Uttarakhand GK in Hindi - Page 2

UKPSC Lecturer Syllabus (Mathematic)

उत्तराखण्ड विशेष अधीनस्थ शिक्षा (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा (सामान्य तथा महिला शाखा)

द्वितीय चरण (विषयवार लिखित परीक्षा – वस्तुनिष्ठ प्रकार) पाठ्यक्रम

विषय प्रश्नों की संख्या अधिकतम अंक समय अवधि
गणित 200 200 03 घण्टे

नोटः-  लिखित परीक्षा में मूल्यांकन हेतु ऋणात्मक पद्धति प्रयुक्त की जाएगी।

परीक्षा पाठ्यक्रम (गणित)

यूनिट – 1

1. समुच्चय सिद्धान्त : समुच्चय सिद्धान्त, रिक्त एवं परिमित समुच्चय, उपसमुच्चय, घात समुच्चय, सार्वत्रिक समुच्चय, वैन आरेख, सम्मिलन, सर्वनिष्ठ व अन्तर समुच्चय, समूह, उपसमूह, सामान्य उपसमूह, भागफल समूह, समाकारिता, चक्रीय समूह, क्रमचय समूह, कैलीज प्रमेय, सायलो प्रमेय, वलय ।

2. सम्बन्ध एवं फलन : सम्बन्ध एवं फलन, समुच्चयों का कार्तीय गुणन, समबन्ध का प्रांत, सहप्रांत तथा परिसर, एक फलन का एक समुच्चय से दूसरे समुच्चय से में विशेष प्रकार का सम्बन्ध । फलन, प्रांत, सहप्रांत तथा परिसर का चित्रण । विभिन्न प्रकार के फलन एवं उनके ग्राफ ।

यूनिट – 2

3. गणितीय आगमन : गणितीय आगमन का सिद्धान्त तथा साधारण अनुप्रयोग, समिश्र संख्यायें तथा द्विघातीय समीकरण, समिश्र संख्याओं की आवश्यकता, समिश्र संख्याओं के गुण, आर्गड तल और ध्रुवीय निरूपण । बीजगणित की आधारीय प्रमेय, समिश्र संख्याओं के निकायों के द्विघातीय समीकरण का हल । समिश्र संख्याओं का वर्गमूल ।

4. रैखिक असमिकाएँ : रैखिक असमिकाएँ, एक चर राशि के रैखिक असमिकाओं का बीजगणितीय हल और उनका अंक रेखा पर आलेखीय निरूपण । दो चर राशियों की असमिका निकाय का हल ।

5. क्रमचय और संचय : क्रमचय और संचय, गणना का आधार भूत सिद्धान्त, n! फलन, क्रमचय तथा संचय के सूत्रों का प्रतिपादन तथा उनमें सम्बन्ध, साधारण अनुप्रयोग। धन पूर्णांकों के लिये द्विपद प्रमेय। साधारण अनुप्रयोग ।

6. अनुक्रम तथा श्रेणी : समातंर श्रेणी, गुणोत्तर श्रेणी, इन श्रेणियों का व्यापक पद, गुणोत्तर श्रेणी के n पदों का योग, अनन्त गुणोत्तर श्रेणी तथा उनका योग, समांतर माध्य तथा गुणोत्तर माध्य में सम्बन्ध ।

यूनिट – 3

7. द्वि-विमीय निर्देशांक ज्यामिती: सरल रेखायें, मूल बिन्दू का स्थानान्तरण, रेखा का व्यापक समीकरण, रेखा के समीकरण के विविध रूप। दो सरल रेखाओं के कटान बिन्दू से गुजरने वाली सरल रेखाओं की फैमिली का समीकरण, एक बिन्दू की सरल रेखा से दूरी । वृत्त, परवलय, दीर्घवृत्त, अति परवलय, अपभ्रष्ट शंकु परिच्छेद । परवलय, दीर्घवत्त तथा अति परवलय की मानक समीकरणें तथा उनके गुण । वृत्त की मानक समीकरण ।

8. त्रि – विमीय ज्यामिति : त्रिविमीय अंतरिक्ष में निर्देशांक्ष और निर्देशांक्ष तल । अंतरिक्ष में एक बिन्दु के निर्देशांक, दो बिन्दुओं के बीच की दूरी तथा विभाजन सूत्र तथा उनका दिशीय कोज्या / भिन्न । एक तल की कार्तीय तथा सदिश समीकरण, सहतलीय तथा त्रियक रेखायें। दो रेखाओं के मध्य न्यूनतम दूरी । किसी तल की कार्तीय तथा सदिश समीकरण । क. दो रेखाओं ख. दो तलों ग. एक रेखा तथा एक तल, के मध्य कोण । किसी बिन्दु की तल से दूरी ।

9. सदिश विश्लेषण : सदिश एवं अदिश, सदिश का मापांक एवं दिशा, सदिशों की दिशीय कोज्या/भिन्न । सदिशों के प्रकार, किसी बिन्दु का स्थिति सदिश। सदिश की ऋणात्मकता, सदिशों के अवयव, सदिशों का योग, सदिशों का अदिश से गुणन। उस बिन्दु का स्थिति सदिश जो किसी सरल रेखा के भाग को दिये गये भागों से विभाजित करता है। सदिश का अदिश गुणनफल । किसी रेखा पर सदिश का प्रक्षेपण । सदिशों का सदिश गुणनफल, सदिशों का त्रिअदिश गुणनफल ।

यूनिट – 4

10. सांख्यिकी एवं प्रायकिता : प्रकीर्णन की माप, माध्य विचलन, सामूहिक तथा असामूहिक आकड़ों का प्रसरण और विचलन । समान माध्यों तथा असमान प्रसरणों वाले बारंबारता बंटनों का विश्लेषण । प्रतिदर्श समष्टि तथा घटनायें । कालजयी, अनुभव एवं मान्यताओं पर आधारित प्रायकिता की परिभाषा। घटनाओं का घटित होना ‘not’, ‘and’ और ‘or’ घटनायें । परिभाषा । स्वतन्त्र घटनायें, प्रतिबन्धित प्रायकिता, बेज प्रमेय, असंगत तथा संगत एक चरीय बंटन, नाम है:- द्विपद, प्यॉजन तथा प्रसामान्य ।

11. आव्यूह एवं सारणिक : आव्यूहों के प्रकार, सममित तथा विषम सममित आव्यूह, आव्यूहों पर संक्रियायें तथा उनके गुण, व्युत्क्रमणीय आव्यूह तथा व्युत्क्रम आव्यूह की अद्वितीयता । आव्यूह का सारणिक, गुण, उपसारणिक, सहखंड तथा अनुप्रयोग। सहखंडज तथा व्युक्रम आव्यूह । रैखिक समीकरणों के निकायों के हल तथा उदाहरण । व्युत्क्रम आव्यूह के प्रयोग से दो या तीन चरों वाले रैखिक समीकरणों के निकायों का हल ।

यूनिट – 5

12. अवकलन : फलन का अवकलन, सांतव्य और अवकलनीयता, फलनों के योग, अन्तर, गुणनफल तथा लब्धि का अवकलज । बहुपदों तथा त्रिकोणमितीय फलनों का अवकलन, समग्र फलनों का अवकलन, श्रंखला नियम, व्युक्रम, त्रिकोणमितिय फलनों का अवकलन, । घातीय तथा लघुगणक फलनों का अवकलन । पैरामीट्रिक रूप के फलनों का अवकलन, द्विकोटिय अवकलन | रॉल्स तथा लैगरेंजिस—मीन वैल्यू प्रमेय तथा उनकी ज्यामितीय व्याख्या। स्पर्शी व लम्ब रेखाओं, अनुमान व अधिकतमता निकालने में अवकलनों का अनुप्रयोग। साधारण समस्याएं।

13. समाकलन : समाकलन, प्रतिस्थपन, आशिंक भिन्न तथा भागों द्वारा समाकलन, सम्बन्धित उदाहरण । किसी फलन के योग सीमा के रूप में निश्चित समाकलन। समाकलन आधारीत मूलभूत प्रमेय, निश्चित समाकलन के मूलभूत गुण तथा मूल्यांकन । समाकलन के अनुप्रयोग द्वारा साधारण वक्रों के नीचे का क्षेत्रफल ज्ञात करना ।

14. अवकलन समीकरण : परिभाषा, आर्डर एवं डिग्री और अवकलन समीकरणों का व्यापक तथा विशेष हल, दिये गये हल से अवकल समीकरण बनाना, चरों की पृथक्करण विधि द्वारा अवकलन समीकरणों का हल । प्रथम आर्डर तथ प्रथम डिग्री वाली समान कोटि पद की अवकलन समीकरण का हल । रैखियक साधारण अवकलन, समीकरणों का हल, सजातीय तथा असजातीय रैखिक अवकलन समीकरणों का हल, पैरामीटर विविधता, द्वि-आर्डर की आंशिक अवकल समीकरणों का लैग्रैन्जे तथा चारपिट्स विधियों द्वारा हल । प्रथम आर्डर की आंशिक अवकल समीकरण से संबंध कौशी प्रश्न, द्वितीय आर्डर की आंशिक अवकल समीकरण का वर्गीकरण ।

15. रैखिक प्रोग्रामिंग : रैखिक प्रोग्रामिंग समस्याओं का गणितीय सूत्रीकरण विभिन्न प्रकार की रैखिक प्रोग्रामन समस्याऐं दो चरों की समस्याओं का ग्राफीय विधि से हल, सम्भव तथा असम्भव क्षेत्र, सम्भव तथा असम्भव हल, इष्टतम सम्भव हल, सिम्पलेक्स विधि, रैखिक प्रोग्रामन समस्याओं का दोहरा रूप, डुवल सिम्प्लेक्स विधि ।

यूनिट – 6

16. विचरण कलन : फलन का विचरण, आयलर – लैंगरेन्ज समीकरण, चरण के लिये आवश्यक एवं पर्याप्त प्रतिबन्ध, साधारण एवं आंशिक अवकलन समीकरणों के सीमा मान समस्याओं में विचरण विधि ।

17. संख्यात्मक विश्लेषण : बीजगणितीय समीकरणों का संख्यात्मक हल, इट्रेशन तथा न्यूटन-रैफ्सन विधियां, अभिसरण दर, गौस–एलीमिनेशन तथा गास-सिडल विधियों द्वारा रैखिक बीजगणितीय समीकरणों का हल, परिमित तथा अपरिमित अन्तरों मं अंतर्वेशन । आईवीपी का हल ।

 

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UKPSC Lecturer Syllabus (Chemistry)

उत्तराखण्ड विशेष अधीनस्थ शिक्षा (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा (सामान्य तथा महिला शाखा)

द्वितीय चरण (विषयवार लिखित परीक्षा – वस्तुनिष्ठ प्रकार) पाठ्यक्रम

विषय प्रश्नों की संख्या अधिकतम अंक समय अवधि
रसायन विज्ञान 200 200 03 घण्टे

नोटः-  लिखित परीक्षा में मूल्यांकन हेतु ऋणात्मक पद्धति प्रयुक्त की जाएगी।

परीक्षा पाठ्यक्रम (रसायन विज्ञान)

खण्ड – अ (अकार्बनिक रसायन)

1. परमाणु संरचना :   इलेक्ट्रॉन का व्यवहार, क्वाण्टम संख्याऐं, कक्षक एवं उनकी आकृति, विभिन्न कक्षकों में इलेक्ट्रॉनों को भरने हेतु नियम, तत्वों के इलेक्ट्रॉन विन्यास ।

2. तत्वों का आवर्ती वर्गीकरण एवं परमाणुक गुणधर्म : आधुनिक आवर्ती नियम तत्वों के गुण धर्मो में आवर्तता एवं लॉरेन्सियम के बाद के तत्वों को सम्मिलित करते हुए आवर्त सारणी का विस्तारित रूप, आवर्त सारणी में खण्डों के आधार पर तत्वों के प्रकार (s, p, d, f – खण्ड), परमाणुक गुण धर्म-परमाणुक एवं आयनिक त्रिज्याऐं, आयनन विभव, इलेक्ट्रॉन बन्धुता, विद्युतऋणीयता ।

