश ‘विकसित उत्तराखंड’ की दिशा में अग्रसर है।

प्रमुख चुनौतियाँ

  • पलायन – श्रमसाध्य जीवन की तलाश में ग्रामीण क्षेत्रों से युवाओं का पलायन जारी है। 2011-24 के बीच उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों से 11.12% आबादी पलायन कर चुकी है, जिनमें से आधे से अधिक लोग रोजगार की तलाश में बाहर गए। इससे कई गाँवों की आबादी कम हो गई है। पिछले 25 वर्षों में हजारों गाँव खाली हो चुके हैं।
    शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अभाव ने युवाओं को शहरों की ओर धकेल दिया है। राज्य के लगभग 1,800 गाँव “घोस्ट विलेज” बन चुके हैं।

  • रोजगार और औद्योगिक विकास का अभाव – औद्योगिक क्षेत्र मुख्यतः हरिद्वार, देहरादून और ऊधमसिंह नगर तक सीमित हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में छोटे उद्योग, हस्तशिल्प, और हर्बल प्रोसेसिंग यूनिट्स की संभावनाएँ होने के बावजूद पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं मिला है। उत्तराखंड राज्य का गठन इस सपने के साथ हुआ था कि यहाँ के युवाओं को अपने ही राज्य में रोजगार, सम्मान और अवसर मिलेंगे। लेकिन विडंबना यह है कि 25 वर्षों के इस सफर में, जहाँ राज्य ने अनेक क्षेत्रों में प्रगति की है, वहीं सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार और पेपर लीक जैसी घटनाओं ने युवाओं का विश्वास गहरा आहत किया है।
  • पर्यावरण संकट – हिमालय की अस्थिर पारिस्थितिकी संकट बढ़ा है। बढ़ते तापमान और अत्यधिक मानसून की वजह से भूस्खलन, बादल फटने जैसे प्रकोप बढ़े हैं। 2025 की मानसून में यहाँ 65% दिनों पर असामान्य मौसम की घटनाएँ हुईं, जिसमें flash floods और landslides में 48 लोगों की मौत हुई और 100 से ज्यादा लापता हो गए। इन आपदाओं ने सड़क, पुल, इन्फ्रास्ट्रक्चर को भी भारी नुक़सान पहुँचाया है। अनियंत्रित पर्यटन, सड़कों का चौड़ीकरण और निर्माण कार्यों से पहाड़ों में भूस्खलन, जलस्रोतों का सूखना और जोशीमठ जैसे भू-धंसाव की घटनाएँ बढ़ी हैं। विकास के नाम पर प्रकृति के संतुलन को बनाए रखना अब बड़ी चुनौती है।

  • सेहत और शिक्षा में विषमता – राज्य के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य-साक्षरता एवं शैक्षणिक सुविधाओं में अंतर है। दुर्गम क्षेत्रों में अस्पताल, स्कूल और उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या कम होने से गुणवत्तापूर्ण सेवाओं में कमी है। यह विषमता नागरिकों के जीवन स्तर पर असर डालती है। पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी स्वास्थ्य केंद्रों की कमी है। डॉक्टरों की तैनाती सीमित है, और गंभीर मरीजों को मैदानों में रेफर करना पड़ता है। ग्रामीण स्वास्थ्य ढाँचे को सुदृढ़ करने की सख्त जरूरत है।

  • क्षेत्रीय असंतुलन – गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों में विकास की रफ़्तार में कभी-कभार अन्तर देखी गई है। कुछ विकास योजनाएँ पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों में संतुलित नहीं पहुंच पातीं, जिससे क्षेत्रीय असंतोष के अल्हड़ स्वर उठते हैं। इन खामियों को दूर करने हेतु सरकार विशेष योजनाएं चला रही है।

  • राजनीतिक अस्थिरता –  राज्य गठन के बाद अब तक कई बार मुख्यमंत्री बदले गए, जिससे दीर्घकालिक योजनाएँ अधूरी रह गईं। राजनीतिक स्थिरता के बिना सतत विकास संभव नहीं। राज्य ने स्थाई पार्टी का नेतृत्व न होना इसके विकास की सबसे बड़ी चुनोती रही, जो भी पार्टी आई उसने केंद्र के इशारों से राज्य का मूलरूप से विकास नहीं किया।   

भविष्य की योजनाएँ

  • सतत विकास व ग्रामीण मॉडल – राज्य सरकार सतत् विकास की राह पर कायम है। उत्तराखंड को ‘हरित और विकसित’ बनाने के लिए कई नई योजनाएँ लाई जा रही हैं। हरित ऊर्जा, नदी संरक्षण और स्मार्ट गांव मॉडल पर कार्य तेज हुआ है।

  • ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा – होमस्टे एवं स्थानीय पर्यटन केंद्रों के विकास पर ध्यान दिया जा रहा है। पर्यटन मंत्री की घोषणा के अनुसार, सीमा के पास बसे जादुंग जैसे गाँवों में होमस्टे बनेंगे और परंपरागत मार्ग (जैसे गार्टांग घाटी) को पुनर्जीवित किया जाएगा। केदारनाथ और हेमकुंड मंदिर तक पहुंच सुविधाजनक बनाने रोपवे प्रोजेक्ट चल रहे हैं, ताकि पर्यटन का लाभ पहाड़ी समुदाय तक पहुंचे।

  • हर्बल और आयुष उद्योग – राज्य की औषधीय जड़ी-बूटियों में भी भविष्य देखा जा रहा है। यमुना वैली जैसे सफल मॉडल को राज्य की अन्य घाटियों में फैलाया जाएगा। उत्तराखंड में हर्बल फार्मिंग और आयुर्वेदिक उद्योग को बढ़ावा देने के लिए नीति बनाई जा रही है, जिससे ग्रामीण महिलाओं की आजीविका मजबूत हो और वृक्षारोपण बढ़े।

  • जैविक कृषि और बागवानीजैविक खेती को विशेष प्राथमिकता दी गई है। केंद्र सरकार द्वारा पहाड़ के राज्यों में जैविक खेती के लिए 1500 करोड़ रुपये के पैकेज की मंजूरी दी गई है, जिससे 10,000 से अधिक ऑर्गैनिक क्लस्टर बनाये जा रहे हैं। उत्तराखंड अपनी शुद्ध भौगोलिक स्थितियों का लाभ उठाकर ऑर्गेनिक और कृषिगुरुकुली मॉडलों को बढ़ावा दे रहा है।

  • युवा स्वरोजगार और कौशल विकास – राज्य में युवाओं को स्वरोजगार देने के लिए पर्यटन सहित विभिन्न क्षेत्रों में योजनाएं चालू हैं। उदाहरण के लिए, “वीर चंद्र सिंह गढ़वाली पर्यटन स्वरोजगार योजना” युवाओं को पर्यटन क्षेत्र में स्वरोजगार के लिए ऋण और प्रशिक्षण प्रदान करती है। साथ ही तकनीकी शिक्षा और कौशल केंद्र खोले जा रहे हैं, ताकि पलायन कम हो और युवा स्थानीय स्वरोजगार से जुड़ें।

  • प्रदेश की एकता और समर्पण – भविष्य की योजनाओं का स्वर भी स्थानीय पहचान और पर्यावरण संतुलन के साथ जोड़ा जा रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के प्रयास हैं कि “उत्तराख़ण्ड को देश का आदर्श राज्य बनाएँ”। राज्य आंदोलन के शहीदों की याद में बनी ये योजनाएँ उनकी भावनाओं को भी आत्मसात करती हैं और एक प्रेरणादायक संदेश देती हैं।

उत्तराखंड ने अपनी स्थापना के बाद दर्जनों कदम उठाये हैं — पर्यटन, शिक्षा, बुनियादी ढांचा तथा सामाजिक विकास में। फिर भी, उसकी यात्रा अभी पूरी नहीं हुई है। अगर राज्य वास्तव में समता-परक विकास चाहता है, तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि पहाड़ी और ग्रामीण क्षेत्र-उद्योग, शिक्षा-स्वास्थ्य एवं अवसरों की दृष्टि से पीछे न रहें। इस स्थापना-दिवस पर यह निष्कर्ष विशेष रूप से महत्वपूर्ण है: उपलब्धियों पर संतोष करना ठीक है, पर चुनौतियों को दृष्टिगत रखकर योजना-निर्धारण, लोकसंवाद और स्थायी नीति-गत बदलाव करना महत्वपूर्ण है।

उत्तराखंड के युवाओं ने हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है – चाहे सेना हो, प्रशासन, खेल या शिक्षा। लेकिन जब मेहनती युवा “पेपर लीक माफिया” के कारण नौकरी से वंचित हो जाते हैं, तो यह केवल व्यक्तिगत हानि नहीं होती, यह राज्य की प्रतिभा और विश्वास का नुकसान होता है।

राज्य के 25 वर्षों के इस मोड़ पर, सरकार और समाज दोनों को यह समझना होगा कि 

“सच्चा विकास केवल सड़कों और इमारतों से नहीं होता,
बल्कि तब होता है जब हर मेहनती युवा को उसका हक़ — ईमानदारी से — मिलता है।”

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