Daily Indian Express Editorial - One Nation, One Election Kovind Committee's Recommendations and Their Implications

एक देश, एक चुनाव: कोविंद समिति की सिफारिशें और उनके परिणाम

भारत सरकार ने एक साथ चुनाव कराने के विचार को आगे बढ़ाने के लिए रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया। इस समिति का काम लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के पक्ष में सिफारिशें प्रस्तुत करना था। हालांकि, इस समिति की संरचना, इसके निष्कर्ष और इसका उद्देश्य कई सवाल खड़े करते हैं। यह लेख “Indian Express” में प्रकशित “Kovind committee report: dead on arrival” पर आधारित है, इस लेख के द्वारा हम इस रिपोर्ट की विस्तृत जानकारी, इसके प्रमुख बिंदु और इसके प्रभावों को समझने का प्रयास करेंगे।

संविधान में संशोधन: क्या एक साथ चुनाव भारत के लिए सही कदम है? 
(Constitutional Amendments: Is Simultaneous Elections the Right Move for India?)

समिति के उद्देश्य और संदर्भ

कोविंद समिति को यह स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि वह भारत में एक साथ चुनाव कराने की संभावना पर विचार करे और इस पर सिफारिशें दे। इसका मतलब था कि समिति को केवल एक साथ चुनाव के पक्ष में सिफारिशें देनी थीं और इसके खिलाफ किसी भी तरह की सिफारिश करने का अधिकार नहीं था। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि समिति की स्वतंत्रता सीमित थी और उसका एजेंडा पहले से निर्धारित था।

समिति की संरचना और विशेषज्ञता

समिति की संरचना भी इस ओर इशारा करती है कि यह एक निष्पक्ष अध्ययन नहीं था। समिति में केवल एक सदस्य संवैधानिक विशेषज्ञ था, जबकि अन्य सदस्य राजनीति, नौकरशाही, और संसदीय प्रक्रिया से जुड़े थे। इन सदस्यों में से कोई भी लंबे समय तक संवैधानिक कानून के अध्ययन या अभ्यास में नहीं था। रामनाथ कोविंद को समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करना शायद केवल एक सम्मानजनक पदनाम था, लेकिन इससे समिति की वैधता पर सवाल उठते हैं। समिति निश्चित रूप से संवैधानिक विद्वानों का समूह नहीं थी, और इसने स्वतंत्र और निष्पक्ष सिफारिशें देने की क्षमता को प्रभावित किया।

एक साथ चुनाव की सिफारिश

जैसा कि अपेक्षित था, समिति ने लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की। समिति का मानना था कि हर पांच साल में एक बार लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होने चाहिए। हालाँकि, यह मॉडल किसी भी बड़े संघीय और लोकतांत्रिक देश में नहीं देखा गया है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जर्मनी जैसे बड़े संघीय देशों में चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका में प्रतिनिधि सभा के चुनाव हर दो साल में होते हैं, जबकि राष्ट्रपति और गवर्नरों के चुनाव चार साल के अंतराल पर होते हैं। जर्मनी में भी हाल ही में थुरिंगिया और सैक्सोनी नामक दो राज्यों ने अपने अलग चुनाव चक्र के तहत चुनाव आयोजित किए थे, जो राष्ट्रीय संसद के चुनाव चक्र से अलग थे।

संघीय और संसदीय लोकतंत्र के विरोधाभास

भारत एक संघीय और संसदीय लोकतंत्र है, जहाँ हर दिन सरकार को जनता के प्रतिनिधियों के प्रति जिम्मेदार होना पड़ता है। संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका का कार्यकाल निश्चित नहीं होता, और यह सरकार के प्रदर्शन पर निर्भर करता है। इस प्रणाली का चुनाव संविधान निर्माताओं ने पूरी बहस के बाद किया था, और उन्होंने राष्ट्रपति प्रणाली को खारिज किया था क्योंकि उन्हें लगा कि भारत की विविधता और जटिलता के लिए संसदीय प्रणाली अधिक उपयुक्त होगी।

