बिहार के उच्चावच में अनेक प्रकार की विविधताएँ पाई जाती हैं। बिहार में पर्वत, पठार और मैदान सभी प्रकार की भू-आकृतियाँ पाई जाती हैं। यद्यपि अधिकांश भू-भाग मैदानी है, लेकिन
बिहार की भौगोलिक संरचना (Geographical structure of Bihar) बिहार में संरचनात्मक दृष्टिकोण से प्री-कैंब्रियन (Pre-Cambrian) कल्प से लेकर चतुर्थ कल्प तक की चट्टानें पाई जाती हैं। प्री-कैंब्रियन कल्प की चट्टानें धारवाड़ संरचना और विंध्यन
भौगोलिक स्थिति बिहार गंगा के मध्य मैदानी भाग में स्थित पूर्वी भारत का राज्य है। बिहार का वर्तमान स्वरूप 15 नवंबर, 2000 को झारखंड के पृथक् होने के बाद आया
यह आंदोलन बिहार के जनजातीय क्षेत्रों में सबसे अधिक संगठित और व्यापक माना जाता रहा है। इस आंदोलन के नायक बिरसा मुंडा को भगवान के अवतार रूप में मान्यता मिली
भूमिज विद्रोह को गंगानारायण हंगामा (Ganga Narayan Hangama) भी कहा जाता है। यह विद्रोह जनजातीय जमींदारों और जनजातीय लोगों का संयुक्त विद्रोह था, जिसकी अगुआई बड़ाभूम के राजा बेलाक नारायण
नोनिया विद्रोह (Noniya Rebellion) यह विद्रोह 1770 से 1800 ई. के बीच बिहार के शोरा उत्पादक क्षेत्रों हाजीपुर, तिरहुत, सारण और पूर्णिया में हुआ था। इस काल में बिहार शोरा
यह आंदोलन बिरसा आंदोलन से ही जनमा था। यह भी एक बहुआयामी आंदोलन था, क्योंकि इसके नायक भी अपनी सामाजिक अस्मिता, धार्मिक परंपरा और मानवीय अधिकारों के मुद्दों को लेकर
वीरभूम, ढालभूम, सिंहभूम, मानभूम और बाकुड़ा के जमींदारों द्वारा सताए गए संथाल 1790 ई. से ही संथाल परगना क्षेत्र, जिसे दामिन-ए-कोह कहा जाता था, में आकर बसने लगे। इन्हीं संथालों
तमाड़ विद्रोह (Tamad Rebellion) सन् 1771 में अंग्रेजों ने छोटानागपुर पर अपना अधिकार जमा लिया था और यहाँ के राजाओं एवं जमींदारों को कंपनी का संरक्षण मिल चुका था, जिससे
यह व्यापक विद्रोह छोटानागपुर, पलामू, सिंहभूम और मानभूम की कई जनजातियों का संयुक्त विद्रोह था, जो अंग्रेजों के बढ़ते हस्तक्षेपों के शोषण के खिलाफ उपजा था। कोल विद्रोह का कारण
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