उत्तराखंड का ऐतिहासिक काल
(Historical period of Uttarakhand)
उत्तराखण्ड में ऐसे अनेक पुरातात्विक साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जिनके आधार पर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यह क्षेत्र प्रागैतिहासिक काल से ही मानवीय गतिविधियों से सम्बद्ध रहा है। उत्तराखण्ड के इतिहास को दो चरणों प्राग ऐतिहासिक काल एवं ऐतिहासिक काल में विभाजित किया गया है। पुरातत्व की दृष्टि से मानव इतिहास का प्राचीनतम चरण पाषाण युग है।
इतिहासकार ‘डा. मदन मोहन जोशी’ के अनुसार इसे तीन चरणों – निम्न पुरा पाषाण युग (Low Paleolithic Age), मध्य पुरापाषाण युग (Middle Paleolithic Age) और उच्च पुरापाषाण युग (Upper Paleolithic Edge) में विभाजित किया गया है।
निम्न पुरा पाषाण युग के उपकरणों की उत्तराखण्ड में कालसी के निकट यमुना नदी के कगार पर, श्रीनगर के समीप अलकनन्दा के कगार पर, एवं पश्चिमी राम गंगा घाटी, जनपद अल्मोड़ा तथा खुटानी नाला, जनपद नैनीताल में खोज डा. के. पी. नौटियाल एवं डा. यशोधर मठपाल ने की है। गढ़वाल में ही श्रीनगर के समीप डा. के. पी. नौटियाल ने मध्य पुरापाषाण युग के उपकरण मिलने का दावा किया है। हालांकि उच्च पुरापाषाण युग के उपकरण मिलने की सूचना किसी पुराविद ने अभी तक सबूतों के साथ उत्तराखण्ड में नहीं दी है, यद्यपि हिमालय में अन्यत्र इनकी मिलने की सूचना है।
डा. मदन मोहन जोशी का मत है कि उत्तराखण्ड में प्राचीन मानव की गतिविधियों के प्रमाण यहाँ स्थित शैलाश्रयों में अंकित पाषाण युगीन चित्रण से भी प्राप्त होते हैं। ये शिलाश्रय उत्तराखण्ड के दो जनपदों- अल्मोड़ा तथा चमोली में प्राप्त हुए हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार ‘डा. यशवन्त सिंह कटोच’ के अनुसार सन् 1968 में अल्मोड़ा जनपद के सुयाल नदी के दायें तट पर स्थित लखु उड्यार के शैलाश्रय (Painted Rock Shelters) उत्तराखण्ड में प्रागैतिहासिक शैलाश्रय चित्रों की पहली खोज थी। डा. एम. पी. जोशी की इस महत्वपूर्ण खोज के उपरान्त अल्मोड़ा जनपद में ही फड़कानौली, फलसीमा, ल्वेथाप, पेटशाल, कालामाटी एवं मल्ला पैनाली में भी शिलाश्रय मिले हैं। ये सभी शिलाश्रय, कालामाटी-डीनापानी पर्वत श्रृंखला की पूर्व दिशा में लगभग 15 किमी0 की परिधि में केन्द्रित हैं। गढ़वाल हिमालय में भी दो शैलाश्रयों की खोज हुई है। चमोली जनपद में प्रथम ग्वरख्या-उड्यार, अलकनन्दा घाटी में और द्वितीय पिण्डर घाटी के किमनी ग्राम में। अब तक अल्मोड़ा जनपद में एक दर्जन से अधिक शिलाश्रय प्रकाश में आ चुके हैं।
लखु उड्यार (Lakhu Cave)
सुयाल नदी के पूर्वी तट पर, लखु उड्यार उत्तराखण्ड का सर्वोत्तम व सुलभतम शिलाश्रय है। यह अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ मोटर मार्ग में अल्मोड़ा से लगभग 16 किमी की दूरी पर स्थित है, नागफनी के आकार का यह भव्य शिलाश्रय मोटर मार्ग से ही दिखाई देता है। धूप और वर्षा के कारण फर्श के समीपवर्ती चित्र काफी धुंधले हो चुके हैं। चित्र सफेद, गेरू, गुलाबी और काले रंगों से बने हैं। मुख्य विषय सामूहिक नृत्य का है; एक नर्तक मंडली में कुछ वर्षों पूर्व 34 आदमी गिने जा सकते थे जबकि दूसरे में 28। उत्तर की ओर 6 मनुष्यों को एक जानवर का पीछा करते दिखाया गया है। इसके अतिरिक्त दैनिक जीवन के दृश्य, जानवर और अलंकारिक आलेखन के यहाँ रेखाओं एवं बिन्दुओं से बने ज्यामितीय चित्रण भी मिले हैं।
