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Prehistoric Period of Uttarakhand

उत्तराखंड का इतिहास – आद्यैतिहासिक काल (History of Uttarakhand – Prehistoric Period)

प्रागेतिहासिक काल व ऐतिहासिक काल के मध्य का समय आद्य ऐतिहासिक काल माना जाता है। यह मनुष्य के सांस्कृतिक विकास का दौर था इस काल के कुछ भाग में लिखित सामग्री प्राप्त नहीं हुई जबकि इसके अग्रिम चरण में लिखित प्रमाण मिले हैं इसलिए आद्य ऐतिहासिक काल का अध्ययन दो स्रोतों के माध्यम से किया जाता है।

  1. पुरातात्विक स्रोत
  2. लिखित स्रोत या साहित्यिक स्त्रोत

पुरातात्विक स्रोत (Archaeological Sources)

पुरातात्विक साधन अत्यन्त प्रमाणिक होते हैं तथा इनके माध्यम से इतिहास के अन्ध-युगों की भी जानकारी प्राप्त हो जाती है। इसके तहत मूलतः अभिलेख, स्मारक एवं मुद्रा सम्बन्धी अवशेष आते है। उत्तराखण्ड के इतिहास निर्माण में तो इनकी महत्ता और भी अधिक है।

पुरातात्विक स्रोतों को अध्ययन की दृष्टि से निम्न भागों में बांटा गया है –

ऊखल-सदृश गड्डे (Cup-Marks)

  • विशाल शिलाओं एवं चट्टान पर बने उखल के आकार के गोल गड्ढों को कप मार्क्स (Cup-marks) कहते हैं।
  • हेनवुड ने सर्वप्रथम चंपावत जिले के देवीधुरा नामक स्थान पर इस प्रकार के (ओखलियों) की खोज की।
  • सर्वप्रथम उत्तराखंड में पुरातात्विक स्रोतों की खोज का श्रेय हेनवुड (1856) को जाता है।
  • रिवेट-कारनक (1877 ई०) को अल्मोड़ा के द्वारहाट के कप मार्क्स चंद्रेश्वर मंदिर में लगभग 200 कप मार्क्स मिले जो कि 12 समांतर पंक्तियों में लगे हुए थे।
  • रिवेट-कारनक ने इन शैल चित्रों की तुलना यूरोप के शैलचित्रों से की।
  • डॉ० यशोधर मठपाल को द्वारहाट मंदिर से कुछ दूर पश्चिमी रामगंगा घाटी के नोला ग्राम में इन्हीं के समान 72 कप मार्क्स प्राप्त हुए।

ताम्र उपकरण

  • ये उपकरण तांबे के बने होते थे।
  • ताम्र निखात संस्कृति ऊपरी गंगा घाटी की प्राचीनतम संस्कृति है।
  • हरिद्वार के निकट बहादराबाद से ताम्र निर्मित भाला, रिंस, चूड़ियां आदि नहर की खुदाई के दौरान प्राप्त हुए। एच. डी. सांकलिया के अनुसार ये उपकरण गोदावरी घाटी से प्राप्त उपकरणों के समरूप थे।
  • वर्ष 1986 ई० में अल्मोड़ा जनपद से एक एवं वर्ष 1989ई० में बनकोट (पिथौरागढ़) से आठ ताम्र मानव आकृतियां प्राप्त हुए।
  • इन ताम्र उपकरणों से इस बात की पुष्टि होती है कि गढ़वाल – कुमाँऊ में ताम्र उत्पादन इस युग में होता था।

महापाषाणीय शवाधान

  • महापाषाणीय शवाधान का सबसे महत्वपूर्ण स्थल मलारी गांव (चमोली) है यहां 1956 ई० में महापाषाणीय शवाधान खोजे गये जिनकी खोज का श्रेय श्री शिव प्रसाद डबराल को जाता है। मलारी गांव मारछा जनजाति का गाँव है।
  • मलारी में मानव कंकाल के साथ-साथ भेड़, घोड़ो, आदि के कंकाल व मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए।
  • राहुल सांकर्त्यन ने हिमाचल प्रदेश के किन्नोर के लिपा गाँव में महापाषाणीय शवाधान की खोज की।

शवाधान – शवों को रखने की प्रथा शवाधान कहलाती है। हड़पा सभ्यता में तीन प्रकार की शवाधान विधियाँ थी।

  • पूर्ण समाधिकारण
  • आंशिक समाधिकारण
  • दाह संस्कार

लिखित स्रोत (Written Sources)