3. रासायनिक आबंधन:
आयनिक आबन्ध – आयनिक ठोस, सामान्य आयनिक यौगिकों की निविड संकुलित संरचना, आयनिक ठोसों का वर्गीकरण एवं उनके गुण धर्म, आयनिक ठोसों में अपूर्णता ।

सह संयोजक आबन्ध – संयोजकता बन्ध सिद्धान्त, संकरण की संकल्पना, सिग्मा एवं पाई आबन्ध, संयोजकता कोश इलेक्ट्रॉन युग्म प्रतिकर्षण सिद्धान्त एवं सामान्य अकार्बनिक अणुओं की आकृति, आणविक कक्षक सिद्धान्त का सामान्य विवरण, सम एवं विषम नाभिकीय द्विपरमाणुक अणुओं के लिए आणविक कक्षक ऊर्जा स्तर आरेख, बन्ध कोटि, अन्योन्य दुर्बल क्रियाऐं – हाइड्रोजन आबन्ध एवं वाण्डर वाल बल ।

4. रेडियोधर्मिता एवं नाभिकीय रसायन
रोडियोधर्मिता – रोडियोधर्मी पदार्थो के विघटन का सिद्धान्त कणों / किरणों का उत्सर्जन, सॉडी-फायां का वर्ग विस्थापन नियम, रेडियो धर्मी तत्वों के विघटन की दर, विघटन स्थिरांक, अर्द्ध आयु एवं औसत आयु ।

कृत्रिम रेडियोधर्मिता – तत्वों का तत्वांतरण, नाभिकीय विखण्डन एवं संलयन, नाभिकीय अभिक्रियाऐं एवं उनको संतुलित करना, नाभिकीय बल, नाभिकीय बन्धन ऊर्जा, नाभिकीय स्थायित्व एवं N / P अनुपात ।

5. आक्सीकरण, अपचयन एवं वैद्युत अपघटन : आक्सीकरण एवं अपचयन की आधुनिक संकल्पना, संयोजकता एवं आक्सीकरण संख्या, आक्सीकारक एवं अपयायक, उनके तुल्यांकी भार, आक्सीकरण – अपचयन अभिक्रियाऐं एवं उनको संतुलित करना ।

6. वर्ग 1 एवं 2 के तत्व –
हाइड्रोजन, क्षार एवं क्षारीय मृदा धातुऐं (s – खण्ड) ।

हाइड्रोजन का आवर्त सारणी में स्थान, हाइड्रोजन अणु के नाभिकीय चक्रण समावयव एवं हाइड्रोजन के भारी समस्थानिक, भारी जल एवं हाइड्रोजन परॉक्साइड ।

s – खण्ड के धातुओं के सामान्य गुणधर्म, रासायनिक क्रियाशीलता एवं वर्ग में प्रवृति, उनके हाइड्राइडों, हेलाइडों एवं आक्साइडों के रासायनिक व्यवहार ।

7. वर्ग 3 से 12 तक के तत्व –
संक्रमण एवं अन्तः संक्रमण तत्व (d एवं f – खण्ड)

आवर्त सारणी में d एवं f – खण्ड के तत्वों का स्थान, d – खण्ड के तत्वों के अभिलक्षणिक गुणधर्म- परिवर्ती आक्सीकरण अवस्थाएं संकुल बनाने की प्रवृति, रंग, चुम्बकीय एवं उत्प्रेरकीय गुणधर्म, 3d, 4d एवं 5d- संक्रमण तत्वों का उनके आयनिक त्रिज्याओं एवं आक्सीकरण अवस्थाओं के संदर्भ में तुलनात्मक अध्ययन, f – खण्ड के तत्वों के अभिलक्षणिक गुणधर्म – लैन्थेनाइड संकुचन, आक्सीकरण अवस्थाऐं, रंग एवं चुम्बकीय गुण धर्म।

8. वर्ग 13 से 18 तक के तत्व (p खण्ड) : सामान्य गुण धर्म, रासायनिक तत्वों की क्रियाशीलता एवं वर्ग में प्रवृति, परिवर्ती आक्सीकरण अवस्थाऐं (निष्क्रिय युग्म प्रभाव), उनके हाइड्राइडों, आक्साइडों एवं हेलाइडों के संदर्भ में रासायनिक व्यवहार । आदर्श गैसों का आवर्त सारणी में स्थान, जेनॉन फ्लुओराइड एवं आदर्श गैसों के उपयोग |

9. धातुओं का निष्कर्षण : अयस्क एवं खनिज, अयस्कों का सान्द्रण, धातुओं के निष्कर्षण एवं निर्मलीकरण की सामान्य विधियाँ

10. उपसहसंयोजन रसायन : उपसहसंयोजी यौगिको की IUPAC नामकरण पद्धति, उपसहसंयोजक यौगिकों में समावयवता, बन्ध की प्रकृति-VBT, CFT Id कक्षको का अष्टफलकीय चतुष्फलकीय एवं वर्ग समतलीय संकुलों में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन, वैद्युत रासायनिक श्रेणी | दुर्बल एवं प्रबल क्षेत्र अष्टफलकीय संकुलों में d से d तक के लिए CFSE का आगणन, इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण एवं चयन नियम । 3d – संक्रमण धातु संकुलों के इलेक्ट्रॉनिक स्पेक्ट्रा ।

11. जैव अकार्बनिक रसायन : जैविक प्रक्रियाओं में आवश्यक एवं सूक्ष्म (अज्प) तत्व, Nat, K, Mg 2+, Ca2+ धातु आयनों की जैविक भूमिका ।

खण्ड – ब (भौतिक रसायन)

1. ठोस अवस्था : अलग-अलग बंधन बलों के आधार पर ठोसों का वर्गीकरण, एकल सेल में द्विविमीय एवं त्रिविमीय लैटिस, ठोसों का निचयन, क्यूबिक सेल में एकक सेल परमाणुओं की संख्या ।

2. गैसीय अवस्था : गैसों का गतिक सिद्धान्त एवं गैस नियम, मैक्सवैल का गति वितरण नियम, वाण्डर वाल का समीकरण, गैसों का क्रान्तिक व्यवहार, संगत अवस्थाओं का नियम, गैसों की ऊष्मा धारिता

3. द्रव अवस्था एवं विलयन : द्रवों के गुण धर्म – श्यानता, पृष्ठ तनाव एवं वाष्प दाब, राउल्ट का वाष्प दाब अवनमन का नियम, जमाव बिन्दु का अवनमन, क्वथनांक का उन्नयन, परासरण दाब, विलेयों का संगुणन एवं वियोजन

4. रासायनिक बल गतिकी : रासायनिक बल गतिकी, रासायनिक अभिक्रिया की दर, विशिष्ट अभिक्रिया दर, अभिक्रिया की आणविकता एवं कोटि, शून्य कोटि, प्रथम कोटि, द्वितीय कोटि एवं तृतीय कोटि की अभिक्रियाऐं, सक्रियण ऊर्जा, उत्क्रमणीय एवं अनुत्क्रमणीय अभिक्रियाऐं ।

5. रासायनिक साम्य : रासायनिक साम्य, द्रव्य अनुपाती क्रिया नियम एवं इसके अनुप्रयोग। ला शातेलिए का सिद्धान्त एवं उसके अनुप्रयोग।

6. आयनन : वैद्युत वियोजन का सिद्धान्त । आयनन को प्रभावित करने वाले कारक, जल का आयनी गुणनफल एवं आयनन स्थिरांक आयनिक साम्य – ओस्टवाल्ड का तनुता नियम ।

अम्लों एवं भस्मों की धारणायें, विलेयता गुणनफल एवं विश्लेषणात्मक रसायन में इसके अनुप्रयोग । लवण का जल अपघटन |

7. pH एवं बफर विलयन

8. उत्प्रेरण : उत्प्ररण के प्रकार, उत्प्ररकों का वर्गीकरण एवं अभिलक्षण, उत्प्रेरण के सिद्धान्त ।

9. वितरण नियम एवं इसके अनुप्रयोग

10. कॉलाइडी अवस्था

11. ऊष्मा गतिकी एवं ऊष्मा रसायन : ऊष्मा गतिकी में प्रयुक्त पद। ऊष्मा गतिकी का प्रथम नियम । ऊष्मा अंश, ऊष्मा धारिता, ऊष्मा गतिकी का द्वितीय नियम।

ऊष्मा रसायनः अभिक्रिया की ऊष्मा, निर्माण की ऊष्मा, दहन ऊष्मा, उदासीनीकरण ऊष्मा, विलयन की ऊष्मा, नैज (आन्तर) ऊर्जा, हेस का स्थिर ऊष्मा संकलन नियम ।

खण्ड – स (कार्बनिक रसायन)

1. सामान्य कार्बनिक रसायन विज्ञान: काबर्निक योगिकों का वर्गीकरण एवं नामकरण, इलेक्ट्रानिक विस्थापन – प्रेरणिक, इलैक्ट्रोमरी तथा मेसोमरी प्रभाव । अनुनाद, अति संयुग्मन एवं कार्बनिक यौगिको के लिये इनका अनुप्रयोग। इलेक्ट्रान स्नेही, नाभिक स्नेही, कार्बोकेटायन, कार्बनआयन एवं मुक्त मूलक । कार्बनिक अम्ल तथा क्षार । कार्बनिक अम्लों तथा क्षारों की क्षमता पर संरचना का प्रभाव । हाईड्रोजन बंध तथा कार्बनिक यौगिको के गुणों पर इसका प्रभाव ।

2. त्रिविमरसायनः सममिति के तत्व, साधारण कार्बनिक यौगिकों में प्रकाशीय तथा ज्यामितीय समायवता । संपूर्ण विन्यास (R तथा S), ज्यामीतीय समावययों के विन्यास, E तथा Z संकेतन । साइक्लोहेक्सेन, एकल तथा द्विप्रतिस्थापित साइक्लोहेक्सेनों के संरूपण एवं स्थायित्व ।

3. एलिफैटिक यौगिक : निम्नलिखित वर्ग के साधारण कार्बनिक यौगिकों के रसायन जिसमें विशेषकर उन अभिक्रियाओं की क्रियाविधि के संदर्भ में उल्लेख हो जो इन योगिकों के साथ हो रही हो; एल्केन, एल्कीन, एल्काइन, एल्किल हैलाइड, एल्कोहल, ईथर, थायोल, एल्डिहाइड, कीटोन, कार्बोक्सली अम्ल, एमीन एवं उनके व्युत्पन ।

4. सगंध यौगिक : बेन्जीन की आधुनिक संरचना एरोमैटिसिटी की धारणा, हकल नियम तथा इसका अबेंजीनीय एरोमैटिक एवं हेट्रोसाइक्लीक यौगिकों के लिये साधारण अनुप्रयोग । प्रतिस्थापित समूहों का सक्रियण तथा निष्क्रयण एवं दैशिक प्रभाव । बेंजीन वलय से जुड़े निम्नलिखित समूहों वाले यौगिकों का रसायन शास्त्र, हैलोजेन, हाईड्राक्सी, नाइट्रो एमीनो एल्डिहाइडी, कीटोनी एवं कार्बोक्सीलि समूह ।

5. नाम अभिक्रियायें, पुर्नविन्यास एवं क्रियाविधि : रीमर टीमन अभिक्रिया विलसमीर अभिक्रिया, शार्पलेस इपोक्सीकरण, बार्टन अभिक्रिया, फवोरस्की अभिक्रिया एवं वागनर – मीरवाइन पुर्नविन्यास एवं बेकमैन पुनर्विन्यास।

6. कार्बोहाड्रेट : मोनोसेक्राइड का वर्गीकरण एवं सामान्य अभिक्रियायें ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं सुक्रोज के रासायनिक गुण एवं संरचना ।

7. प्राकृतिक उत्पाद : टर्पीनॉयड एवं एल्कलॉएड के संरचना निर्धारण की सामान्य विधियां ।

8. तेल, वसा, अमिनो अम्ल, प्रोटीन, विटामिन्स का सामान्य रासायनिक अध्ययन एवं इनकी पोषण तथा उद्योग में भूमिका।

9. कार्बनिक बहुलक : बहुलीकरण की क्रियाविधि, बहुलकों का औद्योगिक महत्व, संश्लेषित रेशे।

