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ज्वालामुखी (Volcano)

ज्वालामुखी (Volcano)

सामान्यतः ज्वालामुखी (Volcano) एक वृत्ताकार छिद्र (Circular Hole) अथवा दरार (Crack) के रूप में प्रारम्भ होता है। उस छिद्र का सम्बन्ध भू-गर्भ में अति गहराई से रहता है। भीतरी उद्वेग से इस छिद्र की रचना होती है। इस छिद्र से भीतरी गरम लावा, तप्त गैसें, उष्ण वाष्प तथा अन्य शैल पदार्थ बाहर निकलते हैं। 

ज्वालामुखीय पदार्थ (Volcanic Material)

ज्वालामुखी से दो प्रकार के पदार्थ निकलते हैं।

  1. लावा पदार्थ (Slag material)
  2. पायरोक्लास्टिक पदार्थ (Pyroclastic material) 

ज्वालामुखी के अंग (Parts of Volcanic)

Parts of Volcanic

जब ज्वालामुखी छिद्र के चारों तरफ क्रमशः जमा होने लगते हैं तो ज्वालामुखी शंकु का निर्माण होता है। जब जमाव अधिक हो जाता है, तो शंकु काफी बड़ा हो जाता है तथा पर्वत का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार के शंकु को ‘ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountains)’ कहते हैं। इस पर्वत के ऊपर लगभग बीच में एक छिद्र होता है, जिसे ‘ज्वालामुखी छिद्र (Volcanic Cavity)’ कहते हैं। इस छिद्र का धरातल के नीचे भू-गर्भ से सम्बन्ध एक पतली नली से होता है। इस नली को ‘ज्वालामुखी नली (Volcanic Tube)’ कहते हैं। जब ज्वालामुखी का छिद्र विस्तृत हो जाता है तो उसे ‘ज्वालामुखी का मुख (Volcano)’ कहते हैं। जब धंसाव या अन्य कारण से ज्वालामुखी का विस्तार अत्यधिक हो जाता है तो उसे ‘काल्डेरा (Caldera)’ कहते हैं।

ज्वालामुखियों का वर्गीकरण (Classification of Volcanic)

ज्वालामुखी के प्रकार निष्कासित पदार्थ एवं उद्गार की भिन्नता के कारण ज्वालामुखी की आकृति में भिन्नता पाई जाती है। लैक्रोई (1908) ने उद्गार के आधार पर तथा कॉटन (1944) ने निष्कासित पदार्थ की भिन्नता के आधार पर ज्वालामुखियों का वर्गीकरण किया।

ज्वालामुखी उद्गार की अवधि के अनुसार वर्गीकरण (Classification by Volcanic Eruption Period)

ज्वालामुखी हमेशा क्रियाशील नहीं होते। उद्गार की अवधि के अनुसार ये तीन प्रकार के होते हैं :

  1. सक्रिय व जाग्रत ज्वालामुखी (Active Volcanoes) – इन ज्वालामुखियों से सदैव वाष्प, गैस, राख, धुआँ, विखण्डित पदार्थ एवं प्रायः लावा निष्कासित होता रहता है। लिपारी द्वीप के स्ट्राम्बोली एवं इटली के एटना ऐसे ही सक्रिय ज्वालामुखी हैं। अनुमानतः विश्व में 50 सक्रिय ज्वालामुखी पाये जाते हैं। 
  2. प्रस्तुत ज्वालामुखी (Presented Volcano) – ऐसे ज्वालामुखी जो उद्गार के पश्चात् कुछ अवधि तक शांत रहते हैं तथा अचानक पुनः सक्रिय हो जाते हैं, प्रसुप्त ज्वालामुखी कहलाते हैं। हाल ही में कोलम्बिया (दक्षिण अमेरिका) में नेवादो डेल रुईज के 390 वर्ष तक शांत रहने के पश्चात् नवम्बर 1985 में सक्रिय होने पर समस्त आरमेरो नगर नष्ट हो गया। 
  3. मृत अथवा निर्वापित ज्वालामुखी (Dead or Frozen Volcano) – ये वे ज्वालामुखी हैं जो अतीत काल में सक्रिय हुए थे किन्तु शताब्दियों से वे निष्क्रिय हैं। इनके क्रेटर में जल भरने से झीलें बन जाती हैं। भविष्य में भी इनके उद्गार की संभावना नहीं होती। ईरान का कोह-सुलतान व देमवेन्द तथा बर्मा का पोपा ऐसे ही ज्वालामुखी हैं। 

ज्वालामुखी द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ  (Topography Created by Volcanoes)

