Post Mauryan Period of Bihar Archives | TheExamPillar

Post Mauryan Period of Bihar

मौर्योत्तर बिहार (Post Mauryan Period of Bihar)

मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारत में विकेंद्रीकरण की प्रवृत्ति उभरकर सामने आई। अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग वंशों ने राज्य स्थापित किया। मगध एवं बिहार क्षेत्र में शुंग एवं कण्व वंश, पश्चिमोलर एवं मध्य भारत में कुषाण वंश, दक्कन क्षेत्र में आंध्र सातवाहन वंश, पश्चिमी भारत में शक एवं उड़ीसा के क्षेत्र में चैत्र वंश ने शासन स्थापित किया। इन सभी वंशों ने किसी-न-किसी रूप में मगध एवं बिहार के इतिहास को प्रभावित किया है।

शुंग वंश (185 ई.पू.-72 ई.पू.) [Shung Dynasty (185 B.C. – 72 B.C.)]

  • संस्थापक – पुष्यमित्र शुंग
  • अंतिम शासक – देवभूति 
  • राजधानी – पाटलिपुत्र

शुंग वंश की स्थापना 185 ई.पू. में पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य वंश के अंतिम शासक वृहद्रथ की हत्या कर की। शुंग वंश की जानकारी हमें धनदेव का अयोध्या लेख, वेशनगर (विदिशा मध्य प्रदेश) का गरुड़ स्तंभलेख, कालिदास का ‘मालविकाग्निमित्रम्’ एवं पतंजलि के ‘महाभाष्य’ से मिलती है। पुष्यमित्र शुंग ने मगध साम्राज्य पर अपना अधिकार जमाकर जहाँ एक ओर यवनों के आक्रमण से देश की रक्षा की, वहीं दूसरी ओर देश में शांति व्यवस्था की स्थापना कर वैदिक धर्म एवं आदर्शों को पुनः प्रतिष्ठापित किया। इसी कारण उसका काल वैदिक प्रतिक्रिया अथवा वैदिक पुनर्गरण का काल कहलाता है। पुष्यमित्र शुंग ने विदर्भ एवं यवनों के साथ युद्ध किया, जिसमें उसे विजय प्राप्त हुई।

पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अग्निमित्र शुंग वंश का राजा हुआ। उसने कुल 8 वर्षों तक (140 ई.पू.) तक शासन किया। अग्निमित्र कालिदास का नाटक ‘मालविकाग्निमित्रम्’ का नायक है। शुंग वंश का अंतिम शासक देवभूति था, जिसकी हत्या वशुमित्र ने कर दी थी। शुंग वंश का साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में घर तक तथा पश्चिम में पंजाब से लेकर पूर्व में मगध तक फैला हुआ था। साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी। शासन की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद् थी। इस समय ‘ग्राम’ शासन की सबसे छोटी इकाई थी। पुष्यमित्र शुंग ने 84 हजार बौद्ध स्तूपों को नष्ट कर दिया था, लेकिन साँची, भरहुत एवं बोधगया के बौद्ध स्तूपों को और भव्य बनवाया था।

शुंग वंश के शासन काल में स्वर्ण मुद्रा को निष्क, दिनार, सुवर्ण, स्वर्ण मासिक आदि कहा जाता था। ताँबे के सिक्के ‘कार्षापण’ कहलाते थेचाँदी के सिक्के के लिए ‘पुराण’ अथवा ‘धारण’ शब्द का उल्लेख मिलता है। इसी समय समाज में भागवत धर्म का उदय हुआ। इस काल में लौकिक संस्कृत के पुनरुत्थान में महर्षि पतंजलि का मुख्य योगदान था, जिन्होंने ‘महाभाष्य’ लिखा। शृंगकालीन वास्तुशिल्प के उत्कृष्ट नमूने बोध गया से प्राप्त होते हैं। बोध गया के विशाल मंदिर के चारों ओर एक छोटी पाषाण वेदिका मिली है, जिसका निर्माण शुंग काल में हुआ था।

कण्व वंश (72-27 ई.पू.) [Kanva Dynasty (72 B.C. – 27 B.C.)]

  • संस्थापक – अमात्य वसुमित्र
  • अंतिम शासक – सुशर्मा

शुंग वंश के अंतिम राजा देवभूति की हत्या कर उसके अमात्य वसुमित्र ने एक नए वंश कण्व राजवंश की स्थापना की। ये शुंगों के समान ही ब्राह्मण थे। वसुमित्र ने कुल 9 वर्षों तक शासन किया तथा उसके बाद भूमिमित्र, नारायण और सुशर्मा ने शासन किया। सुशर्मा इस वंश का आखिरी शासक था, जिसकी हत्या आंध्रजातीय भृत्य शिमुक द्वारा कर दी गई। सुशर्मा की मृत्यु के साथ ही कण्व राजवंश का अंत हो गया।

कुषाण वंश (Kushan Dynasty)

  • संस्थापक – कुजुल काडफिसस
  • सर्वश्रेष्न शासक – कनिष्क 
  • अंतिम शासक – वासुदेव

कुषाण वंश की स्थापना कुजुल काडफिसस द्वारा की गई थी, लेकिन इस वंश का सर्वश्रेष्न शासक कनिष्क था, जो 75 ई. में शासक बना था। कनिष्क ने अपनी राजधानी कनिष्कपुर (कश्मीर) अथवा पुरुषपुर में स्थापित की थी। कनिष्क ने अपने सामान्य विस्तार के क्रम में मगध तक के क्षेत्र को जीत लिया था तथा प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान अश्वघोष को पाटलिपुत्र से अपनी राजधानी पुरुषपुर ले गया था। अश्वघोष ने ही कनिष्क द्वारा आयोजित चतुर्थ बौद्ध संगीति की अध्यक्षता की थी। कुषाणकलीन पुरातात्विक अवशेष बिहार के कई स्थानों से प्राप्त हुए हैं। कुषाणों के पतन के बाद वैशाली के लिच्छवियों ने मगध पर शासन किया, लेकिन इतिहासकार इस मत से सहमत नहीं हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कुषाण वंश के पतन के बाद मगध क्षेत्र में शक-मुरुड को शासन स्थापित था।

 

Read Also … 

 

error: Content is protected !!