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प्रजामण्डल का गठन एवं श्रीदेव सुमन

रवांई काण्ड के पश्चात् टिहरी राज्य में जन-आक्रोश में वृद्धि हुई। इसी का परिणाम था, 1935 ई0 में सकलाना पट्टी के उनियाल गाँव में सत्यप्रसाद रतूड़ी द्वारा ‘बाल सभा’ की स्थापना की

सभा का उद्देश्य – छात्र-छात्राओं में राष्ट्रीयता का प्रचार-प्रसार करना था।

  • 1936 ई0 दिल्ली में ‘गढ़देश सेवा संघ’ की स्थापना हुई।
  • 1938 ई0 को दिल्ली में ‘अखिल पर्वतीय सम्मेलन’ हुआ जिसमें स्वयं बद्रीदत्त पाण्डे व श्रीदेव सुमन ने भाग लिया।
  • श्रीनगर गढवाल में एक राजनैतिक सम्मेलन आयोजित हुआ जिसकी अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू ने की। इस सम्मेलन में श्रीदेव सुमन ने टिहरी राज्य की प्रजा के कष्टों से सम्बन्धित एक प्रस्ताव भी पारित करवाया था।
  • जून,1938 ई0 में मानवेन्द्र नाथ की अध्यक्षता में ऋषिकेश के सम्मेलन में टिहरी राज्य की जनता की समस्याओं पर मंथन हुआ और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की मांग की गई।
  • 1938 के उपरान्त राज्य से बाहर रह रहे रियासत के युवकों ने प्रजामण्डल की शाखाएँ स्थापित करनी प्रारम्भ की क्योंकि 1938 ई0 के गुजरात काग्रेस अधिवेशन में देशी राज्य की प्रजा के अधिकारों की रक्षा ‘प्रजामण्डल’ द्वारा संचालित करने का निर्णय लिया गया।

माना जाता है कि टिहरी राज्य प्रजामण्डल की स्थापना देहरादून में श्याम चन्द्र नेगी के आवास पर हुई थी। उसके प्रारम्भिक सदस्य टिहरी महाराज के अधीन ही उत्तरदायी शासन की स्थापना चाहते थे। श्रीदेव सुमन, गोविन्दराम भट्ट, तोताराम गैरोला, महिमानन्द डोभाल इत्यादि इसके संस्थापक सदस्यों में थे। स्वयं श्रीदेव सुमन भी महाराज का बड़ा सम्मान करते थे। उनका स्वयं का कथन है कि – ‘टिहरी राज्य में मेरा तथा प्रजामण्डल का ध्येय वैध व शांतिपूर्ण ढंग से श्रीमहाराज की छत्रछाया में उत्तरदायी शासन प्राप्त करना है।’ श्री महाराज भी सुमन की योग्यता से परिचित थे किन्तु उनके स्वार्थी अधिकारी ऐसा नहीं चाहते थे अतः रवांई काण्ड की भॉति उन्हें भ्रमित किया गया।

टिहरी दरबार उत्तरदायी शासन की मांग से चिन्तित था क्योंकि ऐसा होने पर उनके एकाधिकार खत्म हो जाते। अतः प्रजामण्डल की मांगों की अनदेखी कर “रजिस्ट्रेशन ऑफ एसोशिएशन एक्ट” पारित कर दिया गया जिसके तहत किसी भी स्वतंत्र संस्था के रियासत के अन्दर कार्य करने पर प्रतिबन्ध लग गया। श्रीदेव सुमन और शंकरदत्त डोभाल ने टिहरी के अन्दर ही प्रजामण्डल की स्थापना की कोशिश करनी चाही। सुमन के पीछे पुलिस लगा दी गई। 9 मार्च 1941 को पहली बार श्रीदेव सुमन को उनकी ससुराल पडियार गाँव से गिरफ्तार किया गया। श्रीदेव सुमन जन सम्पर्क वाले नेता एवं समाचार पत्रों एवं कई संस्थाओं से जुड़े व्यक्ति थे। जब उन पर दो माह तक रियासत में घुसने पर प्रतिबन्ध लगाया तो उसकी सर्वत्र निदां हुई। वे कर्मभूमि पत्र के सम्पादक मण्डल के सदस्य थे। अतः कर्मभूमि एवं अल्मोड़ा से प्रकाशित ‘शक्ति’ पत्र निरन्तर टिहरी राज्य से सम्बंधित समाचार प्रकाशित करते थे।

अगस्त 1942 ई0 को देवप्रयाग में सकलानन्द डोभाल की अध्यक्षता में हुई सभा में आन्दोलन को आक्रामक बनाने का निर्णय हुआ। ब्रिटिश सरकार द्वारा देवप्रयाग में आन्दोलन के नेताओं को गिरफ्तार कर लिए जाने का भारी विरोध हुआ। 29 अगस्त को श्रीदेव सुमन भी देवप्रयाग में बन्दी बनाए गए। पहले उन्हें देहरादून जेल एवं फिर आगरा जेल स्थान्तरित कर दिया गया। जेल से मुक्त होने के बाद दिसम्बर 1943 ई0 में वे अपने गाँव जौल पहुँचे।

  • 17 दिसम्बर, 1943 ई0 को उन्हें टिहरी जाते हुए चम्बा में रोक लिया गया।
  • 30 दिसम्बर, 1943 को उन्हें टिहरी जेल में भेज दिया गया।
  • 29 फरवरी, 1944 को उन्होंने यहीं अनशन शुरू किया, किन्तु राज्य की बेरूखी को देखकर 3 मई, 1944 से उन्होंने आमरण अनशन शुरू किया जो कि 25 जुलाई को उनकी मृत्यु पर ही समाप्त हुआ।

श्रीदेव सुमन ने लगभग 209 दिन कारावास में बिताए जिसमें से अन्तिम 84 दिन भूख हड़ताल पर रहने के बाद अपने प्राण त्याग दिये। शेखर पाठक ने उनकी भूख हड़ताल को ‘ऐतिहासिक अनशन’ की संज्ञा दी। उनकी शहादत ने टिहरी में जन आन्दोलन को ओर मजबूत किया। प्रजामण्डल को वैधानिक मान्यता मिली जिसका कार्यालय टिहरी नगर में स्थापित हुआ। आजाद हिन्द फौज के सैनिक भी टिहरी जन आन्दोलन के समर्थन में वर्ष 1946 ई0 गढ़वाल आए। उन्हीं के प्रयासों से वर्ष 1946 ई0 की 26 जुलाई को प्रथम बार सुमन दिवस मनाया गया।

 

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