10. कार्बधात्विक योगिक : लिथियम, मैग्निशियम एवं जिंक के कार्बधात एवं उनके सिंथेटिक अनुप्रयोग ।

11. स्पेक्ट्रोस्कोपी : स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीकी से सम्बन्धित बुनियादी सिद्धान्त एवं उपयोग पराबैंगनी, दृश्य अवरक्त, नाभिकीय चुम्बकीय अनुनाद ।

12. वर्णलेखी विज्ञान : वर्णलेखी प्रविधियों का वर्गीकरण, अधिशोषण, विभाजन, आयन विनियम, कागज वर्ग तथा विरल परत वर्ग लेखन के सामान्य सिद्धांत ।

13. पर्यावरणीय रसायन विज्ञान : वायु प्रदूषक एवं उनके विषाक्त प्रभाव, ओजोन परत का क्षरण, नाइट्रोजन के आक्साइड का प्रभाव, क्लोरों-फ्लोरों कार्बन तथा ओजोन परत पर उसका प्रभाव, ग्रीन हाउस प्रभाव, अम्ल वर्षा, पर्यावरणीय प्रदूषण के नियन्त्रण की व्यूह रचना ।

 

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UKPSC Lecturer Syllabus (Physics)

उत्तराखण्ड विशेष अधीनस्थ शिक्षा (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा (सामान्य तथा महिला शाखा)

द्वितीय चरण (विषयवार लिखित परीक्षा – वस्तुनिष्ठ प्रकार) पाठ्यक्रम

विषय प्रश्नों की संख्या अधिकतम अंक समय अवधि
भौतिक शास्त्र 200 200 03 घण्टे

नोटः-  लिखित परीक्षा में मूल्यांकन हेतु ऋणात्मक पद्धति प्रयुक्त की जाएगी।

परीक्षा पाठ्यक्रम (भौतिक शास्त्र)

यूनिट 1: शुद्धगतिकी

निर्देश तंत्र। एक सरल रेखा में गति । समान तथा असमान गति, सामान रूप से त्वरित गति, गति-समय, स्थिति – समय ग्राफ, एक समान त्वरित गति के लिए संबंध।

गति का वर्णन करने के लिए अवकलन और समाकलन की प्राथमिक अवधारण, अदिश और सदिश राशियाँ,

स्थिति और विस्थापन सदिश सामान्य सदिश और संकेत । सदिश की समानता इकाई सदिश, एक समतल-आयताकार घटकों में सदिश का विभेदन, समतल में गति, एक समान वेग और एकसमान त्वरण – प्रक्षेपी गति, एक समान वृत्तीय गति।

यूनिट 2: गति के नियम

बल की अवधारणा, जडत्व, जड़ता, न्यूटन का गति का पहला नियम न्यूटन का गति का दूसरा नियम, आवेग, न्यूटन का गति का तीसरा नियम, रैखिक संवेग संरक्षण का नियम और इसके अनुप्रयोग, स्थितिज और गतिज घर्षण, घर्षण के नियम, रोलिंग घर्षण, एक समान वृत्ताकार गति की गतिकी, अभिकेन्द्रीय बल और इसके उदाहरण |

यूनिट 3: स्थिर वैद्युतिकी

वैद्युत आवेश, कूलॉम का नियम, वैद्युत क्षेत्र, एक बिंदु आवेश के कारण विद्युत क्षेत्र, आवेश वितरण तथा द्विध्रुव, एक समान वैद्युत क्षेत्र के कारण द्विध्रुव पर आघूर्ण, वैद्युत फ्लक्स, गाउस का प्रमेय और उसके अनुप्रयोग, वैद्युत विभव, विभवान्तर, वैद्युत विभव के ऋणात्मक ग्रेडिएण्ट के रूप में वैद्युत क्षेत्र, एक बिन्दु आवेश के कारण वैद्युत विभव, द्विध्रुव, आवेश वितरण और आवेशों के निकाय, समविभव सतह, दो बिन्दु आवेशों के निकाय की और स्थिर वैद्युत क्षेत्र में रखें वैधुतद्विध्रुव की वैधुत स्थितिज उर्जा।

चालक और कुचालक, परावैद्युतांक और वैद्युत ध्रुवीकरण, संधारित्र और धारिता, एक समानांतर प्लेट संधारित्र के लिए प्लेटस के बीच में परावैधुत के साथ और बिना परावैद्युत के धारिता, एक संधारित्र में जमा ऊर्जा, वैन डी-ग्राफ जेनरेटर।

 यूनिट 4: वैद्युत चालन

वैद्युत धारा, किसी धात्विक चालक में आवेश का प्रवाह, अपवाह वेग, गतिशीलता तथा इनका धारा से सम्बन्ध, वैद्युत चालन का लोरेन्ज – ड्रयूड सिद्धान्त, विडामैन- फ्रैंज का नियम, ओम का नियम, वैद्युत ऊर्जा और शक्ति, वैद्युत प्रतिरोधकता तथा चालकता, कार्बन प्रतिरोधक, कार्बन प्रतिरोधोंकों के लिए रंग कोड, प्रतिरोध की ताप पर निर्भरता, किरचॉफ के नियम और उनके अनुप्रयोग।

यूनिट 5: धारा के चुम्बकीय प्रभाव तथा चुम्बकत्व

बायो–सैवर्ट का नियम और उसके अनुप्रयोग, एम्पीयर का नियम और उसके अनुप्रयोग, एक समान चुम्बकीय और वैद्युत क्षेत्र में गतिमान आवेश पर बल, साइक्लोट्रोन, एक समान चुम्बकीय क्षेत्र में रखे धारावाही चालक पर बल, दो समानांतर धारावाही चालकों के बीच बल, चल कुण्डल गैल्वेनोमीटर और उसका अमीटर और वोल्टमीटर में रूपांतरण, धारा लूप – एक चुम्बकीय द्विध्रुव के रूप में तथा इसका चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण, परिभ्रमण करते इलेक्ट्रान का चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण, किसी चुम्बकीय द्विध्रुव के कारण उसकी धुरी के अक्ष के अनुदिश तथा धुरी के अक्ष के अभिलम्वत चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता, एक समान चुम्बकीय क्षेत्र में चुम्बकीय द्विध्रुव के कारण बल-आघूर्ण, चुम्बकीय क्षेत्र रेखाऐं, अनुचुम्बकीय प्रतिचुम्बकीय तथा लोह – चुम्बकीय पदार्थ और इनके उदाहरण, विद्युत चुम्बक और उसकी शक्तियों को प्रभावित करने वाले कारक ।

यूनिट 6: वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण और प्रत्यावर्ती धाराऐं

विद्युत चुम्बकीय प्रेरण, फैराडे का नियम, प्रेरित विद्युत वाहक बल और धारा, लेन्ज का नियम, भंवर धाराऐं, स्व और अन्योन्य प्रेरण, प्रत्यावर्ती धाराऐं, प्रत्यावर्ती धारा तथा विभव का शिखर और वर्गमाध्य मूल मान, प्रतिक्रिया और प्रतिबाधा, एल सी आर श्रेणी क्रम और सामानान्तर क्रम परिपथ, अनुनाद प्रत्यावर्ती धारा परिपथों में शक्ति, वाटहीन धारा, प्रत्यावर्ती धारा जनित्र और परिवर्तक ।

यूनिट 7: कार्य, ऊर्जा और शक्ति

कार्य, गतिज ऊर्जा, कार्य-ऊर्जा प्रमेय, शक्ति, किसी स्प्रिंग की स्थितिज ऊर्जा, संरक्षित बल, यांत्रिक ऊर्जा का संरक्षण, गैर-संरक्षित बल, एक और दो आयामों में प्रत्यास्थ और अप्रत्यास्थ टक्कर।

यूनिट 8: गुरूत्वाकर्षण

केपलर के ग्रहों की गति के नियम, गुरूत्वाकर्षण का नियम, गुरुत्वीय त्वरण तथा इसका सीधी ऊँचाई तथा गहराई के साथ परिवर्तन, गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा, गुरुत्वीय विभव, पलायन वेग, उपग्रह का कक्षीय वेग, भूस्थिर उपग्रह।

यूनिट 09: वैद्युत चुम्बकीय तरंगे

विस्थापन धारा, वैद्युत चुम्बकीय तरंगें और उनकी अभिलक्षणतायें, वैद्युत चुम्बकीय तरंगों की अनुप्रस्थ प्रकृति, वैद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम मुक्त आकाश और रेखिय समदैशिक माध्यम में मैक्सवेल के समीकरण, अन्तरफलक पर क्षेत्र के लिए परिसीमा प्रतिबंध,

सदिश और अदिश विभव, प्रमापी निश्चरता, मुक्त आकाश में वैद्युत चुम्बकीय तरंगें, प्वाइन्टिंग सदिश, प्वाइन्टिंग प्रमेय, वैद्युत चुम्बकीय तरंगों की ऊर्जा और संवेग ।

यूनिट 10: प्रकाशीकी 

प्रकाश का परावर्तन, गोलाकार दर्पण, दर्पण सूत्र, प्रकाश का अपवर्तन, पूर्ण आंतरिक परावर्तन और उसके अनुप्रयोग, प्रकाशीय फाइबर, गोलाकार सतहों से अपवर्तन, लेंस पतले लेंस का सूत्र, लेन्समेकर्स का सूत्र, आवर्धन क्षमता, लेंस की शक्ति, सम्पर्क में रखे पतले लेंसों का संयोजन, प्रिज्म द्वारा प्रकाश का अपवर्तन और परिक्षेपण, प्रकाश का प्रकीर्णन – आकाश का नीला रंग और सूर्योदय और सूर्यास्त में सूरज की लाल प्रतीति ( दिखावट) ।

प्रकाशीय यंत्र, मानव आँख, छवि निर्माण और समंजन, लेंसो के द्वारा आखों के दोषों में सुधार, सूक्ष्मदर्शी और खगोलीय दूरबीन और उनकी आवर्धक शक्तियाँ । तरंग प्रकाशीकीः तरंगाग्र और हाइगेन्स का सिद्धान्त, किसी समतल तरंग के समतल पृष्ठ से तरंगाग्र का उपयोग करते हुए परावर्तन और अपवर्तन, हाइगेन्स के सिद्धान्त का उपयोग कर परावर्तन और अपवर्तन के नियमों को सिद्ध करना, व्यतिकरण, यंग का द्विस्लीट प्रयोग और फ्रिंज की चौड़ाई का सूत्र, कलासंबद्ध स्रोत और प्रकाश का प्रतिपालित व्यतिकरण, एकल स्लिट के द्वारा विवर्तन, केन्द्रीय महत्तम की चौड़ाई, सूक्ष्मदर्शी और खगोलीय दूरबीनों की विभेदन क्षमता, ध्रुवीकरण, समतल ध्रुवित प्रकाश, ब्रेवस्टर का नियम, समतल ध्रुवित प्रकाश के उपयोग और पोलोराइड्स ।

यूनिट 11: पदार्थ और विकिरण की द्वैत प्रकृति

विकिरण की द्वैत प्रकृति, प्रकाश-वैद्युत प्रभाव, हर्त्स और लिनार्ड की टिप्पणियॉ, आइंस्टीन का प्रकाश वैद्युत प्रभाव का समीकरण, प्रकाश की कण प्रकृति, पदार्थ तरंगे, कणों की तरंग प्रकृति, द ब्रोग्ली सम्बन्ध, डेविसन – जरमर का प्रयोग, तरंग और कण की द्वैत प्रकृति, तरंग फलनों का निर्देशांक और संवेग निरूपण, क्रमविनिमक और हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धान्त, स्थिति वेक्टर के लिए डिराक की अंकन (नोटेशन), श्राउदींगर समीकरण (समय निर्भर और समय अनिर्भरता), अभिलक्षणिक मान प्रश्न ( बाक्स में कण, प्रसंवादी दोलन इत्यादि), किसी प्रतिबाधा से टनलिंग।

