मध्यकालीन भारत के प्रमुख राजवंश
प्रतिहार राजवंश (Pratihar Dynasty)
उत्पत्ति
- प्रतिहार प्रसिद्ध गुर्जरों की एक शाखा थे।
- गुर्जर उन मध्य एशियाई कबीलों में से एक थे, जो गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद हूणों के साथ आए थे।
- अबु जैद एवं अल-मसूदी जैसे अरब लेखकों ने उत्तर के गुर्जरों से उनके संघर्ष का उल्लेख किया है।
- सबसे महत्त्वपूर्ण प्रमाण कन्नड़ के कवि पंपा का है जिसने महीपाल को ‘गुर्जरराज’ कहा है।
- यह नाम राष्ट्रकूट दरबार के ‘प्रतिहार’ (उच्च अधिकारी) पद धारण करने वाले राजा से व्युत्पन्न है।
नागभट्ट प्रथम (Nagabhatta I)
- प्रतिहार राजवंश आठवीं शताब्दी के मध्य में लोकप्रिय हुए, जब उनके शासक नागभट्ट प्रथम ने अरबों के आक्रमण से पश्चिम भारत की रक्षा की तथा भड़ौच तक अपना प्रभुत्व स्थापित किया।
- उसने अपने उत्तराधिकारियों को मालवा, गुजरात तथा राजस्थान के कुछ हिस्सों समेत एक शक्तिशाली राज्य सौंपा।
- नागभट्ट प्रथम के उत्तराधिकारी उसके भाई के पुत्र ककुष्ठ तथा देवराज थे, तथा दोनों ही महत्त्वपूर्ण नहीं थे।
वत्सराज (Vatsaraj)
- वत्सराज एक शक्तिशाली शासक था तथा उसने उत्तर भारत में एक साम्राज्य की स्थापना की।
- उसने प्रसिद्ध भांडी वंश को पराजित किया जिनकी राजधानी सम्भवतः कन्नौज थी।
- उसने बंगाल के शासक धर्मपाल को पराजित किया ।
- वत्सराज को राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने बुरी तरह पराजित किया।
नागभट्ट द्वितीय (Nagabhatta II)
- वत्सराज का उत्तराधिकारी उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय था जिसने अपने परिवार की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया।
- उसे राष्ट्रकूट शासक गोविंद तृतीय से पराजित होना पड़ा।
- नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज पर आक्रमण कर धर्मपाल के नामजद शासक चक्रयुद्ध को पदच्युत किया तथा कन्नौज को प्रतिहार राज्य की राजधानी बनाया।
- प्रतिहार शासन ने धर्मपाल को पराजित कर मुंगेर तक अधिकार कर लिया।
- उसके पोते के ग्वालियर अभिलेख के अनुसार नागभट्ट द्वितीय ने अनर्त्त (उत्तरी कठियावाड़), मालवा या मध्य भारत, मत्स्य या पूर्वी राजपूताना, कीरात (हिमालय का क्षेत्र), तुरूष्क (पश्चिम भारत के अरब निवासी) तथा कौशांबी (कोसम) क्षेत्र में वत्सों को पराजित किया।
- नागभट्ट द्वितीय के अधीन प्रतिहार साम्राज्य की सीमा में राजपूताना के भाग, आधुनिक उत्तर प्रदेश का एक बड़ा भाग, मध्य भारत, उत्तरी कठियावाड़ तथा आस-पास के क्षेत्र थे।
- नागभट्ट द्वितीय का उत्तराधिकारी उसका पुत्र रामभद्र था जिसके तीन वर्षों के छोटे शासन काल में पाल शासक देवपाल की आक्रामक नीतियों के कारण प्रतिहारों की शक्ति पर ग्रहण लग गया।
मिहिर भोज (Mihir Bhoj)
- रामभद्र के पुत्र मिहिरभोज के राज्यारोहण के साथ ही प्रतिहारों की शक्ति दैदीप्यमान हो गई।
- उसने अपने वंश का वर्चस्व बुंदेलखंड में पुनः स्थापित किया तथा जोधपुर के प्रतिहारों (परिहार) का दमन किया।
- भोज के दौलतपुर ताम्रपत्र अभिलेख से ज्ञात होता है कि प्रतिहार शासक मध्य तथा पूर्वी राजपूताना में अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल रहा था।
- उत्तर में उसका वर्चस्व हिमालय की पहाड़ियों तक स्थापित हो चुका था।
- मिहिरभोज, पाल शासक देवपाल से पराजित हुआ।
- पाल शासक देवपाल की मृत्यु के बाद मिहिरभोज ने कमजोर नारायण पाल को पराजित कर उसके पश्चिमी क्षेत्रों के बड़े भाग पर अधिकार कर लिया।
- मिहिरभोज का शासन काल काफी लम्बा 46 वर्षों तक का था।
- अरब यात्री सुलेमान ने उसकी उपलब्धियों का उल्लेख किया है।
महेंद्रपाल प्रथम (Mahendrapal I)
- मिहिरभोज का उत्तराधिकारी उसका पुत्र महेंद्र पाल प्रथम था।
- उसकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मगध तथा उत्तरी बंगाल की विजय थी।
- महेंद्र पाल के दरबार का सबसे प्रतिभाशाली व्यक्ति राजशेखर है जिसकी अनेक रचनाएं हैं- कर्पूरमंजरी, बाल रामायण, बाल तथा भारत, काव्य मीमांसा।
महिपाल (Mahipal)
- महेंद्रपाल की मृत्यु के बाद गद्दी पर अधिकार के लिए संघर्ष छिड़ गया।
- पहले उसके पुत्र भोज द्वितीय ने राजगद्दी पर अधिकार कर लिया।
- एक बार फिर इंद्र तृतीय के अधीन राष्ट्रकूटों ने प्रतिहारों पर प्रहार किया तथा कन्नौज नगर को नष्ट कर दिया।
- इंद्र तृतीय के दक्कन वापस लौट जाने के बाद महिपाल को अपनी स्थिति सुधारने का मौका मिला।
- अरब यात्री अलमसूदी, जो 915-16 में भारत आया था, ने कन्नौज के राजा की शक्ति तथा उसके संसाधनों का उल्लेख किया है जिसका राज्य पश्चिम में सिंध तक तथा दक्षिण में राष्ट्रकूट सीमा तक था।
- अरब यात्री ने राष्ट्रकूटों तथा प्रतिहारों के संघर्ष की पुष्टि की है तथा प्रतिहारों की महत्त्वपूर्ण सेना का उल्लेख किया है।
सन् 1036 ई के एक अभिलेख में उल्लिखित यशपाल सम्भवतः इस वंश का अंतिम शासक था।
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