ज्वालामुखी क्रियाओं के दो भेद हैं – 

  1. अन्तर्ववर्ती क्रियाएँ तथा
  2. बहिर्वर्ती क्रियाएँ। 

इन दोनों क्रियाओं द्वारा विभिन्न प्रकार के भू-रूपों का निर्माण होता है।

  1. अन्तर्वर्ती भू-स्थलाकृतियाँ (Intermediate Topography) – जब अन्तर्वर्ती ज्वालामुखीय क्रियाओं द्वारा भू-गर्भ की गहराईयों से मैग्मा ऊपर उठकर भू-पटल की ओर अग्रसर होता है तथा मार्ग में ही विभिन्न गहराईयों पर शीतल होकर ठोस बन जाता है तो उसके परिणामस्वरूप कई प्रकार की भू-स्थलाकृतियाँ बन जाती हैं। इन भू-स्थलाकृतियां में बैथोलिथ, लैकोलिथ, फैकोलिथ, लेपोलिथ, डाइक, सिल, स्कंध एवं वृत्त स्कन्ध इत्यादि प्रमुख हैं। ये स्थलाकृतियाँ भू-गर्भ में बनती हैं इसलिए उन्हें अन्तर्वर्ती भू-आकार कहा जाता है।
  2. बहिर्वर्ती स्थलाकृतियाँ (Outlying Topography) – बहिर्वर्ती ज्वालामुखी क्रियाओं द्वारा जब भू-गर्भ के विभिन्न प्रकार के पदार्थ धरातल के ऊपर आकार निक्षेपित हो जाते हैं तो उससे अधिक प्रकार के भू-आकार बन जाते हैं।
    ये दो प्रकार के होते हैं – उत्थित भू-आकार तथा निमज्जित भू-आकार।
    1. ज्वालामुखी शंकु (Volcanic Cones) – ज्वालामुखी के केन्द्रीय उद्गार होने पर निष्कासित पदार्थ ज्वालामुखी के चारों ओर जमा होकर शंकु का रूप धारण कर लेता है। इसकी आकृति एक छोटे टीले से लेकर उच्च पर्वत जैसी होती है। ये शंकु निम्न प्रकार के होते हैं :
      1. लावा शंकु (Lava Cone) – जब किसी शंकु की रचना केवल भू-गर्भ से निकले वाले लावा के द्वारा होती है तो उसे लावा शंकु कहते हैं। लावा से बने ये शंकु लावा की द्रवणशीलता के अनुसार भिन्न होते हैं। 
      2. सिण्डर या राख शंकु (Cinder or Ash Cone) – इस प्रकार के शंकुओं की रचना प्रायः विस्फोटीय ज्वालामुखियों द्वारा होती है। ये शंकु ढीले और असंगठित पदार्थों से बनते हैं। इनमें राख तथा अंगार (Cinder) की मात्रा अधिक होती है। ये अपनी रचना में पूर्ण शंकुवत होते हैं इनके किनारे अवतल ढाल वाले होते हैं। मेक्सिको का जोरल्लो, सान साल्वेडोर का माउण्ट इजाल्को, सिण्डर शंकु के उदाहरण हैं।
    1. क्रेटर (Crater) – ज्वालामुखी के मुख को क्रेटर कहते हैं। इनका व्यास कुछ फिट से लेकर कई मील तक होता है। अलास्का के कटमाई क्रेटर का व्यास 4.8 किमी. इन्डोनेशिया में क्राकाटाओं का 6.4 किमी., जापान में ऐरा का व्यास 2.4 किमी., न्यू-मैक्सिकों में वेलिस ज्वालामुखी का व्यास 2.9 किमी. है। इसकी दीवारें 1200 से 2000 फीट ऊँची हैं। संयुक्त राज्य के ओरेगन राज्य में स्थित क्रेटर में जल भरने से क्रेटर झील निर्मित हो गयी है।
    2. काल्डेरा (Caldera) – स्पेनिश भाषा में काल्डेरा का अर्थ ‘कड़ाह’ है। यह क्रेटर का विस्तृत कड़ाहनुमा गर्त होता है। इसकी उत्पत्ति के विषय में दो विपरीत मत प्रचलित हैं। प्रथम संकल्पना के अनुसार काल्डेरा का निर्माण पूर्णरूपेण ऊटर के धंसाव से होता है जबकि द्वितीय संकल्पना के अनुसार काल्डेरा का निर्माण ज्वालामुखी के विस्फोटक उद्रेन से होता है। वर्तमान पर्यवेक्षणों तथा प्रमाणों के आधार द्वितीय संकल्पना ही अधिक सत्य प्रतीत होती है। कनारी द्वीप में ला काल्डेरा, अलास्का में कटमाई, इण्डोनेशिया में काकाटाओ, न्यूमैक्सिको में वेलिस तथा जापान में असो काल्डेरा प्रसिद्ध हैं।

मुख्य ज्वालामुखी

नाम 

देश

स्ट्रांबोली  इटली
एटना  इटली
लाकी  आइसलैण्ड 
देमबन्द  ईरान 
अल तुर्ग  जार्जिया 
अराशत  अर्मेनिया 
माउन्ट रेनियर संयुक्त राज्य अमेरिका 
माउंट रैजल  कनाडा 
कटमई  अलास्का 
कोटोपैक्सी  इक्वेडोर 
फ्यूजीयामा  जापान 
क्राकाटोआ  इण्डोनेशिया 
सेंट हेलेना  अटलांटिक महासागर 
किलिमंजारो तंजानिया
माउंट  केन्या  केन्या
मेरु केन्या

 

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