यूनिट 12: परमाणु और नाभिक

अल्फा कण प्रकीर्णन का प्रयोग, रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल, बोहर मॉडल, ऊर्जा स्तर, हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम, नाभिक की संरचना और आकार, परमाणु द्रव्यमान, समस्थानिक, समदाबी और आइसोटोन्स, रेडियोधर्मिता, अल्फा, बीटा और गामा कण और उनके गुण, रेडियोधर्मी क्षय नियम, द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध, द्रव्यमान क्षति, बन्धन ऊर्जा प्रति न्यूक्लियॉन और द्रव्यमान संख्या के साथ इसकी परिवर्तनशीलता, परमाणु विखण्डन, परमाणु रिएक्टर, परमाणु संलयन।

यूनिट 13: इलेक्ट्रॉनिक उपकरण

अर्द्धचालक, अर्द्धचालक डायोड, डायोड रेगुलेटर की तरह, प्रकाश उर्त्सजक डायोड, फोटो डायोड, सौर सेल और जेनर डायोड, जेनर डायोड एक विभव रेगुलेटर की तरह, संधि ट्रांजिस्टर, ट्राजिस्टर क्रिया, ट्रांजिस्टर की अभिलाक्षणतांयें, ट्रांजिस्टर एक प्रर्वधक और दोलित्र की तरह, संख्या प्रणालीः द्विआधारी, आक्टल, हेक्साडेसिमल, बीसीडी कोड, ग्रे कोड, द्वि अंकी बीजगणित, डी-मॉर्गन का नियम, तर्क परिपथः OR -द्वार, AND द्वार, NOT – द्वार, NAND – द्वार, NOR – द्वार, और XOR – द्वार, अंकीय तकनीकों और अनुप्रयोगों (रजिस्टरों, काउटर, तुलनिन और समान परिपथ), परिचालनात्मक प्रवर्धक और उनके अनुप्रयोग।

यूनिट 14: संचार प्रणाली

संचार प्रणाली के तत्व, संकेतों की बैण्ड चौड़ाई, संचार माध्यम की बैण्ड चौड़ाई, वायुमण्डल में वैद्युत चुम्बकीय तरंगों का प्रसार, आकाश और अतंरिक्ष तरंग प्रसार, मॉडुलन की आवश्यकता, आयाम संग्राहक तरंग का उत्पादन और प्राप्त करना, संगणक और संचार, संचार नेटवर्क की आवश्यकता, इन्टरनेट, बर्ल्ड वाइड वेब, संचार प्रोटोकॉल, लोकल एरिया नेटवर्क ।

यूनिट 15: परमाणु और आणविक भौतिकी

किसी परमाणु में इलेक्ट्रान की क्वांटम स्थिति, इलेक्ट्रॉन स्पिन, हुंड का नियम, पाँली का बहिष्कार सिद्धान्त, स्टर्न-गेर्लाच का प्रयोग, जीमान प्रभाव, पाष्चेन – बैफ प्रभाव और स्टार्क प्रभाव, एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी, लेजर, सहज और उत्तेजित उत्सर्जन, आइंस्टीन के ए और बी गुणांक, प्रकाशिक पंपन, जनसंख्या व्युत्क्रमण, दर समीकरण, अनुनादों के प्रकार और संबद्धता लम्बाई।

यूनिट 16: संघनित पदार्थ भौतिकी

ब्रेवेस जालक, व्युत्क्रम जालक, विवर्तन और संरचना का कारक, ठोस पदार्थों में बन्धन, प्रत्यास्थ गुणधर्म, फोनोन, जालक विशिष्ट ऊष्मा, मुक्त इलेक्ट्रॉन सिद्धान्त और इलेक्ट्रॉन विशिष्ट ऊष्मा, अनुक्रिया और श्रांति की घटनाए, तापीय चालकता का डोड माडल, ठोसों का बन्धन सिद्धान्तः चालक, अर्द्धचालक और कुचालक, अति चालकता ।

यूनिट 17: नाभकीय और कण भौतिकी

मौलिक परमाणु गुण : आकार, आकृति और आवेश वितरण, स्पिन और समता, बन्धन ऊर्जा, सेमि-आनुभाविक संहति सूत्र, द्रव बूंद माडल, नाभिकीय बल की प्रकृति, परमाणु त्वरक और डिटेक्टर, मौलिक कणों का वर्गीकरण, मूल इन्टेरैक्शन्स, प्राथमिक कण और उनकी क्वांटम संख्याएं, सममितता और संरक्षण नियम, लेप्टान और बेरियान संख्याऐं, जेलमान-निशिजीमा सूत्र, क्वार्क मॉडल ।

यूनिट 18: भौतिकी के गणितीय तरीके

सदिश बीजगणित और सदिश कलन, गौस, स्टोक्स और ग्रीन के प्रमेय, आव्यूहः लांबिक, एकात्मक और हेर्मिटियन आव्यूह, आव्यूह के अभिलक्षणिक मान और अभिलक्षणिक सदिश, विशिष्ट फलन (लीजेंड्रे, बेसेल, हर्मिट और लेग्रेरे फलन), प्रदिशः सहपरिवर्ती, प्रतिपरिवर्त और मिश्रित प्रदिश, एपिसलॉन, क्रिस्टोफेल और रिची प्रदिश ।

यूनिट 19 : क्लासीकल यांत्रिकी

डी- अलेम्बर्ट का सिद्धान्त, केन्द्रीय बल गति, केप्लर के समीकरण तथा नियम, कृत्रिम उपग्रह, लैग्रेज और पॉजियन कोष्ठक, विहित रूपान्तरण, हैमिल्टन – जैकोबी समीकरण, कोण क्रियाचर, लैग्रेंजियन और हैमिल्टनियन वैधिकता और गति के समीकरण, सापेक्षता का विशिष्ट सिद्धान्त-लोरेन्ट्र्ज रूपान्तरण, सापेक्षित शुद्धगतिकी और द्रव्यमान-ऊर्जा तुल्यता।

यूनिट 20: ऊष्मागतिकी

ऊष्मागतिकी का शून्य नियम, ऊष्मा, कार्य और आन्तरिक ऊर्जा, ऊष्मागतिकी का पहला व दूसरा नियम, प्रतिवर्ती और अपरिवर्तनीय प्रक्रियाएं, ताप इंजन और रेफ्रिजरेटर, ऊष्मागतिक का तीसरा नियम ।

यूनिट 21: परफेक्ट गैस का व्यवहार और गतिक सिद्धान्त

एक परफेक्ट गैस की स्थिति का समीकरण, गैसों का गतिक सिद्धान्त – मान्यताऐं, दाब की अवधारणा, गतिज ऊर्जा और तापमान, गैस अणुओं की आर. एम. एस. गति, स्वतन्त्रता की कोटि, ऊर्जा के समविभाजन का नियम, गैसों की विशिष्ट ऊष्मा के लिए इसके अनुप्रयोग, मध्यमान मुक्त पथ और आवोगाद्रो संख्या ।

यूनिट 22: दोलन तथा तरंग

आवधिक गति, आवधिक फलन, सरल आवर्त गति और इसके समीकरण, अवस्था (फेज), स्प्रिंग का दोलनः बहालशक्ति और बल नियतांक, सरल आवर्त गति में ऊर्जाः गतिज और स्थितिज ऊर्जाऐं, सरल लोलकः लोलक के समय अवधि के लिए अभिव्यक्ति सूत्र, मुक्त, प्रतिप्रभावित (बलात्) और अवमंदित दोलन, अनुनाद, तरंग गति, अनुदैर्ध्य और अनुप्रस्थ तरंगें, तरंग की गति, एक प्रगतिशील तरंग के लिए विस्थापन संबंध, तरंगों का अध्यारोपण सिद्धान्त, तरंगो का परावर्तन, स्ट्रिंग तथा आर्गन पाइपों में खड़ी तरंगें, मौलिक मोड और हार्मोनिक्स, विस्पन्दन, डाप्लर प्रभाव ।

 

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UKPSC Lecturer Syllabus (Sanskrit)

उत्तराखण्ड विशेष अधीनस्थ शिक्षा (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा (सामान्य तथा महिला शाखा)

द्वितीय चरण (विषयवार लिखित परीक्षा – वस्तुनिष्ठ प्रकार) पाठ्यक्रम

विषय

प्रश्नों की संख्या अधिकतम अंक समय अवधि
संस्कृत 200 200 03 घण्टे

नोटः-  लिखित परीक्षा में मूल्यांकन हेतु ऋणात्मक पद्धति प्रयुक्त की जाएगी।

परीक्षा पाठ्यक्रम (संस्कृत)

1. वैदिक साहित्य
वैदिक साहित्य का इतिहास
वैदिक काल-निर्धारण के विषय में विभिन्न सिद्धान्त – मैक्समूलर ए० बेबर; जैकोबी; बालगंगाधर तिलक; एम्० विन्टरनिट्ट्ट्ज एवं भारतीय परम्परागत विचार।

वेदांग
वेदांगों का सामान्य एवं संक्षिप्त परिचय
शिक्षा; कल्प; व्याकरण; निरुक्त; छन्द; ज्योतिष ।
निरुक्त (अध्याय 1 और 2)
चार पद- नाम का विचार; आख्यात का विचार, उपसर्गों का अर्थ निपातों की कोटियाँ ।
क्रिया के छः रूप (षड्भावविकार)
निरुक्त के अध्ययन के उद्देश्य निर्वचन के सिद्धान्त
निम्नलिखित शब्दों की व्युत्पत्तियाँ
आचार्य, गो, वृत्र, आदित्य, वाक्, नदी, पुत्र, अश्व, अग्नि, जातवेदस्, वैश्वानर, निघण्टु ।

देवता
ऋग्वेद – अग्नि 1.1; 5.8s सवितृ 1.35; 2.38; इन्द्र 1.32; 2.12, रुद्र 1.114, पुरुष सूक्त 10.121; नासदीय 10.129; हिरण्यगर्भ 10.121;
यजुर्वेद – शिवसंकल्प सूक्त 34.1-6;
अथर्ववेद – भूमि सूक्त 12.1;

विषय – वस्तु
संहिता – सामान्य परिचय
ब्राह्मणग्रन्थ – सामान्य परिचय
आरण्यकग्रन्थ – सामान्य परिचय
उपनिषद् – ईश, केन, कठ, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक
वैदिक व्याख्या पद्धति – प्राचीन एवं अर्वाचीन वैदिक एवं लौकिक संस्कृत में अन्तर ।

2. दर्शन
ईश्वरकृष्ण की सांख्यकारिका – सत्कार्यवाद; पुरुष-स्वरूप; प्रकृति स्वरूप; सृष्टि – क्रम; प्रत्ययसर्ग एवं कैवल्य ।
सदानन्द का वेदान्तसार – अनुबन्ध-चतुष्ट्य; अज्ञान; अध्यारोप- अपवाद; विवर्त; जीवनमुक्ति।
केशवमिश्र की तर्कभाषा – पदार्थ; कारण; प्रमाण- प्रत्यक्ष; अनुमान; उपमान; एवं शब्द प्रमाण। जैन दर्शन एवं बौद्धदर्शन का सामान्य अध्ययन।

3. व्याकरण
परिभाषाएंसंहिता; गुण; वृद्धि; प्रातिपदिक; नदी; घि; उपधा; अपृक्त; गति; पद; विभाषा; सवर्ण; टि; प्रगृह्य; सर्वनामस्थान; निष्ठा ।
शब्द रूप- अजन्त हलन्त, सर्वनाम एवं संख्यावाचक शब्द ।
धातु रूप – परस्मैपदी, आत्मनेपदी एवं उभयपदी ।
प्रत्यय – कृत एवं तद्धित प्रत्यय ।
कारक – लघुसिद्धान्तकौमुदी के अनुसार
समास – लघुसिद्धान्तकौमुदी के अनुसार
सन्धिलघुसिद्धान्तकौमुदी के अनुसार

4. संस्कृत एवं उत्तराखण्ड का आधुनिक संस्कृत साहित्य तथा काव्यशास्त्र
पद्यरघुवंश; मेघदूत; किरातार्जुनीय; शिशुपालवध; नैषधीयचरित; बुद्धचरित – सामान्य परिचय
गद्यदशकुमारचरित; हर्षचरित; कादम्बरी; भीष्मचरित; गंगापुत्रावदान – सामान्य परिचय
नाटकस्वप्नवासवदत्ता; अभिज्ञानशाकुन्तल; मृच्छकटिक; उत्तररामचरित; मुद्राराक्षस; रत्नावली; वेणीसंहार – सामान्य परिचय
काव्यशास्त्र
साहित्यदर्पण
काव्य की परिभाषा
काव्य की अन्य परिभाषाओं का खण्डन
शब्दशक्ति – संकेतग्रह; अभिधा; लक्षणा; व्यंजना
रस (रस-भेद स्थायी भावों सहित )
रूपक के प्रकार
नाटक के लक्षण
महाकाव्य के लक्षण

अन्य
रामायण; महाभारत; पुराण; मनुस्मृति; याज्ञवल्क्यस्मृति (व्यवहाराध्याय); कौटिलीय अर्थशास्त्र

 

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UKPSC Lecturer Syllabus (English)

Syllabus of Uttarakhand Special Subordinate Education (Lecturer’s Cader) (General and Female Branch)

Second Stage (Objective Type) Syllabus

Subject No. of  Questions Maximum Marks Time Allowed
English 200 200 03 Hours

Note : –  There will be adopted Negative marking in examination

Exam Syllabus (English)

Unit I – Poetry:
William Wordsworth, John Keats, Tennyson, Matthew Arnold, T.S. Eliot, W.B. Yeats, Stephen Spender, Robert Frost, Sarojini Naidu, A.K. Ramanujan and Kamla Das.

