Global Hunger Index India Rank

ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024

ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2024 ने भारत के लिए बेहद चिंताजनक तस्वीर पेश की है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 14% जनसंख्या यानी करीब 200 मिलियन लोग कुपोषण का शिकार हैं। अगर इस आंकड़े को एक देश की आबादी के रूप में देखा जाए, तो यह दुनिया का सातवां सबसे बड़ा देश होता। यह आंकड़े भारत के आर्थिक विकास के विपरीत हैं, जहां भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। लेकिन भूख और कुपोषण के मामले में यह आंकड़े सरकार की नीतियों और योजनाओं की असफलता को उजागर करते हैं।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024: एक संक्षिप्त अवलोकन

GHI की यह 19वीं रिपोर्ट है, जिसमें कुल 127 देशों का विश्लेषण किया गया है। इन देशों को “निम्न” से लेकर “अत्यंत गंभीर” तक के श्रेणियों में विभाजित किया गया है। भारत को “गंभीर” श्रेणी में रखा गया है, जहां इसकी रैंक 105 और स्कोर 27.3 है। हालांकि, कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए भारत को “अत्यंत गंभीर” श्रेणी में रखा जा सकता है। रिपोर्ट में भारत के आंकड़े सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के माध्यम से लिए गए हैं, जो कि भारत सरकार द्वारा प्रकाशित किए जाते हैं।

मुख्य आंकड़े और रिपोर्ट का महत्व

रिपोर्ट के अनुसार, भारत के कुपोषण के स्तर और स्वास्थ्य प्रणाली में खामियों की ओर इशारा किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के बावजूद इसका एक बड़ा हिस्सा कुपोषण का सामना कर रहा है।

भारत की अर्थव्यवस्था और कुपोषण: एक विरोधाभास

2024 में भारत की जीडीपी लगभग $4 ट्रिलियन थी, जो इसे दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाती है। लेकिन जब हम प्रति व्यक्ति आय की बात करते हैं, तो यह वैश्विक औसत से काफी कम है। 2024 में भारत की प्रति व्यक्ति आय $2,485 थी, जो वैश्विक औसत $13,920 के एक चौथाई से भी कम है। यह असमानता सीधे तौर पर लोगों की क्रय शक्ति पर असर डालती है, विशेषकर गरीब वर्ग के लोगों पर।

खाद्य मुद्रास्फीति और उसके प्रभाव

2024 में भारत में खाद्य मुद्रास्फीति 7.5% तक बढ़ गई, जो 2022 में 3.8% थी। यह बढ़ोतरी गरीबों के लिए और भी कठिनाई पैदा करती है, खासकर उन लोगों के लिए जिनकी आय पहले से ही कम है। 2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण ने इसका मुख्य कारण “चरम मौसम की घटनाएं, जलाशयों के निम्न स्तर और फसलों के खराब होने” को बताया है, जो कृषि उत्पादन को प्रभावित कर रही हैं।

कृषि उत्पादन और कुपोषण: एक विरोधाभासी स्थिति

भारत ने 2023-24 में अपने इतिहास के सबसे बड़े खाद्य उत्पादन में से एक, 332 मिलियन टन रिकॉर्ड किया। इसमें चावल और गेहूं की बड़ी फसलें शामिल थीं, जबकि दालें और सब्जियां मौसम की चरम घटनाओं से प्रभावित हुईं। हालांकि, यह रिकॉर्ड उत्पादन भारत में खाद्य सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सका। रिपोर्ट के अनुसार, यह कृषि उत्पादन भी भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था की असफलताओं और कुपोषण को दूर करने में विफल रहा है।

बच्चों में कुपोषण के संकेतक

भारत में बच्चों के पोषण से संबंधित कई चिंताजनक आंकड़े सामने आए हैं। 2022 में, भारत में शिशु मृत्यु दर प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 26 थी, जबकि वैश्विक औसत 28 था। इसके अलावा, रिपोर्ट में भारत में 35.5% बच्चों के स्टंटिंग (लंबाई में कमी) और 18.7% बच्चों के वेस्टिंग (वजन की कमी) की दरों का भी उल्लेख किया गया है। ये आंकड़े भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की विफलता को उजागर करते हैं।

जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा

भारत में जलवायु परिवर्तन ने खाद्य सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। चरम मौसम की घटनाएं जैसे सूखा, बाढ़, और अत्यधिक गर्मी फसलों के उत्पादन को प्रभावित कर रही हैं। रिपोर्ट इस तथ्य को भी उजागर करती है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत की खाद्य सुरक्षा पर एक गहरी छाया पड़ रही है। अगर समय पर कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में स्थिति और भी बदतर हो सकती है।

