राधाकृष्णन आयोग 1948 – 1949
(Radhakrishnan Commission 1948 – 1949)
- गठन – 4 नवम्बर 1948
- रिपोर्ट पेश – 25 अगस्त 1949
- सचिव – निर्मल कुमार सिद्धांत
- अध्यक्ष – डॉ. सर्वोपल्ली राधाकृष्णन
- सदस्य संख्या – 10 (डॉ. जाकिर हुसैन, डॉ. लक्ष्मण स्वामी मुदालियर, डॉ. आर्थर मार्गन, डॉ. जेम्स एफ डफ, डॉ. मेघनाद साहा, डॉ. कर्म नारायण बहल व डॉ. तारा चन्द्र)
- इसे विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग भी कहते हैं ।
- यह स्वतंत्रत भारत का पहला शिक्षा आयोग था ।
- उद्देश्य – भारत में विश्वविद्यालय शिक्षा का परीक्षण और सुधार करना।
- महत्वपूर्ण सिफ़ारिश – उच्च शिक्षा में महिलाओं के लिए समान अवसर और सुविधाएँ।
- प्रभाव – शैक्षिक पहुंच में लैंगिक समानता की शीघ्र पहचान।
- योगदान – लैंगिक समावेशन और समानता पर ध्यान केंद्रित करते हुए भविष्य के शैक्षिक सुधारों के लिए आधार तैयार किया।
सुझाव
- शिक्षा संकाय (Faculty of Education)
- शिक्षा का स्तर (Education Level)
- विश्वविद्यालय का प्रशासन और वित्त (Administration & Finance of the University)
- विश्वविद्यालय शिक्षा की संरचना और संगठन (Structure & Organization of University Education)
1. शिक्षा संकाय (Faculty of Education)
- इसके अनुसार शिक्षकों को 4 श्रेणियों में विभाजित किया गया –
- प्रोफ़ेसर (Professor)
- पाठक (Reader)
- व्याख्याता (Lecturer)
- प्रशिक्षक (Research Fellows)
- शिक्षण कार्य सप्ताह में 18 घंटों से अधिक नहीं होना चाहिए ।
- शिक्षण कार्य दिवसों की संख्या वर्ष में 180 दिन होने चाहिए ।
- शिक्षक की सेवा अवकाश की उम्र 60 से बढ़ाकर 64 कर दी गई ।
- विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में छात्रसंघों की स्थापना का सुझाव ।
- विश्वविद्यालय शिक्षा से पहले 12 वर्षों का अध्ययन अनिवार्य ।
2. शिक्षा का स्तर (Education Level)
- विश्वविद्यालयों में 3,000 से अधिक और उससे सम्बंधित महाविद्यालयों में 1,500 से अधिक विद्यार्थियों की संख्या नहीं होनी चाहिए ।
- शिक्षण कार्य दिवसों की संख्या एक वर्ष में 180 दिन होनी चाहिए।
- अध्धयन के किसी भी कोर्स के लिए पाठ्य पुस्तक निर्धारित नहीं की जानी चाहिए ।
- परीक्षाओं के स्तर को उठाने के लिए –
- प्रथम श्रेणी – 70% से अधिक
- द्वितीय श्रेणी – 55% से 69%
- तृतीय श्रेणी – 40% से 54%
3. विश्वविद्यालय का प्रशासन और वित्त (Administration & Finance of the University)
- उच्च शिक्षा का वित्तीय भार केन्द्र व प्रान्तीय सरकारें संयुक्त रूप से वहन करें।
- विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को विभिन्न मदो भवन निर्माण, प्रयोगशाला, पुस्तकालय, वाचनालय एवं खेलकूद आदि की व्यवस्था के लिए अनुदान दिया जाए।
- शिक्षकों के वेतन तथा अन्य कार्यों के लिए अनुदान देने एवं महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में समरूपता स्थापित करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की स्थापना की जाए।
- उच्च शिक्षा की व्यवस्था का उत्तरदायित्व केन्द्र व राज्य सरकार दोनों का होना चाहिए। अतः उच्च शिक्षा को समवर्ती सूची में रखा जाए।
4. विश्वविद्यालय शिक्षा की संरचना और संगठन (Structure & Organization of University Education)
- उच्च शिक्षा का संगठन तीन स्तरों पर किया जाए –
- स्नातक (U.G.) – 3 वर्ष
- स्नातकोत्तर (P.G.) – 2 वर्ष
- अनुसंधान (Research) – 2 वर्ष
- उच्च शिक्षा का वर्गीकरण तीन वर्गों में –
- कला
- विज्ञान
- व्यावसायिक व तकनीकी शिक्षा
- कृषि
- वाणिज्य
- इंजीनियरिंग एवं तकनीकी
- चिकित्सा
- कानून
- शिक्षक प्रशिक्षण व्यवसायिक व तकनीकी शिक्षा को 6 वर्गों में विभाजित किया जाए –
- कृषि, वाणिज्य, इंजीनियरिंग एवं तकनीकी, चिकित्सा और शिक्षक प्रशिक्षण के लिए स्वतन्त्र सम्बद्ध महाविद्यालय खोले जाएँ।
- कृषि की उच्च शिक्षा व शोध कार्य हेतु अलग से कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किए जाएँ।
- ग्रामीणों की उच्च शिक्षा के लिए ग्रामीण क्षेत्रो में ग्रामीण विश्वविद्यालय (Rural Universities) स्थापित किए जाएँ और उनसे सम्बद्ध महाविद्यालय स्थापित किए जाएँ।
- उच्च शिक्षा की व्यवस्था के सुचारू रूप से संचालन हेतु महाविद्यालयों के शिक्षकों के लिए भिन्न-भिन्न पदनामों के साथ भिन्न-भिन्न वेतनमान निश्चित किया जाना चाहिए।
- हिन्दी भाषा का संघीय भाषा के रूप में विकास किया जाय और देश के सभी भागों में उसे उच्चतर माध्यमिक एवं विश्वविद्यालय स्तर पर अनिवार्य विषय बना दिया जाय।
- माध्यमिक एवं विश्वविद्यालय स्तर पर प्रत्येक छात्र को तीन भाषाओं का ज्ञान कराया जाय –
- क्षेत्रीय भाषा,
- राष्ट्र भाषा एवं
- अंग्रेजी भाषा
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