Unit II – Essay:
Francis Bacon, Charles Lamb, William Hazlitt, Bertrand Russel, A.G.Gardiner, M.K. Gandhi, Khushwant Singh and A.P.J. Abdul Kalam.

Unit III – Novel:
Henry Fielding, Thomas Hardy, Virginia Woolf, E.M. Forster, Mulk Raj Anand, R.K. Narayan, Raja Rao, Amitav Ghosh and Arvind Adiga.

Unit IV – Drama:
William Shakespeare, Bernard Shaw, Harold Pinter, Girish Karnad, R.N.Tagore, Vijay Tendulkar and Mahesh Dattani.

Unit V – Short Story:
O’ Henry, Guy de Maupassant, Ernest Hemingway, Shashi Deshpande, Ruskin Bond and Arundhati Roy.

Unit VI – Comprehension of the Text:
1. Prose Passage
2. Poetry Passage (Questions shall be based on the interpretation of theme and style of the two passages)

Unit VII – An Acquaintance with Literary Forms, Terms and Movements
1. Renaissance, Metaphyicals, Gothic Novel, Pre-Raphaelites, Post- Modernism,Existentialism, Deconstruction and Intertexuality.
2. Ballad, Sonnet, Elegy, Ode, Metre, Heroic Couplet, Katharsis, Hamartia, Aside, Chronicle Play and Travelogue.

Unit VIII – Test of Vocabulary :
1. One Word Substitution
2. Antonyms, Synonyms and Homonyms
3. Phrasal verbs and Idioms and Phrases.
4. Spellings.

Unit IX – Application of the Rules of English Grammar:
1. Uses of Tenses and Conditional Sentences.
2. Subject-verb Agreement.
3. Transformation of Sentences.
4. Direct-Indirect Narration.

Unit X – Test of Writing Skills :

1. Parts of Speech and Figures of Speech with their usage in sentences.
2. Technical Aspects of Letter and Report Writing.

 

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UKPSC Lecturer Syllabus (Hindi)

उत्तराखण्ड विशेष अधीनस्थ शिक्षा (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा (सामान्य तथा महिला शाखा)

द्वितीय चरण (विषयवार लिखित परीक्षा – वस्तुनिष्ठ प्रकार) पाठ्यक्रम

विषय प्रश्नों की संख्या अधिकतम अंक समय अवधि
हिन्दी 200 200 03 घण्टे

नोटः-  लिखित परीक्षा में मूल्यांकन हेतु ऋणात्मक पद्धति प्रयुक्त की जाएगी।

परीक्षा पाठ्यक्रम (हिन्दी)

1. हिन्दी साहित्य का इतिहासः पृष्ठभूमि, काल-विभाजन, नामकरण, वर्गीकरण एवं युग प्रवृत्तियाँ

  • आदिकाल (वीरगाथा काल)
  • भक्तिकाल (पूर्वमध्य काल)
  • रीतिकाल (उत्तरमध्य काल)
  • आधुनिककाल (भारतेन्दु युग, द्विवेदी युग, छायावादी युग एवं छायावादोत्तर युग)

2. आदिकालीन हिन्दी काव्यः सिद्धकवि, नाथकवि, जैन मतावलंबी कवि, आदिकाल का वीरगाथात्मक काव्य, आदिकाल के अन्य कवि ।

3. भक्तिकालीन हिन्दी काव्यः संतकाव्यः कवि और कृतियाँ, सूफीकाव्यः कवि और कृतियाँ, राम काव्यः कवि और कृतियाँ, कृष्ण काव्यः कवि और कृतियाँ ।

4. रीतिकालीन हिन्दी काव्यः प्रमुख रीतिबद्ध कवि, प्रमुख रीति सिद्ध कवि, प्रमुख रीतिमुक्त कवि ।

5. आधुनिक हिन्दी साहित्यः (गद्य, पद्य एवं इतर गद्य विधाएँ)

भारतेन्दु युग: काव्यधारा तथा गद्यसाहित्य,

द्विवेदी युग: काव्यधारा तथा गद्यसाहित्य

छायावाद युग: काव्यधारा तथा गद्य साहित्य,

छायावादोत्तरकालः काव्यधारा तथा गद्य साहित्य, प्रगतिवादी काव्य, प्रयोगवादी काव्य, नई कविता, समकालीन कविता, अद्यतन गद्यसाहित्य एवं इतर गद्यविधाएँ (रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रावृतांत, आत्मकथा, जीवनी, रिपोर्ताज, फीचर, पत्र-पत्रिकाएँ तथा रचनात्मक लेखन एवं जनसंचार माध्यम आदि), दलित साहित्य ।

6. भारतीय एवं पाश्चात्य काव्यशास्त्र और हिन्दी आलोचनाः

भारतीय काव्यशास्त्रः काव्य- लक्षण, काव्य – प्रयोजन, काव्य – हेतु, काव्य-सम्प्रदाय ( रस, अलंकार, रीति, ध्वनि, वकोक्ति और औचित्य ), भरतमुनि का रस-सूत्र और उसके व्याख्याकार, शब्दशक्ति विवेचन – शब्दशक्ति का स्वरूप एवं शब्दशक्ति के प्रकार, रस – विवेचन, रस से तात्पर्य, रस के अवयव, रस के भेद तथा रसों की परस्पर अनुकूलता और प्रतिकूलता, साधारणीकरण, गुण-दोष विवेचनः काव्य के गुण तथा दोष, अलंकार विवेचनः अलंकार से तात्पर्य, अलंकार के मुख्य भेद, बिम्ब, प्रतीक, छन्द विवेचनः छन्द का स्वरूप, छन्द से तात्पर्य, छन्द के घटक, छन्द के भेद, गण, मुक्त छन्द।

पाश्चात्य काव्यशास्त्रः प्लेटो और अरस्तू का अनुकरण सिद्धान्त तथा अरस्तू का विरेचन सिद्धान्त, लौंजाइनसः काव्य में उदात्त तत्व, क्रोचेः अभिव्यंजनावाद, आई. ए. रिचर्ड्सः संप्रेषण सिद्धान्त ।

हिन्दी आलोचनाः हिन्दी आलोचना का विकास और प्रमुख आलोचक- रामचन्द्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, नन्ददुलारे बाजपेयी, रामविलास शर्मा, डॉ० नगेन्द्र, डॉ० नामवर सिंह ।

7. (i) हिन्दी वाक्य रचना एवं व्याकरणः शब्द – विचार – शब्दों के भेद (उद्गम के आधार पर, बनावट या रचना के आधार पर, रूपान्तरण के आधार पर), शब्द निर्माणः उपसर्ग, प्रत्यय, सन्धि एवं सन्धि विच्छेद, समास एवं समास विग्रह, वाक्य विचारः वाक्य भेद एवं वाक्य शुद्धि, वाक्यांश के लिए एक शब्द, वर्तनी शुद्धि, बोध – शक्ति (अपठित गद्यांश एवं पद्यांशबोध)।

(ii) संस्कृत वाक्य रचना एवं व्याकरणः सन्धि, समास, कारक, शब्दरूप एवं धातुरूप ।

8. मुहावरे, लोकोक्तियाँ एवं सूक्तियाँ ।

9. हिन्दी भाषा का उद्भव और विकास, देवनागरी लिपि का उद्भव और विकास, हिन्दी भाषा के विविध रूप, हिन्दी की उपभाषाऐं और बोलियाँ: वर्गीकरण और क्षेत्र, मानक भाषा, राजभाषा और राष्ट्रभाषा ।

10. उत्तराखण्ड के साहित्य और संस्कृति का सामान्य परिचय।

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UKPSC Lecturer Screening Syllabus

उत्तराखण्ड विशेष अधीनस्थ शिक्षा (प्रवक्ता संवर्ग) सेवा (सामान्य तथा महिला शाखा)

प्रथम चरण (स्क्रीनिंग परीक्षा – वस्तुनिष्ठ प्रकार) पाठ्यक्रम

विषय प्रश्नों की संख्या अधिकतम अंक समय अवधि
शिक्षण अभिरूचि एवं सामान्य अध्ययन 150 150 02 घण्टे

नोटः-
1. प्रश्नगत परीक्षा में ऋणात्मक मूल्यांकन (Negative Marking) पद्धति अपनायी जाएगी।
2. स्क्रीनिंग परीक्षा ( वस्तुनिष्ठ प्रकार) केवल अर्हकारी प्रकृति की होगी। स्क्रीनिंग परीक्षा (वस्तुनिष्ठ प्रकार) में सफल अभ्यर्थियों को ही विषयवार लिखित परीक्षा ( वस्तुनिष्ठ प्रकार) में सम्मिलित किया जायेगा ।

 परीक्षा पाठ्यक्रम (प्रथम चरण)

खण्ड – 1 (शिक्षण अभिरूचि)

प्रश्नों की संख्या – 40

पूर्णांक – 40

1. भारतीय शिक्षा व्यवस्था राधाकृष्णन आयोग, मुदालियर आयोग, कोठारी आयोग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद, राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद, राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 1986, राष्ट्रीय ज्ञान आयोग, समानता के लिए शिक्षा, सर्व शिक्षा अभियान, शिक्षा का अधिकार, राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान, ई- गवर्नेस।

2. शिक्षण दक्षता एवं सम्प्रेषण – शिक्षण कौशल, शिक्षण विधियाँ एवं प्रविधियाँ, परम्परागत एवं आधुनिक शिक्षण सहायक सामग्री, शिक्षण प्रक्रिया एवं सम्प्रेषण – सम्प्रेषण के प्रकार एवं अच्छे सम्प्रेषण की विशेषताएं।

3. मूल्य आधारित शिक्षा – मूल्यों के प्रकार – वैयक्तिक एवं सामाजिक मूल्य, मूल्यों के ह्यस के कारण, शिक्षा द्वारा मूल्यों का उन्नयन।

4. कक्षानुशासन, विद्यालय अनुशासन, शैक्षिक नियोजन एवं प्रशासन।

5. विद्यालय में अनुपस्थिति व विद्यालय छोड़ने के कारण एवं समाधान ।

6. शिक्षा में कम्प्यूटर / कम्प्यूटर शिक्षा – कम्प्यूटर का आधारभूत ज्ञान; इसकी आवश्यकता एवं प्रयोग ।

7. शैक्षिक तकनीकी – प्रकृति, प्रकार, आवश्यकता एवं उपयोग।

8. शिक्षण व्यवसाय एवं कार्य संतुष्टि ।

9. विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास में शिक्षक की भूमिका ।

10. शैक्षणिक मूल्यांकन – आवश्यकता, प्रकार एवं विधियाँ ।

खण्ड – 2 (सामान्य अध्ययन)

प्रश्नों की संख्या – 35

पूर्णांक – 35

1. राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय महत्व की सम-सामयिक घटनायें ।

