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Movement in Bihar

बिहार में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जन आंदोलन

जब कंपनी ने सन् 1767 में इस क्षेत्र में पदार्पण किया, तभी यहाँ असंतोष व्याप्त हो गया था। जनजातीय शैली वैसे भी कठिन थी और फिर ऊपर से प्राकृतिक अकालों एवं आपदाओं ने इनके सामने बड़े भीषण संकट पैदा कर दिए। आर्थिक कठिनाइयों और अन्न के अभाव ने इन जनजातियों को तोड़कर रख दिया। उस पर भी मुगलों, मराठों एवं स्थानीय जमीदारों ने इनका दमन व शोषण करके इन्हें विद्रोही बना दिया।

प्रशासकीय स्तर पर जनजातीय लोगों के हितों एवं अधिकारों का हनन तथा दमन किया जा रहा था। इसके साथ इन लोगों को अपनी सभ्यता एवं संस्कृति पर भी खतरा मँडराता दिखाई दे रहा था। इस प्रकार के सभी कारणों ने जनजातीय विद्रोह को जन्म दिया।

इन जनजातीय लोगों को अपनी संस्कृति, अधिकारों एवं स्वतंत्रता में किसी का भी हस्तक्षेप पसंद नहीं था। अंग्रेजों के साथ आई उनकी दुरूह संस्कृति ही भारतीयों को पसंद नहीं थी, तो फिर जनजातीय लोग इसे कैसे सहन करते!

अंग्रेजों के आने से जनजातीय लोगों को अपनी पहचान व स्वतंत्रता खतरे में पड़ती दिखाई देने लगी थी। 17वीं शताब्दी के अंत में जनजातीय विद्रोह शुरू हो गए थे, जबकि अंग्रेज यहाँ केवल दो दशक पहले ही आए थे। इन जनजातीय विद्रोहों में अंग्रेजों की पक्षपातपूर्ण नीति का भी हाथ था। अंग्रेज किसी एक के हितैषी बनकर अन्य सबको शोषण की भट्ठी में झोंक देते थे। राजा, जमींदार, अधिकारी सभी जनजातीय प्रजा के लिए यमदूत सिद्ध हो गए थे। इन विद्रोहों के पीछे इन लोगों का स्वाभिमान स्पष्ट झलकता था। अंग्रेजी शासन में कुल 13 जनजातीय विद्रोह हुए, जिनमें से मुख्य विद्रोहों निम्नलिखित है – 

  1. तमाड़ विद्रोह
  2. चेरो विद्रोह
  3. ‘हो’ विद्रोह
  4. कोल विद्रोह
  5. भूमिज विद्रोह
  6. संथाल विद्रोह
  7. सरदारी आंदोलन
  8. खरवार आंदोलन
  9. बिरसा मुंडा आंदोलन
  10. टाना भगत आंदोलन
  11. नोनिया विद्रोह
  12. वहाबी आंदोलन
  13. लोटा विद्रोह

 

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