स्वास्थ्य और सुरक्षा तंत्र की विफलता

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के स्वास्थ्य और सुरक्षा तंत्र ने कुपोषण को दूर करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं। कई सरकारी योजनाओं और नीतियों के बावजूद, कुपोषण की दरें अभी भी बहुत अधिक हैं। सरकार को न केवल स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करना होगा, बल्कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे ताकि कृषि उत्पादन को प्रभावित होने से बचाया जा सके।

निष्कर्ष

ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024 भारत के लिए एक कड़ी चेतावनी है। जहां एक ओर भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर देश का एक बड़ा हिस्सा कुपोषण से जूझ रहा है। सरकार को न केवल अपने स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा तंत्र में सुधार करना चाहिए, बल्कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों का भी सामना करना होगा।

 

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ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) – 2018

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  • वैश्विक भूख सूचकांक 2018 (2018 Global Hunger Index – GHI) 11 अक्टूबर को जारी किया गया। इस सूचकांक में 119 देशों का आकलन किया गया जिसमें भारत की रैंकिंग 31.1 स्कोर के साथ 103 थी। वर्ष 2017 में भारत की रैंकिंग 100 थी जबकि 2014 में 55 वें पायदान पर। इस प्रकार से देखा जाये तो भारत द्वारा अनेक कल्याणकारी योजनाओं के संचालन के बावजूद सापेक्ष रूप से स्थिति बदतर हुई है। इसका मूल कारण इन योजनाओं का ठीक ढंग से क्रियान्वयन न किया जाना है। भारत में भूख का स्तर गंभीर (serious) है। इस रिपोर्ट का संयुक्त प्रकाशन कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेलथंगरहिल्फे (Concern Worldwide and Welthungerhilfe) द्वारा किया गया है और इस सूचकांक का मुख्य फोकस ‘Forced Migration and Hunger’ है।
  • 119 देशों वाले इस इंडेक्स के अनुसार प्रथम 15 देश ऐसे हैं। जिनका स्कोर 5 से कम है। बेलारूस को प्रथम स्थान हासिल हुआ है जबकि न्यूनतम रैंकिंग वाला देश है- मध्य अफ्रीकी गणराज्य जो 119वें पायदान पर है। भारत की रैंक पड़ोसी देशों चीन (25), श्रीलंका (67), नेपाल (72) और बांग्लादेश (86) से पीछे है। भारत केवल पाकिस्तान (106) और अफगानिस्तान (111) से बेहतर स्थिति में है।

शीर्ष 5 देश

  1. बेलारूस (Belarus ) < 5
  2. बोस्निया एवं हर्जेगोविना (Bosnia & Herzegovina) < 5
  3. चिली (Chile) < 5
  4. कोस्टारिका (Costa Rica) < 5
  5. क्रोएशिया (Croata) < 5

Note – 1 – 15 रैंकिंग तक 5 से कम स्कोर वाले देशों का विवरण है, जिसमें शीर्ष रैंकिग बेलारूस की है।

वैश्विक परिदृश्य

  • दुनिया भर में भूख और कुपोषण का स्तर 20.9 जीएचआई स्कोर के साथ गंभीर श्रेणी में है। इसका स्तर वर्ष 2000 के 29.2 स्कोर से कम हुआ है। इन अन्तराल वर्षों में भूख और कुपोषण के स्तर में कुल 28% की गिरावट आई है। यह गिरावट वैश्विक भूख सूचकांक 2018 को मापने वाले 4 संकेतकों में सुधार होने से संभव हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार शून्य सबसे बेहतर स्कोर जबकि 100 सबसे खराब स्कोर है।