वेद

  • वेद चार है – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद।
  • सबसे पुराना वेद ऋग्वेद नवीनतम वेद अथर्ववेद है।
  • उत्तराखंड का प्रथम उल्लेख हमें ऋग्वेद से प्राप्त होता है।
  • उत्तराखंड को ऋग्वेद में देवभूमि मनीषियों की पूर्ण भूमि कहा गया है।

ब्राह्मण ग्रन्थ

  • ब्राह्मण ग्रन्थ यज्ञों तथा कर्मकांडों के विधान और इनकी क्रियाओं को समझने के लिए आवश्यक होते हैं। इनकी भाषा वैदिक संस्कृति है।
  • ये पद्य में लिखे गये है।
  • प्रत्येक वेद के ब्राह्मण ग्रन्थ होते हैं।
  • ऐतरेय ब्राह्मण ऋग्वेद का ब्राह्मण ग्रन्थ है।
  • ऐतरेय ब्राह्मण ग्रन्थ – उत्तराखंड के लिए ‘कुरुओं की भूमि’ या ‘उत्तर कुरु’ शब्द का प्रयोग हुआ है।
  • कौषीतकि ब्राह्मण ग्रन्थ वाक् देवी का निवास स्थान बद्री आश्रम में है।

पुराण

  • पुराण 18 हैं जिनमे सबसे बड़ा पुराण स्कंद पुराण है व सबसे पुराना पुराण मत्स्य पुराण है।
  • जातकों में भी हिमालय के गंगातट का वर्णन मिलता है।

स्कंद पुराण

  • स्कंद पुराण में 5 हिमालयी खंडो (नेपाल, मानसखंड, केदारखंड, जालंधर, कश्मीर) का उल्लेख है।
  • गढ़वाल क्षेत्र को स्कंद पुराण में केदारखंड कुमाँऊ क्षेत्र को मानसखंड कहा गया।
  • केदारखण्ड में गोपेश्वर ‘गोस्थल’ नाम से वर्णित है।
  • स्कंद पुराण में हरिद्वार को ‘मायापुरी’ कुमाँऊ के लिये कुर्मांचल शब्द का उल्लेख मिलता है।
  • कांतेश्वर पर्वत (कानदेव) पर भगवान विष्णु ने कुर्मा या कच्छपावतार लिया इसलिए कुमांऊ क्षेत्र को प्राचीन में कुर्मांचल के नाम से जाना जाता था। बाद में कुर्मांचल को ही कुमाँऊ कहा गया।
  • पुराणों में ‘मानसखंड’ ‘केदारखंड’ के संयुक्त क्षेत्र को – उत्तर खंड, ब्रह्मपुर एवं खसदेश नामों से संबोधित किया है।

ब्रह्मपुराण, वायुपुराण

  • ब्रह्मपुराण व वायुपुराण के अनुसार कुमाँऊ क्षेत्र में किरात, किन्नर, यक्ष, गंधर्व, नाग आदि जातियों का निवास था।

महाभारत

  • महाभारत के वनपर्व में हरिद्वार से केदारनाथ तक के क्षेत्रों का वर्णन मिलता है उस समय इस क्षेत्र में पुलिंद व किरात जातियों का अधिपत्य था।
  • पुलिंद राजा सुबाहु जिसने पांडवों की और से युद्ध में भाग लिया था कि राजधानी श्रीनगर थी।
  • महाभारत के वनपर्व में लोमश ऋषि के साथ पांडवों के इस क्षेत्र में आने का उल्लेख है।
  • आदि पर्व में उल्लेख – अर्जुन व उल्लुपी का विवाह गंगाद्वार में हुआ था।

रामायण

  • टिहरी गढ़वाल की हिमयाण पट्टी में विसोन नामक पर्वत पर वशिष्ठ गुफा, वशिष्ठ आश्रम, एवं वशिष्ठ कुंड स्थित है।
  • श्री राम के वनवास जाने पर वशिष्ठ मुनि ने अपनी पत्नी अरुंधति के साथ यहीं निवास किया था।
  • तपोवन टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है जहां लक्ष्मण ने तपस्या की थी।
  • पौड़ी गढ़वाल के कोट विकासखंड में सितोन्सयूं नामक स्थान है इस स्थान पर माता सीता पृथ्वी में समायी थी। इसी कारण कोट ब्लॉक में प्रत्येक वर्ष मनसार मेला लगता है।
  • रामायणकालीन बाणासुर का भी राज्य गढ़वाल क्षेत्र में था और इसकी राजधानी ज्योतिषपुर (जोशीमठ) थी।

