माध्यमिक शिक्षा आयोग (मुदालियर आयोग) 1952-53
(Mudaliar Commission)
- गठन – 23 सितम्बर 1952
- रिपोर्ट पेश – 29 अगस्त 1953
- अध्यक्ष – डॉ० ए० लक्ष्मण स्वामी-मुदालिय
- सचिव – श्री एस०एन० बसु
- सदस्य संख्या – 10
- सहकारी सदस्य – 17
माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य
- जनतांत्रिक नागरिकता का विकास ।
- सर्वांगीण व्यक्तित्व का विकास ।
- व्यावसायिक कुशलता में वृद्धि ।
- नेतृत्व का विकास ।
माध्यमिक शिक्षा का संगठनात्मक ढाँचा
माध्यमिक शिक्षा आयोग ने राष्ट्र की तात्कालिक जरूरतों के संदर्भ में माध्यमिक शिक्षा के पुनर्संगठन संबंधी निम्न संस्तुतियाँ की हैं –
- माध्यमिक शिक्षा की अवधि सात वर्ष होनी चाहिए।
- यह शिक्षा 17 वर्ष तक की आयु के बालक तथा बालिकाओं के लिए होनी चाहिए।
- इंटरमीडिएट कक्षा को खत्म कर दिया जाये एवं उसका प्रथम वर्ष माध्यमिक शिक्षा एवं द्वितीय वर्ष स्नातक शिक्षा से संबंधित कर दिया जाये।
- बहुउद्देशीय विद्यालयों की स्थापना की जाये।
- औद्योगिक शिक्षा के विकास हेतु बड़े-बड़े उद्योगों पर उद्योग शिक्षा कर लगाया जाये।
- माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं को गृहोपयोगी कार्यों के प्रशिक्षण हेतु गृह-विज्ञान विषय की अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जाये।
- ग्रामीण क्षेत्रों के माध्यमिक विद्यालयों में कृषि, बागवानी, पशुपालन एवं कुटीर उद्योगों को प्रधानता प्रदान की जाये।
- हर प्रांत में आवासीय माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना की जाये।
- विकलांग बालकों हेतु शिक्षा के उचित प्रबंध किये जायें।
माध्यमिक विद्यालयों का पाठ्यक्रम
माध्यमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रमों के पुनर्सशोधन के संदर्भ में माध्यमिक शिक्षा आयोग की महत्वपूर्ण सिफारिशें निम्नवत हैं –
- पाठ्यक्रम का संबंध व्यावहारिक सामाजिक जीवन से स्थापित किया जाये।
- पाठ्यक्रम बालकों को विभिन्न तरह के अनुभव प्रदान करने में सक्षम हो।
- पाठ्यक्रम वैविध्यपूर्ण एवं लचीला हो।
- पाठ्यक्रमों में सह-संबंध हो।
- पाठ्यक्रम में उचित मनोरंजनात्मक क्रियाओं का समावेश हो।
- मिडिल अथवा जूनियर हाईस्कूल स्तर पर छात्रों को भाषाएं, सामाजिक-विज्ञान, सामान्य विज्ञान, गणित, कला, संगीत, शिल्प एवं शारीरिक शिक्षा आदि को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
- हायर सैकेंडरी पाठ्यक्रम में विविधता हो एवं वह छात्रों की योग्यताओं तथा अभिरुचियों के अनुकूल हो। हायर सैकेंडरी पाठ्यक्रम में निम्न सात समूह होने चाहिए – (i) मानव विज्ञान, (ii) विज्ञान, (iii) टेक्नीकल विषय, (iv) वाणिज्य विषय, (v) कृषि-विज्ञान, (vi) ललित कलाएं, (vii) गृह विज्ञान।
परीक्षा तथा शैक्षिक मूल्यांकन
आयोग के परीक्षा संबंधी सुझाव निम्न हैं –
- बाह्य परीक्षाओं की संख्या में पर्याप्त कमी की जाये।
- निबंधात्मक परीक्षाओं के स्वरूप में परिवर्तन किया जाये, जिससे इन परीक्षाओं की त्रुटियों का निराकरण किया जा सके।
- छात्रों के मूल्यांकन का आधार आंतरिक परीक्षाएं, विद्यालय अभिलेख एवं नियतकालिक परीक्षाएं हों।
- छात्रों का मूल्यांकन आंकिक न होकर प्रतीकात्मक हो।
- सैकेंडरी पाठ्यक्रम की अवधि खत्म हो जाने पर एक सार्वजनिक परीक्षा ली जाये।
माध्यमिक शिक्षा के दोष
- माध्यमिक शिक्षा का अस्पष्ट संगठन।
- बोझिल पाठ्यचर्या।
- बहुउद्देशीय स्कूलों की स्थापना अव्यावहारिक।
- पाठ्यपुस्तक समिति में उच्च न्यायाधीश की नियुक्ति ।
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