4 संकेतक हैं –

  1. अल्पपोषण की व्यापकता (prevalence of undernourishment)
  2. आयु के अनुपात में बच्चों (5 वर्ष से कम आयु) की कम लम्बाई या बौनापन (child stunting)
  3. लम्बाई के अनुपात में बच्चों का कम वजन (5 वर्ष से कम 3714) (child wasting)
  4. बाल मृत्यु दर (5 वर्ष से कम आयु) (child mortality)।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में विश्व की लगभग 124 मिलियन लोग तीव्र भूख (acute hunger) से पीड़ित हैं। दो वर्ष पहले इस वर्ग में 80 मिलियन लोग ही शामिल थे।
  • दुनिया भर में लगभग 151 मिलियन बच्चे छोटे कद या ठिगने (stunted) और 51 मिलियन बच्चे कमजोर (wasted) स्थिति में हैं। दुनिया भर से भुखमरी का उन्मूलन वर्ष 2015 तक करना था जिसे अब बढ़ाकर 2030 कर दिया गया है। लेकिन इस लक्ष्य को पाने के लिए हम सब ट्रैक पर नहीं दिख रहे।
  • हालांकि तुलनात्मक रूप से भुखमरी व कुपोषण आदि में सुधार हुआ है बावजूद इसके यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि 2030 तक क्या विश्व सतत विकास लक्ष्य (SDG 2) को प्राप्त कर लेगा। इसके प्रमुख लक्ष्य हैं- भुखमरी उन्मूलन, खाद्य सुरक्षा व पोषण स्तर में सुधार और सतत खेती को बढ़ावा देना। विश्लेषकों का मानना है कि अगर भूख और कुपोषण को कम करने के लिए जिस गति से प्रगति जारी है, इस स्थिति में 2030 तक लगभग 50 देश अपने यहां से भुखमरी को समाप्त नहीं कर पाएंगे।
  • क्षेत्र स्तर पर GHI स्कोर के हिसाब से दक्षिण एशिया और भी भुखमरी की गंभीर स्थिति में बने हुए हैं।

 

न्यूनतम 5 देश के देश

119. मध्य अफ्रीकी गणराज्य (Central African Republic53.7
118. चाड (Chad) 45.4
117. यमन (Yemen) 39.7
116.  मेडागास्कर (Madagascar38.0
115. जाम्बिया (
Zambia) 37.6 

 

ब्रिक्स एवं सार्क देशों की रैंकिंग

21. रूस (Russia) – 6. 1
25. चीन (China) – 7.6
31.  ब्राजील (Brazil) – 8.3
60. दक्षिण अफ्रीका (South Africa) – 14.5
67. श्रीलंका (Sri Lanka) – 17. 9
72. नेपाल (Nepal) – 21.2
86. बांग्लादेश (Bangladesh) – 26.1
103. भारत (India) – 31
106. पाकिस्तान (Pakistan) – 32.6
111. अफगानिस्तान (Afghanistan) – 34.3

भारतीय संदर्भ

  • राईट टू फूड कानून, मनरेगा योजना और लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा सस्ते दरों पर खाद्य वितरण के बावजूद भी भारत की स्थिति भूख और पोषण के हिसाब से दयनीय है और 5 में से कम से कम 1 बच्चा कम वजन का है। कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन से भारत में तीन स्तरों पर बेहतरी आई है। अल्पपोषण जहां वर्ष 2000 में 18.2% थी वह 2018 में घटकर 14.8% के स्तर पर पहुंच गयी। इसी अवधि में बाल मृत्यु दर 9.2% से घटकर 4.3% और बौनापन 54.2% से कम होकर 38.4% के स्तर पर पहुंच गया जो कि सुधारात्मक स्थिति का द्योतक है।
  • अपने देश के नागरिकों को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराना हर सरकार की जिम्मेदारी है। भारत भी इस दायित्व से बंधा हुआ है। 1948 में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा अनुच्छेद 25 के तहत युनिवर्सल डिक्लरेशन ऑफ ह्युमन राइट्स (Universal Declaration of Human Rights) को अंगीकृत किया गया है। इसके तहत हर देश के नागरिकों को भोजन प्राप्त करने का अधिकार है जिसे देश विशेष द्वारा उपलब्ध कराया जायेगा।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर भारतीय को जीवन के लिए मौलिक अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है जिसमें भोजन का अधिकार भी सन्निहित है। अनुच्छेद 47 भी भारत सरकार को अपने लोगों के पोषण के स्तर को बढ़ाने के लिए बाध्य करता है।

निष्कर्ष

सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के पूरी तरह से लागू होने की देरी है। भारतीय भुखमरी के लिहाज से बहुत ही द्रुत गति से योजनाओं को क्रियान्वित करना होगा तभी हम 2030 के लक्ष्य को हासिल कर पाएंगे। भुखमरी व अल्पपोषण से मुक्त होकर भारत मानव पूंजी के मामले में अग्रणी भूमिका निभाकर न केवल आर्थिक उन्नयन में अहम भूमिका निभाएगा अपितु सकारात्मक माहौल में हम एक बेहतर देश के नागरिक भी माने जायेंगे।

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