अभिज्ञान शंकुतलम

  • अभिज्ञान शंकुतलम की रचना कालिदास ने की।
  • प्राचीन काल में उत्तराखंड में दो विद्यापीठ थे बद्रिकाश्रम एवं कण्वाश्रम
  • कण्वाश्रम उत्तराखंड के कोटद्वार से 14 km दूर हेमकूट व मणिकूट पर्वतों की गोद मे स्थित है।
  • कण्वाश्रम में दुष्यंत व शकुंतला का प्रेम प्रसंग जुड़ा है शकुंतला ऋषि विश्वामित्र तथा स्वर्ग की अप्सरा, मेनका की पुत्री थी।
  • शकुंतला व दुष्यंत का एक पुत्र हुआ भरत जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा।
  • इसी कण्वाश्रम में कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतलम की रचना की।
  • कण्वाश्रम मालिनी नदी के तट पर स्थित है।
  • वर्तमान में यह स्थान चौकाघाट के नाम से जाना जाता है।

मेघदूत

  • कालिदास द्वारा रचित मेघदूत के अनुसार अल्कापुरी (चमोली) कुबेर की राजधानी थी।

बौद्ध ग्रंथ

  • पाली भाषा के बौद्ध ग्रंथों में उत्तराखंड को हिमवंत कहा गया है।

अन्य

  • इतिहासकार हरीराम धस्माना, भजन सिंह, शिवांगी नौटियाल के अनुसार ऋग्वेद में सप्तसैंधव प्रदेश वर्तमान गढ़वाल ही था।
  • चमोली के निकट स्थित नारायण गुफा, व्यास गुफा, मुचकुंद गुफाओं में वेदों की रचना वादरायण या वेदव्यास ने की थी।
  • पुराणों के अनुसार मनु का निवास स्थान तथा कुबेर की राजधानी अलकापुरी (फूलों की घाटी) को माना जाता है।
  • ब्रह्मा के मानस पुत्रों दक्ष, मरीचि, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु और अत्रि का निवास स्थान गढ़वाल ही था।
  • बाणभट्ट की पुस्तक हर्षचरित में भी इस क्षेत्र की यात्रा पर आने-जाने वाले लोगों का उल्लेख मिलता है।
  • कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी में कश्मीर के शासक ललितादित्तय मुक्तापीड़ द्वारा गढ़वाल विजय का उल्लेख मिलता है।
  • जोशीमठ से प्राप्त हस्तलिखित ग्रन्थ ‘गुरूपादुक’ में अनेक शासक और वंशो का उल्लेख प्राप्त होता है।

विदेशी साहित्य

  • हर्षवर्धन के शासनकाल में ही चीनी यात्री ह्वेनसांग उत्तराखण्ड राज्य की यात्रा पर आया था, उसने अपने यात्रा वृतांत में हरिद्वार का उल्लेख ‘मो-यू-लो’ नाम से एवं हिमालय का ‘पो-लि-हि-मो-यू-ला’ अथवा ब्रह्मपुर राज्य के नाम से किया है।
  • चीनी यात्री युवान-च्वांड (ह्वेनसांग) ने सातवीं सदी में अपने यात्रा वृतांत में उत्तराखंड के विभिन्न शहरों का वर्णन किया है –
    • ब्रह्मपुर – उत्तराखंड
    • शत्रुघ्न नगर – उत्तरकाशी
    • गोविपाषाण – काशीपुर
    • सुधनगर – कालसी
    • तिकसेन – मुनस्यारी
    • बख्शी – नानकमत्ता
    • ग्रास्टीनगंज – टनकपुर
    • मो-यू-लो – हरिद्वार
  • मुगल काल में आए पुर्तगाली यात्री जेसुएट पादरी अन्तोनियो दे अन्द्रोदे 1624 में श्री नगर पंहुचा उस समय यहां का शासक श्यामशाह था।
  • तेमुर की आत्मकथा मुलुफात-इ-तिमुरी के अनुसार गंगाद्वार के निकट युद्ध करने वाले शासक –
    • बहरुज (कुटिला/कपिला राजा)
    • रतन सेन (सिरमौर का राजा)
  • फ्रांसिस बर्नियर ने हरिद्वार को शिव की राजधानी के रूप में उल्लेख किया है।

 

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