कार्तिकेयपुर राजवंश (700 ई०) (Kartikeypur Dynasty 700 AD)
- स्थापना – 700 ई.
- उत्तराखंड का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश।
- संस्थापक – बसन्तदेव
- प्रथम राजधानी – जोशीमठ (चमोली)
- राजधानी स्थानांतरित – बैजनाथ (बागेश्वर) के पास बैधनाथ-कार्तिकेयपुर (कत्यूर घाटी)।
- स्रोत – बागेश्वर, कंडारा, पांडुकेश्वर, एवं बैजनाथ आदि स्थानो से प्राप्त ताम्र लेख।
- देवता – कार्तिकेय
- वास्तुकला तथा मूर्तिकला के क्षेत्र में यह उत्तराखंड का स्वर्णकाल था।
- इस राजवंश को उत्तराखंड व मध्य हिमालयी क्षेत्र का प्रथम ऐतिहासिक राजवंश माना जाता है।
- इतिहासकार लक्ष्मीदत्त जोशी के अनुसार कार्तिकेयपुर के राजा मूलतः अयोध्या के थे।
- इतिहासकार बद्रीदत्त पांडे के अनुसार कार्तिकेयपुर के राजा सूर्यवंशी थे।
कार्तिकेयपुर राजवंश के परिवार
1. बसंतदेव का राजवंश (कार्तिकेयपुर का प्रथम परिवार)
- संस्थापक – बसन्तदेव था।
- स्रोत – बागेश्वर त्रिभूवन राज शिलालेख
- उपाधि – परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर
- यह कार्तिकेयपुर राजवंश के प्रथम शासक था।
- बसन्तदेव ने बागेश्वर समीप एक मंदिर को स्वर्णेश्वर नामक ग्राम दान में दिया था।
- बागेश्वर, कंडारा, पांडुकेश्वर, एवं बैजनाथ आदि स्थानो से प्राप्त ताम्र लेखों से इस राजवंश के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
2. खपरदेव वंश
- खर्पर देव वंश का विवरण बागेश्वर लेख में मिलता है।
- खपरदेव वंश की स्थापना खर्परदेव ने की जो कि कार्तिकेयपुर में बसंतदेव के बाद तीसरी पीढ़ी का शासक था।
- इसका पुत्र कल्याण राज था।
- खर्परदेव वंश का अंतिम शासक त्रिभुवन राज था।
3. निम्बर वंश (कार्तिकेयपुर का द्वितीय परिवार)
- संस्थापक – निम्बर देव
- निम्बर वंश का सर्वाधिक उल्लेख – पांडुकेश्वर (जोशीमठ) के ताम्रपत्र में मिलता हैं।
- पांडुकेश्वर ताम्रपत्र की भाषा – संस्कृत
निम्बर वंश में निम्न शासक हुए –
1. निम्बर – यह निम्बर वंश का संस्थापक था। इसे शत्रुहन्ता भी कहा गया है।
2. इष्टगण – इसने समस्त उत्तराखंड को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया व कार्तिकेयपुर राज्य की सीमाओं को वर्तमान गढ़वाल कुमाँऊ तक विस्तारित किया।
3. ललितशूर देव
- यह एक महान निर्माता था।
- इन सभी राजाओं में सर्वाधिक ताम्रपात्र ललितसुरदेव के प्राप्त हुए।
- पांडुकेश्वर के ताम्रपत्र में इसे कालिकलंक पंक में मग्न धरती के उद्धार के लिये बराहवतार बताया गया
4. भूदेव –
- ललितसूरदेव का पुत्र भू-देव निम्बर वंश का अंतिम शासक था।
- इसने बैजनाथ मंदिर के निर्माण में सहयोग किया।
- बैजनाथ मंदिर बागेश्वर जिले के गरुड़ तहसील में स्थित है।
- यह मंदिर 1150 ई० में बनाया गया।
4. सलोड़ादित्य वंश (कार्तिकेयपुर का तीसरा परिवार)
- तालेश्वर एवं पांडुकेश्वर के ताम्रपत्र लेखों से ज्ञात होता है कि निम्बर वंश के बाद कार्तिकेयपुर में सलोड़ादित्य वंश के शासन का वर्णन मिलता है।
- सलोड़ादित्य वंश की स्थापना सलोड़ादित्य के पुत्र इच्छरदेव ने की।
- इच्छरदेव के बाद इस वंश में देसतदेव, पदमदेव, सुमिक्षराजदेव आदि शासक हुए।
- सुभिक्षराजदेव के बाद उसके किसी वंशज ने राजधानी कार्तिकेयपुर से कुमाँऊ के गोमती घाटी (कत्यूर घाटी) में स्थानांतरित की, जिसे बैजनाथ शिलालेख में वैधनाथ कार्तिकेयपुर कहा गया है।
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शंकराचार्य का उत्तराखण्ड आगमन
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कार्तिकेयपुर (कत्यूरी राजवंश राज्य प्रशासन)
पदाधिकारी
- प्रान्तपाल – सीमाओ की सुरक्षा
- घट्टपाल – गिरीद्वारों का रक्षक
- वर्मपाल – सीमावर्ती भागों में आने जाने वाले व्यक्ति पर निगाह रखता था
- नरपति – नदी घाटों पर आगमन की सुविधा व कर वसूली
सेना व सैन्यधिकारी
| सेना | सेना नायक |
| 1. पदातिक सेना | गोल्मीक |
| 2.अश्वारोही सेना | अश्वाबलाधिकृत |
| 3. गजारोगी सेना | हस्तिबलाधिकृत |
| 4. उष्ट्रारोहि सेना | उष्ट्रबलाधिकृत |
| तीनों आरोही सेना का सर्वोच्च पदाधिकारी – हस्त्यासवोष्ट्रबलाधिकृत | |
पुलिस विभाग के अधिकारी
- दोषापराधिक – अपराधी को पकड़ने वाला
- दुःसाध्यसाधनिक – गुप्तचर विभाग का अधिकारी
- चोरोद्वरणिक – चोर डाकुओं को पकड़ने वाला
कृषि से सम्बंधित अधिकारी
- आय साधन – कृषि व वन
- क्षेत्रपाल – कृषि की उन्नति का ध्यान रखने वाला
- प्रभातार – भूमि की नाप
- उपचारिक – भूमि के अभिलेख रखने वाला
- खण्डपति – वनों की रक्षा करने वाला
कर अधिकारी
- भोगपति – कर वसूली करने वाला
- भट्ट और चार – प्रसार – प्रजा से बेगार लेने वाला
शासन-प्रशासन
- राज्य – राजा
- प्रान्त – उपरिक
- जिले – विषपति
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