2. खेलकूद एवं मनोरंजन (राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्टीय स्तर) ।

3. भारत का इतिहास (प्राचीन, मध्यकालीन एवं आधुनिक), संस्कृति एवं राष्ट्रीय आंदोलन तथा राष्ट्र निर्माणकारी गतिविधियां इत्यादि ।

4. भारत एवं विश्व का भौगोलिक ज्ञान ।

5. प्राकृतिक संसाधन – प्रकार, नियोजन, संरक्षण एवं संवर्द्धन इत्यादि ।

6. भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषतायें, मौलिक अधिकार, तथा मूल कर्तव्य और राज्य के नीति-निर्देशक तत्व, उपभोक्ता सशक्तिकरण, उपभोक्ता के अधिकार एवं कर्त्तव्य, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986, बौद्धिक सम्पदा अधिकार, शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009, सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 इत्यादि ।

7. राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिकारों से संबंधित संगठन, नियम / अधिनियम व क्रियान्वयन इत्यादि ।

8. सामान्य विज्ञान – दैनिक जीवन में विज्ञान की उपयोगिता ।

9. पर्यावरणीय विकास – विकास से जुड़ी हुई समस्यायेंः जनसंख्या वृद्धि, पर्यावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, इन समस्याओं से बचने के उपाय इत्यादि ।

10. राष्ट्रीय आय की अवधारणा, अंतर्राष्ट्रीय एवं भारतीय अर्थव्यवस्था, कृषि, वाणिज्य एवं उद्योगो के विकास की दशा एवं दिशा इत्यादि ।

खण्ड – 3 (उत्तराखण्ड राज्य सम्बन्धी ज्ञान)

प्रश्नों की संख्या – 30

पूर्णांक – 30

निर्देश:- इस खण्ड के 10 उपखण्डों में से प्रत्येक में से दो-दो प्रश्न निर्मित किये जाए ।

1. सामान्य भूगोल – स्थिति एवं विस्तार, संरचना व उच्चावच्च, जलवायु, जलप्रवाह प्रणाली, जनसांख्यिकीय संरचना, प्रवास, यातायात, संचार तंत्र एवं राजकीय प्रतीक ।

2. इतिहास –

– प्राचीनकाल – निवास करने वाली जातियां / प्रजातियां, राजवंश (कुणिन्द, पौरव एवं कत्यूरी) ।

ख – मध्यकाल – उत्तर कत्यूरी, चन्द और पंवार राजवंश ।

ग – आधुनिक काल – गोरखा एवं ब्रिटिश काल, स्वाधीनता आन्दोलन, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद परिदृश्य, उत्तराखण्ड के समाज की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ।

3. प्राकृतिक एवं आर्थिक संसाधन – जल, वन, वन्यजीव संरक्षण – पार्क, अभ्यारण्य, खनिज, पशुपालन, कृषि एवं बागवानी इत्यादि ।

4. राजनीतिक एवं प्रशासनिक परिप्रेक्ष्य – राज्य, जनपद व तहसील एवं ग्राम्य स्तर का प्रशासनिक संगठन, संवैधानिक व्यवस्था इत्यादि ।

5. शिक्षा एवं संस्कृति – शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान, रीति-रिवाज, उत्सव व मेले इत्यादि ।

6. प्रमुख आन्दोलन – कुली बेगार, डोला पालकी, वन आंदोलन, पृथक उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन इत्यादि ।

7. आर्थिक विकास – जल-विद्युत, औद्योगिक, उद्यानिकी एवं पर्यटन तथा औषधीय एवं सगंधीय पादप उद्योग संर्वद्धन, उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति के बाद आर्थिक परिवर्तन इत्यादि।

8. विकासपरक् योजनायें – अनुसूचित जाति / जनजाति सम्बन्धी योजनायें इत्यादि ।

9. सम-सामयिक महत्वपूर्ण घटनायें ।

10. खेलकूद एवं मनोरंजन ।

खण्ड – 4 (सामान्य बुद्धि परीक्षण)

प्रश्नों की संख्या – 25

पूर्णांक – 25

शाब्दिक, अशाब्दिक एवं विश्लेषणात्मक प्रश्न जिनमें प्रतिशत अनुपात एवं समानुपात, साधारण तथा मिश्रित ब्याज, लाभ – हानि तथा छूट, समय – कार्य एवं वेतन, समय और दूरी, महत्तम तथा लघुत्तम समावर्तक इत्यादि पर निहित हो ।

तुल्यता, निगमानक तर्क, समानता एवं अंतर, लुप्त अंक, वर्ण एवं अनुक्रम, निर्णय लेना, विभेद, सम्बन्ध अवधारणा, दिशाबोध, कूट बद्ध – कूटानुवाद, अंकगणितीय तर्क इत्यादि पर सम्बन्धित प्रश्न ।

रेलगाड़ियों, नाव और धाराओं, कैलेन्डर, घड़ियों, तार्किक वैन चित्र, आंकड़ों का चित्रों एवं ग्राफ द्वारा प्रस्तुतीकरण, आंकड़ों का माध्य, माध्यिका, बहुलक, परास द्वारा विश्लेषण इत्यादि पर सम्बन्धित प्रश्न ।

खण्ड – 5 (सामान्य हिन्दी)

प्रश्नों की संख्या – 20

पूर्णांक – 20

निर्देशः प्रत्येक प्रश्न वस्तुनिष्ठ या बहुविकल्पीय तथा एक-एक अंक का होगा। सभी प्रश्नों के चार वैकल्पिक उत्तर देने होंगे, जिनमें से केवल एक विकल्प ही सही होगा।

भाग (क)

1. पर्यायवाची शब्द
2. विलोम शब्द
3. तत्सम शब्द
4. तद्भव शब्द
5. वाक्यांश के लिए एक शब्द ।

भाग (ख)

1. उपसर्ग ।
2. प्रत्यय ।

भाग (ग)

1. वर्तनी शुद्वि।
2. वाक्य शुद्वि ।

भाग (घ)

1. समास ।
2. समास विग्रह।
3. सन्धि ।
4. सन्धि-विच्छेद ।

भाग (ड़)

1. मुहावरें ।
2. लोकोक्ति ।

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उत्तराखंड का इतिहास – आद्यैतिहासिक काल (History of Uttarakhand – Prehistoric Period)

प्रागेतिहासिक काल व ऐतिहासिक काल के मध्य का समय आद्य ऐतिहासिक काल माना जाता है। यह मनुष्य के सांस्कृतिक विकास का दौर था इस काल के कुछ भाग में लिखित सामग्री प्राप्त नहीं हुई जबकि इसके अग्रिम चरण में लिखित प्रमाण मिले हैं इसलिए आद्य ऐतिहासिक काल का अध्ययन दो स्रोतों के माध्यम से किया जाता है।

  1. पुरातात्विक स्रोत
  2. लिखित स्रोत या साहित्यिक स्त्रोत

पुरातात्विक स्रोत (Archaeological Sources)

पुरातात्विक साधन अत्यन्त प्रमाणिक होते हैं तथा इनके माध्यम से इतिहास के अन्ध-युगों की भी जानकारी प्राप्त हो जाती है। इसके तहत मूलतः अभिलेख, स्मारक एवं मुद्रा सम्बन्धी अवशेष आते है। उत्तराखण्ड के इतिहास निर्माण में तो इनकी महत्ता और भी अधिक है।

पुरातात्विक स्रोतों को अध्ययन की दृष्टि से निम्न भागों में बांटा गया है –

ऊखल-सदृश गड्डे (Cup-Marks)

  • विशाल शिलाओं एवं चट्टान पर बने उखल के आकार के गोल गड्ढों को कप मार्क्स (Cup-marks) कहते हैं।
  • हेनवुड ने सर्वप्रथम चंपावत जिले के देवीधुरा नामक स्थान पर इस प्रकार के (ओखलियों) की खोज की।
  • सर्वप्रथम उत्तराखंड में पुरातात्विक स्रोतों की खोज का श्रेय हेनवुड (1856) को जाता है।
  • रिवेट-कारनक (1877 ई०) को अल्मोड़ा के द्वारहाट के कप मार्क्स चंद्रेश्वर मंदिर में लगभग 200 कप मार्क्स मिले जो कि 12 समांतर पंक्तियों में लगे हुए थे।
  • रिवेट-कारनक ने इन शैल चित्रों की तुलना यूरोप के शैलचित्रों से की।
  • डॉ० यशोधर मठपाल को द्वारहाट मंदिर से कुछ दूर पश्चिमी रामगंगा घाटी के नोला ग्राम में इन्हीं के समान 72 कप मार्क्स प्राप्त हुए।

ताम्र उपकरण

  • ये उपकरण तांबे के बने होते थे।
  • ताम्र निखात संस्कृति ऊपरी गंगा घाटी की प्राचीनतम संस्कृति है।
  • हरिद्वार के निकट बहादराबाद से ताम्र निर्मित भाला, रिंस, चूड़ियां आदि नहर की खुदाई के दौरान प्राप्त हुए। एच. डी. सांकलिया के अनुसार ये उपकरण गोदावरी घाटी से प्राप्त उपकरणों के समरूप थे।
  • वर्ष 1986 ई० में अल्मोड़ा जनपद से एक एवं वर्ष 1989ई० में बनकोट (पिथौरागढ़) से आठ ताम्र मानव आकृतियां प्राप्त हुए।
  • इन ताम्र उपकरणों से इस बात की पुष्टि होती है कि गढ़वाल – कुमाँऊ में ताम्र उत्पादन इस युग में होता था।

महापाषाणीय शवाधान

  • महापाषाणीय शवाधान का सबसे महत्वपूर्ण स्थल मलारी गांव (चमोली) है यहां 1956 ई० में महापाषाणीय शवाधान खोजे गये जिनकी खोज का श्रेय श्री शिव प्रसाद डबराल को जाता है। मलारी गांव मारछा जनजाति का गाँव है।
  • मलारी में मानव कंकाल के साथ-साथ भेड़, घोड़ो, आदि के कंकाल व मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए।
  • राहुल सांकर्त्यन ने हिमाचल प्रदेश के किन्नोर के लिपा गाँव में महापाषाणीय शवाधान की खोज की।

शवाधान – शवों को रखने की प्रथा शवाधान कहलाती है। हड़पा सभ्यता में तीन प्रकार की शवाधान विधियाँ थी।

  • पूर्ण समाधिकारण
  • आंशिक समाधिकारण
  • दाह संस्कार

लिखित स्रोत (Written Sources)

वेद

  • वेद चार है – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद।
  • सबसे पुराना वेद ऋग्वेद नवीनतम वेद अथर्ववेद है।
  • उत्तराखंड का प्रथम उल्लेख हमें ऋग्वेद से प्राप्त होता है।
  • उत्तराखंड को ऋग्वेद में देवभूमि मनीषियों की पूर्ण भूमि कहा गया है।

ब्राह्मण ग्रन्थ

  • ब्राह्मण ग्रन्थ यज्ञों तथा कर्मकांडों के विधान और इनकी क्रियाओं को समझने के लिए आवश्यक होते हैं। इनकी भाषा वैदिक संस्कृति है।
  • ये पद्य में लिखे गये है।
  • प्रत्येक वेद के ब्राह्मण ग्रन्थ होते हैं।
  • ऐतरेय ब्राह्मण ऋग्वेद का ब्राह्मण ग्रन्थ है।
  • ऐतरेय ब्राह्मण ग्रन्थ – उत्तराखंड के लिए ‘कुरुओं की भूमि’ या ‘उत्तर कुरु’ शब्द का प्रयोग हुआ है।
  • कौषीतकि ब्राह्मण ग्रन्थ वाक् देवी का निवास स्थान बद्री आश्रम में है।

पुराण

  • पुराण 18 हैं जिनमे सबसे बड़ा पुराण स्कंद पुराण है व सबसे पुराना पुराण मत्स्य पुराण है।
  • जातकों में भी हिमालय के गंगातट का वर्णन मिलता है।

