Tribes of Uttar Pradesh

उत्तर प्रदेश की विभिन्न जनजातियां

बुक्सा जनजाति (Buksa Tribe)

निवास

बुक्सा अथवा भोक्सा जनजाति उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में छोटी-छोटी ग्रामीण बस्तियों में निवास करती है।

उत्पत्ति व शारीरिक गठन

अधिकांश लोगों का मत है कि बुक्सा जनजाति पतवार राजपूत घरानों से सम्बन्ध रखती है। कुछ विद्वानों ने इन्हें मराठों द्वारा भगाये जाने के बाद यहाँ आकर बसा माना हैं । बुक्सा जनजाति के लोगों का कद और आँखें छोटी होती हैं। उनकी पलकें भारी, चेहरा चौड़ा एवं नाक चपटी होती है। कुल मिलाकर इनका सम्पूर्ण चेहरा ही चौड़ा दिखाई देता है। जबड़े मोटे और निकले हुए तथा दाढ़ी और मूंछे धनी और बड़ी होती हैं। स्त्रियों में गोल चेहरा, गेहुँआ रंग तथा मंगोल नाकनक्श स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैं। पुरुषों में श्याम वर्ण के लोग मिलते हैं जिनके शारीरिक लक्षण हिन्दुओं की नीची जाति के लोगों से मिलते है।

भाषा

बुक्सा लोग प्रमुख रूप से हिन्दी भाषा बोलते हैं। इनमें जो लोग लिखना-पढ़ना जानते हैं वे देवनागरी लिपि का प्रयोग करते हैं।

भोजन

इनका मुख्य भोजन मछली व चावल है। इसके अलावा ये लोग मक्का व गेहूँ की रोटी और दूध-दही का प्रयोग करते हैं। इन लोगों में बन्दर, गाय और मोर का माँस खाना वर्जित होता हैं। मद्यपान पुरुषों की सामान्य आदत है।

वेशभूषा

बुक्सा पुरुषों की वेशभूषा में धोती, कुर्ता, सदरी और सिर पर पगड़ी धारण करते हैं। नगरों में रहने वाले पुरुष गाँधी टोपी, कोट, ढीली पेन्ट और चमड़े के जूते, चप्पल आदि पहनते हैं। स्त्रियाँ पहले गहरे लाल, नीले या काले रंग की छींट का ढीला लहंगा पहनती थीं और चोली (अंगिया) के साथ ओढ़नी (चुनरी) सिर पर पहनती थीं, लेकिन अब स्त्रियों में साड़ी, ब्लाउज, स्वेटर एवं कार्कीगन का प्रचलन सामान्य हो गया है। ये राजस्थानी मेवाड़ी राजपूतों के समान सिर पर ‘इडरी के द्वारा ऊँचा जूड़ा बाँधती हैं जिसके ऊपर उनकी रंगीन ओढ़नी एक विशेष प्रकार से पड़ी होती है। हिन्दी फिल्मों की नकल कर लड़कियाँ अब केश सज्जा में नयी-नयी शैलियों का प्रयोग करने लगी हैं। विवाहित स्त्रियाँ हिन्दू उच्च जाति की स्त्रियों की भाँति माथे पर सिन्दूर की गोल बिन्दी अवश्य लगाती हैं और हाथों में काँच की चूड़ियाँ पहनती हैं।

सामाजिक संरचना

बुक्सा जनजाति चार सामाजिक वर्गों में बँटी हैबुक्सा ब्राह्मण समाज में सबसे ऊँचा स्थान रखते हैं। उसके बाद क्रमशः क्षत्रीय बुक्सा,  अहीर बुक्सा और नाई बुक्सा का स्थान है। हिन्दू जातियों के समान ही ये अन्तर्विवाही समूह के होते हैं, परन्तु हिन्दू समाज से भिन्न होते हैं, क्योंकि बुक्सा समाज में विवाह एक अनुबन्ध मात्र होता है। जो पति-पत्नी में से कोई भी किसी समय भंग कर सकता है। गाँव में प्रत्येक जाति के बक्सा बिना किसी भेद-भाव के एक साथ रहते हैं तथा गाँव में सहयोग और भाईचारे के साथ जीवन व्यतीत करते हैं।  ‘गोत’ अथवा ‘गोथ’ (गोत्र) बुक्सा समाज की व्यावहारिक मूल सामाजिक इकाई है। इलियर ने बुक्सा समाज को 15 गोत्रों में विभाजित किया है

