Igas festival in Uttarakhand Archives | TheExamPillar

Igas festival in Uttarakhand

इगास (बूढ़ी दिवाली)

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में इगास अथवा पहाड़ी/पुरानी दीवाली अथवा बूढ़ी दीवाली का पर्व मैदानी क्षेत्रों में मनायी जाने वाली दीवाली के 11 दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी की तिथि को मनाया जाता है, जिसे हरिबोधिनी या देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पहाड़ की लोकसंस्कृति से जुड़े इगास पर्व के दिन घरों की साफ-सफाई के बाद मीठे पकवान बनाए जाते हैं और देवी-देवताओं की पूजा की जाती है।

इगास का अर्थ

इगास का मतलब गढ़वाली भाषा मे एकादशी होता है। और बग्वाल का मतलब दीपावली। अतः कार्तिक मास शुक्लपक्ष की एकादशी को मनाई जाने वाली दीपावली को उत्तराखंड की भाषा मे इगास बग्वाल कहा जाता है। उत्तराखंड गढ़वाल में 4 बग्वाल होती हैं। 

  • प्रथम बग्वाल कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को होती है। 
  • दूसरी बग्वाल कार्तिक अमावस्या को मनाई जाती है। यह बग्वाल (दीपावली ) पूरे देश में मनाई जाती है। 
  • तीसरी बग्वाल, जिसे बड़ी बग्वाल भी कहते हैं, यह कार्तिक माह की एकादशी को इगास बग्वाल के रूप में मनाई जाती है। 
  • चौथी बग्वाल जिसे रिख बग्वाल कहते हैं। इस चौथी बग्वाल को गढ़वाल के प्रतापनगर, जौनपुर, चमियाला,थौलधार, रवाईं और जौनसार क्षेत्र में बूढ़ी दीवाली के रूप में मनाई जाती है। यह चौथी बग्वाल, दूसरी बग्वाल के ठीक एक माह बाद मनाई जाती है। 

इगास क्यों मनाई जाती है ?

इगास त्यौहार मनाने के विषय मे उत्तराखंड में अनेक धारणाएं और मान्यताएं प्रचलित है।

पहली मान्यता के अनुसार, सारे देश मे दीपावली भगवान राम के अयोध्या आगमन की खुशी में दीपावली पर्व मनाया जाता है। लेकिन कहते हैं कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में भगवान राम के लौटने की खबर 11 दिन बाद मिली इसलिए पहाड़ों में 11 दिन बाद खुशियां मनाई गई। लेकिन इस मान्यता के पीछे तर्क मजबूत नहीं है। क्योंकि उत्तराखंड के पहाड़वासी, इगास के साथ आमावस्या वाली दीपावली भी मनाते हैं। और इगास उत्तराखंड के कुछ भागों में मनाई जाती है। 

दूसरी पहली मान्यता के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी, दापाघाट तिब्बत का युद्ध जीतकर, अपने सैनिकों के साथ घर लौटे थे। वीर माधो सिंह भंडारी के विजयी होकर लौटने की खुशी में, लोगो ने एकादशी के दिन बग्वाल खेल कर खुशियां मनाई। और यह खुशी का अवसर कालांतर में इगास त्योहार के रूप में मानने लगे।

अन्य मान्यता यह है कि आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष में पड़ने वाली एकादशी के दिन, जिसे हरिशयनी एकादशी कहा जाता है, भगवान् विष्णु महाबली शंखासुर नामक राक्षस के साथ हुए भयंकर युद्ध में, जिसमें उसका वध कर दिया गया था, इतने अधिक थक गये थे कि इसके बाद वे विश्राम के लिए क्षीरसागर में जाकर शेषशय्या पर सो गये और चार मास तक सोये रहे और फिर शुक्ल एकादशी, जिसे हरिबोधिनी यो देवोत्थान एकादशी कहा जाता है, को उठे। इसे व्रतोत्सव के रूप में मनाये जाने लगा। 

दीपावली के तीन रूप होते हैं जो कि लक्ष्मी के तीन अवस्थाओं का द्योतन करते हैं –

  • कोजागर (को जागर्ति कौन जाग रहा है), पौर्णमासी को मनायी जाने वाली ‘छोटी दीवाली’ उसकी बाल्यावस्था का, 
  • कार्तिक कृष्ण पक्षीय अमावस्या को मनाया जाने वाला ‘महालक्ष्मी पूजन’, उसकी यौवनावस्था का तथा 
  • कार्तिक शुक्ल एकादशी को मनायी जानेवाली ‘बूड़ी दिवाली’ उसकी वृद्धावस्था का निदर्शन कराती है। 

इस दिन नगरों के लोग अपने घरों के छज्जों पर या छतों पर गन्ने के डंडों को लटका देते हैं ताकि लक्ष्मी जी उसके पोरों की सीढ़ियों पर पैर रखकर घर के अन्दर आ सकें।

इस सम्बन्ध में कुछ लोगों का यह भी कहना है कि निद्रा से जागने के उपरान्त भगवान् विष्णु ने क्षीरसागर से बाहर निकलने के लिए गन्ने की सीढ़ियों का सहारा लिया था। कतिपय वर्गों की महिलाएं भगवान् विष्णु एवं महालक्ष्मी जी का स्वागत करने तथा घर से दारिद्रय को दूर भगाने के लिए सूप (छाज) के अन्दर की ओर लक्ष्मीनारायण का तथा बाहर की ओर से भुइयां का चित्रांकन करती हैं ।

कैसे मनाते हैं इगास (बूढ़ी दिवाली) पर्व ?

मुख्य दीपावली पर्व की तरह भी इगास बग्वाल को भी घरों में साफसफाई और दीये जलाए जाते हैं। इस त्यौहार के दिन गाय ,बैलों को पौष्टिक भोजन कराया जाता है। बैलों के सींगों में तेल लगाया जाता है। गोवंश के गले मे माला पहनाकर उनकी पूजा करते हैं। बग्वाल पर्व पर गढ़वाल में बर्त खींचने की परंपरा भी है। यह बर्त का मतलब है, मोटी रस्सी ।

इगास पर्व पर भैलो खेलने की परम्परा है। भैलो चीड़ या भीमल आदि की लकड़ियों की गठरनुमा मशाल होती है। जिसे रस्सी से बांधकर शरीर के चारो ओर घुमाते हैं। तथा खुशियां मनाते हैं। हास्यव्यंग करते हुए, लोक नृत्य और लोककलाओं का प्रदर्शन भी इस दिन किया जाता है। कई क्षेत्रों में पांडव नृत्य की प्रस्तुतियां भी की जाती हैं।

 

Read Also :
Uttarakhand Study Material in Hindi Language (हिंदी भाषा में)  Click Here
Uttarakhand Study Material in English Language
Click Here 
Uttarakhand Study Material One Liner in Hindi Language
Click Here
Uttarakhand UKPSC Previous Year Exam Paper  Click Here
Uttarakhand UKSSSC Previous Year Exam Paper  Click Here
error: Content is protected !!