स्कंद पुराण

  • स्कंद पुराण में 5 हिमालयी खंडो (नेपाल, मानसखंड, केदारखंड, जालंधर, कश्मीर) का उल्लेख है।
  • गढ़वाल क्षेत्र को स्कंद पुराण में केदारखंड कुमाँऊ क्षेत्र को मानसखंड कहा गया।
  • केदारखण्ड में गोपेश्वर ‘गोस्थल’ नाम से वर्णित है।
  • स्कंद पुराण में हरिद्वार को ‘मायापुरी’ कुमाँऊ के लिये कुर्मांचल शब्द का उल्लेख मिलता है।
  • कांतेश्वर पर्वत (कानदेव) पर भगवान विष्णु ने कुर्मा या कच्छपावतार लिया इसलिए कुमांऊ क्षेत्र को प्राचीन में कुर्मांचल के नाम से जाना जाता था। बाद में कुर्मांचल को ही कुमाँऊ कहा गया।
  • पुराणों में ‘मानसखंड’ ‘केदारखंड’ के संयुक्त क्षेत्र को – उत्तर खंड, ब्रह्मपुर एवं खसदेश नामों से संबोधित किया है।

ब्रह्मपुराण, वायुपुराण

  • ब्रह्मपुराण व वायुपुराण के अनुसार कुमाँऊ क्षेत्र में किरात, किन्नर, यक्ष, गंधर्व, नाग आदि जातियों का निवास था।

महाभारत

  • महाभारत के वनपर्व में हरिद्वार से केदारनाथ तक के क्षेत्रों का वर्णन मिलता है उस समय इस क्षेत्र में पुलिंद व किरात जातियों का अधिपत्य था।
  • पुलिंद राजा सुबाहु जिसने पांडवों की और से युद्ध में भाग लिया था कि राजधानी श्रीनगर थी।
  • महाभारत के वनपर्व में लोमश ऋषि के साथ पांडवों के इस क्षेत्र में आने का उल्लेख है।
  • आदि पर्व में उल्लेख – अर्जुन व उल्लुपी का विवाह गंगाद्वार में हुआ था।

रामायण

  • टिहरी गढ़वाल की हिमयाण पट्टी में विसोन नामक पर्वत पर वशिष्ठ गुफा, वशिष्ठ आश्रम, एवं वशिष्ठ कुंड स्थित है।
  • श्री राम के वनवास जाने पर वशिष्ठ मुनि ने अपनी पत्नी अरुंधति के साथ यहीं निवास किया था।
  • तपोवन टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है जहां लक्ष्मण ने तपस्या की थी।
  • पौड़ी गढ़वाल के कोट विकासखंड में सितोन्सयूं नामक स्थान है इस स्थान पर माता सीता पृथ्वी में समायी थी। इसी कारण कोट ब्लॉक में प्रत्येक वर्ष मनसार मेला लगता है।
  • रामायणकालीन बाणासुर का भी राज्य गढ़वाल क्षेत्र में था और इसकी राजधानी ज्योतिषपुर (जोशीमठ) थी।

अभिज्ञान शंकुतलम

  • अभिज्ञान शंकुतलम की रचना कालिदास ने की।
  • प्राचीन काल में उत्तराखंड में दो विद्यापीठ थे बद्रिकाश्रम एवं कण्वाश्रम
  • कण्वाश्रम उत्तराखंड के कोटद्वार से 14 km दूर हेमकूट व मणिकूट पर्वतों की गोद मे स्थित है।
  • कण्वाश्रम में दुष्यंत व शकुंतला का प्रेम प्रसंग जुड़ा है शकुंतला ऋषि विश्वामित्र तथा स्वर्ग की अप्सरा, मेनका की पुत्री थी।
  • शकुंतला व दुष्यंत का एक पुत्र हुआ भरत जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा।
  • इसी कण्वाश्रम में कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतलम की रचना की।
  • कण्वाश्रम मालिनी नदी के तट पर स्थित है।
  • वर्तमान में यह स्थान चौकाघाट के नाम से जाना जाता है।

मेघदूत

  • कालिदास द्वारा रचित मेघदूत के अनुसार अल्कापुरी (चमोली) कुबेर की राजधानी थी।

बौद्ध ग्रंथ

  • पाली भाषा के बौद्ध ग्रंथों में उत्तराखंड को हिमवंत कहा गया है।

अन्य

  • इतिहासकार हरीराम धस्माना, भजन सिंह, शिवांगी नौटियाल के अनुसार ऋग्वेद में सप्तसैंधव प्रदेश वर्तमान गढ़वाल ही था।
  • चमोली के निकट स्थित नारायण गुफा, व्यास गुफा, मुचकुंद गुफाओं में वेदों की रचना वादरायण या वेदव्यास ने की थी।
  • पुराणों के अनुसार मनु का निवास स्थान तथा कुबेर की राजधानी अलकापुरी (फूलों की घाटी) को माना जाता है।
  • ब्रह्मा के मानस पुत्रों दक्ष, मरीचि, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु और अत्रि का निवास स्थान गढ़वाल ही था।
  • बाणभट्ट की पुस्तक हर्षचरित में भी इस क्षेत्र की यात्रा पर आने-जाने वाले लोगों का उल्लेख मिलता है।
  • कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी में कश्मीर के शासक ललितादित्तय मुक्तापीड़ द्वारा गढ़वाल विजय का उल्लेख मिलता है।
  • जोशीमठ से प्राप्त हस्तलिखित ग्रन्थ ‘गुरूपादुक’ में अनेक शासक और वंशो का उल्लेख प्राप्त होता है।

विदेशी साहित्य

  • हर्षवर्धन के शासनकाल में ही चीनी यात्री ह्वेनसांग उत्तराखण्ड राज्य की यात्रा पर आया था, उसने अपने यात्रा वृतांत में हरिद्वार का उल्लेख ‘मो-यू-लो’ नाम से एवं हिमालय का ‘पो-लि-हि-मो-यू-ला’ अथवा ब्रह्मपुर राज्य के नाम से किया है।
  • चीनी यात्री युवान-च्वांड (ह्वेनसांग) ने सातवीं सदी में अपने यात्रा वृतांत में उत्तराखंड के विभिन्न शहरों का वर्णन किया है –
    • ब्रह्मपुर – उत्तराखंड
    • शत्रुघ्न नगर – उत्तरकाशी
    • गोविपाषाण – काशीपुर
    • सुधनगर – कालसी
    • तिकसेन – मुनस्यारी
    • बख्शी – नानकमत्ता
    • ग्रास्टीनगंज – टनकपुर
    • मो-यू-लो – हरिद्वार
  • मुगल काल में आए पुर्तगाली यात्री जेसुएट पादरी अन्तोनियो दे अन्द्रोदे 1624 में श्री नगर पंहुचा उस समय यहां का शासक श्यामशाह था।
  • तेमुर की आत्मकथा मुलुफात-इ-तिमुरी के अनुसार गंगाद्वार के निकट युद्ध करने वाले शासक –
    • बहरुज (कुटिला/कपिला राजा)
    • रतन सेन (सिरमौर का राजा)
  • फ्रांसिस बर्नियर ने हरिद्वार को शिव की राजधानी के रूप में उल्लेख किया है।

 

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उत्तराखंड का इतिहास – प्रागैतिहासिक काल (History of Uttarakhand – Prehistoric times)

उत्तराखंड की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं पौराणिक महत्ता की भांति यहां का इतिहास भी मानव सभ्यताओं के विकास का साक्षी है। प्रागैतिहासिक काल से ही इस भू-भाग में मानवीय क्रियाकलापों के प्रमाण मिलते हैं। विभिन्न कालों के अनुक्रम में उत्तराखंड के इतिहास का अध्ययन तीन भागों में किया जाता है –

1. प्रागैतिहासिक काल स्रोत :- पाषाणयुगीन उपकरण व गुहालेख चित्र
2. आद्यएतिहासिक काल स्रोत :- पुरातात्विक प्रमाण व साहित्यिक प्रमाण
3. ऐतिहासिक स्रोत :-  मुद्राए, ताम्रपत्र, अभिलेख, शिलालेख 

प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Times)

प्रागैतिहासिक काल वह काल है जिसकी जानकारी पुरातात्विक स्त्रोतों, पुरातात्विक स्थलों जैसे पाषाण युगीन उपकरण गुफा शैल चित्र आदि से प्राप्त होती है। इस समय के इतिहास की जानकारी लिखित रूप में प्राप्त नहीं हुई है। प्रागैतिहासिक काल को ‘प्रस्तर युग’ भी कहते हैं।

उत्तराखंड में प्रागेतिहासिक काल के साक्ष्य

पाषाणयुगीन उपकरण 

पाषाणयुगीन उपकरण वे उपकरण थे जिनका उपयोग मानव ने अपने विकास के विभिन्न चरणों में किया जैसे हस्त कुठार (Hand Axe), क्षुर (Choppers), खुरचनी (Scrapers), छेनी, आदि।
Stone Age Tools
उत्तराखंड में पाषाणयुगीन उपकरण अलकनन्दा नदी घाटी (डांग, स्वीत), कालसी नदी घाटी, रामगंगा घाटी आदि क्षेत्रों से प्राप्त हुए जिनसे इस बात की पुष्टि होती है कि पाषाणयुगीन मानव उत्तराखंड में भी निवास करते थे।

लेख व गुहा चित्र

उत्तराखंड के प्रमुख जिलों अल्मोड़ा, चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ आदि में लेख व गुहा चित्र मिले है। 

अल्मोड़ा (Almora)

अल्मोड़ा जनपद के निम्नलिखित स्थानों से हमें प्रागैतिहासिक काल के बारे में जानकारी मिलती हैं – 

लाखू उडुयार (लाखू गुफा)

  • स्थान – अल्मोड़ा (सुयाल नदी के तट पर बसे दलबैंड, बाड़ेछीना गाँव में।)
  • खोज – 1968 ई०
  • खोजकर्ता – श्री यशवंत सिंह कठौर और एम.पी. जोशी 
  • उत्तराखंड में प्रागैतिहासिक शैलाश्रय चित्रों की पहली खोज थी।
  • लखुउडियार का हिन्दी में अर्थ हैं ‘लाखों गुफायें’ अर्थात इस जगह के पास कई अन्य गुफायें भी हैं।
  • विशेषताएं –
    • मानव आकृतियों का अकेला व समूह में नृत्य करते हुए।
    • विभिन्न पशु पक्षियों का चित्रण किया गया है।
    • चित्रों को रंगों से सजाया गया है।
    • इन शैलचित्रों में भीमबेटका-शैलचित्र के समान समरूपता देखी गयी है।

ल्वेथाप गाँव 

  • स्थान – अल्मोड़ा जिले में
  • विशेषताएं
    • शैल-चित्रों में मानव को हाथो में हाथ डालकर नृत्य करते तथा शिकार करते दर्शाया गया हैं।
    • यहाँ से लाल रंग से निर्मित चित्र प्राप्त हुए है।

पेटशाला

  • स्थान – अल्मोड़ा जिले में (पेटशाला व पुनाकोट गाँव के बीच स्थित कफ्फरकोट में)
  • खोज – 1989 ई०
  • खोजकर्ता – श्री यशोधर मठपाल  
  • विशेषताएं –
    • शैल-चित्रों में नृत्य करते हुए मानवों की आकृतियाँ प्राप्त हुई हैं।
    • मानव आकृतियां रंग से रंगे है।

फलसीमा

  • स्थान – अल्मोड़ा के फलसीमा में
  • विशेषताएं –
    • मानव आकृतियों में योग व नृत्य करते हुए दिखाया गया हैं।

कसार देवी मंदिर 

  • स्थान – अल्मोड़ा से 8 किलोमीटर दूर कश्यप पहाड़ी की चोटी पर
  • विशेषताएं –
    • इस मंदिर से 14 मृतकों का सुंदर चित्रण प्राप्त हुआ है।

चमोली (Chamoli)

चमोली जनपद के निम्नलिखित स्थानों से हमें प्रागैतिहासिक काल के बारे में जानकारी मिलती हैं – 