लखु उडियार से लगभग आधा कि.मी. पहले फड़का नौली चुंगी घर के आस पास तीन शिलाश्रय है। जिनमें चित्रअवशेष विद्यमान हैं। प्रथम शिलाश्रय की छत नागराज के फन की भांति बाहर निकली है और इसकी दीवार पर आकृतियों के 20 संयोजन विद्यमान है जो सारे के सारे धुंधले हो चुके हैं। दूसरे शिलाश्रय में 10 स्थानों पर चित्रण के प्रमाण हैं। तीसरा शिलाश्रय सड़क के नीचे और सुयाल के तट पर स्थित है। यह आवास के लिए उत्तम स्थान रहा होगा। फड़का नौली के शिलाश्रय 1985 में तथा पेटशाल के 1989 में डा. यशोधर मठपाल ने खोजे थे। लखुउडियार से दो कि.मी. दक्षिण-पश्चिम में पेटशाल गाँव के ऊपर दो चित्रमय शिलाश्रय हैं। जिनको स्थानीय पत्थर निकालने वालों ने क्षतिग्रस्त कर दिया है। इनमें पश्चिम दिशा वाला शिलाश्रय 8 मीटर गहरा तथा 6 मीटर ऊँचा है। इसकी छत 4 मीटर तक बाहर निकली है। पेटशाल की दूसरी गुफा जो 50 मीटर पूर्व में है, इसकी गहराई 3.10 मीटर तथा ऊँचाई 4 मीटर और छत की लम्बाई 2 मीटर है।
अल्मोड़ा से लगभग 8 कि0मी0 उत्तर-पूर्व और फलसीमा गाँव से 2 कि0मी0 दक्षिण-पूर्व में दो चट्टानें विद्यमान हैं। पहली चट्टान पर चित्रण योग्य फलक नहीं हैं। जबकि दूसरी चट्टान में चित्र आंके गए हैं। चट्टान का निचला भाग क्षतिग्रस्त है। समीप ही दो चट्टानों पर 2 कप मार्क है।। अल्मोड़ा नगर से ही 8 कि0मी0 उत्तर में कसार देवी पहाड़ी पर भी कई शिलाश्रय हैं।
अल्मोड़ा बिनसर मोटर मार्ग में दीना पानी से 3 कि0मी0 दूरी में ल्वेथाप नामक स्थान है जहाँ 3 शिलाश्रयों में प्राचीन चित्र हैं। यहाँ लाल रंग के निर्मित चित्र हैं, जिसके कारण यह नाम पड़ा होगा। यहाँ से दूर पूर्वी क्षितिज में लखु–उडियार का दृश्य अत्यधिक मनोरम है जिसके आधार पर डा0 यशोधर मठपाल का मानना है कि कल्पना की जा सकती है कि लखु–उडियार और ल्वेथाप के निवासी कभी आपस में सम्पर्क बनाए होंगे।
ग्वारख्या उड्यार (Gvaarakhya Cave)
गढ़वाल स्थित ग्वारख्या उड्यार चमोली जिले के डुंग्री नामक गाँव में स्थित है। डा. मठपाल के अनुसार गोरखा काल में नैपाली सैनिकों के एक दल ने गाँवों को लूट कर माल छिपाया था तथा अन्य दलों के परिचय हेतु चट्टानों पर चित्रों के रूप में लिखावट की थी। इस लोक विश्वास पर चित्रित शिलापट का नाम ग्वारख्या उड्यार पड़ा। परन्तु यहाँ न तो उड्यार (गुफा) जैसी कोई चीज है न ही खजाने छिपाने का स्थान। यहाँ पीले रंग की धारीदार चट्टान पर गुलाबी व लाल रंग से चित्र अंकित किए गए हैं जो संप्रति काफी धुंधले हो चुके हैं। डा. यशोधर मठपाल के अनुसार इन शिलाश्रयों में लगभग 41 आकृतियाँ हैं जिनमें 30 मानवों की, 8 पशुओं की तथा 3 पुरुषों की हैं। चित्रकला की दृष्टि से ये उत्तराखण्ड की सम्भवतः सबसे सुन्दर कृतियाँ हैं। यहाँ मनुष्य को त्रिशूल आकार से अंकित किया गया है। जब कि बकरीनुमा जानवरों के छाया चित्र काफी प्राकृतिक हैं। मुख्य विषय पशुओं को हाँका देकर घेरना है। ग्वारख्या उड्यार को यद्यपि स्थानीय लोग अरसे से जानते थे परन्तु पुराविदों हेतु इसको राकेश भट्ट ने उजागर किया।
चमोली जनपद में ही कर्णप्रयाग-ग्वालदम मोटर मार्ग पर एक छोटा सा गाँव है किमनी जिसके पास ही श्वेत रंग से चित्रित एक शिलाश्रय है। यहाँ पशुओं आदि की आकृतियाँ अत्यन्त धूमिल अवस्था में विद्यमान हैं। इसके अतिरिक्त उत्तरकाशी के पुरौला कस्बे से 5 कि.मी. दक्षिण में यमुना घाटी में, बांयी ओर सड़क से लगभग 20 मीटर की गहराई पर काले रंग का एक आलेख है जो लगभग मिट चुका है। डा. मठपाल का मानना है कि यह लगभग 2100 से 1400 वर्ष पुराना है तथा शंख लिपि जो अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है, में लिखा है।
उत्तराखंड के कुछ प्रमुख गुफाएँ
- वशिष्ठ गुफा – टिहरी गढ़वाल
- हनुमान गुफा – लंगासू, गिरसा चमोली
- राम गुफा – बद्रीनाथ के समीप
- भरत गुफा – लंगासू, गिरसा चमोली
- व्यास गुफा – बद्रीनाथ के समीप
- गौरखनाथ गुफा – श्रीनगर
- गणेश गुफा – बद्रीनाथ के समीप
- शंकर गुफा – देवप्रयाग
- स्कन्द गुफा – बद्रीनाथ के समीप
- पांडुखोली गुफा – दूनागिरी (अल्मोड़ा)
- भीम गुफा – केदारनाथ के समीप
- सुमेरु गुफा – गंगोलीहाट (पिथौरागढ़)
- ब्रह्मा गुफा – केदारनाथ के समीप
- स्वधर्म गुफा – पिथौरागढ़
- गलछिया गुफा – मालपा (पिथौरागढ़)
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