विवाह

बुक्सा लोगों में भी हिन्दुओं के समान ही अनुलोम तथा प्रतिलोम विवाह भी प्रचलित हैं, साथ ही अन्तर्जातीय विवाह अधिकांशतः होते हैं। परिवार तथा विवाह का रूप हिन्दू समाज के समान है। अधिकांश संयुक्त तथा विस्तृत परिवार है। साथ ही, केन्द्रीय परिवार भी हैं अब धीरे-धीरे उनकी संख्या में वृद्धि हो रही है। परिवार पितृसत्तात्मक पितृवंशीय हैं। इन लोगों में हिन्दू समाज की ही भाँति पत्नी विवाह के उपरान्त पति के घर जाकर रहती है। वर्तमान में इनमें घर जमाई व्यवस्था बढ़ रही हैं। इनमें बहपत्नी प्रथा प्रचलित है। बहुपति प्रथा नहीं है। विधवा विवाह प्रचलित है। तलाक सरलता से हो जाता है। पूर्व वैवाहिक तथा अतिरिक्त वैवाहिक यौन सम्बन्धों में वृद्धि हो रही है। व्यक्तिवादी विचारधारा विकसित हो रही है जो नई चेतना, नई शिक्षा, जागृति तथा सामुदायिक विकास का परिणाम है।

धर्म

बुक्सा आदिवासियों में धर्म का पारम्परिक रूप हिन्दू धर्म का ही प्रतिरूप है। ये लोग महादेव, काली माई, दुर्गालक्ष्मी, राम, कृष्ण की पूजा करते हैं। काशीपुर (उत्तराखंड) की चौमुण्डा देवी सबसे बड़ी देवी मानी जाती है। इनके व्रत व त्योहार हिन्दुओं के समान ही होते हैं। होली, दीवाली, दशहरा, जन्माष्टमी प्रमुख त्योहार हैं। ग्रामदेवी की पूजा पवित्र ‘थान पर गाँव के बाहर होती है। प्रकृति पूजा जीव का रूप भी हिन्दू धर्म के समान होता है। उसके साथ-साथ जन्म से मृत्यु तक के प्रमुख संस्कार हिन्दुओं के समान होते हैं।

राजनीतिक संगठन

बुक्सा जनजाति में बिरादरी पंचायत एक मुख्य आदिवासी राजनीतिक संगठन है जो बुक्सा समाज में न्याय एवं व्यवस्था बनाये रखने के लिए उत्तरदायी है। बिरादरी पंचायत चार स्तरों में बँटी है। जिसमें सर्वोच्च अधिकारी तखत मुंसिफ, दरोगा और सिपाही नामक चार स्तर सम्मिलित हैं। इन सभी के अधिकारी वंशगत होते हैं और इन्हें समाज में बड़े सम्मान से देखा जाता है।

गाँव की पंचायत में तीन स्तर होते हैं। सरपंच, ग्राम पंचायत का सभापति और मुखिया। ये क्रमशः न्याय पंचायत अध्यक्ष, ग्राम पंचायत अध्यक्ष और गाँव का मुखिया होता है। ये सभी ग्राम प्रशासन के लिए कटिबद्ध होते हैं।

अर्थव्यवस्था

बुक्सा आदिवासियों के गाँव प्रायः उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में पाये जाते हैं। इस क्षेत्र को भाबर के नाम से भी जाना जाता है। यह क्षेत्र हरा-भरा, उपजाऊ भूमि और स्वास्थ्यकर जलवायु का क्षेत्र है। यहाँ बुक्सा लोग धान की खेती करते हैं। इसके साथ-साथ गन्ना, मक्का, गेहूँ, चना तथा लाहा (सरसों) भी उगाते हैं। कृषि के अतिरिक्त बुक्सा जनजाति के लोग गाय, भैंस, बकरी पालते हैं जिनका दूध भी प्रयोग किया जाता है। ये लोग नौकरी करना पसन्द नहीं करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति कृषि कार्य, लकड़ी, लोहे का काम, मकान बनाना, इलिया बुनना, मछली पकड़ने के जाल बुनना, बर्तन बनाना जानता है, परन्तु उनकी यह आत्मनिर्भरता और स्वावलम्बन धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। केन्द्र एवं प्रदेश सरकार द्वारा जनजातियों के आर्थिक उत्थान हेतु चलाई गई विभिन्न योजनाओं से इनकी आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति में काफी सुधार हुआ है।

2 Comments

  1. माहीगीर जनजाति में अगर कोई अपना कबीला खोजे तो उसके लिए क्या करना होगा
    अधिक जानकारी देने की कृपा करें

  2. बियार जनजाति के बार में बताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published.

error: Content is protected !!