गवारख्या गुफा

  • स्थान – चमोली जनपद में (अलकनंदा नदी के किनारे डुग्री गाँव के पास स्थित।)
  • खोजकर्ता – श्री राकेश भट्ट, इसका अध्ययन डॉ. यशोधर मठपाल ने किया। 
  • विशेषताएं –
    • इस उड्यार में मानव, भेड़, बारहसिंगा आदि के रंगीन चित्र मिले हैं।
    • यहाँ प्राप्त शैल-चित्र लाखु गुफा के चित्रों (मानव, भेड़, बारहसिंगा, लोमड़ी) से अधिक चटकदार है।
    • डॉ. यशोधर मठपाल के अनुसार इन शिलाश्रयों में लगभग 41 आकृतियाँ है, जिनमें  30 मानवों की, 8 पशुओं की तथा 3 पुरुषों की है।
    • चित्रकला की दृष्टि से उत्तराखंड की सबसे सुंदर आकृतियां मानी जाती है।
    • चित्रों की मुख्य विशेषता मनुष्यों द्वारा पशुओं को हाँकते हुए और घेरते हुए दर्शाया गया है।

किमनी गाँव 

  • स्थान – चमोली जनपद के थराली विकासखंड में
  • विशेषताएं –
    • हथियार व पशुओं के शैल चित्र प्राप्त हुए हैं ।
    • हल्के सफेद रंग का प्रयोग किया गया है।

मलारी गाँव

  • स्थान – तिब्बत से सटा मलारी गांव चमोली में। 
  • खोजकर्ता – 2002 में गढ़वाल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा अध्ययन।
  • विशेषताएं –
    • हजारों वर्ष पुराने नर कंकाल मिट्टी के बर्तन जानवरों के अंग प्राप्त हुए।
    • 2 किलोग्राम का एक सोने का मुखावरण (Gold Mask) प्राप्त हुआ।
    • नर कंकाल और मिट्टी के बर्तन लगभग 2000 ई०पू० से लेकर 6 वीं शताब्दी ई०पू० तक के हो सकते है।
    • डॉ. शिव प्रसाद डबराल द्वारा गढ़वाल हिमालय के इस क्षेत्र में शवाधान खोजे गए है।
    • यहाँ से प्राप्त बर्तन पाकिस्तान की स्वात घाटी के शिल्प के समान है।
मलारी गांव में गढ़वाल विश्विद्यालय के खोजकर्ताओं ने दो बार सर्वेक्षण किया – 

  • गढ़वाल विश्विद्यालय के खोजकर्ताओं को मानव अस्थियों के साथ लोहित, काले एवं धूसर रंग के चित्रित मृदभांड प्राप्त हुए।
  • प्रथम सर्वेक्षण 1983 में आखेट के लिए प्रयुक्त लोह उपकरणों के साथ एक पशु का संपूर्ण कंकाल मिला जिसकी पहचान हिमालय जुबू से की गई व साथ ही कुत्ते भेड़ व बकरी की अस्थियां प्राप्त हुई।
  • द्वितीय सर्वेक्षण (2001-02) में नर कंकाल के साथ 5.2 किलो का स्वर्ण मुखौटा (मुखावरण), कांस्य कटोरा व मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए।

उत्तरकाशी (Uttarkashi)

हुडली

  • स्थान – उत्तरकाशी में
  • विशेषताएं –
    • यहां नीले रंग के शैल चित्र प्राप्त हुए।

पिथौरागढ़ (Pithoragarh)

बनकोट

  • स्थान – पिथौरागढ़ के बनकोट क्षेत्र से
  • विशेषताएं –
    • 8 ताम्र मानव आकृतियां मिली हैं।

चंपावत (Champawat) 

देवीधुरा की समाधियाँ 

  • स्थान – चंपावत जिले में
  • खोज – 1856 में हेनवुड द्वारा
  • विशेषता
    • बुर्जहोम कश्मीर के समान समाधियाँ।

 

 

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उत्तराखंड की मृदा (Soil of Uttarakhand)

अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक 2013 में उत्तराखंड में आई आपदा में मिट्टी कटान सबसे ज्यादा था। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में कुछ सालों से बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं, जो मिट्टी कटान की घटनाओं को बढ़ावा दे रहा है। 2017 में तैयार किए गए आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 24295 वर्ग किलोमीटर जंगल का क्षेत्र है, जो प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का 45.43 फीसद है। उत्तराखंड की भूमि संरचना को देखते हुए, भूमि को तीन भागों में बांटा गया है। जो निम्न प्रकार से है –

उत्तराखंड में पायी जाने वाली मिट्टी 

1. तालाब / नदी घाटी की भूमि

  • उत्तराखंड में नदियां अपने प्रवाह मार्ग के सहारे विशाल उर्वरक मैदानों का निर्माण करती है।
  • इन मैदानों में सिंचाई सुविधा भी उपलब्ध होती है। मिट्टी उपजाऊ होने के कारण यहां पर गेहूं, धान की खेती की जाती है।
  • यह मध्यम कृषि क्षेत्र वाला प्रदेश है। और उत्तराखंड में सिंचित भूमि कोतलाव कहा जाता है।

 2. मैदानी भागों की भूमि

  • इसमें संपूर्ण तराई भाबर क्षेत्र आता है। जिसमें देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर एवं नैनीताल का कुछ भाग आता है।
  • यहां पर समतल एवं उर्वरक मैदान है। तथा इन मैदानों में कृषि सर्वाधिक विकसित अवस्था में मिलती है।
  • इन क्षेत्रों मेंगेहूं, धान, गन्ना एवं दलहनी फसलों का उत्पादन अधिक होता है।

3. पर्वतीय ढाल युक्त भूमि / उखड

  • उत्तराखंड में पहाड़ों पर सीढ़ीदार खेती होती है।
  • सिंचित भूमि ना होने के कारण स्थानीय भाषा में इसे उखड़ कहा जाता है। यह कृषि वर्षा पर आधारित होती है।
  • जिस कारण उत्पादन कम तथा अनियंत्रित होता है। इसलिए वर्तमान में लोग कृषि कार्यों को छोड़कर अन्य व्यवसायों में संलग्न हो गए हैं।
  • ICAR (दिल्ली भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) ने उत्तराखंड की मिट्टी को पर्वतीय या वनीय मिट्टी कहा है।

मिट्टी के संगठन के आधार पर उत्तराखंड में निम्न प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं –

1. तराई मिट्टी

  • राज्य के सबसे दक्षिणी भाग में देहरादून के दक्षिणी सिरे से ऊधम सिंह नगर तक महिन कणों के निक्षेप से निर्मित तराई मृदा पाई जाती हैं।
  • राज्य की अन्य मिट्टियों की अपेक्षा यह अधिक परिपक्व तथा नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की कमी वाली मृदा है।
  • यह मृदा समतल, दलदली, नम और उपजाऊ होती है।
  • इस क्षेत्र में गन्ने एवं धान की पैदावार अच्छी होती है।

2. भाबर मिट्टी

  • भाबर मृदा तराई के उत्तर और शिवालिक के दक्षिण यह मृदा पाई जाती है।
  • हिमालयी नदियों के भारी निक्षेपों से निर्मित होने के कारण यह मिट्टी कंकड़ों-पत्थरों तथा मोटे बालुओं से निर्मित है।
  • यहां पर मिट्टी पथरीली एवं कंकड़ पत्थर से युक्त होती है, जिस कारण जल नीचे चला जाता है।
  • यह मृदा कृषि के लिए अनुपयुक्त है।
  • पानी की कमी के कारण यह अनउपजाऊ होती है।

3. चारगाही मिट्टी

  • ऐसी मृदाएं निचले भागों में जलधाराओं के निकट नदियों एवं अन्य जल प्रवाहों के तटवर्ती क्षेत्रों में पाई जाती है।
  • इस मृदा को निम्न पांच भागों में विभक्त किया जा सकता है –
    1. मटियार दोमट (भूरा रंग, नाईट्रोजन तथा जैव पदार्थ अधिक एवं चूना कम)
    2. अत्यधिक चूनेदार दोमट
    3. कम चूनेदार दोमट
    4. गैर चूनेदार दोमट
    5. बलुई दोमट

4. टर्शियरी मिट्टी

  • ये मिट्टी शिवालिक की पहाड़ियों तथा दून घाटियों में पायी जाती है जोकि हल्की, बलुई एवं छिद्रमय अर्थात् आद्रता को कम धारण करती है।
  • इसमें वनस्पति एवं जैव पदार्थ की मात्रा कम होती है। लेकिन दून घाटी के मिट्टी में अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा वनस्पति के अंश की अधिकता तथा आर्द्रता धारण करने की क्षमता अधिक होती है।
  • ये शिवालिक एवं दून घाटी में पाई जाती है।

5. क्वाटर्ज मिट्टी

  • यह मिट्टी नैनीताल के भीमताल क्षेत्र में पायी जाती है।
  • आद्य, पुरा एवं मध्य कल्प के क्रिटेशियस युग में निर्मित शिष्ट, शेल, क्वार्ट्ज आदि चट्टानो के विदीर्ण होने से इसका निर्माण हुआ है।
  • यह मिट्टी हल्की एवं अनुपजाऊ होती है।
  • इसे क्वार्ट्ज मृदा कहा जाता है।

6. ज्वालामुखी मिट्टी

  • नैनीताल जिले के भीमताल क्षेत्र में यह मिट्टी पायी जाती है।
  • आग्नेय चट्टानों के विदीर्ण होने से निर्मित यह मिट्टी हल्की एवं बलुई है तथा कृषि कार्य के लिए उपयुक्त है।
  • इस प्रकार की मृदा को ज्वालामुखी मिट्टी कहा जाता है।

7. दोमट मिट्टी

  • शिवालिक पहाड़ियों के निचले ढालों तथा दून घाटी में सहज ही उपलब्ध इस मिट्टी में हल्का चिकनापन के साथ- साथ चूना, लौह अंश और जैव पदार्थ विद्यमान रहते हैं।
  • दोमट मिट्टी दून घाटी में पाई जाती है।
  • इसमें चूना तथा लौह अंश की अधिकता होती है।

8. भूरी लाल पीली मिट्टी

  • नैनीताल, मंसूरी व चकरौता के निकट चूने एवं बलुवा पत्थर, शेल तथा डोलोमाइट चट्टानों से निर्मित यह मृदा पाई जाती है।
  • इसका रंग भूरा, लाल अथवा पीला होता है।
  • ऐसा धरातलीय चट्टानों एवं वानस्पतिक अवशेषों के होता है।
  • यह मृदा अधिक आद्रता ग्राही और उपजाऊ होती है।

9. लाल मिट्टी

  • यह मिट्टी अधिकांशतः पहाड़ों की ढालों या पर्वतों के किनारे पायी जाती है।
  • यह मिट्टी असंगठित होती है।

10. वनों की भूरी मिट्टी

  • वन की भूरी मिट्टी यह मिट्टी उत्तराखण्ड के अधिकांश वनीय भागों में पायी जाती है।
  • इसमें जैव तत्व की अधिकता तथा चूना व फास्फोरस की कमी होती है।

11. भस्मी मिट्टी

  • यह मिट्टी कम ढालू स्थानों, पर्वत श्रेणियों के अंचलों तथा उप-उष्ण देशीय एवं समशीतोष्ण सम्भगों में पायी जाती है।

12. उच्चतम पर्वतीय छिछली मिट्टी

  • यह मृदा कम वर्षा वाले उच्च पहाड़ी भागों में मिलती है।
  • अत्यधिक शुष्कता तथा वनस्पति के अभाव के कारण यह बिल्कुल अपरिपक्व होती है।
  • इसकी परत पतली होती है।

13. उच्च मैदानी मिट्टी

  • यह मिट्टी सामान्यतः 4000 km से अधिक ऊंचाई पर पाई जाती है।
  • शुष्क जलवायु, वायु अपक्षय तथा हिमानी अपरदन के प्रभाव के कारण इन मिट्टियो में प्रायः नमी की कमी पायी जाती है।
  • यह हल्की क्षारीय तथा कार्बनिक पदार्थों के उच्च मात्रा से युक्त होती है। 
  • चट्टानी टुकड़ों तथा अन्य प्रदूषित पदार्थों के मिश्रण के कारण इस मिट्टी के गठन एवं संरचना में विभिन्नता आ जाती है।
  • इन्हें एल्पाइन चारागाह (पाश्चर्स) मृदा भी कहते है।

 

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