कोविंद समिति का प्रस्ताव एक साथ चुनाव कराने का था, जो इस प्रणाली के विरोधाभासी था। इसका मुख्य तर्क यह था कि इससे चुनावी खर्च में कमी आएगी और राजनीतिक अस्थिरता को रोका जा सकेगा। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह संघीय ढांचे और राज्यों की स्वायत्तता पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।

प्रस्तावित संवैधानिक संशोधन

कोविंद समिति की रिपोर्ट में बताया गया है कि एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में कई संशोधन करने होंगे। नए अनुच्छेद 82ए, 83(3), 83(4), 172(3), 172(4), 324ए, 325(2) और 325(3) जोड़े जाएंगे, और अनुच्छेद 327 में संशोधन किया जाएगा। इन संशोधनों का मुख्य उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को समान बनाना होगा।

समिति की रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि यदि ये संवैधानिक संशोधन 2024 के अंत तक पास हो जाते हैं, तो 2029 में एक साथ चुनाव होंगे। इसका मतलब यह होगा कि 2025, 2026, 2027 और 2028 में चुनी जाने वाली राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 1 से 4 साल तक घटा दिया जाएगा। उदाहरण के लिए, 2027 में चुनी गई विधानसभा का कार्यकाल सिर्फ दो साल का होगा, और 2028 में चुनी गई विधानसभा का कार्यकाल केवल एक साल का। यह स्थिति न केवल राज्य के लोगों के लिए अनुचित होगी, बल्कि राजनीतिक दलों के लिए भी समस्याएं उत्पन्न करेगी।

राजनीतिक अस्थिरता का जोखिम

समिति की रिपोर्ट ने उन समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया, जो एक साथ चुनाव कराने से उत्पन्न हो सकती हैं। अगर किसी राज्य में कोई सरकार गिर जाती है, तो नए चुनाव केवल बचे हुए कुछ महीनों के लिए कराए जाएंगे। ऐसे चुनाव अर्थहीन होंगे और केवल वे ही राजनीतिक दल या उम्मीदवार चुनाव लड़ सकेंगे, जो आर्थिक रूप से सक्षम होंगे। इससे चुनावी प्रक्रिया पर धन का अत्यधिक प्रभाव होगा, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है।

ऐतिहासिक और आर्थिक प्रभाव

कोविंद समिति की सिफारिशें भारत के पिछले 70 वर्षों के चुनावी इतिहास के विपरीत हैं। 1951 से 2021 तक के चुनावी इतिहास में केवल 1981-1990 और 1991-2000 के दशक में राजनीतिक अस्थिरता देखने को मिली थी। इसके बाद के वर्षों में राजनीतिक स्थिरता रही है, और अधिकांश राज्य सरकारों ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है। staggered चुनावों के कारण आर्थिक विकास भी प्रभावित नहीं हुआ है। उदाहरण के लिए, यूपीए सरकार ने अपने 10 वर्षों के दौरान 7.5% की औसत विकास दर हासिल की थी, जबकि एनडीए सरकार ने भी बेहतर विकास दर का दावा किया है।

विपक्ष का प्रतिरोध और निष्कर्ष

कोविंद समिति की रिपोर्ट ने यह मान लिया कि एनडीए सरकार संविधान संशोधन विधेयकों को आसानी से संसद में पारित करा लेगी। हालांकि, विपक्ष के पास इसे रोकने के लिए पर्याप्त संख्या में सांसद हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ‘एक देश, एक चुनाव’ के पीछे का असली उद्देश्य देश की विविधता और बहुलता पर एकरूपता थोपना है। इसलिए, उम्मीद है कि इस सिफारिश को संसद में सफल होने के बजाय असफलता का सामना करना पड़ेगा।

 

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